एक दिन में भोपाल के बहुत ही प्रसिद्ध और जाने-माने निजी विश्वविद्यालय में इतिहास के सहायक प्राध्यापक का इंटरव्यू देने गई । जैसे ही मैंने वहां पर इंटरव्यू के लिए अंदर प्रवेश किया, वहां एक बहुत ही मॉडर्न, बाल कटे हुए, एक महोदया विराजमान थी, जो शिक्षित,डॉक्टरेट थी । जब उन्होंने मेरा साक्षात प्रारंभ किया तो उन्होंने साक्षात्कार के दौरान मुझसे कुछ चंद ही प्रश्न पूछे और उसके पश्चात वे बात ही बात में इस प्रकार का मखोल उड़ाने लगी क्योंकि मैं हिंदी भाषा माध्यम से शिक्षित हूं । उस समय मुझे अपनी शिक्षा एवं अपनी भाषा पर विवश होना पड़ा ।मेरे साथ इस प्रकार का व्यवहार पहले भी कई इंटरव्यू में निजी क्षेत्र के विद्यालय एवं विश्वविद्यालय में हो चुकी थी। मैंने देखा है कि जिन राज्यों में उनकी क्षेत्रीय भाषाएं हैं वे राज्य अपनी क्षेत्रीय भाषाओं के लोगों को प्राइवेट नौकरियों में भी प्राथमिकता देते हैं परंतु मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं है यहां सभी को अंग्रेज चाहिए। विगत 1 घंटे चलने वाले मेरे साक्षात्कार में मेरे विषय से संबंधित मुझसे केवल एक प्रश्न पूछा गया कि नारीवाद के विषय में आप क्या जानते हैं, और वह प्रश्न भी इंग्लिश में पूछा गया मैंने अपनी समझ और अपनी योग्यता अनुसार उसका जवाब दिया। साक्षात्कार लेने वाली महोदय जी ने मुझसे कहा कि आप हिंदी भाषा माध्यम से पढ़ी हैं इसलिए हम आपको यहां नहीं रख पाएंगे। मैं भी अपना सा मुंह लेकर घर वापस आ गई ।मैंने इस साक्षात्कार के दौरान महोदय जी से महोदय जी से यह कहा कि LANGUAGE IS A MEDIUM OF COVERCESSION NOT A MEDIUM OF EXPRES OUR KNOWLEDGE मैंने यह अंग्रेजी में इसलिए कहा कि वह समझ जाएं कि कोई व्यक्ति अगर हिंदी भाषा माध्यम से पड़ा है इसका अर्थ यह नहीं है कि उसे अंग्रेजी समझ लिया लिख दिया बोलनी नहीं आती परंतु उनको यह बात समझ में नहीं आई। शिक्षक के चयन के समय सबसे महत्वपूर्ण भारतीय होती है कि शिक्षक में विषय का ज्ञान कितना है परंतु वर्तमान शिक्षा पद्धति अंग्रेजों की गुलाम होती जा रही है हम भाषाई आधार पर आज भी अंग्रेजों के गुलाम ही हैं। मैंने इतना कहते हुए अपनी वाणी को विराम दिया , साक्षात्कार ले रही महोदय जी ने मुझसे कहा की , आपको नौकरी दी गई है या नहीं इसकी सूचना आपको दे दी जाएगी। जब मैं साक्षात्कार से निकली और घर पहुंची उसके बाद मेरे हृदय में यह प्रश्न उठने लगा कि क्या हिंदी भाषा से शिक्षित व्यक्तियों का कोई भविष्य नहीं हो सकता, अगर वे प्राइवेट क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं तो वह कहां जाएंगे। आज मैंने अभिभावकों को भी देखा कि उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि बच्चे को विषय का कितना ज्ञान हो रहा है अगर बच्चों ने अंग्रेजी के 4 शब्द ही कह दिए तो वे इसको उपलब्धि मान लेते हैं मैंने इस विषय में लोगों का मत जानना चाहा तो मुझे पता चला कि लोगों का मानना है कि उनके बच्चे बहुत अच्छा अंग्रेजी में प्रदर्शन करें उनको विषय का नॉलेज तो मिल ही जाएगा ऐसी सोच है कुछ अभिभावकों ने मुझे यह तक कहा की अंग्रेजी अमीरों की और हिंदी गरीबों की भाषा हो गई है अगर हमको हमारा स्टेटस समाज में के सामने अच्छा रखना है तो इसके लिए हमको और हमारे बच्चों को अंग्रेजी आना आवश्यक है यह हमारे या हमारे परिवार की प्रतिष्ठा को प्रदर्शित करता है मेरी क्षेत्र में शोध यात्रा चल ही रही थी कि अचानक से मुझे उसी विश्वविद्यालय से पुनः फोन आया कि आप आकर के आगे के राउंड का अपना साक्षात्कार पूर्ण करें । मैं पुनः ऊर्जावान हो करके वहां गई वहां की वाइस चांसलर ने मेरा साक्षात्कार लिया आप यह सोच कर के आश्चर्यचकित रह जायेंगे की चांसलर ने कहा कि मैडम यह बताइए कि मैं आपसे किस भाषा में बात करूं । मैं अचंभित रह गई मैंने कहा कि सर मैं समझी नहीं कि आप क्या कह रहे हैं तो उन्होंने कहा कि मैं किस भाषा में बात करूं हिंदी में या अंग्रेजी में मैं उसी समय समझ गई कि यह लोग दोबारा मेरा आत्मसम्मान हिलाना चाहते हैं । मैंने साक्षात्कार के वार्तालाप में पूर्व में तो कुछ नहीं कहा बाद में मैंने नौकरी ठुकराते हुए उनको यह यह कहा कि,यह भेदभाव है और एक शिक्षक के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होना चाहिए कि उसे विषय का कितना ज्ञान है ना कि उस शिक्षक की शिक्षा किस भाषा में हुई है। मुझे तो नौकरी प्राप्त नहीं हुई पर यह समस्या समाज में विद्यमान है और अधिकांश ऐसे युवा है जिसका शिकार हो रहे हैं सरकारी नौकरी प्राप्त करना इतना आसान नहीं है और अगर प्राइवेट में भी यही चलता रहा तो शिक्षित युवा कहां जाएंगे।