पहला प्यार--नही भुला पाती - 3 Kishanlal Sharma द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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पहला प्यार--नही भुला पाती - 3

शादी के पांच साल बादवह दो लड़कियों की माँ बन चुकी थी।पर उसके रंग रूप यौवन में कोई अंतर नही आया था।अब भी वह कुंवारी सी ही लगती थी।शेखर उसे बहु त चाहता,उससे प्यार करता था।
पिछले कुछ दिनों से उसके व्यवहार में परिवर्तन आया था।आजकल वह दफ्तर से देर से घर लौटने लगा था।पहले वह छुट्टी के दिन घर से कभी अकेला नही जाता था।लेकिन अब वह जाने लगा था।पति के व्यहार में अचानक आये परिवर्तन पर आशा ने एक दो बार उसे टोका भी था।पर शेखर ने हर बार कोई न कोई बहाना बना दिया था।आशा का ध्यान कभी इस तरफ नही गया कि उसके रहते शेखर किसी और को चाहने लगा है।उसके साथ गुलछर्रे उड़ाने लगा है।
निशा से सारी बाते सुनकर उसे पति में आये परिवर्तन का कारण समझ मे आ गया था।
निशा की बाते सुनकर कई प्रश्न उसके मन मे उभर आये थे।
क्या शखर उस औरत को अपना लेगा?उससे शादी कर लेगा।अगर ऐसा हो गया तो उसका क्या होगा?अगर नोबत तलाक तक आ गयी।शेखर ने उसे तलाक दे दिया तो वह अपनी दोनों बेटियों को लेकर कहा जाएगी?दो बेटियों की तलाकशुदा औरत को कौन अपनी बनाने के लिए तैयार होगा?ऐसे अनेक प्रश्न उसके मन मे थे।उन प्रश्नों पर खूब सोच विचार करने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंची की उसे अपनी बेटियों का और खुद का भविष्य सुरक्षित रखना है तो उसे समझदारी से कम लेकर पति को उस औरत के चुंगल से बाहर निकालना होगा।
रोज की तरह पति घर लौटा तो उसने आशा को अस्त व्यस्त कपड़े और बिखरे बल देखकर भी कुछ नही कहा था।पहले शेखर के घर लौटने पर आशा अस्त व्यस्त कपड़ो में और बिना मेकअप के मिलती तो शेखर नाराज होकर बोलता,"क्या अच्छे कपड़ो में सज संवरकर नही रह सकती।शेखर नाराज हो जाता तो उससे बोलना छोड़ देता।पति के नाराज होने पर उसे मनाने के लिय आशा को बहुत मिन्नते करनी पड़ती।बड़ी मुश्किल से कई दिन बाद वह मानता था।इसलिय आशा कभी भी पति को नाराज होने का कोई मौका नही देती थी।वह पति के सामने सजी संवरी और बनथनकर रहती थी।
शेखर की कमजोरी आशा थी।उसकी दिनचर्या का अंत तब ही होता जब तक वह आशा के साथ रात को सौ नही लेता।रात को शखर ने उसे अपनी तरफ खींचकर उसे प्यार किया तो आशा को ऐसा महसूस हुआ मानो वह किसी के झूठे शरीर के बोझ को अपने ऊपर उठा रही है।उसके शरीर को भोगते समय पहले जैसा जोश और गर्मी पति के प्यार में नही थी।
आशा पतिव्रता औरत थी और चाहती थी।पति भी उसके प्रति निष्ठावान और समर्पित रहे।उसे झूठन से सख्त नफरत थी।उसे किसी का झूठा खाना पसंद नही था।फिर इस झूठन को कैसे बर्दास्त करे।दूसरी औरत के द्वारा झूठे किये गए अपने पति के शरीर को कैसे सहन करे।
आशा मन ही मन मे सोच रही थी कि समझौते का नाम ही गृहस्थी है।आशा ने पति से एक बार कहा भी था,"अगर तुम्हारा मन कभी इस समझौते को तोड़ना चाहे तो मुझ से साफ साफ बता देना।मैं साफ साफ ठुकराना सह लुंगी।लेकिन धोखा छल नही सह सकूंगी।कभी नही