नि:शब्द के शब्द - 7 Sharovan द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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नि:शब्द के शब्द - 7

नि:शब्द के शब्द - धारावाहिक-


सातवां भाग




दुष्ट भुतही आत्मा का प्रकोप


'अरे ! तू क्या बोल रही है? तुझे कुछ मालुम भी या नहीं?'

'मुझे तो खूब पता है कि, मैं मोहिनी हूँ, लेकिन तू नहीं जानता है कि, तू क्या बोल रहा है?' इकरा बोली तो, उसका पति अवाक-सा उसका चेहरा देखने लगा. फिर काफी देर के बाद वह जैसे बहुत कुछ सोचकर आगे बोला,

'देख इकरा ! ये इतनी सारी भीड़ हमारे मुहल्ले की है. तू मर गई थी, मगर शुक्र हो अल्लाह का कि, उसने तुझे फिर से ज़िन्दगी देकर मेरे पास भेज दिया है. ये सारे मुहल्ले वाले जानते हैं कि, तू मेरी बीबी है. शरीयत के हिसाब से मैं तुझे निकाह कराकर लाया था. अगर यकीन नहीं है तो तू इन सबसे पूछ सकती है?'

'मैं क्यों पूछूं? मैं तो जानती हूँ कि मैं तेरी इकरा नहीं, तेरी बीबी नहीं और तेरी कुछ भी नहीं लगती हूँ. मगर तू जबरन ही मुझको अपने से जोड़े जा रहा है?'

मोहिनी बनी इकरा ने अपने पति हामिद से जब इस प्रकार से कहा तो इकरा के ज़नाज़े में आये हुए एक बुजुर्ग के कान अचानक ही आश्चर्य से खड़े हो गये. तब अचानक ही उनके मुख से निकल पड़ा,

'लाहोल-बिला-कुब्बत? अल्लाह तुझ बेशर्म, बे-हया औरत को मॉफ करे.? वहां पर खड़े एक लम्बी खिचड़ी वाले बुजुर्ग ने अपने दोनों कान पकड़ते हुआ कहा.

मोहिनी बनी इकरा के द्वारा इस तरह बदतमीजी से बात करने पर हामिद भी चकित था. वह उसे आश्चर्य से घूरने लगा.

'?'- तभी हामिद ने फिर से कुछ कहना चाहा तो पुलिस इंस्पेक्टर ने उसे रोक दिया. वह हामिद से बोला कि,

'अबे ! बहुत हो गया. बहुत कुछ पूछ लिया है तूने. अब मुझे इस औरत से बात करने दे? तूने इसका सिर चक्की के पाट पर दे मारा था. तेरी किस्मत अच्छी थी जो यह बच गई और तुझ पर दफा तीन सौ दो लगते-लगते रह गई. लगता है कि, इस औरत के दिमाग में कोई गहरी चोट आई है, इसीलिये यह बहकी-बहकी बातें कर रही है. मुझे तो लगता है कि, सिर में चोट लगने से पहले यह अपनी पुरानी यादाश्त भूल चुकी है. इसका भी डाक्टरी मुआयना करवाना पड़ेगा.'

इतना सब कहने के बाद इंस्पेक्टर ने आगे निर्देश दिया. वह बोला,

'दफ़न की रस्म रद्द करो. औरत ज़िंदा है. और तू. . .?' इंस्पेक्टर ने हामिद को देखते हुए कहा कि,

'थाणे चल. जरूरी कागज़ात पूरे करने के बाद मैं तुझे छोड़ दूंगा और इसके बाप बूढ़े को, हथकड़ियां खोलकर घर जाने दो.'

'साहब ! और इस लड़की का क्या करें?'

'इसे भी घर जाने दो. कल मैं फिर से आकर जरूरी कार्यवाही करूंगा. सारा खेल बिगड़ गया. औरत मरते-मरते बच गई और इसका आदमी भी अंदर जाने से बच गया. क्या ज़माना आ चुका है? साले, लोग मरते भी हैं और जहन्नुम में घूम-फिरकर वापस भी आते हैं.

कब्रिस्थान खाली हो गया. दफ़न में आये हुए सारे लोग वापस अपने घर चले गये. जाने वाले लोगों के मुख के ताले खुल चुके थे. तरह-तरह की बातें थीं. इकरा ज़िंदा होकर फिर से वापस अपने घर को आ गई थी. कोई अपने हिसाब से अल्लाह की तारीफों के पुल बना रहा था तो कोई इकरा में बद-रूह आने की बात कहता था तो कोई उसके जिस्म पर किसी जिन्न और प्रेत के कब्जा करने की बात कह-कह कर लोगों में भय उत्पन्न कर रहा था.

