इश्क़ ए बिस्मिल - 51 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 51

अरीज बोहत सोच समझ कर उनके ऑफिस के बाहर खड़ी थी। उसने एक हाथ में ज़मान खान के लिए चाय पकड़ी हुई थी और दूसरे हाथ से वह उनके ऑफिस के दरवाज़े को knock कर रही थी।
ज़मान खान ने अपने काम पर नज़रें टिकाए हुए आने वाले को अंदर आने की इजाज़त दी।
अरीज को अंदर आता देख उनके चेहरे पर मुस्कुराहट फेल गई, उन्होंने अपना लैपटॉप खुद से थोड़ा परे किया। अरीज ने भी मुस्कुरा कर उन्हें देखा।
“कसम से... चाय की बड़ी तलब हो रही थी... मैं अभी चाय के लिए बोलने ही वाला था।“ उन्होंने अरीज के हाथ से चाय लेते हुए कहा था। अरीज बस मुस्कुरा कर रह गई थी।
“आइये यहाँ मेरे सामने बैठिए.... और बताइये कैसा है मेरा बच्चा?” उन्होंने अपने टेबल के सामने रखे हुए चेयर पर अरीज को बैठने को कहा।
“अल्हमदुलिल्लाह....जिस बच्चे के सर पर आप जैसे बाप का साया होगा वो हमेशा अच्छा ही रहेगा।“ अरीज ने ये बात दिल से कही थी magar उसकी इस बात पर ज़मान खान थोड़ा बुझ से गए थे।
“ऐसी बात नहीं है बेटा....” उन्हें उमैर याद आ गया था। बाप तो वो उसके भी थे मगर उनकी वो औलाद उनसे खुश ना थी।
“खैर ये सब छोड़िये ये बताये कैसे आना हुआ आपका अपने बाबा के पास।“ ज़मान खान ने अपनी सोच को झटका था और अब अरीज से बात के लिए खुद को तैयार किया था।
“दरासल बाबा... मैं चाहती हूँ के आप अज़ीन को किसी और स्कूल मे डालें।“ अरीज ने बड़ी मुश्किल से खुद को तैयार किया था इस सिलसिले में बात करने के लिए।
“क्यूँ बेटा... वो बोहत अच्छा स्कूल है....इस साल कोलकाता के सभी स्कूलों में उसकी first ranking रही है।“ वह अरीज की बात से हैरान हुए थे इसलिए उसे समझा रहे थे।
“बाबा स्कूल तो बड़ा छोटा नहीं होता...काबिलियत तो पढ़ने वाले बच्चे में होती है।“ अरीज ने भी उन्हें समझाने की अपनी सी कोशिश की थी।
“आपकी बात सही है बेटा... मगर मैं चाहता हूँ जहाँ उमैर, सोनिया और अब हदीद पढ़ रहा है वहीं पे अज़ीन भी पढ़े... मेरी यही ख्वाहिश है...और अगर मेरा बस चले तो मैं तुम्हारा एडमिशन भी उसी स्कूल मे करवा दूँ।“ वह कहते कहते हँस पड़े थे और उन्हें हँसता देख अरीज भी।
“मैं चाहते हूँ मेरे किसी भी बच्चे मे कोई कमी ना रहे। सब एक बराबर हों। मैं सारी नियामतों को सब में बराबर तकसीम (distribute) करूँ। किसी में कोई कमी बेशी ना हो। अगर अज़ीन उसी स्कूल में पढ़ती है तो मुझे बड़ी खुशी होगी।“ ज़मान खान बोहत आस लिए हुए कह रहे थे।
उनकी बात सुन कर अरीज की आँखे नम हो गई थी।
“मैं आपकी सोच की बोहत इज़्ज़त करती हूँ... Actually बाबा...अज़ीन बाबा के जाने के बाद ही से बंगाली सरकारी स्कूल में पढ़ी है। उसकी इंग्लिश इतनी अच्छी नहीं है। वहाँ पे सारे बच्चे इंग्लिश में बातें करते है इसलिए अज़ीन इतने बड़े स्कूल जाने से डर रही है।“ अरीज ने सोच कर उनसे आधी हक़ीक़त बयान की थी।
“इंग्लिश नहीं आती तो क्या हुआ बंगला तो आता है ना.... अच्छा चलो ये बताओ हमारा नेशनल एंथेम क्या है?....चलो मैं सुनाता हूँ
जन-गण-मन अधिनायक जय हे,
भारत भाग्य विधाता!
पंजाब-सिन्ध-गुजरात-मराठा,
द्रविड़-उत्कल-बङ्ग
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा, उच्छल जलधि तरंग
तब शुभ नामे जागे,
तब शुभ आशिष माँगे
गाहे तब जय गाथा।
जन-गण-मंगलदायक जय हे,
भारत भाग्य विधाता!
जय हे! जय हे! जय हे!
जय जय जय जय हे!”
