सात फेरे हम तेरे - भाग 13 RACHNA ROY द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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सात फेरे हम तेरे - भाग 13


फिर जो स्थिति नैना की हो रही थी देखने लायक थी। नैना को कुछ भी ठीक नहीं लग रहा था।उसे सबके साथ रहने के बाद भी बहुत ही अकेला पन था। एक एक दिन एक सदियों के समान था।

फिर एक एक दिन करके निकलने लगें। नैना की आंखें उसके पास थी पर वो कहीं से भी खुश नहीं थी। उसे हर पल की बेचैनी थी। नैना हर रोज निलेश का इंतजार करने लगी थी। पर उसे क्या पता कि निलेश अब कभी नहीं आएगा। सदियां बीत जाएंगी पर निलेश कभी नहीं आ पाएगा। क्या है ये जुनून है या फिर है ये प्यार।पर जो भी है ये जब जिसको लगता है बस लग ही जाता है।

जिस दिन निलेश का दसवां था सुबह से लोगों की भीड़ लगी थी माया के घर। नैना ने जैसे ही देखा तो वो समझ गई कि शायद निलेश आ गया होगा और उसी की स्वागत में सब आए होंगे।फिर क्या निलेश मुझे पहचान पाएगा।पर वो मिलने नहीं आया।

नैना अपने बालकनी में से निलेश को खोजने लगती है।।

ये सब देख कर नैना को लगता है की निलेश आ गया है और मिलना नहीं चाहते हैं।

नैना ने कहा बुई अब और नहीं मुझे जाना होगा निलेश ने ऐसा क्यों किया बोल कर निलेश के घर जाने के लिए तैयार होने लगी। कोकिला ने कहा कि पर वहां तुम नहीं जा सकती हो।पर नैना जल्दी से तैयार हो जाती है। और फिर सीधे निलेश के घर पहुंच जाती है और वहां देखती है कि एक पंडित जी बैठे हैं और माया किसी कि तस्वीर में माला चढ़ाने में व्यस्त हैं।


नैना कहती हैं दी निलेश कहां है? वहां सभी लोग हैरान हो कर देखते हैं।

माया नैना के पास जाकर कर कहती हैं नैना आज निलेश का दसवां दिन है।नैना सुन कर सुन्न पड़ जाती है और रोने लगती है। नैना जोर जोर से रोने लगती है।
माया आज निलेश की आत्मा को शांति मिल जाएगी ।। सही मायने में।
नैना बेताहाश रोने लगी और बोली कब हुआ ये सब।
माया मैं सब बताऊंगी पर पुजा के बाद।


फिर कोकिला भी आ गई नैना को सम्हालने के लिए।


पुजा पाठ हो गया फिर ब्राह्मण भोजन के साथ ही जितने गरीब बच्चों को भी भोजन कराया गया
बिमल अतुल ने कोई कमी नहीं किया । उन लोगों ने सभी को बहुत ही अच्छे से खाना खिलाया।
सभी के जाने के बाद माया ने नैना को गले से लगा लिया। और कहा देखो नैना आज रो ले जितना रोना है।

माया नैना को निलेश के रूम में ले कर आई और बोली नैना निलेश कहीं गया नहीं है तुम अपनी आंखों को देखो ये वही आंखें हैं।निलेश की आंखो से अब तुम दुनिया को देख रही हो।निलेश तुम को खुश देखना चाहता था।


नैना ने कहा ओह निलेश ये क्या किया तुमने। और फिर माया ने हर एक बात बताई।

माया ने निलेश का फोन देते हुए बोली कि ये निलेश जाते समय तुमको देने को कहा था।


नैना इतना कुछ हो गया पर फिर भी किसी ने मुझे बताया नहीं।।। माया ने कहा निलेश ने मना किया था।
नैना बोली मैं मनहुस हुं। कहते हुए नैना रोने लगी। और चिल्लाने लगी निलेश कहा हो तुम।। कैसा प्यार है तुम्हारा।। ‌

माया ने कहा नैना तुम कुछ देर निलेश को याद करो।

सब बाहर आ गए।


नैना निलेश के रूम में ही बैठी थी। और फिर उसने फोन खोला और आवाज रिकाडर आन किया और एक दम विचलित हो गई।नैना जब मेरी आवाज़ सुनोगी तब मैं इस दुनिया से दूर चला जाऊंगा ।नैना मैं तुम्हें हमेशा आंखों से देखना चाहता था। मुझे कब तुमसे प्यार हुआ कब तुम्हारे दर्द को अपना बना लिया पता नहीं चला।देखो मैं तुम्हारे साथ ही हुं। और हर शाम मुझे देखा करना मैं भी तुम्हारा इंतज़ार करूंगा उन हजारों तारों के बीच में जो सबसे ज्यादा चमकेगा वह मैं हुंगा। और एक मुस्कान के साथ मुझे अलविदा कहना। और हां रोना मत क्योंकि मेरी आंखे तुम्हें रोता हुआ नहीं देखा पायेगा। अपना ख्याल रखना और हां खुश रहना।और फिर एक सन्नाटा छा गया।


नैना चिल्लाने लगी और कहने लगी निलेश ये कैसा प्यार है कैसा इन्साफ है मेरे लिए फूल और खुद के लिए कांटा चुना। माया जल्दी से दौड़ कर आ गई और बोली - नैना खुद को सम्भाल हां।

नैना ने कहा बुई मैं आज से दी के साथ रहुंगी ।

कोकिला नैना हां बेटा ये अब तेरा घर है। और फिर रोज सुबह की चाय नैना और माया उसी बालकनी में किया करते है जहां निलेश और माया बैठा करते थे।

फिर शाम होते ही नैना उन हजारों तारों के बीच वह चमकता तारा देखकर मुस्कुरा देती है और निलेश के साथ बिताए हुए पलों को याद किया करती है।

कहते हैं कि सच्चा प्यार कभी मरता नहीं है बस जिंदगी बदल सी जाती है। इन्सान के हाथों में कुछ नहीं होता सब कुछ ऊपर वाला ही तय करता है।हम तो एक कठपुतली बन कर रह जाते हैं पर डोर तो उस ऊपरवाले के हाथों में होता है। नैना खुद को व्यस्त रखने के लिए अब निलेश के सारे पेंटिंग को सारे सोशल मीडिया के द्वारा वाइरल कर देती है। फिर जहां जहां कोई भी शिल्प कला मेला लगता है वहां जाकर सारे निलेश के बनाएं हुए अद्भुत पेंटिंग का प्रदर्शन करती है।इस सब काम में निलेश के दोनों दोस्त हमेशा नैना की सहायता करने को तैयार रहते हैं। माया भी रोज की तरह स्कूल और टुयशन पढ़ाती है और निलेश को याद करके रोने भी लगती है। ये कैसा न्याय है भगवान का सब कुछ होते हुए भी कुछ भी नहीं है। आंख है मगर निलेश को नहीं देख सकती हुं पर फिर भी एक आस है कि ये आंखे है तो निलेश की , निलेश की आंखें ही मेरे लिए जीने का आसरा है,मेरा गुरूर है , निलेश तुम्हारा ये प्यार का कोई मोल तो नहीं है ये अनमोल है। मेरी जिंदगी जितनी रहेगी मैं तुम्हारी पुजा करूंगी।यु ही रूठ कर जो तुम चले गए पर किस के सहारे मुझे अकेले छोड़ गए।

क्रमशः

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