इश्क़ ए बिस्मिल - 59 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 59

आसिफ़ा बेगम, सोनिया के साथ साथ घर के तमाम नौकर भी अरीज को देख कर हैरान रह गए थे। आसिफ़ा बेगम और सोनिया तो जल भुन गई थी... मगर नसीमा बुआ ने दिल ही दिल में उसे सराहा था। नौकरों में एक वह और दूसरे driver नदीम ही तो थे जो अरीज की हक़ीक़त जानते थे (की वह उमैर की बीवी है) बाकी सभी को बस इतना पता था की वह इब्राहिम खान की बेटी है।
अरीज को देख कर ज़मान खान के दिल में टीस उठी थी... वह यही सोच रहे थे की काश अभी उमैर भी उनके साथ होता। मग़र उन्होंने दिल ही दिल में ये दुआ ज़रूर की थी के उमैर को जल्द से जल्द एहसास हो जाए की वह किसको ठुकरा रहा है।
और अरीज?... दुआ तो वह भी करती रहती थी... उमैर को पाने की नहीं... बस उसके घर वापस लौट आने की।
आज अज़ीन के स्कूल का पहला दिन था... आज उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता अगर वह हदीद के स्कूल की बजाय किसी दूसरे स्कूल में जाती तो। डर और उदासी ने उसके चेहरे को फिका कर दिया था।
अरीज हदीद से लिए हुए वादे की वजह से काफी मुत्माईन नज़र आ रही थी। दोनों ने ज़मान खान की निगरानी में ब्रेकफास्ट किया था फिर उसके बाद चारो स्कूल के लिए निकल गए थे। आज अज़ीन का स्कूल में पहला दिन था इसलिए अरीज भी उसे स्कूल ड्रॉप करने के लिए गई थी फिर उसके बाद वह और ज़मान खान अरीज के एडमिशन के लिए कॉलेज चले गए थे।
पूरे रास्ते हदीद सब्र का घोंट पी कर रहा था...पूरे रास्ते ज़मान खान उसे समझते रहे थे की अज़ीन को स्कूल में पूरी तरह से वह गाइड करे। जब तक उसके दोस्त नहीं बन जाते... जब तक वह सब कुछ समझ नहीं जाती उसे उसकी क्लास के अलावा कहीं अकेला ना छोड़े। उनके सामने तो वह जी...जी..करता रहा... जैसे उनकी बात उसे सब समझ आ गई थी।
लेकिन उसके बाद स्कूल में दाख़िल होते ही वह जैसे अज़ीन से बेगाना हो गया था। अज़ीन को स्कूल की स्टार्टिंग hour की भीड़ में अकेला छोड़ कर जाने कहाँ गुम हो गया था। इतने भीड़ में अज़ीन को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह सहमी सहमी सी एक कोने में जाकर खड़ी हो गई थी।
असेंबली की बेल बजते ही सारे बच्चे करीना के साथ अपनी अपनी लाइन बना कर खड़े हो गए थे मगर अज़ीन को ये भी समझ नहीं आ रही थी की उसे कौन सी लाइन में जाकर खड़े होना है। वह अभी तक उसी कोने में खड़ी रही थी।
अपनी लाइन में खड़ा हदीद उसके डरे सहमे चेहरे को देख कर बोहत एंजॉय कर रहा था मगर अज़ीन को वह नहीं दिखा था।
तभी अज़ीन की क्लास से सीनियर क्लास की प्रिफेक्ट की नज़र उस पर पड़ी। उसे लाइन में जाने को कहा तो अज़ीन ने उसे अपनी परेशानी बताई की वह स्कूल में नयी है और उसे अपने क्लास की लाइन का पता नहीं है।
प्रिफेक्ट ने उसकी मदद की और वह सही लाइन में जाकर खड़ी हो गई। हदीद इन सब चीज़ों पर अपनी नज़रें जमाए हुए था और अब उसकी मुश्किलें आसान होती देख कर बोहत खिस्या रहा था।
क्लास में जाते ही अज़ीन एक सीट पर जाकर बैठ गई थी मगर अगले ही पल उसके पीछे से आने वाली एक लड़की ने उसे वहाँ से उठा दिया और खुद बैठ गई।
“ये मेरी सीट है।“ उसने थोड़ा रोबाबदार लहज़े में उस से कहा था। उसकी बातें सुन कर अज़ीन और ज़्यादा डर गई थी।
