कमीज Azeem Khan द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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कमीज

कमीज़


एक लड़का अपने घर से एक चमचमाती सफ़ेद रंग की कमीज़ पहन कर निकला। घर से निकलते ही उसकी कमीज़ पर एक कौवे ने बीट/टट्टी कर दी। जिससे उसकी कमीज़ की खूबसूरती बदसूरती में बादल गई।


वो अपने रुमाल से कमीज़ को साफ़ करने लगा, और हाथ में बंधी घड़ी को देखने लगा। वक़्त कम होने की वजह से वो कमीज़ बदलने के लिए वापस अपने घर ना जाके, ऑटो रिक्शा को रोक कर उसमें बैठ गया, और वहां से निकल गया।


ऑटो वाला शीशे में से उस लड़के को देख कर मंद-मंद हंसने लगा। लड़के की नज़र उस आदमी पर शीशे के ज़रिये पड़ी तो लड़के ने उसकी तरफ घूर कर देखा, और अपना मुँह,आँख,भौं सिकोड़ ली।


लड़के ने ऑटो वाले को एक कपड़ों की शॉप पर रोका, और रोक कर दुकान के अंदर चला गया। ऑटो वाला वहीं उसका इंतज़ार करने लगा।


लड़के ने दुकान के अंदर जाकर एक सफ़ेद कलर की ही कमीज़ खरीदी, और अपनी पुरानी कमीज़ को हाथ में लेकर बाहर आ गया।


बाहर निकल कर वो कुछ ढूंढने की कोशिश करने लगा। जैसे जल्दी से वो चीज़ मिल जाये और वो फटाफट से अपने रास्ते निकले। उसको पास ही में एक कूड़ादान दिखाई दिया। दरअसल वो कूड़ेदान को ही ढूंढ रहा था। जो कुछ 15 या 20 कदम की दूरी पर था। उस लड़के ने उस बीट करी हुई कमीज़ को उस कूड़ेदान में डाल दिया, और फिर ऑटो में बेठ कर वहां से चला गया।


कूड़ेदान में पड़ी कमीज़ अलग ही दिखाई दे रही थी। बेशक उसपर धब्बा लगा था, लेकिन उसकी चमक अभी भी काम नहीं थी। ऐसा लगता था जैसे वो कमीज़ किसी को बुला रही हो, और कह रही हो की मेरी क्या गलती है, मुझे यह क्यूँ फैंक दिया। मुझे फैंकने की क्या ज़रूरत थी। किसी ग़रीब को ही देते तो शायद उसके काम आ जाती।


दूसरी और से एक पागल आदमी कूड़ा बीनते हुए आ रहा था। वो पागल आदमी कभी किसी कागज़ को उठाता, तो कभी किसी खाने की चीज़ को। कभी अपने पैरों से कूड़ा कचरा एक साइड में कर देता, तो कभी अपने झोले में से जमा किया कूड़ा निकाल कर सड़क पर फेंक देता।


वहीं रास्ते से एक लड़का निकला हुआ जा रहा था। उस लड़के ने उस पागल आदमी को एक कागज़ बंद करके दिया। जैसे की उसमे कुछ खाने की चीज़ हो। उस पागल आदमी ने वो कागज लिया और वहाँ से चल दिया।


थोड़ी आगे पहुंच कर उस पागल आदमी ने कागज़ खोलकर देखा तो उसमे कंकर थे। पागल ने पीछे मुड़ कर उस लड़के को देखा जिसने उसे वो कागज़ दिया था। पागल 5 या 7 कदम उस लड़के के पीछे भगा और कागज़ समेत पत्थर उस लड़के पर फैंक कर मार। वो लड़का वहाँ से हँसता हुआ निकल गया।


वो पागल आदमी जैसे ही पीछे मुड़ा, तो उसकी नजर उसी कूड़ेदान पर पड़ी जिसमें वो कमीज़ पड़ी थी।


वो कूड़ेदान के करीब गया और उसने उस कूड़ेदान में झाँककर देखा तो उसकी आँखें चमक उठीं।

उसकी नज़र कूड़ेदान में पड़ी कमीज़ पर पड़ी। उस पागल आदमी ने अपने चारों तरफ देखा और झट से उस कमीज़ को उठा कर वहाँ से भाग गया।


वो पागल आदमी उस कमीज़ को लेकर हस्ता खुश होता हुआ सड़क पर भागने लगा - जैसे शायद उस पागल को उसी कमीज़ की तलाश थी।


वो भागता-भागता एक जगह जाकर रुक गया और एक कोने में जगह बनाकर बेठ गया। अकेला एकांत में। फिर उसने उस कमीज़ को वहीं बिछा दिया। उसके बाद उसने अपने थैले में से कुछ खाने के लिए निकाला और एक एक करके सामान को उस कमीज़ पर रखने लगा।


उसने एक पिचकी हुई पानी की बोतल निकाली, जिसमें थोड़ा सा पानी था। फिर एक आधा खाया हुआ समोसा और कुछ चिप्स के पैकेट।


