A Talk on social development from Guru Ghasidas Jayanti books and stories free download online pdf in Hindi

गुरु घासीदास जयंती से सामाजिक विकास की बात

     छत्तीसगढ़ में सतनामियों के लिए गुरु घासीदास जयंती का उपलक्ष्य एक बहुत बड़ा आयोजन और अवसर होता है. क्योंकि, वे लोग गुरु घासीदास जी के अनुयायी तथा सतनामी धर्म के मानने वाले होते हैं. सत्य-अहिंसा पर मजबूत विश्वास रखते हैं. ज्यादातर, वे आडंबरों से मुक्त रहते हैं तथा गुरु घासीदास के संदेशों पर चलने का प्रयास करते हैं. महापुरुषों के जन्म-जयंती को छोड़ दे तो, हिन्दुओं के समान दिवाली, होली, दशहरा आदि सतनामियों का अपना कोई तीज-त्यौहार नहीं है. इनका, हिन्दू रीति-रिवाजों, तीज-त्यौहारों से सीधा संबंध नही होता है. हालाँकि, वे लोग हिन्दू त्योहारों में सहभागिता जरुर निभाते हैं. किन्तु, केवल जैतखाम में ही दीप जलाकर शीश झुकाते हैं. यह सतनामियों का विशेष सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यता है.
   मैदानी छत्तीसगढ़ के प्रत्येक गाँवों में, गुरु घासीदास जयंती के अवसर पर, सतनामी जाति के लोग अनुमानित 2 से 5 लाख रुपए तक खर्च करते हैं. इस खर्च में जयंती के दौरान आयोजित कार्यक्रम/ आर्केस्ट्रा, घर-परिवार तथा मेहमानों के सत्कार के लिए किए जाने वाले खर्च आदि शामिल हैं. इतनी भारी भरकम मोटी रकम का सदुपयोग करने में सतनामी समाज लगभग 70-80 वर्षों के लम्बे अंतराल से असफल रहा है या यह कहा जाए कि इस दिशा में कभी ध्यानकेंद्रित नहीं कर पाए थे.
     छत्तीसगढ़ पंचायत संचालनालय के पुराने आंकड़े के अनुसार देखें तो छत्तीसगढ़ में 28 जिला, 11664 ग्राम पंचायत, 20619 कुल ग्रामों की संख्या प्रदर्शित है. जिला के वेबसाइट से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्तमान में बलौदा बाज़ार जिला में ही 610 ग्राम और 397 पंचायत हैं. अगर इस ग्राम संख्या को एक अनुमानित सामान्य आंकड़े के रूप में मानकर चले तो, एक-एक जिले से ही सतनामी समाज के लोग प्रत्येक वर्ष 12.20 करोड़ से 30.50 करोड़ रुपए के आसपास खर्च करता है. इस प्रकार, इतनी ही खर्च, छत्तीसगढ़ के लगभग 12 से 14 जिलों में प्रत्येक वर्ष किया जाता है. एक जिला में 12.20 करोड़ रुपए के हिसाब से 12.20 करोड़ गुणा 12 जिलों में कुल 146.40 करोड़ रुपए (कुल 1 अरब 46 करोड़ 40 लाख रुपए) खर्च करते हैं. हर जिला में 30.50 करोड़ रुपए खर्च के हिसाब से 12 जिला गुणा 30.50 करोड़ रुपए बराबर 366 करोड़ रुपए (कुल 3 अरब 66 करोड़ रुपए) खर्च करते हैं. वहीँ 14 जिलों के हिसाब से इसकी राशि और बहुत अधिक बढ़ जाएगी. एक तरफ, सतनामी समाज हर साल अरबों-करोड़ो रुपए गुरु घासीदास जी के जयंती में उड़ा रहे हैं. तो वही, दूसरी ओर, अपने विरोधी जातियों को मजबूत करने का काम भी कर रहे हैं. क्योंकि, सतनामी लोग जयंती के अवसरों पर व्यवसाय, काम-धंधा आदि लगाते नहीं है. केवल ग्राहक बने रहते हैं. ऐसे ही, सतनामियों के अनापशनाप खर्चों को देखकर गुरु घासीदास जी ने कहा होगा, “धन ल उड़ा झन, बने काम म खर्च कर”. यदि, इन रुपयों को आधा भी कर दो तब भी, प्रत्येक वर्ष गुरु घासीदास जयंती के अवसर पर करोड़ों-अरबों रुपयें फूंक देते हैं. यह बहुत अधिक गंभीर विषय है, जिसपर कार्य करना अत्यधिक जरुरी है. क्योंकि, आने वाले समय और अधिक महंगाई, बेरोजगारी भरा होने वाले है. जिस गति से पिछले, तीन-चार सालों में ही महंगाई डबल और डबल से भी अधिक हो गई है.