बाकी सारी क्लास कुछ खड़े होकर तो कुछ अपनी जगह पर बैठ कर मज़ा ले रही थी।
अज़ीन डरी सहमी सी इधर उधर देखने लगी और फिर एक दूसरी खाली सीट देख कर वहाँ जा कर बैठ गई मगर उसके बाद ही उस सीट की असली मालिक सामने आये और पहली वाली लड़की से भी ज़्यादा रोबाब से उसे कहा।
“उठो यहाँ से... ये मेरी सीट है।“ उसके कहते ही अज़ीन हड़बड़ा कर वहाँ से भी उठ गई थी। उसकी बेचार्गि पे आधी क्लास क़हक़हे लगा कर हँसने लगी थी... ये देख अज़ीन की आँखे आँसुओं से भर गई थी।
कुछ लोग उसकी हालत पर मज़ा ले रहे थे तो कुछ लोगों को उस पर तरस आ रहा था। तरस खाने के बावजूद कोई उसे अपने साथ बैठाने को राज़ी नहीं था क्योंकि सभी अपने अपने दोस्त और साथियों के साथ बैठे थे और कोई नई लड़की के लिए अपनी पुरानी दोस्त को अपने पास से हटा नहीं सकता था।
अज़ीन अभी भी रो ही रही थी जब क्लास टीचर क्लास में दाखिल हुई थी और सब अपनी अपनी जगह पे बैठ गए थे। जब सब बैठ चुके तब अज़ीन को लास्ट रो की फर्स्ट सीट खाली दिखी। वह अपने आँसूं साफ़ करती वहाँ जा कर बैठ गई।
क्लास टीचर ने अटेंडेंस लेना शुरू किया और जब अज़ीन ज़हूर का नाम आया तो उसे खड़ा किया और पूरे क्लास से उसका introduction करवाया।
“She is Azeen Zahoor… Your new classmate… And your new friend… Everyone say hello to her…” टीचर के हुक्म देते ही सब ने (कुछ लोग खुशी से कुछ बेज़ारी से) अज़ीन को हेल्लो कहा था। मगर डरी हुई अज़ीन बदले में किसी को वापस हेल्लो या हाई नहीं कह पाई थी।
“Now the matter is… Azeen joined our school very late… So now it’s your responsibility my girls and boys to help her in every possible way… So that she could pave the way to filled that gap and reach you all very soon…. So … Who will going to make her seat beside you ? (अब बात ये है की... अज़ीन ने हमारे स्कूल को बोहत देर से दाखिला लिया है... तो ये अब हमारी ज़िम्मेदारी है मेरी लड़कियाँ और लड़के की हम अज़ीन को हर सम्भव कोशिश करें की वह उस गैप को भर सके जिसकी वजह से वह पीछे रह गई है और जल्द से जल्द आप तक पहुंच जाए... तो... आप में से वो कौन है जो उसे अपने बगल मे बैठाएगा?)” मिसेज़ सिन्हा ने कहा था मगर कोई आगे नहीं बढ़ा था।
यह देख अज़ीन के दिल को बोहत तकलीफ़ पहुंची थी। उसे अपना पुराना स्कूल याद आ रहा था.. जहाँ लोग उस से दोस्ती करने के लिए आपस में लड़ते थे। कोई कहता था वह मेरी दोस्त है... तो कोई कहता था मेरी। उसे स्कूल में अपनी धाक याद आ रही थी... सब उसकी नोटस कॉपी लेने के लिए उसकी मिन्नतें करते थे... मगर यहाँ किसी को उसके पुराने स्कूल और अज़ीन की एहमियत का पता नहीं था। सब उसे दर्गुज़र कर रहे थे।
“I can’t believe… No one…? (मुझे यकीन नहीं हो रहा..कोई नहीं है?)” अपनी क्लास का रद्देअमल देख कर मैम को भी दुख हुआ था। जब ही अपनी सीट से एक लड़की उठी थी और कहा था।
“I don’t want to make her seated beside me but I like to seat with her (मैं उसे अपने बगल मे बैठाना नहीं चाहूंगी बल्कि मैं खुद उसके बगल में बैठना पसंद करूँगी) “ उस लड़की ने बड़ी खुश दिली से कहा था। वह लड़की कोई और नही बल्कि नेहा थी।