इश्क़ ए बिस्मिल - 60 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 60

नेहा का साथ अज़ीन के लिए किसी नेमत से कम नहीं था। आज उन दोनों की दोस्ती का पहला दिन था तो यूँ दोनों के दरमियाँ बोहत ज़्यादा बातें नहीं हुई थी। मगर हाँ एक दूसरे की कम्पनी से दोनों comfortable थे।

यूँ एक के बाद दूसरा... तीसरा... और बाक़ी सारी classes भी ख़तम हो गई थी। अज़ीन ने चैन का साँस लिया था की अब उसकी जान इन classes से छूटी।

सारे बचे rules and discipline फॉलो करके लाइन बना कर अपनी अपनी क्लास से निकल रहे थे। अज़ीन भी क्लास से निकल कर स्कूल के ग्राउंड में हदीद का इंतज़ार कर रही थी। शुक्र था की हदीद उसे दिख गया था और कमाल की बात ये थी की वह भी उसी की तरफ़ आ रहा था।

“घर नहीं चलना है?... चलो मेरे साथ... जल्दी करो...” उसकी जल्दबाज़ी पे अज़ीन परेशान हो गई थी मगर फिर भी उसके कहने पर वो उसके पीछे चल पड़ी थी।

“तुम्हारी आई.डी. कार्ड कहाँ है?” चलते चलते हदीद रुका था... उसे आई.डी. कार्ड के याद आने पर उसने अज़ीन से पूछा था।

“मैम ने कहा है वो कल मिलेगी।“ अज़ीन ने तुरंत जवाब दिया था जैसे की उसने बड़े कमाल की इंफोर्मेशन हदीद को देकर बड़ा कमाल किया था।

उसकी बात पर हदीद के चेहरे पर इत्मीनान का साया लहराया था।

“गुड।“ उसने बस इतना कहा था और अज़ीन उसके गुड बोलने पर ही खुश हो गई थी।

इतना कह कर हदीद फिर से चलने लगा था। हदीद बोहत जल्दबाज़ी में था और इस वजह से काफी घबराया हुआ भी दिख रहा था।

वह सब से नज़रें बचाता हुआ स्कूल के मैन गेट से बाहर निकल गया था और अब अज़ीन को लेकर रोड की तरफ़ चल रहा था। चलते चलते वह दोनों काफी दूर निकल गए थे और अब उनका स्कूल काफी पीछे रह गया था।

अज़ीन को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था और उसे समझ आता भी कैसे आज उसके स्कूल का पहला दिन था... और उसे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था की स्कूल से घर हदीद कैसे जाता है।

वह छोटी सी नौ साल की बच्ची उस बारह साल के बच्चे के पीछे पीछे धूप में थक रही थी।

वह दोनों रोड के किनारे खड़े थे। कई सारी गाड़ियां आ जा रहीं थी मगर जाने हदीद को किस का इंतज़ार था।

तभी एक भीड़ से खचमखच भरी बस रुकी और हदीद के चेहरे पर मुस्कुराहट सज गई थी।

वह खुद बमुश्किल उस बस में सवार हुआ था और साथ में अज़ीन को भी सवार कराया था।

अज़ीन बेचारी बस की भीड़ में जैसे दब सी गई थी उसे ना कुछ आगे दिखाई दे रहा था ना कुछ पीछे... जो दिख रहा था तो वो सिर्फ़ लोगों की पेट तो कभी कमर... फिर भी जैसे तैसे हदीद उसे आगे करता गया और वह हिचकोले खाती संभलती आगे बढ़ती गई। कोलकाता शहर की लोकल बस में सफ़र करना कोई इतना भी आसान नहीं था। आखिर कर वह दोनों सीट के पास पहुंच गए थे मगर सारी की सारी सीटें भरी पड़ी थी। एक औरत को बेचारी अज़ीन पर तरस आ गया और उसने उसे अपनी गोद में बैठा लिया। ये देख हदीद काफी मुत्माईन हो गया था।