     यदि, गुरु घासीदास जयंती के नाम पर ‘सतनामी समाज’ के लोग केवल एक ही जिला में एक वर्ष में 12.20 करोड़ से 30.50 करोड़ रुपए खर्च करते हैं. इस दिशा में समाज के लोगों को ध्यानपूर्वक विचार करना बहुत जरुरी है कि, इन रुपयों से प्रत्येक जिलों में बहुत से विशेष सृजनात्मक और विकासात्मक कार्य कर सकते हैं. मैं, यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि सतनामी समाज के दशा और दिशा दोनों बदल जाएंगे. कोई भी, किसी भी सतनामी पर अत्याचार करने से पहले सौ बार जरुर सोचेंगे. आज जिस तरह से सतनामियों को भेंड़-बकरियों की तरह शिकार बनाया जा रहा है. उन सभी से हमेशा के लिए सतनामी मुक्ति प्राप्त कर सकता है. गुरु घासीदास जी ने ‘सतनामी’ समाज के नाम इतना बड़ा विशालकाय मंच दिया है. जिसका, किस तरह से सदुपयोग किया जाए, यह वर्तमान के समाज प्रमुखों, नेतृत्वकर्ताओं पर निर्भर है. यह विशाल मंच का नाम ‘सतनामी’ है. जहाँ सतनामियों में जाति स्तरीकरण की भेदभाव, ऊँच-निम्न की खाई नहीं होती है. इस तरह से, सतनामियों की सामाजिक समानता पर गर्व करनी चाहिए.
     किसी भी प्रकार के ताम-झाम, नाचा-पेखन का सामुदायिक स्तर पर परित्याग करके केवल पंथी प्रतियोगिता, शैक्षिक गतिविधियाँ, सेमिनार, वक्तव्य वाचन, आदि महापुरुषों और भविष्य के सृजनात्मक गतिविधियों पर चर्चा तथा समाज की वार्षिक उपलब्धियों आदि की समीक्षा पर चर्चा करनी चाहिए. जिन राशियों को विभिन्न तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में फिजूलखर्च करके बहा दिया जाता था. अब प्रत्येक गाँव से प्रत्येक वर्ष इन राशियों को जिले स्तर पर कार्यालय स्थापित करके अति-गंभीरता और जवाबदेह के साथ इकठ्ठा किया जाना चाहिए. जिसका उपयोग सतनामियों के सांस्कृतिक-धार्मिक स्थलों का सुव्यवस्थित करना, व्यवसायिक और शैक्षिक क्षेत्रों में रचनात्मक तथा विकासात्मक कार्यों के दिशा में विशेष कार्य किया जाना चाहिए. जैसे कि, विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बच्चों के लिए सर्व-सुविधायुक्त छात्रावास निर्माण करना. इससे समाज के भविष्य विभिन्न तरह से शहरों में किराए के लिए ठोकरे खाने नही पड़ेंगे. इस तरह से, उन सभी बच्चों को मानसिक रूप से प्रताड़ित होना नहीं पड़ेगा और उन लोगों को एक बेहतरीन शैक्षिक वातावरण मिल सकेगा. व्यावसायिक भवने, धार्मिक दृष्टिकोण से, जिस प्रकार, सिक्खों के गुरुद्वारा की भव्यता दूर से ही दिखाई देती है. ठीक इसी प्रकार, अगर, सतनामियों में इच्छाशक्ति हो तो, निःसंदेह, सतनामियों के भी ऐसी भव्यता लिए हुए गुरुद्वारा प्रत्येक