शेर-ऐ-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की गौमाता के प्रति श्रद्धा Praveen kumrawat द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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शेर-ऐ-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की गौमाता के प्रति श्रद्धा

क्या आपने कभी सोचा है कि आज बहुत-से लोग हिन्दू होते हुए भी गौमाता के शत्रु क्यों बने हुए हैं और क्यों गो-हत्या बंद होने में रुकावट डाल रहे हैं? ढेरों घटनाओं के बावजूद कुछ हिंदू लोग हिंदुओं के खिलाफ मुसलमानों की पैरवी क्यों करते हैं ? और उनकी भाषा क्यों बोलते हैं ? कारण जानने के लिए पढ़िये।..

पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह के समय की एक सत्य घटना यहाँ दी जा रही है।

यह उस समय की बात है, जिस समय पंजाब में महान् तेजस्वी गो-ब्राह्मण-प्रतिपालक महाराजा रणजीत सिंह का राज्य था और वे लाहौर में रहते थे। गो-ब्राह्मण निर्भय विचरें, इसी को वे अपने राज्य की सबसे बड़ी विशेषता मानते थे।

एक बार की बात हैं, लाहौर में किसी सेठ ने अपने महल के पास एक कुआँ बनवाया था और उसके पास ही गाय-बैल आदि के लिए पानी पीने को चर बनवा रखी थी, गाय बैल आदि आकर उसमे पानी पी जाया करते थे। एक दिन वहां एक गाय पानी पीने आयी और उसने चर में पानी पी लिया। चर के पास एक मोरी थी उसकी और दृष्टि जाने पर गौ को उस नाली में कुछ गेंहू के दाने पड़े दिखाई दिये। गाय ने गेंहू खाने के लिये नाली में अपना मुंह घुसेड़ दिया और गेहूं खा लिये। गाय जब गेंहू खाकर मोरी से अपना मुंह निकालने लगी, तब सहसा गाय के सींग उसमे फँस गये। गाय ने खूब जोर मारा; पर मुंह बाहर नही निकला। अब तो गाय छटपटाने लगीं। चारों ओर भीड़ इकट्ठी हो गयी और हलचल मच गयी। गाय इस प्रकार से व्याकुल होकर छटपटाये, इसे सच्चे हिन्दू मानव कैसे सहन कर सकते थें। गाय का मुख निकालने का भरसक प्रयत्न किया जाने लगा, पर सफलता नहीं मिली। अब तो सभी चिंतित हो गये कि किस प्रकार गोमाता के प्राण बचाये जाए। किसी ने सलाह दी कि जल्दी-से-जल्दी किसी मिस्त्री को बुलाकर दीवार तोड़ डाली जाय तो गाय के प्राण बच सकते हैं। यह सुनकर पास में खड़े हुए एक हिन्दू ने कहां कि 'नही! दीवार क्यो तुड़वाते हो, दीवार तुड़वाने से मकान-मालिक को बड़ा नुकसान पहुँचेगा। इसलिए सबसे अच्छा यही है कि किसी बढ़ई से आरी माँगकर उससे गाय के सींग काट डाले जाय तो मुँह निकल आयगा।' हिन्दू के मुख से निकले ये शब्द सभी को बुरे लगे। आखिर दीवार तुड़वाना ही निश्चय हुआ और जल्दी-से-जल्दी मिस्त्री को बुलाकर दीवार तोड़ डाली गयी। गाय सकुशल निकल आयी, बच गयी। इससे हिन्दुओ में एकदम प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। वहां महाराजा रणजीत सिंह का एक गुप्तचर सिपाही खड़ा था। उसने भी यह सब दृश्य अपनी आँखों से देखा। संध्या को जब वह सिपाही महाराज के दरबार मे उपस्थित हुआ और शहर की प्रमुख बातेँ महाराज को सुनाने लगा, तब उसने ज्यों-की-त्यों यह घटना भी सुनाई। किसी हिन्दू के द्वारा किये गये गाय के सींग काटने के प्रस्ताव को सुनकर महाराजा क्रोध में भर गये और उन्होंने सिपाही से कई तरह से उल्टे-सीधे पूछकर ये जान लिया कि गाय के सींग काटने की बात वास्तव में कही गयी थी और वह एक हिन्दू ने ही कही थी। तब उन्होंने सिपाही भेजकर उसको बुलवा लिया और इस प्रकार दोनों में प्रश्नोत्तर हुए―
महाराजा― अरे! तू कौन है?
हिन्दू― महाराज! मैं हिन्दू हूँ।
महाराजा― तूने गऊ के प्रति क्या शब्द कहे थे, सत्य बता?
हिन्दू― महाराज! क्षमा करें, मेरे मुख से ये गंदे शब्द निकल गये थे कि दीवार तोड़ने के बदले गाय के सींगों पर आरी चलाकर उन्हें काट दो।