“ये लेडीज़ सीट है... मैं वहाँ जेंटस सीट की तरफ़ जा रहा हूँ।“ हदीद ने अरीज से कहा था... अज़ीन घबराई सी बस हाँ कर के रह गई थी।

एक बारह साल का बच्चा लेडीज़ और जेंटस सीट की बात कर रहा था...अज़ीन को अपनी गोद में बैठने वाली औरत ने काफी मुतासिर(इंप्रेस) होकर हदीद को देखा था।

फिर क्या था बस एक के बाद दूसरी स्टॉप पर रुकती गई... लोग उतरते गए और साथ साथ चढ़ते भी गए। लगभग एक घंटे के बाद बस की रश थोड़ा कम हुई और अज़ीन की घबराहट में इज़ाफ़ा हुआ। वह डरी सहमी नज़रों से इधर उधर देख रही थी मगर हदीद उसे कहीं नज़र नहीं आ रहा था। हत्त के वह लेडी की स्टॉप भी आ गई थी और उसने अरीज को अपनी गोद से उतर कर अपनी सीट पर बैठा दिया था।

अज़ीन नज़रें एक जगह पर ठहर ही नहीं रही थी... उसका दिल दुख और घबराहट से फटा जा रहा था। बस कंडक्टर अज़ीन के पास आकर बस की टिकट पर उंगली फिरा रहा था।

“टिकट... टिकट... “ अज़ीन की आँखों से आँसू बह निकले थे।

“मेरे पास नहीं है... हदीद के पास होंगे पैसे... मेरे साथ वही है।“ अज़ीन से अब कंट्रोल नहीं हुआ था। उसके मूंह से आवाज़ निकलते ही वह फट पड़ी थी। उसने रोते हुए बस कंडक्टर से कहा था।

“कौन है हदीद?” उसके कहने पर बस कंडक्टर भी इधर उधर देखने लगा था।

बस कंडक्टर की बात सुन कर तो जैसे अज़ीन का दम ही निकल गया था। दिल जैसे बैठा जा रहा था। छोटी सी अज़ीन सीट से उतर कर बस की पिछली सीट को भी देखने लगी के शायद हदीद वहाँ पे हो मगर उसका तो कहीं आता पता ही नहीं था।

ये देखना था की अज़ीन फूट फूट कर रोने लगी।

“आपी.... आपी... आपी।“ बस में बैठे लोग भी घबरा गए थे।

सब आपस में बातें करने लगे थे... तो कुछ लोग उस से पूछ रहे थे।

“कौन था तुम्हारे साथ?.... कहाँ जाना था?.... बस कहाँ से चढ़ी थी?.... “

अज़ीन उनकी बातों का चाह कर भी जवाब नही दे पा रही थी...उसकी आवाज़ को आँसुओं ने दबा दिया था। वह बस रोए जा रही थी।


अज़ीन को बस में बैठा कर हदीद अगले स्टॉप पर ही बस से उतर गया था।

स्टॉप पर उतरने के बाद उसके पैरों में जैसे पर निकल आये थे। वह इतनी तेज़ी से चल रहा था मानो उसकी बस... ट्रेन... Flight. .. सब कुछ एक साथ छूटने वाली थी।

इतना लंबा रास्ता उसने दस मिनटों में तय कर लिया था और अब स्कूल की पार्किंग एरिया में अपनी कार को तलाश कर रहा था।

आखिर उसे उसकी कार दिख गई थी। वह झट से कार में बैठ गया था।

“अज़ीन बीबी कहाँ है?” Driver ने पूछा था।

उसकी बात पर हदीद चिढ़ सा गया था।

“मुझे क्या पता... मैं तो खुद उसे इतनी देर से ढूंढ रहा हूँ... उसे ढूँढने के चक्कर में मैं इतना लेट हो गया... और भाई...बाबा सब मुझ पर ही गुस्सा करेंगे की मैं लेट करता हूँ।“ उसने गुस्से में driver से झीड़कते हुए कहा।

“रुकिए... मैं देख कर आता हूँ।“ Driver ने इतना कह कर अपनी सीट से भी उतर गया था। हदीद को उसकी हरकत पर और भी ज़्यादा गुस्सा आया था।