अग्निजा - 89 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अग्निजा - 89

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-89

केतकी के जीवन में परेशानियां थीं। कष्ट थे। बाल झड़ रहे थे। उस दवा की मेहरबानी से बढ़ा हुआ वजन, थकान, अन्यमनस्कता और अस्वस्थता की सौगात भी मिली हुई थी। जीतू पूर्ववत उपहास करने के मूड में रहता था। रणछोड़ दास के ताने बढ़ते जा रहे थे। इन सबके बीच में जो एक बात केतकी के हाथ में थी वह थी वजन कम करना। और ठीक उसी समय कल्पना बहन ने उसे बड़े प्रेम से यह ‘आहार की नयी पद्धति और निरोगी जीवन’ किताब दी थी। केतकी बड़ी उत्सुकता के साथ वह किताब पढ़ने लगी। प्रारंभ में ही उसे ध्यान में आया कि इसमें हमारे सैकड़ों-हजारों सालों की पुरानी कल्पनाओं और मान्यताओं पर प्रहार किया गया है। लेखक बीवी चौहान ने अपने अनुभलों के आधार पर लिखा था कि परमपिता परमेश्वर ने आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी-इन पांच तत्वों के आधार पर इस सृष्टि की रचना की है। मानव शरीर भी इस सृष्टि का ही एक हिस्सा है। इसके बाद उन्होंने रामचरित मानस की एक पंक्ति का उदाहरण दिया है, “छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा” यानी हमारा यह शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जैसे पंचतत्वों से मिल कर बना तो है, लेकिन इनके अनुसार चलता नहीं है। केतकी जैसे-जैसे पढ़ती जा रही थी, गंभीरता से विचार भी कर रही थी। देर तक उसने किताब पढ़ी। लेखक के प्रति उसमें आदरभाव जागा। और इस बात का भी एहसास होने लगा कि हमारी मान्यताएं और परंपराएं कितनी नुकसानदेह हैं। इन प्रथाओं को किसने और क्यों बनाया होगा और ये कैसे चलती रही होंगी? हम सैकड़ों सालों से इनका पालन करते चले आ रहे हैं। केतकी ने मन ही मन ठान लया कि अब वह इस नयी आहार पद्धति का पालन करेगी।

अगले ही दिन सुबह उसने घोषणा कर दी कि वह चाय नहीं पीयेगी। भावना हंसने लगी।“तुम चाय नहीं पीओगी? उसके बिना तुम्हारा दिन कैसे शुरू होगा? पैर चलेंगे?”

केतकी ने निश्चयपूर्वक कहा, “सब होगा।”

यशोदा ने केतकी के सिर पर ममता का हाथ फेरा और उसकी पसंदीदा एक दिन पुरानी बाजरे की रोटी ला कर रखी। “लो, ये खा लो, फिर चाय न भी पियोगी तो फर्क नहीं पड़ेगा।”

“मां, मुझे नाश्ता ही नहीं करना है।”

यशोदा ने इधर-उधर देखा। कोई नहीं देख रहा इस बात से आश्वस्त होकर उसने धीरे से पूछा, “कुछ और खाने की इच्छा हो रही है क्या?”

“नहीं, मुझे नाश्ता नहीं चाहिए।”

भावना हंसी, “कोई बात नहीं, खाना खाते समय नाश्ते की कमी पूरी कर लेगी केतकी बहन।”

केतकी उसकी तरफ देखती रही, “नहीं, मैं खाना नहीं खाऊंगी।”

“अरे, स्कूल में कोई पार्टी वार्टी हैक्या? काहे की पार्टी है?”

“वैसा कुछ नहीं है। आज से मेरा चाय, नाश्ता और दोपहर का खाना बंद।”

यशोदा चिंता में पड़ गयी। “अरे, ऐसा करने से वजन कम थोड़े होगा। उल्टा बीमार पड़ जाओगी। अभी नहीं खाना हो तो मत खाओ। डिब्बे में दे देती हूं। कम से कम वही ले जाओ।”

“मां, मैं दोपहर में फल खा लूंगी। तब तक पानी भी नहीं पीना है। हां, घर आकर शाम को थोड़ा सा खाऊंगी और रात का खाना खाऊंगी।”

“अरे बेटा, ऐसा कहीं होता है क्या...दिन भर भागदौड़ और एक समय खाना? देखो, यदि तुमने खाना नहीं खाया तो तुमको...”

“मेरी ही कसम है तुमको यदि तुमने मुझे कसम दिलाई तो।” केतकी का उत्तर सुन कर यशोदा नाराज हो गई और रसोई घर में चली गयी।

भावना, केतकी की तरफ देखती रही। “ऐसे तरीके से डायटिंग कर रही हो?”