ज़मान खान हमारे राष्ट्रा गाने को बड़े जोश और मन से गा रहे थे। अरीज भी धीमी आवाज़ में उनका साथ दे रही थी। जब वह गा कर चुप हुए तब उन्होंने अरीज से पूछा।
“अब बताओ यहाँ पर ब्रिटेन का ज़िक्र कहाँ पर है। ये हमारा देश है यहाँ पर इंग्लिश को एहमियत देने से पहले हमे खुद हमारी राष्ट्रा भाषा और लोक भाषा को एहमियत देनी चाहिए। अच्छी बात है इंग्लिश भी आनी चाहिए मगर इन्हें इतना ज़्यादा सर पर सवार नहीं कर लेना चाहिए की हमें हमारी पहचान से ही शर्म आने लगे।“ अरीज उनकी बात से क़ायल हो गई थी। तभी उन्होंने फिर से उसे तसल्ली देने के लिए कहा।
“चलो कोई बात नहीं वहाँ जायेगी तो इंग्लिश भी सीख लेगी और ये भी अच्छा होगा की...वहाँ जायेगी...पढ़ेगी... तो उसके दिल से डर निकल जाएगा... उसके अंदर confidence पैदा होगा जो उसे आगे बढ़ने में मदद करेगा।“ अरीज से बेहतर ज़मान खान के पास एक और अच्छी और ठोस वजह थी अज़ीन को वहाँ पढ़ने के लिए भेजने की।
ये सुन ने के बाद अरीज को कोई जवाब देते नही बना था... वह उनकी बात से सहमत हो गई थी।
“जी बाबा... आप सही कह रहे है।“
उमैर आज कई दिनों के बाद घर से बाहर निकला था। सनम आज भी ऑफिस में ही थी। वह पैदल चलता हुआ हदीद के स्कूल पहुंचा था। और अब स्कूल के गेट के बाहर खड़े होकर, हज़ारों बच्चों में वह हदीद को तलाश कर रहा था। भीड़ का एक रेला था जिसके कंधों पर हमारे देश का आने वाला कल था। मगर इस रेले में हदीद का कहीं भी आता पता नहीं था।
अभी भी बच्चे आ रहे थे.... असेंबली में अभी काफी वक़्त था... उसे अपने भाई पर बिल्कुल भी भरोसा नही था की वह वक़्त का पाबंद होगा। वह ज़रूर असेंबली से चंद मिनट पहले पहुंचता होगा। लेट से सोकर उठने के कारन वह अक्सर स्कूल के लिए घर से बड़ी जल्दबाज़ी में निकलता था। मगर अभी उसे हदीद से कुछ बातें करनी थी, उसे कुछ समझाना था जिसके लिए उसे वक़्त की ज़रूरत थी। उसे इंतज़ार किये हुए दस मिनट हो गए थे। तभी उसे स्कूल के अंदर भीड़ में रोहन दिख गया। रोहन को देख कर वह स्कूल के अंदर आ गया। इतने देर से वह स्कूल के अंदर जाने से परहेज़ कर रहा था ताकि उसकी कोई पुरानी टीचर उसे ना देख ले और hi- hello का सिलसिला शुरू होकर बात कहीं की कहीं ना पहुंच जाए। दूसरा डर उसे अपने भाई की भी थी... कहीं कोई टीचर उसे पकड़ कर उसके भाई के क़सीदे पढ़ना ना शुरू कर दे। (उसकी शिकायत लगाना ना शुरू कर दे)।
“रोहन!...रोहन... “ उसने रोहन को थोड़ी दूर से आवाज़ लगाई। वह अपने दोस्तों के साथ बातें कर रहा था। उमैर को देख कर पहले रोहन थोड़ा घबराया (शायद उमैर भाई हदीद के बारे में कुछ पूछ ताछ करने के लिए उसे बुला रहें है) फिर उसने हिम्मत की और उमैर के पास पहुंच गया।
“हेल्लो बिग ब्रो!...कैसे है आप?” उसने उमैर को ग्रीट करने में काफी हिम्मत दिखाई थी।
“मैं ठीक हूँ... ये बताओ हदीद कहाँ है?... अभी तक स्कूल नहीं आया क्या?” उसने रोहन को सरसरी सा जवाब देकर अपने मतलब का सवाल पूछा था।
“ब्रो... वो...वो actually हदीद तो स्कूल थोड़ा लेट से आता है.... I mean असेंबली से यही कोई पांच छह मिनट पहले।“ रोहन ने थोड़ा सोच कर और संभल कर उमैर को जवाब दिया था। उसके जवाब पे उमैर ने अपने दांत किचकिचाये थे जिसे देख कर रोहन काफी डर गया था।
“ब्रो... मुझे थोड़ा काम है... मै... मैं जाऊँ?” उमैर के बिगड़े मूड को देख कर रोहन ने पतली गली से निकलने मे ही समझदारी समझी। उमैर ने अपनी गर्दन हिला कर उसे जाने की इजाज़त दी मगर कुछ क़दम आगे बढ़ते ही रोहन को कुछ ख्याल आया और वह वापस से उमैर के पास आकर खड़ा हो गया।
