"यज्ञ--लेकिन रुचि
ऋषि देवशर्मा अपने ही विचारों में उलझे थे।ऋषि की यज्ञ करने की इच्छा पिछले कुछ दिनों से काफी बलवती हो रही थी।लेकिन रुचि को लेकर वह चिंतित थे।जब वह यज्ञ करने के लिए चले जायेंगे तब रुचि अकेली कैसे रहेगी?अकेली औरत को कौन सुरक्षित रहने देगा।वह अपने पीछे रुचि की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित थे।काफी सोच विचार कर रहे थे।वह अपने मे मगन होकर इसी बारे में सोच रहे थे।
रुचि ऋषि देवशर्मा की धर्मपत्नी थी।रुचि जैसी स्त्री इस पृथ्वी या भूमण्डल पर दूसरी नही थी।गौरवर्ण कंचन,कोमल,मखमली काया,हिरनी सी आंखे,गुलाब की पंखुड़ी सदृश्य कोमल गुलाबी पंखड़ी जैसे नरम नाजुक होठ,पीठ के पीछे झूलते काले लंबे घने केश,पतला छरहरा इकहरा बदन।कुल मिलाकर रुचि अदुतीय सुंदरी थी।ऐसा लगता मानो स्वर्ग से उतरी कोई अप्सरा हो।उसकी आवाज में जादू था।खनक थी।मिठास थी।उसकी मुस्कराहट बरबस हर किसी का ध्यान अपनी और खींच लेती थी।
पृथ्वी की अपूर्व सुंदरी का जंगल मे निवास करने वाले ऋषि की पत्नी बनना देवता,गन्धर्व,दानव किसी को भी रास नही आ रहा था।रुचि अब कुंवारी नही रही थी।भ विवाहिता थी।किसी की पत्नी बन चुकी थी।वह एक पराई स्त्री थी।फिर भी हर कोई उसे अपनी बनाने के लिए दांत गड़ाए हुए था।गिद्ध दृष्टि जमाये था।और सब से ज्यादा आतुर इन्द्र था।कामुक इंद्रा ऋषि पत्नी पर लोलुप दृष्टि रखता था।वह रुचि को पथ भृष्ट करना चाहता था।वह हर समय इस ताक में रहता कि कब उसे अवसर मिले और वह अपूर्व सुंदरी ऋषि पत्नी को अपनी अंकशायिनी बनाये।उसके सुंदर शरीर का भोग करे।
देवशर्मा कोई मूर्ख नही थे।वह ऋषि होने के साथ मर्द भी थे।वह जानते थे कि बहुत से लोग उनकी पत्नी को बुरी नजरो से देखते है।उस पर गिद्ध दृष्टि गड़ाए है।वह जैसे तैसे अपनी पत्नी को पर पुरषो की हवश का शिकार होने से बचाये हुए थे।पर अगर वह यज्ञ करने के लिए दूर एकांत स्थान में चले गए तो रुचि की रक्षा कौन करेगा?एक अबला नारी को दुष्ट लोगो से कौन बचायेगया।एक तरफ उनकी यज्ञ करने की वर्षो पुरानी तीव्र इच्छा थी तो दूसरी तरफ पत्नी की रक्षा की चिंता।
"गुरुवर
आवाज सुनते ही गहरे सोच में डूबे ऋषि ने आंखे खोली थी,"अरे विपुल तुम।आओ बैठो
"गुरुवर।मैं काफी देर से दूर से खड़ा देख रहा था।लगता है आप बहुत परेशान है।कोई गहरी उलझन है।जिसको लेकर आप गहन सोच विचार में डूबे हुए है।"
"शिष्य।तुमने बिल्कुल ठीक पहचाना।मैं सचमुच में चिंता ग्रस्त था।उलझन में था।लेकिन तुम्हे देखते ही मेरी समस्या का समाधान हो गया।मेरी उलझन सुलझ गयी।मेरी चिंता दूर हो गयी।"देवशर्मा ,विपुल की तरफ देखते हुए बोले।
"गुरुवर ऐसी कौनसी उलझन थी।समस्या थी जो मेरे आते ही सुलझ गयी?"
"मै यज्ञ करने के लिए दूर निर्जन स्थान में जाना चाहता हूं।मेरे न रहने पर तुम्हे अपनी माता यानी गुरु पत्नी रुचि की रक्षा करनी होगी।,"देवशर्मा बोले।
"बस इतनी सी बात को लेकर आप इतने परेशान थे?"विपुल,गुरु की बात सुनकर बोले।
"वत्स।जो काम मै तुम्हे सौंप रहा हूँ।वो काम इतना आसान नही है।जितना तुम समझ रहे हो,"देवशर्मा प्यार से अपने शिध्य पर हाथ रखते हुए बोले,"जैसा तुम जानते हो रुचि सौंदर्य की मूरत है।उससे ज्यादा सूंदर अभी इस पृथ्वी पर कोई दूसरी स्त्री नही है।