मुल्ला नसरुद्दीन के चंद छोटे किस्से - 3 MB (Official) द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मुल्ला नसरुद्दीन के चंद छोटे किस्से - 3

भाग - 3

मुल्ला नसरुद्दीन के चंद छोटे किस्से

मुल्ला अपने शागिदोर्ं के साथ एक रात अपने घर आ रहा था कि उसने देखा एक घर के सामने कुछ चोर खड़े हैं और ताला तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

मुल्ला को लगा कि ऐसे मौके पर कुछ कहना खतरे से खाली न होगा इसलिए वह चुपचाप चलता रहा. मुल्ल्ला के शागिदोर्ं ने भी यह नजारा देखा और उनमें से एक मुल्ला से पूछ बैठा — ”वे लोग वहां दरवाजे के सामने क्या कर रहे हैं?

”श्श्श३“ — मुल्ला ने कहा — ”वे सितार बजा रहे हैं.“

”लेकिन मुझे तो कोई संगीत सुनाई नहीं दे रहा“ — शागिर्द बोला.

”वो कल सुबह सुनाई देगा“ — मुल्ला ने जवाब दिया.

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एक दिन बाजार में कुछ गाँव वालों ने मुल्ला को घेर लिया और उससे बोले — ”नसरुद्दीन, तुम इतने आलिम और जानकार हो. तुम हम सबको अपना शागिर्द बना लो और हमें सिखाओ कि हमें कैसी जिन्दगी जीनी चाहिए और क्या करना चाहिए“.

मुल्ला ने कुछ सोचकर कहा — ”ठीक है. सुनो. मैं तुम्हें पहला सबक यहीं दे देता हूँ. सबसे जरूरी बात यह है कि हमें अपने पैरों की अच्छी देखभाल करनी चाहिए और हमारी जूतियाँ हमेशा दुरुस्त और साफसुथरी होनी चाहिए“.

लोगों ने मुल्ला की बात बहुत आदरपूर्वक सुनी. फिर उनकी निगाह मुल्ला के पैरों की तरफ गई. मुल्ला के पैर बहुत गंदे थे और उसकी जूतियाँ बेहद फटी हुई थीं.

किसी ने मुल्ला से कहा — ”नसरुद्दीन, लेकिन तुम्हारे पैर तो बहुत गंदे हैं और तुम्हारी जूतियाँ भी इतनी फटी हैं कि किसी भी वक्‌त पैर से अलग हो जाएँगी. तुम खुद तो अपनी सीख पर अमल नहीं करते हो और हमें सिखा रहे हो कि हमें क्या करना चाहिए!“

”अच्छा!“ — मुल्ला ने कहा — ”लेकिन मैं तो तुम लोगों की तरह किसी से जिन्दगी जीने के सबक सिखाने की फरियाद नहीं करता!“

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आधी रात के वक्‌त घर के बाहर दो व्यक्तियों के झगड़ने की आवाज सुनकर मुल्ला की नींद खुल गई. कुछ वक्‌त तक तो मुल्ला इंतजार करता रहा कि दोनों का झगड़ा खत्म हो जाये और उसे फिर से नींद आ जाये लेकिन झगड़ा जारी रहा.

कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. मुल्ला अपने सर और बदन को कसकर रजाई से लपेटकर घर के बाहर आया. उसने उन दोनों झगड़ा करनेवालों को अलग करने की कोशिश की. वे दोनों तो अब मारपीट पर उतारू हो गए थे.

मुल्ला ने जब उन दोनों को न झगड़ने की समझाइश दी तो उनमें से एक आदमी ने यकायक मुल्ला की रजाई छीन ली और फिर दोनों आदमी भाग गए.

नींद से बोझिल और थका हुआ मुल्ला घर में दाखिल होकर बिस्तर पर धड़ाम से गिर गया. मुल्ला की बीबी ने पूछा — ”बाहर झगड़ा क्यों हो रहा था?“

”रजाई के कारण“ — मुल्ला ने कहा — ”रजाई चली गई और झगडा खतम हो गया“.

मुल्ला नसरुद्दीन के चंद छोटे किस्से

एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन अपने गधे पर बैठकर किसी दूसरे शहर से अपने गाँव आया. लोगों ने उसे रोककर कहा — ”मुल्ला, तुम अपने गधे पर सामने पीठ करके क्यों बैठे हो?“ मुल्ला ने कहा — ”मैं यह जानता हूँ कि मैं कहाँ जा रहा हूँ लेकिन मैं यह देखना चाहता हूँ कि मैं कहाँ से आ रहा हूँ.