शाम होते-होते इकरा की कब्र खाली ही फिर बंद कर दी गई. अन्धेरा होते ही कब्रिस्थान के मनहूस प्राचीर में रात के उल्लू आकर अपनी गर्दने मटकाने लगे थे. कुछेक भयानक और जालों से भरी भुतही कब्रों के ऊपर और पेड़ों पर अबाबीलें भी आकर चिपकने लगी थीं. कब्र खोदने वालों ने अपनी मेहनत और परिश्रम का किसी भी तरह का पैसा नहीं लिया था. उनका ईमान था कि, जब उनके अल्लाह ही ने इकरा को निशुल्क बक्श दिया था तो उन्हें भी अपना हक लेने का कोई अधिकार नहीं था. मगर, इकरा के दोबारा ज़िंदा होने और कब्र से वापस आने की खबर उसके मुहल्ले से लेकर आस-पास के जानकारों, शहरों, गाँवों और सारे जनपद में जंगल में लगी आग के समान फैल चुकी थी. इसलिए हामिद के भी घर का बुरा हाल था. जिसे भी पता चलती, वही आकर इकरा को देखने चला आता था. इसके अतिरिक्त जो अत्यधिक अन्धविश्वासी और अपने खुदा / अल्लाह के मानने वाले थे, वे अतिरिक्त मिठाई, धनराशि तथा अन्य दैनिक जीवन की आवश्यक वस्तुएं भी उस पर निछावर करते जा रहे थे. इस तरह से हामिद की तो बन आई थी. वह रातों-रात पैसे वाला बनता जा रहा था.

फिर भी, उसके ही मुहल्ले के रहनेवाले बहुत से लोगों ने उसे डरा-धमका भी दिया था, क्योंकि इकरा के बदन में समाहित मोहिनी की आत्मा अब इकरा के अलावा अपनी बात करती थी. वैसे भी विचित्र बात यह थी कि, मोहिनी अपने सनातन धर्म और इस्लाम से बिलकुल भिन्न-भिन्न प्रकार की बातें करती थी. वह किसी भी तरह से यह मानने को तैयार ही नहीं थी कि, वह अब इकरा है और इस्लामिक रीति-रिवाज़, खान-पान, मुहल्ले और रहन-सहन से उसका कभी कोई वास्ता भी रहा था. इतना ही नहीं, हामिद के मुहल्लेवालों ने उससे तो यहाँ तक कह दिया था कि, इकरा पर किसी जिन्न और बद-आत्मा या बद-रूह का असर हो चुका है. इकरा कब्र में से वापस जरुर आई है, मगर वह इकरा न होकर उसके अंदर किसी दुष्ट आत्मा का निवास हो चुका है. यदि उसने चढ़ावे के नाम पर आये हुए धन और अन्य वस्तुओं का ज़रा भी इस्तेमाल किया तो उसका सारा घर जिन्नों, मसानों और भूतों का डेरा बन जाएगा. सो हामिद बेचारा इसी भय के कारण अभी भी रात में रिक्शा जोतने पर मजबूर था. उसके मुहल्ले के किसी बुजुर्ग ने उसे सलाह दे दी थी कि, इकरा के नाम से आये हुई हदिया आदि की रसद को वह अपने मौलवी के यहाँ जमा करता रहे. मौलवी जी इन भूतों और जिन्नों से दो-चार हाथ बड़ी आसानी से करते रहेंगे और उसका और उसके घर का बाल भी बांका नहीं हो सकेगा. साथ ही इकरा के बदन में समाहित दुष्ट आत्मा को बाहर निकालने का प्रयास भी मौलवी साहब करते रहेंगे. सो, इकरा के नाम का सारा चढ़ावा, भेट, पैसा, चढ़ावे की मिठाई, फ़ातहा, मुर्दे या किसी बुजुर्ग का खाना नियाज़ आदि शाम होते ही बाँध कर अब मौलवी के पास, उनके घर के दरवाज़े पर रख दिया जाता था.

