बस अब और नहीं Sital Kaur द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बस अब और नहीं

"प्रीति क्या कर रही हो"?

मैंने अपनी बेटी से पूछा।

"कलर कर रही हूं मम्मा "

"होमवर्क हो गया बेटा "

" हां मम्मा "

"मम्मा आज फिर मेरे दोस्त मुझसे पूछ रहे थे की तेरे पापा कब आएँगे कब हमें उनसे मिलाएगी "।

" बताओ ना माँ कब आएँगे पापा ?"

"मुझे उनको अपने फ्रेंड्स के साथ मिलाना है,उनको बोलना कि जब वो आए तो मेरे लिए बहुत सारे खिलोने लेकर आए ", मुझे अपने फ्रेंड्स को दिखाने है मैं उनके साथ रोज़ घूमने जाउंगी "

और भी बहुत खुश करुँगी,बस एक बार पापा को आने दो फिर मैं उनको कभी नहीं जाने दुंगी ।"

प्रीति एक सांस मैं हि सब कुछ बोल गई।

मैं पथर् सी बनी ये सब सुनती जा रही थी,प्रीति का एक एक बोल मेरे कलेजे को चीरता हुआ जा रहा था।

कभी कभी दिल करता है कि चीख चीख कर कह दू की अब नहीं आएँगे तेरे पापा।

मगर मासूम चेहरे को देखते ही सारा गुस्सा शांत हो जाता है । कैसे तोड़ दूँ ये मासूम सा दिल।

एक लम्बी साँस ली और मासूम चेहरे को हाथ में लेकर दोहरा दी फिर वही लाइन जो रोज़ दोहराई है मैंने पिछले 9 सालो से

"आ जाएगे बेटा पापा वो आपके लिए खिलोने लेने बहुत दूर गए है "।

"पक्का ना मम्मा "

"हां भई पक्का "

" चलो अब बाहर खेलने जाओ। "

प्रीति के बाहर जाते ही मेरे अंदर का सैलाब सुनामी का रुप लेकर बाहर आ गया ।

बीता कल आँखों के सामने घूमने लगा ।

मेरी फ्रेंड थी ज्योती । जिसकी शादी मैं हमारी पहली मुलाकात हुई थी। राजीव ज्योती के भाई का दोस्त था । राजीव को मै पहली नज़र मैं पसंद करने लगी थी और शायद राजीव को भी मैं अच्छी लगती थी।

मुलाकातों का सिलसिला शुरु हुआ और बात आगे बढ़ती गई, हमारी शादी को भी अनुमति मिल गई थी। सब ठीक चल रहा था

फिर एक दिन ऐसा आएआ कि राजीव घर से ऑफिस के लिए निकले और दुबारा वापिस हि नहीं आए । राजीव के जाने के 5 दिन बढ़ मुझे पता चला की मै प्रेग्नेंट हूँ।

घर वालों के लाख समझाने पर भी मैं अबॉर्शन के लिए नहीं मानी,मुझे मेरी ज़िंदगी का, समाज के तानो का , बचे के अनाथ कहलाने का और नजाने किस किस चीज का वास्ता दीया गया । पर मैं इन सब के लिए इस नन्ही जन को कुर्बान नहीं करना चाहती थी ।

मै इस उमीद के साथ जीनै लगी कि कभी तो मेरा राजीव मेरे पास आएगा।

इस बात को आज नौ वर्ष बीत चुके है, लेकिन राजीव का आज भी खुश पता नहीं है ।

इन यादों से जब बाहर निकली चेहरे को साड़ी के पल्लू से साफ करते हुए जब मैं खड़ी हुई तो देखा माँ मुझे दरवाजे पर खड़ी देख रही थी।

" अरे माँ आप कब आई "

"जब तू अपने गमों के साथ उलझी हुई थी "

" बेटा ये क्या हाल् बना लिया है तूने अपना "।

" बस कुछ नहीं माँ , वो तो ऐसे ही बस " ।

" आप बताइए माँ क्या बात है "।

" मे तुझे एक फैसला सुनाने आई हूँ , तेरे पिताजी ने अपने दोस्त रघु राम जी से बात कर ली है, उनकी रिश्तेदारी में एक् लड़का, गवर्नमेंट जॉब करता है , " हाँ उसकी पहली पत्नी की एक दुर्घटना मैं मौत हो गई थी, वो तुझे और प्रीति को अपनाने के लिए तैयार हैं "।

" ये दुःख के बादल अब बरस चुके, " बस अब और नहीं " ।