महाराजा― तूने हिन्दू होकर ये पापभरी बात कैसे कही?
हिन्दू― महाराज! अपराध हो गया। क्षमा करें।
महाराजा― एक हिन्दू होकर तेरे मुख से गौ के सींगो पर अपने हाथों से आरी चलाने की बात निकली कैसे? सच बता।
हिन्दू― महाराज! भूल से निकल गयी।
महाराजा― क्यों निकली?
हिन्दू― महाराज! पता नही।
महाराजा― मालूम होता है कि तू हिन्दू-मानव की संतान नहीं है।
हिन्दू― नहीं महाराज! मैं हिन्दू ही हूँ।
महाराजा― अरे! तू हिन्दू नहीं है, हिन्दू-मानव के मुख से गौ के प्रति ऐसे गंदे शब्द कभी नहीं निकल सकते?
हिन्दू― महाराज! निकल गये।
महाराजा― जान पड़ता है तू असली हिन्दू-माँ-बाप की संतान नहीं है? सत्य बता क्या बात है। नही तो, तुझे जेल में डाल दिया जाएगा।
हिन्दू― महाराज! मैं सत्य कहता हूँ, मुझे कुछ पता नहीं।
महाराजा ने सिपाहियों को आदेश दिया कि इसे ले जाकर जेल में बंद कर दो और इसकी माँ को लाओ। महाराजा चिन्ता में पड़ गये कि, मेरे राज्य में ऐसे नालायक हिंदू भी रहते हैं।
आदेश की देर थी कि सिपाहियों ने उसे तो जेल में बंद कर दिया और उसकी माँ को महाराजा के सामने लाकर उपस्थित कर दिया। महाराजा ने उसे सामने खड़ी देखकर पूछा―
महाराजा― अरी! तू कौन है?
बुढ़िया― महाराज! मैं हिन्दू हूँ।
महाराजा― सत्य बता, यदि तू हिन्दू है तो फिर तेरे ऐसी नालायक संतान कैसे पैदा हो गई, जो हिन्दू होकर गऊ के प्रति ऐसे शब्द मुख से निकालती है और ऐसे गंदे विचार रखती है ?
बुढ़िया― महाराज! मुझे कुछ पता नहीं।
महाराजा― यह तेरे मानव से दानव-संतान कैसे पैदा हुई? तैने किसका संग किया था, सत्य बता ?
बुढ़िया― महाराज! मैंने किसी से संग नहीं किया।
महाराजा―नहीं, यह तेरी हिन्दू पति की संतान नही है।
बुढ़िया― नही महाराज! ऐसा कभी नही हुआ।
महाराजा― फिर ऐसी संतान कैसे पैदा हुई ?
बुढ़िया― कुछ पता नहीं।
इस पर महाराजा ने उसे डाँटकर उसके पुत्र को मार देने का भय दिखलाया और उसे जीवनभर जेल में डालने की धमकी दी। तब बुढ़िया घबरा गई और थर-थर काँपने लगी तथा सत्य बात कहने के लिये तैयार हो गयी। उसने कहा:
बुढ़िया― महाराज! क्षमा करना। बात यह है कि मैं पतिव्रता हूँ, मैंने कभी किसी पर-पुरुष का भूलकर भी संग नही किया। मेरे मकान के बराबर ही ऐसे व्यक्ति का मकान था जो छुरी से मुर्दे पशुओं की खाल उतारा करता था। अवश्य ही जिस रात्रि को अपने पति द्वारा मेरे गर्भ रहा, उसी रात्रि के बाद प्रातःकाल होने पर वह अपने मकान की छत पर बैठा हुआ था। सबसे पहले मेरी दृष्टि उसी व्यक्ति पर पड़ी। इसी से मेरी यह नालायक संतान हुई, कोई दूसरा कारण नही हैं।
महाराजा― ठीक है। कुछ व्यक्तियों का काम मुर्दे पशुओं के अंग काटना, चमड़ा उधेड़ना है। उसी का प्रभाव तेरे इस पुत्र के ऊपर पड़ा और उसके निर्दयता के संस्कार इसमे आ गये। अच्छा जा, तुझे और तेरे पुत्र को छोड़े देता हूँ। आगे से ऐसी गलती कभी न करना। तदनन्तर महाराजा रणजीत सिंह ने अपने सारे राज्य में घोषणा करा दी कि 'प्रत्येक हिंदू-स्त्री को चाहिए कि वह अपने हाथ के अंगूठे में सोने की अथवा चाँदी की– जैसी जिससे बन सके, आरसी बनवाकर पहना करे और उस आरसी में शीशा लगवाये तथा प्रातःकाल उठते ही सबसे पहले अपने अंगूठे की आरसी के शीशे में अपना मुँह देख लिया करे, जिससे उसके कोई नालायक संतान न पैदा हो।'

महाराजा की आज्ञा की देर थी कि सभी हिन्दू घरो में आरसी तैयार कराकर पहनी गयी, जो आजतक हजारो घरों में पहनी जा रही है। महाराजा रणजीत सिंह दूरदर्शी तो थे ही मानवता के सच्चे रक्षक भी थे–यह इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। जिसके अंदर थोड़ी भी मानवता है, वह कभी गौमाता का, धर्म का विरोधी हो ही नही सकता।