दिल का रिश्ता Sital Kaur द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दिल का रिश्ता

रेखा सो जाओ सुबह तुमे जल्दी उठना होता है,
समीर अपना फोन बंद करते हुए मुझे बोले ।
"बस सो रही हूँ "कहते कहते मेने भी अपना फ़ोन रख दिआ और आंखे बंद कर के लेट गई । कितने कमजोर हो गए है आज कल रिश्ते की जरा सा संभालने में चूक हुई की कांच के जैसे चूर चूर हो जाते है।आज सुबह की ही तो बात है फ़ोन पर अननोन नंबर की मिस्ड कॉल देखकर समीर ने मुझसे प्रशनो की झड़ी लगा दी इतना जनाब के सवाल ख़त्म हुए ही थे की दुबारा फ़ोन की बेल्ल बजी देखा तो व्ही नंबर समीर में तपाक से फ़ोन उठाया और बोले कौन और आगे वे एक बिहारी की आवाज आई ," ओ किशनवा हमार फ़ोन किओ नहीं उठावत हो,दें क्या एक कान के नीचवा"।
समीर ने कहा अरे भाई साहब आप ने रौंग नंबर लगा लिए है जहां कोई किशन नहीं है । सॉरी कह कर समीर ने फ़ोनकाट दिआ । ओ सॉरी रेखा यह तो रॉंग नंबर था । कभी कभी यह गलतफेहमीआं सारी जिंदगी खराब कर देती है । सोचते सोचते कब आँख लग्ग गई पता नही चला ।
"गुड मॉर्निंग रेखा अब उठ भी जाओ लो चाय पी लो," अरे आप ने चाय भी बना ली मुझे उठा देते मैं बना देती ," चाय का कप हाथ मै लेते हुए मै बोली ।
"अरे कोई बात नहीं मेने सोचा आज मै चाय बना देता हूँ " कैसी बनी है जरा पी कर तो बताओ"
"वाह आपने तो बहूत अछी चाय बनाई है"
"औ समीर आप मेरा कितना ख्याल रखते हो , थैंक्स समीर अगर आप मुझे ना मिले होते तो मेरा क्या होता" ।
" अरे तुम भी तो मेरे लिए बहुत कुश करती हो ,थैंक्स तो मुझे तुमेह कहना चाहिए"।
"छोड़िये इन सब बातो को मै खाना बनाती हु आपको ऑफिस के लिए देर हो जाएगी"
चाये के कप हाथ मए उठाकर मै किचन मे चली गई । "रेखा क्या तुम अब भी उन बातों से नराज हो", "नहीं समीर वो हमारा गुज़रा कल था, मै उस गुजरे कल को भुला के आगे बढ़ चुकी हुं ।मेने बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ समीर को भरोसा दिलाया की मे अब ठीक हुं ।लेकिन सच तो यह है की मै कभी उन बातो को भुला ही नहीं पाई, भूलाउं भी कैसे।एक औरत अपने माँ न बनने के दुःख को कैसे भुला सकती है ।
समीर ने मेरी मुस्कुराहट के पीशे छुपे दर्द को जान लिआ था और मेरा मूड बदलने के लिए बोले " अरे रेखा आज मुझे आलू के परांठे खाने का मन कर रहा हे बना दो ना"
"अच्छा बाबा ठीक है।"
समीर के जाने के बाद मैंने भी अपना काम खत्म किया और अख़बार लेकर बैठ गई।
ओह काम् खत्म करते करते दस बज गए थे,
अभी कुर्सी पर बेठी ही थी कि फोन की बेल्ल बजी
फोन उठाने के लिए मैं अंदर गई और देखा फोन समीर का ही था ।
हेलो ,"कैसी हो रेखा "
फोन उठाते ही समीर कि आवाज आई।
"ठीक हूँ "
"खाना खा लिया आपने"
"हांजी खा लिया है "
ठीक है फिर मैं रखता हूँ,"तुम शाम को तैयार रहना
बाहर खाना खाने चलेंगे"। अपना ख्याल रखना।
इतना कह समीर ने फोन काट दीया ।
आह में कितनी भाग्यशाली हुँ , समीर कि मुझे तुम जैसा पति मिला"
में मन हि मन भगवान का शुक्रिया करने लगी।