जिलों में दिखाई देंगे. साथ ही, हर बड़े कार्यों के लिए नेताओं के पीछे भागना और उनका सालों-साल किसी एक कार्य के लिए भी मुंह ताकते रहने की जरूरत नहीं होगी. यह इतना अधिक विशाल राशि है जिसके सदुपयोग से सतनामी समाज का हर सपना साकार हो सकता है. इस दिशा में कार्य करने में अधिक समय का भी जरूरत नहीं पड़ेगा सिर्फ एक ही साल में सतनामियों के दशा और दिशा में परिवर्तन दिखाई देने लगेगें. सत्य-अहिंसा और शांति के महामानव के जयंती को सादगी से मनाइये और समाज को प्रगति देने में प्रत्येक सतनामी बराबर के सहभागी बने.
     मैं व्यक्तिगत, गुरु घासीदास जी के जयंती को केवल उत्सव के रूप में नहीं देखता हूँ और न ही भविष्य में भी कभी देखना चाहूँगा. बल्कि, मैं, इसे सतनामी समाज के एकता तथा विकास का बहुत बड़ा सोर्स और सामाजिक एकता के सूत्र के रूप में देखता हूँ. अतः सम्मानीय सतनामी समाज के लोगों को उस विशाल सोर्स का सदुपयोग करने के दिशा में आगे बढ़ना चाहिए. छोटे-छोटे संगठन तैयार करके चीखने-चिल्लाने से बचना चाहिए. जो लोग बहुसंख्यक समाज को, छोटे-छोटे संगठनो के टुकड़ों में बांटकर, बहुत बड़ा सामाजिक परिवर्तन खड़ा करने की सोचते हैं; ऐसे लोग स्वयं तथा समाज को केवल धोखा देने का ही काम कर रहे हैं. निःसंदेह, इस बात को, वे लोग भी अच्छी तरह से जानते हैं कि, ‘एकता में ही शक्ति होती है.’ संगठनों को मिलकर काम करना इसलिए जरुरी है, क्योंकि, यदि 4 संगठन इस दिशा में काम करना भी चाहेंगे तो 6 संगठन विरोध में भी खड़े हो जाएंगे. यह सामाजिक दुर्गति का बहुत बड़ा सच्चाई, कारक और उदाहरण होगा.
     इस लेख के पीछे मेरी व्यक्तिगत तमन्ना यही है कि, सतनामी अपने भारी भरकम मोटी रकम को साल के साल पानी की तरह न बहायें. बल्कि, इस मोटी रकम का सदुपयोग समाज के विकासात्मक और रचनात्मक विकास कार्यों में लगायें. जिससे, समाज में अभूतपूर्व उन्नति और प्रगति का रास्ता खुले. इसके लिए, सतनामी समाज को सर्व-प्रथम संगठनात्मक विभाजन की बेड़ियों को तोड़कर वैचारिक रूप से एक बनना होगा. एक समाज, एक समस्या, एक समाधान और एक ही विकास के मुद्दे पर विचार स्थापित करना होगा. अलग-अलग विचारधाराओं को समाज के साथ नहीं जोड़ना चाहिए. क्योंकि, समाज में जितना अधिक विचारधाराओं का प्रवेश होगा उतना ही अधिक वैचारिक तकरार और दूरियां मजबूत होते जाएगी. बचपन से, यह सुनते हुए बड़े हुए हैं कि, ‘लालच बुरी बला है.’ और कई लोगों को कई तरह से इस लालच में पड़कर फंसते हुए भी देखे हैं. किन्तु, समाज आज स्वार्थ और लालच में, आए दिन कोई न को नए-नए संगठन बनाकर फलाना अध्यक्ष, ढीमका अध्यक्ष बन रहे हैं. सबको अध्यक्ष ही बननी है, चाहे वह चार लोगों का ही संगठन क्यों न हो. अतः समाज के जागरूक जनों से उपरोक्त मुद्दों पर गंभीरता से विचार-विमर्श करने और आगे बढ़कर कार्य करने की जरूरत है.

लेखक: संजीव कुमार मांजरे

पीएचडी छात्र: गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय

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