सुभाषचंद्र बोस- दूरदर्शी नेता Yash Patwardhan द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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सुभाषचंद्र बोस- दूरदर्शी नेता

बाल्यकाल से ही नेताजी निडर,सेवाभावी,पढ़ाई में अव्वल और पराक्रमी थे। विद्यालयमे भी वो टोलियों को संगठित करना,लड़ाई लड़ना उन्हें पसंद था। इसके अलावा महामारी के वक़्त मरीजों की सेवा करने मे भी अग्रसर थे। उन्होंने 1917 मे बी.ऐ के इम्तिहान उत्तीर्ण किये। उसके बाद पिताजी के आग्रह पर वो इंग्लैंड इंडियन सिविल सर्विस(आइ.सी.एस) की पढ़ाई करने के लिए गए।परंतु नेताजी ने अपने भाई को बताया कि मे जा तो रहा हू पर मन में मानसिक युद्ध जारी ही है। मेरा देश गुलाम है,मेरे 30 करोड़ देशवासी गुलामी में जी रहे हैं और मे वहीं ब्रिटिश सरकार का नोकर बनने जा रहा हूं। 1920 मे उन्होंने आइ.सी.एस के इम्तिहान चौथे क्रमांक से पास किये। इम्तिहान पास करने के बाद एक साल की इंटर्नशिप करनी होती है। लेकिन एक माह पहले ही उन्होंने वो नोकरी छोड़ दी। 1921 मे नेताजी स्वदेश परत लौटे।
उस समय देश मे राष्ट्रीय आंदोलन चरमसीमा पे था।गांधीजी इसकी अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने घोषणा की थी कि ‘एक साल में स्वराजय’।किन्तु गांधीजी की दलीले उनको अस्पष्ट लगी। बाद में उन्होंने “फॉरवर्ड” नाम का अग्रेजी अख़बार शुरू किया। इस अख़बार मे उन्होने काफी अग्रेजो के विरुद्ध बाते लिखी। इसके बाद उनको 1924 मे गिरफ्तार किया गया। 1928 मे जब लॉर्ड इरवीन और गांधीजी की मुलाकात हुई तब इरवीन ने प्रस्ताव रखा की हम आपको ‘डोमेनियन स्टैटस’ देते हैं। इसका मतलब कि सरकार भारत की किंतु सभी निर्णय और पॉलिसी ब्रिटिश सरकार तय करेगी। गांधीजी ने इस बात को मंजूर किया। इस बात पर नेताजी ने भारी विरोध जताया।उन्होने कहा कि हमे पूर्ण स्वराज्य चाहिए। सबसे बड़ा अपराध अन्याय को होते हुए देखना है।
इसके बाद नेताजी 1937 मे कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन के प्रमुख बने। ये बात गांधीजी को पसंद नहीं आई। 1939 मे कॉंग्रेस में फिर एक बार चुनाव हुआ जिसमें सीतारमैया और नेताजी थे। गांधीजी ने कहा कि सीतारमैया जीतेगे तो मेरी जीत होगी। इसके बावजूद सीतारमैया को 1375 सीट और नेताजी को 1580 सीटे मिली। गाँधी फिर एक बार हार गए थे। गाँधी के दबाव के कारण नेताजी ने प्रमुख के पद को त्याग दिया क्योंकि वो गांधीजी की इज्जत करते थे।
तकरीबन 1940 के आसपास नेताजी वीर सावरकरजी से मिले। ये मुलाकात कई मायनों मे टर्निंग पॉइंट मानी जा सकती है। सावरकरजी ने उनको रासबिहारी बोस का पत्र दिखाया कि वो विदेशों मे भारतीय सैनिकों का संगठन करने का विचार कर रहे हैं। सावरकरजी ने नेताजी से कहा कि आप वहा जा कर सैन्य शक्ति मजबूत करे।बाद मे ब्रिटिश सरकारने नेताजी को नजरबंद कर दिया। लेकिन नेताजी 40 दिन तक एकांत मे रहकर दाढ़ी बढाकर अंग्रेजो को चक्कमा दे कर वहा से पेशावर,काबुल से होकर मॉस्को गए और वहा से वो बर्लिन मे हिटलर को मिले। उन्होंने हिटलर को काफी प्रभावित किया।हिटलर ने ही सुभाषचंद्र बोस को “नेताजी” का उपनाम दिया था। जर्मनी मे ही उन्होंने ‘आजाद हिन्द फॉज’ की रचना सोच ली थी।
वो हिटलर की ही पनडुब्बी मे से सुमात्रा द्वीप पहुचे।तब वो जापान के कब्जे में था। उधर ब्रिटिश सेना मे भारतीय सैनिकों को नेताजी ने कहा कि कब तक आप ब्रिटिश सेना की और से युद्ध करते रहेगे। उन्होंने हमारे देश को गुलाम बनाके रखा है। तो क्या हम सब मिलकर उनसे नहीं लड़ सकते। ये सुनके सभी भारतीय सैनिको मे जोश आ गया। नेताजी ने एक सुप्रसिद्ध नारा दिया कि “तुम मुजे खून दो,मे तुम्हें आजादी दूँगा “नेताजी ने आजाद हिन्द फॉज में महिलाओ के लिए एक अलग टुकड़ी बनाई जिसका नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर रखा गया। इस आजाद हिन्द फॉज ने अंदमान निकोबार और मणिपुर मे पहली बार तिरंगा फहराया था।
अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम फेंकने के बाद जापान से माल समान मिलना बंध हो गया। इसके बाद नेताजी वियतनाम से रशिया जाने के लिए रवाना हुए पर रास्ते मे ही ताशकंद मे उनका प्लेन क्रैश हो गया। ये आज भी नेताजी की मृत्यु एक रहस्मय घटना ही है। लेकिन इसके बाद भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश सेना मे बगावत शुरू करदी। विश्व युद्ध 2 के बाद वेसे भी ब्रिटेन ज्यादा समय तक भारत मे टिक नहीं सकता। था।1956 मे जब ब्रिटेन के पीएम क्लेमेन्ट इटली से भारत की आजादी के बारे मे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ब्रिटेन को भारतीय सैनिकों के बगावत से काफी नुकसान हुआ।उनको डर था कि फिर से आजाद हिन्द फ़ौज खड़ी न हो जाए। उन्होंने कहा कि गांधी का तो कोई दबाव या प्रभाव ही नहीं था।
सच मे नेताजी एक दूरदर्शी नेता थे। वो देश के पहले प्रधानमंत्री होते तो देश की स्थिति जो आज है वो काफी पहले हो जाती।
अगर स्वतंत्रता चाहिए तो उसके लिए कष्ट सहेने पडेंगे और कुछ मूल्य भी चुकाना पड़ेगा। ये संदेशा देने वाले थे हमारे महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाषचंद्र बोस।उनका जन्म बंगालमे 23 मार्च 1897मे हुआ था। पिताजी का नाम जानकीनाथ बोस और माताजी का नाम प्रभावतीदेवी था।नेताजी को सात भाई और छह बहने थी।