हामिद भी पुलिस वालों की गिरफ्त से छूटकर घर आ गया था. इकरा जीवित थी- भले ही मोहिनी के रूप में, इसलिए कत्ल का केस भी हामिद के सिर से हट गया था. यह और बात थी कि, पुलिस चौकी वालों ने बगैर पैसा लिए उसे नहीं छोड़ा था. हामिद के पिता को, उसको छुड़ाने के लिए कम-से-कम पांच हजार रुपयों का तुरंत इंतजाम करना पड़ा था. इस इंतजाम में हामिद की मां के जेवर और खुद इकरा के भी जेवर स्वाहा हो चुके थे.

घर आते ही, हामिद जैसे फिर से इकरा बनाम मोहिनी पर बरस पड़ा. अपनी आँखे लाल-पीली करते हुए उससे बोला कि,

'अभी तक मलिका की तरह बैठी हुई है. हांडी भी नहीं चढ़ाई. चल खाना बना. सब कुछ ठीक तो हो गई है तू. ज़रा-सा सिर चक्की से क्या टकरा गया था कि, तूने तो मुझको फांसी ही लगवा दी थी?'

'ऐ ! तू बात कैसे करता है? तेरे घर में तमीज़ नहीं सिखाई है किसी ने?' इकरा के बदन में बैठी हुई मोहिनी बोली.

'अब तमीज़ और सिखा दे मुझे. नहीं तो . . .'

'नहीं तो क्या? फिर से मार डालेगा मुझे? अभी तो बचकर आ गया होगा.' इकरा ने कहा तो वह बोला,

'तो फिर, अभी भी तेरा दिमाग ठिकाने नहीं आया है क्या?'

'क्या करेगा तू? कितनी बार समझाऊँ तुझे कि, मैं तेरी बीबी इकरा नहीं हूँ.'

'तो फिर तू कौन है?'

'मैं, मोहिनी हूँ. एक हिन्दू सनातन लड़की हूँ. अभी तक मेरी शादी नहीं हुई है. तेरी तरह इस्लाम धर्म से मेरा कोई भी वास्ता नहीं है.'

'बातें, खूब बनाना सीख गई है. कब्रिस्थान क्या पहुँची थोड़ी देर को कि, तेरा तो मिजाज़ ही बदल चुका है. अच्छा चल, हमारा-तेरा कोई झगड़ा नहीं. चल उठ, अगर हांडी नहीं चढ़ानी है तुझे आज तो कोई बात नहीं. चल उठ, नहा-धो और गुसल कर ले. कब्रिस्थान से आई है. फिर इत्मीनान से मिलकर बात करेंगे.' यह कहते हुए हामिद ने उसका हाथ पकड़कर इकरा को उठाना चाहा तो वह जैसे उछलकर हामिद से दूर हट गई. फिर क्रोध में बोली कि,

'मैंने कहा है कि, मुझे हाथ मत लगाना. तुझे शर्म नहीं आती, किसी गैर स्त्री पर हाथ लगाते हुए? मैं स्नान कर चुकी हूँ?'

'?'- हामिद मारे घोर आश्चर्य से, एक भेदभरी नज़र के साथ इकरा को घूरता ही रह गया.

तब इकरा बनाम मोहिनी ने उसे धमकी दी. वह बोली,

'देख ! तू अब अपने होश में रहना. अगर फिर से मुझ पर हाथ लगाने की कोशिश भी की तो मैं इकरा के बदन को मारकर तुझ में घुस जाऊंगी. एक बात और सुन ले, तूने अगर मेरी कहीं भी शिकायत की, या मेरी यह कहानी किसी को सुनाई अथवा किसी ने भी पढ़ी और उसके बाद अगर किसी ने भी मुझको ज़रा भी बुरा-भला कहा और मुझ पर दोष लगाया तो फिर मैं उसका जीना हराम कर दूंगी. क्या तूने नहीं सुना है कि, रूहें इंसानों से अधिक ताकत वाली होती हैं. इसलिए अपनी अगर खैर चाहता है तो मुझसे दूर ही रहना और जैसा मैं चाहती हूँ, वैसा ही करना, वरना . . .तू अच्छी तरह से जानता है कि, मैं तेरा क्या कर सकती हूँ.'

'?'- बेचारा हामिद मारे भय के जैसे कांपने लगा. पल भर में ही उसकी सारी मर्दानगी का नशा हिरन हो गया. वह चुपचाप अपने स्थान पर खड़ा ही रह गया.