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उसी शाम मुल्ला रसोई में कुछ बना रहा था. वह अपने पड़ोसी के पास गया और उससे एक बरतन माँगा और वादा किया कि अगली सुबह उसे वह बरतन लौटा देगा.

अगले दिन मुल्ला पड़ोसी के घर बरतन लौटाने के लिए गया. पडोसी ने मुल्ला से अपना बरतन ले लिया और देखा कि उसके बरतन के भीतर वैसा ही एक छोटा बरतन रखा हुआ था. पड़ोसी ने मुल्ला से पूछा — ”मुल्ला! यह छोटा बरतन किसलिए?“ मुल्ला ने कहा — ”तुम्हारे बरतन ने रात को इस बच्चे बरतन को जन्म दिया इसलिए मैं तुम्हें दोनों वापस कर रहा हूँ.“

पड़ोसी को यह सुनकर बहुत खुशी हुई और उसने वे दोनों बरतन मुल्ला से ले लिए. अगले ही दिन मुल्ला दोबारा पड़ोसी के घर गया और उससे पहलेवाले बरतन से भी बड़ा बरतन माँगा. पडोसी ने खुशी—खुशी उसे बड़ा बरतन दे दिया और अगले दिन का इंतजार करने लगा.

एक हफ्ता गुजर गया लेकिन मुल्ला बरतन वापस करने नहीं आया. मुल्ला और पडोसी बाजार में खरीदारी करते टकरा गए. पडोसी ने मुल्ला से पूछा — ”मुल्ला! मेरा बरतन कहाँ है?“ मुल्ला ने कहा — ”वो तो मर गया!“ पडोसी ने हैरत से पूछा — ”ऐसा कैसे हो सकता है? बरतन भी कभी मरते हैं!“ मुल्ला बोला — ”क्यों भाई, अगर बरतन जन्म दे सकते हैं तो मर क्यों नहीं सकते?“

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एक दिन मुल्ला और उसका एक दोस्त कहवाघर में बैठे चाय पी रहे थे और दुनिया और इश्क के बारे में बातें कर रहे थे. दोस्त ने मुल्ला से पूछा — ”मुल्ला! तुम्हारी शादी कैसे हुई?“

मुल्ला ने कहा — ”यार, मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूँगा. मैंने अपनी जवानी सबसे अच्छी औरत की खोज में बिता दी. काहिरा में मैं एक खूबसूरत, और अक्लमंद औरत से मिला जिसकी आँखें जैतून की तरह गहरी थीं लेकिन वह नेकदिल नहीं थी. फिर बगदाद में भी मैं एक औरत से मिला जो बहुत खुशदिल और सलीकेदार थी लेकिन हम दोनों के शौक बहुत जुदा थे. एक के बाद दूसरी, ऐसी कई औरतों से मैं मिला लेकिन हर किसी में कोई न कोई कमी पाता था. और फिर एक दिन मुझे वह मिली जिसकी मुझे तलाश थी. वह सुन्दर थी, अक्लमंद थी, नेकदिल थी और सलीकेदार भी थी. हम दोनों में बहुत कुछ मिलता था. मैं तो कहूँगा कि वह पूरी कायनात में मेरे लिए ही बनी थी३“ दोस्त ने मुल्ला को टोकते हुए कहा — ”अच्छा! फिर क्या हुआ!? तुमने उससे शादी कर ली!“

मुल्ला ने ख्यालों में खोए हुए चाय की एक चुस्की ली और कहा — ”नहीं दोस्त! वो तो दुनिया के सबसे अच्छे आदमी की तलाश में थी.“

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एक दिन मुल्ला बाजार गया और उसने एक इश्तेहार लगाया जिसपर लिखा था रू ”जिसने भी मेरा गधा चुराया है वो मुझे उसे लौटा दे. मैं उसे वह गधा ईनाम में दे दूंगा“.