“नहीं, ये डायटिंग नहीं है। वास्तव में यही हमारी जीवनशैली होनी चाहिए। मैंने आज से शुरू किया है।”

‘मेरे कमरे में नाइटलैंप के पास एक किताब रखी हुई है। जब समय मिले तो उसको पढ़ लेना।’ इतना सुनते ही भावना उठी और भीतर जाकर उसी क्षण उसने किताब पढ़ना शुरू कर दिया।

कुछ घंटों बाद केतकी का शरीर खासकर पेट चीखने लगा। सैकड़ों सालों की परंपरा टूटी थी तो वह अपना विरोध तो दर्ज करवायेगा ही। डेढ़ घंटे बाद उसका सिर भी दुखने लगा। लेकिन केतकी अपने प्रण पर अटल थी। शरीर को अपना काम करने दो, मैं अपने मन के प्रण पर अडिग रहूंगी।

वह जब शाला पहुंची तो उसका सिर दर्द से फट रहा था। जैसे तैसे रिसेस तक दर्द कम हुआ। वह तुरंत स्टाफ रूम में पहुंची और दिन भर में पहला पानी का गिलास उठाया। तभी कैंटीन के लड़के ने चाय ला कर दी। बड़े प्रयास से उसने आपको चाय के कप को हाथ लगाने से रोका। इतना ही नहीं, उसने चाय वाले लड़के को बता भी दिया कि आज के बाद उसके सामने चाय का कप मत लाना। वाइस प्रिंसिपल चाय के लिए मना कर रही थीं इस लिए वह घबराया, “चाय अच्छी नहीं बन रही है क्या? पी कर तो देखें।”

“नहीं रे, तेरी चाय तो हमेशा अच्छी ही रहती है। घर में वैसी नहीं बन पाती। लेकिन मैंने चाय छोड़ दी है। इस लिए अब रोज मेरे सामने चाय ला कर मत रखना।”“ठीक है, तो फिर प्रिंसिपल मेहता मैडम की तरह कॉफी लेकर आऊं क्या रोज आपके लिए? तुरंत लाता हूं।”

“नहीं, कॉफी भी नहीं चाहिए।” लड़के को कुछ समझ में नहीं आया और वह निकल गया। आसपास बैठे हुए शिक्षकों को भी आश्चर्य हुआ कि ये चायबाज लड़की कह रही है कि आज से चाय नहीं पीने वाली? केतकी ने अपने पर्स से दो सेब निकाले और उन्हें काट कर खाने लगी। मिसेस राठौड़ आज अपने घर के बने हुए समोसे और चटनी लेकर आई थीं। समोसे केतकी को बड़े पसंद हैं इस लिए उन्होंने डिब्बे के ढक्कन पर उसे एक समोसा और चटनी रख कर दी। उसे उम्मीद थी कि केतकी हमेशा की तरह उनकी तारीफ करेगी और कहेगी कि वाह क्या टेस्टी समोसे बनाती हैं आप, एक दिन आपके घर आकर आपके हाथ से बने गरमागरम समोसे खाने हैं। लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ। केतकी ने धीमे से मुस्कुराते हुए कहा, “थैंक यू..लेकिन आज मैं ये नहीं खा सकती।”

“अरे, एक ही तो दिया है। चख कर देखो, तुमको अच्छा लगेगा।”

पेट तो कह रहा था दो,दो..और मुंह में पानी भी आ रहा था लेकिन केतकी पिघली नहीं, “आपके बनाये हुए समोसे अच्छे ही रहते हैं लेकिन आज मुझे कुछ भी नहीं खाना है।”

केतकी ने उन्हें सेब की फांक देनी चाही लेकिन वह नो थैंक्स कह कर वहां से निकल गईँ। दूर बैठा हुआ प्रसन्न अपने टिफिन में से रोटी-सब्जी खाते हुए यह सब देख रहा था। उसने सब कुछ सुना और फिर सोच में पड़ गया।

शाला खत्म होने की घंटी बजते साथ कतकी जल्दी-जल्दी बाहर निकली। दरवाजे पर ही उसे प्रसन्न खड़ा मिला।

“हाय, कैसी हैं?”

केतकी ने उसकी तरफ देखा, “कोई खास काम न हो तो कल बात करें? मैं थोड़ी जल्दी में हूं।”

“नहीं, नहीं कुछ खास बात नहीं थी। मैं कह रहा था मिल कर चाय पीते, लेकिन आपको जाने की जल्दी है तो फिर कभी। ”

“चाय? चलिए पीते हैं...”

रेस्टोरेंट में चाय पीने के बाद केतकी को अच्छा लगा। चाय पीने के बाद इतना अच्छा तो उसको कभी भी नहीं लगा था। इसके बाद एक सादा डोसा खाया। पेट एकदम शांत हो गया। प्रसन्न ये सब देख रहा था। “मुझे भावना का मैसेज आया था। ये किस प्रकार की डायटिंग है मैं समझा नहीं?”

केतकी हंसी। उसने चौहान सर की थ्योरी समझाना शुरू किया। प्रसन्न उसकी तरफ एकटक देखता रहा।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

 

====