उसके बाद उसने उसी झोले में से एक गुड़िया निकाली। उसने उस गुड़िया को वहीं बिठाया और खाना शुरू कर दिया।


वो समोसा उठा कर बच्चों के जैसे हरकत करने लगा। वो समोसे को गुड़िया के मुँह तक ले जाता और झट से उसके मुँह से हटा कर खुद खाने लगता है। ऐसा करके वो खुश होता और हँसने लगता। उसने दो-तीन बार ऐसे ही किया।


सूरज ढलने को था। रात होने को थी। उस पागल आदमी ने सोने के लिए वहीं उस कमीज़ को बिछाया और उसी पर लेट गया। उसने गुड़िया को भी अपने ही पास लेटा लिया।


थोड़ी देर के बाद वो उठ-कर बेठा और गुड़िया की तरफ देखने लगा। उसने गुड़िया को हाथ में लेकर कमीज़ को ज़मीन से उठाया और गुड़िया को अपने थैले में डालकर खुद कमीज़ को चादर की तरहं ओढ़ कर लेट गया।


कुछ देर बाद कुछ छोटे बच्चे उधर खेलते हुए आ गए। बच्चे उस पागल आदमी के पास आकार रुके और उसे देखने लगे। असल में उन बच्चों की नज़र उस कमीज़ पर थी। उन में से एक बच्चा बहुत शरारती था। उसके चेहरे से ही शरारत झलक रही थी। वो शरारती बच्चा आगे बढ़ा और झट से उस पागल आदमी के ऊपर से कमीज़ उठा कर भाग गया। उसके पीछे-पीछे बाकी के बच्चे भी भागने लगे। पागल आदमी से दूर पहुँच कर वो बच्चे एक जगह इकट्ठा हो गए।


वो सभी बच्चे मिलकर बारी बारी कमीज़ के साथ खेलने लगे। वो बच्चे कमीज को

अपनी गर्दन से बांध कर भागने। जिससे वो कमीज़ हवा में पीछे उड़ने लगत। इस तरह वो बच्चे उस कमीज़ के साथ खेल रहे थे।


उनमें से एक बच्चे को बाकि के तीन बच्चों कमीज़ से खेलने नहीं दे रहे थे। जब जब वो बच्चा खेलने के लिए कहता, बाकी के बच्चे उसे वहाँ से भाग देते। वो वही शरारती बच्चा था जो कमीज़ को उस पागल आदमी के ऊपर से उठा कर लाया था।


वो शरारती बच्चा मुँह फुला कर उन सबको देखने लगा। देखते ही देखते वो शरारती बच्चा अचानक से कमीज़ को उन दूसरे बच्चों के हाथ से छीन कर भाग गया। बाकी के बच्चे भी उसके पीछे भागने लगे। जब वो सभी बच्चे भागते भागते थक गए तो वो सब एक जगह जाकर रुकेऔर उस कमीज़ को एक दूसरे पर फेंकने लगे।

वहीं पास ही में एक मोटरसाइकिल भी खड़ी थी, जहाँ बच्चे खेल रहे थे और उसी मोटरसाइकिल के पास एक कीचड़ से भरा गड्ढा भी था।


उन बच्चों में से एक बच्चा उस कीचड़ भरे गड्ढे में कूद पड़ा जिससे उस गड्ढे से कीचड़ उड़ कर पास खड़ी मोटरसाइकिल पर जा लगी जिससे वो गंदी हो गई।


तभी एक आदमी भागता हुआ उस मोटरसाइकिल के पास आया और मोटरसाइकिल को देखने लगा। बच्चे दूर खड़े उस आदमी को देख रहे थे। सभी सोच रहे थे कि वो ऐसे क्यों भागते हुए आया है? क्या करेगा?


मोटरसाइकिल की ऐसी हालत देखकर वो गुस्से में बच्चों के पीछे भागा। बच्चे उसको अपने नज़दीक आता देख कमीज़ को वही छोड़ कर भाग गए। उस आदमी के हाव-भाव से आदमी चिड़चिड़ाहट दिख रही थी।

वो वापस मोटरसाइकिल की ओर आने लगा तो उसकी नज़र ज़मीन पर पड़ी उसी कमीज़ पर पड़ी। उस आदमी ने कमीज़ को ज़मीन से उठाया और मोटरसाइकिल साफ़ करने ले गया। मोटरसाइकिल साफ करके उसने उस कमीज़ को वहीं फेंक दिया और अपनी मोटरसाइकिल लेकर निकल गया।


रात अपने उरुज पर थी। कमीज़ भी लोगों की ठोकरें खाती हुई आगे निकल चुकी थी।


एक कुतिया कोने में अपने बच्चों को समेटे सर्द हवा में कंपकंपा रही थी। वो कमीज़ भी घूमते घूमते एक कोने में जा कर रुक गयी थी। उसी समय उस रास्ते से टोपी और कुरता-पयजामा पहने हुए एक लड़का जा रहा था। उसकी नज़र उस कुतिया पर पड़ी जो सर्द हवा से कांप रही थी।