”नसरुद्दीन!“ — लोगों ने इश्तेहार पढ़कर कहा — ”ऐसी बात का क्या मतलब है!? क्या तुम्हारा दिमाग फिर गया है?“

”दुनिया में दो ही तरह के तोहफे सबसे अच्छे होते हैं“ — मुल्ला ने कहा — ”पहला तो है अपनी खोई हुई सबसे प्यारी चीज को वापस पा लेना, और दूसरा है अपनी सबसे प्यारी चीज को ही किसी को दे देना.“

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मुल्ला के ऐसे ही और कई छोटे किस्सों को पढ़ने के लिए थोड़ा सा इंतजार करें. इंतजार का फल बहुत मीठा होता है.

मुल्ला नसरुद्दीन और बेचारा पर्यटक

मुल्ला नसरुद्दीन एक बार तीर्थयात्रा पर मक्का गए और रास्ते में मदीना में भी रुके. जब वह वहां की मुख्य मस्जिद में घूम रहे थे तब एक हैरान—परेशान विदेशी पर्यटक उनके पास आया और उसने मुल्ला से पूछा — ”जनाब, आप मुझे यहीं के बाशिंदे लगते हैं. क्या आप मुझे इस मस्जिद के बारे में बता सकते हैं? मेरी पर्यटन की पुस्तिका खो गई है और ये बहुत पुरानी और महत्वपूर्ण मस्जिद लगती है.“

नसरुद्दीन को भी उस मस्जिद के बारे में कुछ पता नहीं था लेकिन वह पर्यटक को यह जताना नहीं चाहता था. उसने बड़े उत्साह से पर्यटक को मस्जिद के बारे में बताना शुरू किया — ”आप सही कहते हो. यह मस्जिद वाकई बहुत पुरानी और खास है. इसे सिकंदर महान ने अरब फतह करने की खुशी में बनवाया था.“

पर्यटक को यह सुनकर अच्छा लगा लेकिन अगले ही पल उसके चेहरे पर अविश्वास का भाव आ गया. पर्यटक ने मुल्ला से कहा — ”लेकिन मेरी जानकारी के हिसाब से तो सिकंदर महान यूनानी था, मुस्लिम नहीं था.“

मुल्ला ने मुस्कुराते हुए कहा — ”हूँ, तो आप कुछ—कुछ जानते हो. दरअसल, उस जंग में सिकंदर महान को इतनी दौलत मिली कि उसने अल्लाह के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करने के लिए इस्लाम कबूल लिया.“

”ओह हो!“— पर्यटक आश्चर्य से बोला — लेकिन सिकंदर महान के वक्‌त में तो इस्लाम दुनिया में आया ही नहीं था!?“

”बहुत सही!“ — मुल्ला ने कहा — ”असल में, सिकंदर महान अपने प्रति अल्लाह की दानशीलता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने जंग के खात्मे के फौरन बाद नए मजहब को चलाया और वह इस्लाम का प्रवर्तक बन गया.“

पर्यटक ने नवीनीकृत आदर के साथ मस्जिद पर अपनी निगाह डाली. लेकिन इससे पहले कि मुल्ला इस सबसे बोर होकर भीड़ में खिसक लेता, पर्यटक ने फिर से अपने मन में उठते हुए नए प्रश्न को उसके सामने रख दिया — ”लेकिन इस्लाम के प्रवर्तक तो हजरत मोहम्मद थे न? इसे तो मैंने निश्चित रूप से एक किताब में पढ़ा है कि हजरात मोहम्मद ने ही इस्लाम धर्म की नींव रखी थी, सिकंदर महान ने नहीं.“

मुल्ला ने कहा — ”भाई खूब! तुम तो वाकई बहुत जानकार आदमी लगते हो! मैं इसी बात पर आ रहा था. दरअसल, सिकंदर महान को लगा कि वे नई शख्सियत अपनाने के बाद ही पैगम्बर बन सकते थे इसीलिए उन्होंने अपने पुराने नाम को त्याग दिया और फिर ताजिंदगी मोहम्मद ही कहलाये.“

”सच में!?“ — पर्यटक हैरत से बोला — ”ये तो बहुत प्रेरणादायक बात है३ लेकिन, सिकंदर महान तो हजरत मोहम्मद से कई सदियों पहले हुए थे! क्या मैं गलत हूँ?“

”सौ फीसदी!“ — मुल्ला हंसते हुए बोला — ”तुम किसी दूसरे सिकंदर महान के बारे में बात कर रहे हो. मैं तो तुम्हें उसके बारे में बता रहा था जिसे लोग मोहम्मद कहते थे!“