“ब्रो... ब्रो... प्लिज़ ये बात हदीद को मत बताएगा की मैंने आप से ये सब कुछ कहा है... आप समझ रहे है ना?.... प्लिज़ ब्रो... It’s a request.” रोहन ने बात खतम की थी और उमैर का पारा और भी ज़्यादा बढ़ गया था। फिर भी उमैर ने अपना गुस्सा ज़ब्त करके रोहन के कंधे पे हाथ रखा था और सर हिलाकर उसे हाँ कही थी।
रोहन की जान मे जान आये वह वहाँ से दौड़ता हुआ चला गया इस डर से के कहीं आज गलती से हदीद पहले ना पहुंच जाए और उसे अपने भाई के साथ देख ले।
उमैर फिर से स्कूल के मैन गेट के बाहर खड़ा हो गया। कुछ देर के बाद उसे हदीद आता हुआ दिखाई दिया। वह सीधा गेट से अंदर जा रहा था जब उमैर का भारी हाथ पीछे से उसकी गर्दन पर पड़ा और उसे खीचते हुए उमैर ने उसे अपने सामने मोड़ा। हदीद इस अचानक से हमले पर बौखला गया।
“भाई आप?... “ इतने दिनों के बाद उमैर को देख कर हदीद चोंक गया।
“हाँ हीरो... मैं...” उमैर ने गुस्से मे अपने दांतों को किचकिचा कर कहा। उसके बिगड़े अंदाज़ पर हदीद सहम गया।
“ये कोई स्कूल आने का वक़्त है?... और आज कल बड़े बॉस बन रहे हो....बड़ी धमकियाँ शमकियां दी जा रही है सबको?...दिमाग़ दुरुस्त तो है ना?... या मैं दुरुस्त कर दूँ?” उमैर का इतना कहना था की हदीद के पसीने छूट गए... वह अपने आस पास देख रहा था की कहीं उसके दोस्त या कोई और उसे इस हाल मे ना देख ले... या फिर उमैर की बातों को ही ना सुन ले।
हदीद को यही लगा था की कल अज़ीन को दी गई धमकियों के बारे में ही उमैर उस से कह रहा है। उसका शक अरीज पर गया था क्योंकि अरीज कल उसके लिए juice लाते वक़्त शायद उसने सब सुन लिया था। उसे ज़रा सा भी अज़ीन पर शक नहीं हुआ था क्योंकि उसके ख्याल में अज़ीन बोहत डरपोक किस्म की लड़की थी। वह तो हदीद को देख कर ही डर जाती थी। उसकी शिकायत लगा कर वह अपना बुरा नही करना चाहेगा।
“आप से ये सब किसने कहा?.... भाभी ने?” हदीद ने अपने शक को डरते हुए ज़ुबान दी थी मगर उसकी ये बात सुन कर उमैर गुस्से से और भी ज़्यादा तिलमिला गया था। उमैर ने स्कूल का ख्याल कर के अपने गुस्से को ज़ब्त करते हुए अपनी आवाज़ को कंट्रोल कर के कहा था।
“भाभी के बच्चे!” उमैर का पारा हाई देख हदीद मौका मिलते ही वहाँ से नौ दो ग्यारा हो गया और अपने स्कूल के अंदर कहीं भीड़ में खो गया।
उमैर ने गुस्से से एक पंच दीवार में दे मारी और अपने दांतों को पीस कर वहीं खड़ा रह गया। वह जिस काम के लिए यहाँ इतनी देर पहले से आकर इंतज़ार करता रहा वह उसके होनहार भाई की वजह से हो नहीं पाया।
एक सच ये भी है की हमारे देश के बड़े बड़े स्कूल्स हमारे बच्चों को अपने देश से मोहब्बत करने की सीख देते है.... हमारे देश का इतिहास सुना कर हमारे अंदर जोश भरते है लेकिन अगर किसी बच्चे को अंग्रेज़ी नहीं आती और वह हिंदी में बात करते है तो उन्हें कमतर समझते है। ये भी देखा गया है की अगर कोई छोटा तबके का स्कूल हो और उसमे सारे बच्चे हिंदी में बात करते हो और अगर उन में से एक बच्चा इंग्लिश बोलने लगता है तो हमारी टीचर उन्हें ज़्यादा एहमियत देने लगती है। ऐसा क्यों है? ....
क्या बंगाली मीडियम से पढ़ी हुई अज़ीन को मिल पायेगी कोलकाता के टॉप मोस्ट इंग्लिश मीडियम स्कूल में एडमिशन?
आखिर किस काम से आया था उमैर हदीद से मिलने उसके स्कूल?
क्या होगा हदीद का अगला वार?
जानने के लिए बने रहे मेरे साथ और पढ़ते रहे