The Author Rahul Kumar फॉलो Current Read खंडहर By Rahul Kumar हिंदी डरावनी कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books दरिंदा - भाग - 13 अल्पा अपने भाई मौलिक को बुलाने का सुनकर डर रही थी। तब विनोद... आखेट महल - 8 आठ घण्टा भर बीतते-बीतते फिर गौरांबर की जेब में पच्चीस रुपये... द्वारावती - 75 75 “मैं मेरी पुस्तकें अभी... Devil I Hate You - 8 अंश जानवी को देखने के लिए,,,,, अपने बिस्तर से उठ जानवी की तर... 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""जो आजतक कोई न जान सका । "" जो आज तक कोई न जान सका वह मैं जानकार क्या " करूंगा| प्लीज, अब मुझे जाने दें।" - मैं डर से रुआंसा हो गया|"नहीं, बिलकुल भी नहीं। और, तुम्हे मुझसे डरने की भी कोई जरुरत नहीं|सैनिक सबकी रक्षा के लिए होते हैं। मैं भी तुम्हारी सुरक्षा ही कर रहा हूँ।" - कैप्टन विनोद के स्वर में कोमलता थी आओ मेरे साथ इस सोफे पर बैठ जाओ। मैं तुम्हे एक कहानी सुनाता हूँ। कहानी खत्म होते ही मैं तुम्हेतुम्हारे कैम्प तक जीप से छोड़ आऊंगा | वैसे भी • अपने साथियों से काफी आगे निकल आये हो। तुम वहां तक तुम अब चलते हुए शायद पहुँच न पाओ।” कैप्टन विनोद के स्वर में जाने कैसी आश्वस्ति थी मैं जाकरउनके बगल में बैठ गया।कैप्टन विनोद ने कहना शुरू किया - "दुश्मनों ने धोखे से हमारे अस्पताल को अपना निशाना बनाया | दुश्मन देश के दो सैनिक हमारे सैनिक के वेश में एक हमारेही घायल सैनिक को लेकर आये। वह घायल था और और हमारे देश की सेना ने उसे बहुत ढूंढा लेकिन नहीं मिला था |शायद, साजिश के तहत उसे घायल होते ही घुसपैठियों नेकहीं छुपा दिया था|अचानक अपने खोये सैनिक को अपने हॉस्पिटल में पा सभी खुश हो गए और बिना अधिक पड़ताल किये हॉस्पिटल के गेस्ट रूम में घायल को लेकर आने वाले छद्म वेष धारियों को ठहरने की इजाजत दे दी गई | अभी उस सैनिक का इलाज चल ही रहा था कि जोरों का ब्लास्ट हुआ और पूरा हॉस्पिटल एक पल में खंडहर में तब्दील हो गया । "" लेकिन हॉस्पिटल तो अपनी शानदार स्थिति में खड़ा है। मेरी बातों को अनसुना कर कैप्टन विनोद ने अपनी बात जारी रखी - 'कोई नहीं बचा उस ब्लास्ट में | " -दीवाल पर पड़े खून के छींटे भी उसी ब्लास्ट में मारे गए होपितल के कर्मचारियों के हैं।""हाँ, पर यह होस्पीटल तो मुझे खंडहर नहीं दिखता |” जवाब में कैप्टन विनोद के चेहरे पर रहस्य भरी मुस्कान फ़ैल गई और उनका चेरा अजीब से भावों से भर गया। मैं उनके चेहरे को देखकर अन्दर से दहल गया। फिर भी,मैंने हिम्मत कर पूछा-गए ?”"आप उस ब्लास्ट में बाख कैसेसुनते ही कैप्टन विनोद ठहाका लगा कर हंस पड़े और मुझ पर एक भरपूर नजर डालते हुए कहा ' यह कहानी आज से मात्र दस वर्ष पहले की है और मैं तो आज से पचास वर्ष पहले मर चुका हूँ।”इसके आगे उनहोंने क्या कहा- मुझे कुछ नहीं मालुम चेहरे पर गीलेपन का अहसास जब काफी हुआ तो मैं जैसे नींद से जागा | मुझे घेरे हुए मेरे सभी सहपाठी और टीचर खड़े थे।मेरे आँख खोलते ही मेरे सर ने कहा होश आ गया । " " थैंक गॉड! तुम्हे'तो क्या मैं बेहोश था ?""हाँ, तुन जंगल में जाने कहाँ भटक गए थे। जब सभी लौट आये और तुम नहीं आये तो हम सभी मिलकर तुम्हें ढूँढने निकले।काफी दूर जाने के बाद हमने एक जीप आती दिखाई दी जिसमें एक आर्मी मैन तुम्हे पीछे की सीट पर सुलाए हुए हमारे कैम्प को ढूंढते हुए आ रहे थे।उनहोंने हम सबको भी अपनी जीप पर बिठाया और कैम्प तक्ल छोड़ा |हमने उन्हें काफी रोकने की कोशिश की लेकिन वे यह कहते हुए चले गए अभी नहीं रुक सकता एक जरुरी काम है।”जब हमने तुम्हारे बेहोश जाने और उन तक तुम्हारे पहुँचने के बारे में पूछा तो बोले - " सोमेश ही बताएगा और जो भी बताएगा वह सब अक्षरश: सच होगा।सबकी उत्सुक निगाहें अपनी ओर लगी देख मैं ने धीमे स्वर में पूछा - क्या उनका नाम कैप्टन विनोद था ?" सर ने "हाँ" में सर हिलाया |मैं ने सबको उधर चलने को कहा जिधर से सबने जीप आती देखी थी।पहले तो सर तैयार नहीं हुए लेकिन मेरे बहुत कहने पर वे राजी हो गए। सुबह होते ही हम उधर की ओर गए । मैं उस जगह पर पहुँच कर गहरे आश्चर्य में डूब गया| वहां एक अधजला खंडहर था : जिसके एक टूटे पत्थर पर लिखाथा " आर्मी हॉस्पिटल " Download Our App