अनोखा प्रस्ताव - 1 Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अनोखा प्रस्ताव - 1

सर्दियी की रात।रात के बारह बज चुके थे।वर्षा के सास ससुर और ननद कब के अपने अपने कमरों में जाकर सो चुके थे।वर्षा भी रोज सो जाती थी।लेकिन आज उसकी आँखों मे नींद नही थी।
वर्षा ने शेखर से तलाक लेने का निर्णय कर लिया था।अपने निर्णय की सूचना वह शेखर को देना चाहती थी।शेखर अभी तक घर नही लौटा था।इसलिए वर्षा उसके आने का इन्तजार कर रही थी।
शेखर से वर्षा की शादी को अभी तीन साल भी पूरे नही हुए थे।शादी के बाद काफी दिनों तक उसका ध्यान पति की उस कमी की तरफ नही गया था।एक रात को अचानक उसका ध्यान उस तरफ गया।फिर भी नारी सुलभ लज्जा,संकोच,झिझक,शर्म की वजह से वह पति से कुछ न कह सकी।पर कब तक?
वर्षा के इन्तजार की घड़ियां खत्म हुई।कार की आवाज शेखर के आने का संकेत थी।कार पोर्टिको में खड़ी करके शेखर बेड रूम में चला आया।वह कपड़े चेंज करके पलँग पर आया तब वर्षा को जगते देखकर बोला,"क्या बात है।आज तुम अभी तक सोयी नही?""
"आज की रात मेरी तुम्हारे साथ अंतिम रात है।"शेखर के प्रश्न को अनसुना करके वह बोली थी।
"क्या कहीं जा रही हो?"शेखर ने पलँग पर चित लेटी वर्षा की तरफ देखा था।
"हाँ"वर्षा के गुलाब की पंखुड़ी जैसे नाजुक होठ खुले और बन्द हुए थे।
"कहां?"शेखर ने प्रश्न सूचक नजरो से देखा था।
"अपने घर।मायके।अपने मम्मी पापा के पास।"वर्षा बेडरूम की छत को अपलक नेत्रों से निहार रही थी।
"अचानक यह निर्णय क्यो?सुबह मेरे जाने तक तो कोई ऐसा प्रोग्राम नही था।क्या कोई खत आया है।तुम्हारे मायके में सब खैरियत तो है?कितने दिन के लिए जा रही हो।वापस लौटकर कब आओगी?"शेखर ने एक साथ कई प्रश्न कर डाले थे।
"मैं वापस आने के लिए नही जा रही हूँ।"वर्षा दृढ़ता से बोली थी।
"क्या मतलब?"शेखर चोंकते हुए बोला,"पहेलियां मत बुझाओ।साफ साफ बताओ।"
"मेने अभी कहा न।आज की रात मेरी तुम्हारे साथ आखरी रात है।सुबह मैं तुम्हारा घर छोड़कर हमेशा के लिए चली जाऊंगी,"वर्षा एक एक शब्द को धीरे धीरे से बोली,"मैने तुम्हे तलाक देने का फैसला कर लिया है।'
"क्या?"वर्षा की बात सुनकर शेखर पलँग पर उठ बैठा,"इस घर मे तुम्हे क्या कमी है।बंगला,कार, नौकर हर सुख सुविधा तुम्हे यहाँ उपलब्ध है।"
""सुख सुविधा एसो आराम के साधन अगर नही भी होते तो मुझे कोई गम नही था।"वर्षा का स्वर बेहद धीमा था,"इस बारे में मैंने कभी भी तुमसे कोई शिकायत नही की होगी।"
"फिर मुझसे कोई भूल हो गयी"शेखर गिड़गिड़ाया था,"जाने अनजाने में अगर मुझसे कोई भूल हो गयी हो तो मुझे बताओ।"
"तुमने शादी की यह तुम्हारी सब से बड़ी भूल थी।"वर्षा ने गर्दन घुमाकर शेखर को देखा था।
"वर्षा तुम्हे आज क्या हो गया है।कैसी बहकी बहकी बाते कर रही हो।"शेखर ने पलँग पर लेटते हुए वर्षा को बांहों में भर लिया।
"छोड़ो।यह तुम्हारे बस की बात नही है।"वर्षा पति के बंधन से अपने को मुक्त करते हुए बोली"
"क्या कमी है मुझ में।मैं तुम्हारा पति हूँ।स। समाज के सामने तुम्हारा हाथ पकड़कर मैने सात फेरे लिए है।तुम्हारे मन पर ही नही तुम्हारे तन पर भी मेरा पूरा अधिकार है।"वर्षा की बात सुनकर शेखर उत्तेजित हो गया था।"
"मुझसे क्यो पूछ रहे हो।तुम में क्या कमी है यह तुम खुद जानते हो