वो लड़का उसको और उसके बच्चों को देखकर रुक गया। उन्हे देखकर उस लड़के के मन में बहुत दया आई और वो उन माँ-बच्चों को मदद की भवन से देखने लगा। कुतिया भी उस लड़के को बड़े भोलेपन से देखने लगी - जैसे कह रही हो की हमें इस ठंड से बचा लो।


वो लड़के आस पास कोई कपड़ा या कुछ ऐसा जिससे वो उस कुतिया और उसके बच्चों को उढ़ा सके ढूँढने लगा। थोड़ा से आगे बढ़ने पर उसे वही कमीज़ दिखाई दी जो सुबह से ठोकरें खा रही थी। लड़के ने कमीज़ को उठाया और कुतिया और उसके बच्चों को उढ़ा दिया और वहाँ से चला गया।


कुछ देर बाद वहाँ एक डॉग रेस्क्यू वैन आयी और कुतिया और उसके बच्चों को रेस्क्यू करके एनिमल शेल्टर ले गयी।


वो कमीज़ फिर से अकेली हो गई थी।


एक कोने में पड़ी वो अकेली कमीज, जिसका रंग अब सफेद तो नहीं रहा था। चुपचाप खुद को एक मुकाम पर देखने की आशा में इंतजार कर रही थी। कोई आए और उसे नई ज़िंदगी दे दे।


कुछ देर बाद उस रास्ते से एक चाय वाला निकल के जा रहा था। उसके हाथ में चूल्हे स्टैंड के साथ चाय की केतली थी। उस केतली में से गरम गरम भाप निकल रही थी। चाय वाला केतली को कभी एक हाथ में पकड़ता तो कभी दूसरे हाथ में मानो जैसे की चाय की केतली बहुत गरम हो।


एक बार तो चाय वाला चाय स्टैंड को ज़मीन पर रखकर रुक गया और अपने थैले से पानी निकाल कर हाथों पर डालने लगा। वो अपने हाथों पर पानी डाल ही रहा था कि तभी उसकी नज़र उसी कमीज़ पर पड़ी जो सुबह से ठोकरें खा रही थी।


चाय वाले ने झट से वो कमीज़ उठाई और उसने उस कमीज़ को लपेट कर चाय की केतली स्टैंड पर बांध लिया और वहाँ से चला गया। वो अपने घर जाते जाते लोगो को चाय देता हुआ जा रहा था। वो चाय वाला अब थोड़ा खुश था। क्यूंकी गरम केतली से अब उसके हाथ जलना बंद हो गए थे।

घर जाकर उसने चाय स्टैंड को ज़मीन पर रख दिया और पानी पीकर लेट गया। घर के पीछे चाय वाले की बीवी आग की भट्टी जलाकर उस पर एक मीडियम भगोना जो पानी से भरा हुआ था और उबाले ले रहा था, उस में कुछ तो कर रही थी।


चाय वाली की महसूस हुआ की उसका पति घर या गया है। वो घर के अंदर आई उसने अपने पति को खाना परोसा और चाय स्टैंड और केतली को उठा कर बाहर धोने के लिए ले गयी।


उसकी बीवी ने केतली और स्टैंड घर के बाकी गंदे बर्तनों के साथ रख धोने के लिए रख दिए। उसने केतली स्टैंड में लिपटी कमीज़ को खोला और उसे खोल कर देखने लगी। वो उस कमीज़ को थोड़ा उजाले में ले गई और कमीज़ को देखने लगी।

वो उस कमीज को देख कर थोड़ा मुस्कुराई और उस कमीज़ को गरम पानी से भरे भगोने के पास ले गई। उसने उस कमीज को उस खौलते हुए पानी के भगोने में डाल दिया। उसने एक डंडा लिया और उस कमीज़ को पानी के अंदर-बहार करने लगी पानी के अंदर उस कमीज को घूमाने लगी।


अगली सुबह वो कमीज़ उसी भगोने के पास बंधी एक पल्स्टिक की रस्सी से लटक रही थी। उसका रंग सफ़ेद से लाल हो गया था। उस कमीज़ को नई ज़िंदगी मिल गयी थी। ऐसा लग रहा था की नया रंग पाकर वो कमीज़ चहक उठी हो। उसका पति रोजाना की तरह अपनी पुरानी कमीज पहन कर चाय बेचने के लिए निकल ही रहा था, तभी उस चाय वाले की पत्नी ने उसे रोक और वो कमीज पहनने के लिए दी जो एक दिन पहले अपने जीने की आस छोड़ चुकी थी। लेकिन वही कमीज अब किसी उम्मीद की नई किरण से कम नहीं थी। उस कमीज को उसका नया मालिक मिल गया था और उस चाय वाले को एक चमचमाती लाल रंग की कमीज। दोनों ही एक दूसरे का साथ पा कर बहुत खुश थे। और चाय वाले को देखकर उसकी बीवी।


लेखक

अज़ीम ख़ान