गुरुपत्नी रुचि और ऋषि विपुल - 2 Kishanlal Sharma द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गुरुपत्नी रुचि और ऋषि विपुल - 2

दानव,देवता,,असुर,गन्धर्व और सभी उस पर कामुक नजर रखते है।इन सब से निपट लोगे तुम?"
"हां गुरुवर
"इन्द्र से निपटना इतना आसान नही है।जितना तुम समझ रहे हो,"देवशर्मा ने प्यार से अपने शिष्य के सिर पर हाथ रझा था1,"जैसा तुम जानते हो।रुचि सौंदर्य की मूर्ति है।उसकी जैसी सुंदर और आकर्षक युवती इस भूमण्डल पर दूसरी नही है।दानव, देवता और गन्धर्व उस पर कामुक नजर रखते है।इन सब से तो तुम निपट लोगे लेकिन इन्द्र से निपटना इतना आसान नहीहै।ल काम पिपासु लम्पट इन्द्र हर समय मोके की तलाश में रहता है।इसलिए हर हाल में चाहे बल प्रयोग ही क्यो न करना पड़े तुम्हे रुचि की रक्षा करनी है।परपुरषो से उसे बचना है
"आपकी आज्ञा शिरोधार्य है।"विपुल नतमस्तक होते हुए बोला
देवशर्मा अपनी प्रिय पत्नी रुचि की रक्षा का दायित्व अपने प्रिय शिष्य विपुल को सौंपकर जाने लगे तब विपुल बोला,"गुरुवर आपने मुझे सब से ज्यादा सावधान इन्द्र से रहने के लिए कहा है।कृपया मुझे इन्द्र की पहचान बताइए।उसका रंग रूप,कद काठी कैसी है?वह दिखने में कैसा है?"
"बेटा इन्द्र मायावी है।वह चाहे जैसा रूप धर सकता है।सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव के रूप में भी आ सकता है।बुड्ढा या भिखारी बनकर भी आ सकता है।बच्चे या ललना का रूप धर के भी आ सकता हैं।उसकी कोई एक पहचान नही है।वह न जाने कब किस रूप में आ जाये।इसलिए तुम्हे हर समय सतर्क सावधान और चौकन्ना रहना होगा।'"
"समझ गया गुरुजी।"
देवशर्मा के जाने के बाद विपुल गुरुपत्नी रुचि की रक्षा का उपाय सोचने लगा।विपुल सत्यवादी,शास्त्रों के ज्ञाता, धर्म के जानकार और विद्वान थे।वह जानते थे कि औरतों का मन चंचल होता है।सुंदर, खूबसूरत,जवान औरत आग के समान है।जो पुरुष को प्रज्वलित कर सकती है।स्त्रियों के मन की बात उसके रचियता ब्रह्मा भी नही जान सकते।विपुल ठहरे मामूली से सन्यासी।वो भला उसके बारे में क्या जाने?
विपुल ऋषि अच्छी तरह जानते थे कि रुचि जैसी स्त्री को कुटिया में कैद कर देने से काम नही चलेगा।इंद्र मायावी है वह किसी भी रूप में कुटिया में आ सकता है।विपुल ताकत से इन्द्र का मुकाबला नही कर सकते।काफी सोच विचार करने के बाद विपुल ने गुरुपत्नी रुचि की योग विद्या से रक्षा करने का निर्णय लिया।यह निर्णय लेने के बाद
विपुल एक दिन गुरुपत्नी रुचि के सामने बैठकर बाते करने लगे।विपुल की रोचक और मनमोहक बातों ने रुचि को ऐसा वशीभूत किया कि वह विपुल के चेहरे को निहारने लगी।विपुल ने अपनी नजरे रुचि की नजरों से मिला दी।विपुल से नजर मिलते ही रुचि उस पर आसक्त हो गयी।वह भाव विभोर होकर टकटकी लगाए विपुल को देखने लगी।दो विपरीत लिंगो की नजरें एकाकार होते ही विपुल ने अपनी योग साधना के बल पर अपनी आत्मा को रुचि के शरीर मे प्रवेश करा दिया।
खबर कोई छुपी नही रहती।देवशर्मा यज्ञ के लिए चले गए है।यह खबर इन्द्र को भी मिल गयी।इन्द्र इस समाचार को सुनकर बहुत खुश हुआ।उसने सोचा।रुचि अकेली रह गयी होगी।और वह रुचि को कैसे पाया जाए सोचने लगा।सोच विचार करने के बाद उसने सुंदर युवक का रूप धारण किया।और वह देवशर्मा की कुटिया पर आया।कुटिया का दरवाजा खुला हुआ था।इन्द्र कुटिया के अंदर प्रवेश कर गया।कुटिया में ऋषि विपुल ध्यान लगाएं बैठे थे