वह अभी कुछ सोच ही रहा था कि, तभी उसका पिता उसके करीब आया और हामिद से बोला कि,

'उसे अब ज्यादा हैरान मत कर. उसकी ज़हनी तबियत ठीक नहीं है. ऐसी हालत में यह कब क्या कर बैठेगी, कुछ पता नहीं. मैं, मुहल्ले की किसी ज़ियानतदार, शरीफ औरत से गुजारिश करूंगा कि, वह इससे बात करके पता लगाये कि, जो यह कहती है, उसमें कुछ सच भी है या नहीं?'

'?'- हामिद फिर आश्चर्य से अपने पिता का दाड़ी से भरा चेहरा देखने लगा तो उसका पिता आगे बोला कि,

'देख हामिद, यह मामला और बात इतनी आगे बढ़ चुकी है कि, अब हमारे दोनों के हाथों में कुछ भी नहीं है. इसलिए, ज़ोर-जबरदस्ती, अपने शौहर होने के हक से और चीखने-चिल्लाने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है.'

'तो फिर मैं क्या करूं? घर देखूं, इसको देखूं या फिर रिक्शा चलाकर सबका पेट भरूं?'

'कुछ भी मत कर. जैसा चल रहा था, वैसा ही चलने भी दे. इकरा को सोचने-समझने का वक्त तुझे देना पड़ेगा.'

'वक्त ? किस बात का? मेरा तो ख्याल है कि, उसके सिर पर चोट लगी थी और वह लम्बे वक्त के लिए अपने होश-हवास खो बैठी थी. अब ठीक है तो एक नई कहानी बनाने लगी है?'

'जो भी हो. यह मत भूल कि, वह कब्र में से वापस लौटकर आई है. कुछ भी हो, अब कोई दूसरा काम गलत मत कर बैठना. एक बार तो बच गया है तू, आगे को अल्लाह के खौफ से डर, वरना उसका कहर अगर हम पर अब पड़ा तो फिर समझ लेना कि, तबाह होकर ही रहेंगे हम लोग?'

'?'- हामिद के मस्तिष्क में अपने पिता की यह बात घर कर गई. उसने समझ लिया कि, उसकी बीबी की मानसिक दशा ठीक नहीं है. अभी उस पर दबाब डालना और बार-बार अपनी पत्नी का अधिकार जताना किसी भी दशा में ठीक नहीं था. लेकिन फिर भी वह अपनी नर्म आवाज़ में इकरा से बोला कि,

'चल, मैंने मान लिया है कि, तू मेरी बीबी इकरा नहीं बल्कि कोई दूसरी औरत मोहिनी है. तो फिर मुझे बता कि, तू कहाँ की रहने वाली है? कौन तेरा आदमी है? यहाँ मेरे घर में मेरी बीबी इकरा बनकर क्या कर रही है?'

'?'- तब इकरा ने हामिद को गम्भीरता के साथ निहारा. दूर खड़े उसके पिता को भी आश्चर्य से देखा. अपने चारो तरफ एक गहरी नज़र डाली और फिर बोली,

'अगर तुम दोनों और यहाँ तुम्हारे मुहल्ले के जो भी लोग हैं, अगर सुनना चाहो और मुझ पर यकीन करो तब तो मैं कुछ बताऊँ, वरना बात करने से कोई भी फायदा नहीं है.'

'हां. . .जरुर बताओ. हम सब तुम्हारी बात पर यकीन करेंगे, गौर से सुनेगे भी. अगर कोई इल्म की बात होगी तो उसे मानेगें भी.' हामिद के पिता ने कहा तो इकरा ने आगे कहा कि,

'जैसा कि, मैंने पहले भी बताया था कि, मैं मोहिनी हूँ. मेरा पूरा नाम मोहिनी व्यास है. सनातन धर्म की हूँ. तुम्हारे अल्लाह और इन तमाम मुस्लिम रीति-रिवाजों के बारे में कुछ भी नहीं जानती हूँ. मैं मोहित से प्यार करती हूँ और उससे शादी करना चाहती थी मगर उसके घरवाले इस रिश्ते को नहीं चाहते थे. इसलिए वे मुझे मार डालना चाहते थे. इसी भय से मैं भागकर मोहित के पास जा रही थी कि तुम सब लोग मुझे जबरन पकड़कर यहाँ ले आये? मेरी समझ में अब तक यह नहीं आया है कि, तुम लोग मुझे अपने कब्रिस्थान में क्यों न ले गये थे?'

'तू, मुझसे लड़ रही थी और मेरे बाप पर तू अपनी अस्मत लूटने का भयानक इलज़ाम लगा रही थी. इसलिए तुझ पर मेरा हाथ उठ गया और गुस्से में मैंने तेरा सिर इस चक्की पर मार दिया था. चक्की के पत्थर से टकराते ही तू बेहोश हो गई. फिर जब मैंने और मुहल्लेवालों ने तुझे अस्पताल में दिखाया तो उन्होंने तुझे मरा हुआ साबित कर दिया. मैं इसी गुनाह में जेल गया. मेरे साथ मेरे वालिद भी जेल गये. तू तीन दिनों तक पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल के मुर्दाघर में पड़ी रही थी. कल ही तेरी लाश हमको मिली थी और जब आज तुझे दफन करने के लिए कब्रिस्थान ले गये तो तू दफन से पहले ही उठकर बैठ गई और अब कोई नई कहानी सुनाती है?'

'अच्छा ! तो अब तू क्या चाहता है?'

'मैं चाहता हूँ कि, तू इकरा है और इकरा ही बनकर इस घर में रह तो सारी बात खत्म हो जाती है. और अगर मोहिनी है तो तुझे रखने का मुझे कोई भी फायदा नहीं है. हम लोग गैर-मुस्लिम लड़कियों से शादी तब तक नहीं कर सकते हैं जब तक कि, वे खुद इस्लाम कबूल न कर लें.'

'तो फिर भूल जा इकरा और अपनी बीबी को. मैं मोहिनी हूँ और मुझे मेरे घर जाकर छोड़ आ.'

'?'- इसके लिए मुझे सोचना होगा और की बुजुर्गों की सलाह भी लेनी होगी.'

'तो फिर जल्दी कर. मैं यहाँ ज्यादा दिनों तक नहीं रुक सकती हूँ. मोहित मेरे कारण परेशान होता होगा.'

'?'- हामिद सुनकर दंग रह गया. मरकर जीवित हुई उसकी बीबी बे-सिर-पैर की बातें करती थी, उसे तो हैरान होना ही था. इतना तो वह मूर्ख था कि वह इस सच्चाई को नहीं समझ पा रहा था कि, अगर मां-बाप एक बार को छोड़कर चले जाएँ तो वे फिर भी हमेशा मां-बाप ही रहते हैं, लेकिन बीबी अगर किसी भी तरह से एक बार छोड़कर चली जाए तो वह फिर बीबी नहीं रहती है.

मोहिनी ने बताया तो उसकी बातों को सुनकर हामिद के साथ उसका पिता भी सुनकर दंग रह गये. दंग रह गये इसलिए कि, इकरा की शक्ल में कोई अन्य औरत मोहिनी बनी उनसे अपनी दूसरी कहानी सुना रही थी. यह सब सुनकर हामिद का पिता उससे चुपचाप बोला कि,

'इस औरत का इलाज छोटे-मोटे दम और ताबीज से नहीं हो सकेगा. इस पर बद-रूह नहीं किसी जिन्न का असर दिखाई देता है. इसको पीर फकीरी की दरगाह पर ले जाना पड़ेगा.'

'तो, ठीक है. अभी तो मैं रोज़गार पर जाता हूँ. हाथ में दो पैसे भी नहीं बचे हैं. इकरा की मौत, पुलिस वालों के चक्कर आदि में सारे पैसे खर्च हो गये सो अलग और कर्जे में भी डूब चुके हैं. मैं कल सुबह आकर बात करूंगा.'

इतना कहने के बाद हामिद इकरा के पास आया और बड़ी नर्मी से शांत स्वर में बोला कि,

'देखो, तुमने अपनी बात बता दी और हमने विश्वास कर लिया. तुम जहां कहीं की भी रहने वाली हो, अपना पता वगैरह बताना. मैं तुम्हारे जानने वालों को खबर दे दूंगा; और नहीं तो मैं खुद तुम्हें वहां छोड़ आऊँगा. लेकिन, जब तक यहाँ रहो, कुछ नहीं तो हमारे मेहमान की ही तरह रहो. खाना बनाओ, खाओ और इत्मीनान रखो. सारे मुहल्ले में तमाशा मत करो.'

'?'- मोहिनी ने हामिद को एक उम्मीद से देखा तो हामिद उससे बोला कि,

'जो मैंने कहा है, उस पर तबज्जो जरुर देना. अभी जाता हूँ. सुबह फिर बात होगी.'

हामिद ने अपना अंगोछा गले में डाला और अपना रिक्शा उठाकर घर से बाहर निकल गया. मोहिनी चुपचाप किंकर्तव्यविमूढ़-सी उसे देखती रह गई.

- क्रमश: