प्यार का दाग - 3 SWARNIM स्वर्णिम द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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प्यार का दाग - 3

मेरे मन की उत्साह उसके हाथ में लिए हुए गुलाब की सुगन्ध से और बढ़ गया था। मैं अपने पूरे दिल को खुशी के पंखों से उड़ता हुआ महसूस करने लगी।


"क्या तुम यहाँ अकेले बैठे हो?"


"आप मेरे साथ हो और मैं अकेला कैसे हो गयी?" मैंने उसके सवाल का जवाब दिया।


"नहीं, नहीँं मेरा मतलव मेरे आने से पहले ?" अयान वापस हँसा।


"आपके आने से पहले आपका फोन आया था ।"


मन ने आगे कहा, "और आप का याद भी। जब तक मैं आप को याद करती हूं, मैं कभी अकेली नहीं रहूंगी।"

मेरे मन की आवाज सिर्फ मैंने सुनी, उसने नहीं सुना, लेकिन मुझे लगा कि वह भी मेरे मनका आभास कर रहा है।


"क्या हम को अब भी इसी पार्क में र हना है और कहीं जा रहे हैं? खाना खाने का समय भी हो रहा है, कहीं चलो ।"


मैं चुपचाप उनके प्रस्ताव पर सहमत हो गयी।


हम वहां से चले गए। मैं उसे यूनिटी फूड कैफे ले गया। कैफे सुबह सुनसान था। फिर भी, मुझे, भीड़ से दूर रहना पसंद था, मुझे वह मिल गया जिसकी मुझे तलाश थी। उसने बिना मेन्यू देखे अपने लिए फ्राइड राइस और मशरूम चिली ऑर्डर किया और मुझसे पूछा, "तुम्हें क्या चाहिए?" उसने मेनू की ओर इशारा किया।


मैंने मेन्यू देखे बिना लस्सी ऑर्डर की। उन्होंने कहा - "क्या आप लंच में सिर्फ लस्सी खाते हैं?" उसने चिढ़ाया।


"आज बार क्या है?" मैंने प्रतिवाद किया।"

"सोमवार" उसने जवाब दिया।


"और महीना?"


"सावन। ओह! क्या तुम्हारा उपवास है?" मैंने सिर हिलाया और उसके अनुमान को 100 प्रतिशत सच कर दिया।


मेरे अर्डर टेवुल पर आ गया। "इसे ले लो।" उसने मुझे लस्सी की ओर इशारा किया।


"हाँ। आप भी ले लो ।" मैंने लस्सी का गिलास उसकी ओर बढ़ाया।
"नहीं, नहीं, खुद ले लो।" उसने अजीब तरह से गिलास को मेरी ओर घुमाया।
"मैं तो इसे ले लूँगी, आप भी इसे लेङ्गे तो मुझे अच्छा लगेगा। इस बार वह मेरे अनुरोध को अस्वीकार नहीं कर सका या यों कहें कि उसने मना करने का प्रयास नहीं किया।


"अब तो पी लो।" उसने मेरो जिदको पूरी करते हुए थोड़ा पीकर गिलास मेरे सामने रख दिया।


मुझे बहुत खुशी हुई कि उसने मेरे अनुरोध को इतने प्यार से पूरा किया जैसे उसने एक छोटे बच्चे की जिद पूरी की थी।


उनकी उपस्थिति ने मुझे यह महसूस कराया कि बिना किसी सीधी मुलाकात या किसी रिश्ते के भी किसी के साथ कितनी मधुर आत्मीयता जुड़ जाती है।


पहली बार उसकी आवाज की ओझ ने मेरे दिल को जेसै छुआ था, मैं उसकी व्यक्तित्व से अौर चकित हुइ थी। मैं चाहकर भी उससे नज़रें नहीं हटा सकी , ये जानकर मुझे यह एहसास हुआ कि ये आँखें मेरे दिल से भी ज्यादा प्यासी हैं।
कैफे से निकलकर उसने पूछा - "हम अब यहाँ से कहाँ जाएँ?"
"गोदावरी।"

मेरे उत्तर से आश्चर्य के भाव उसके चेहरे पर आ गए। उसके कुछ कहने से पहले मैंने उसे स्पष्ट कर दिया। "आपकी अच्छी जगह वही तो है।"

"ओह! क्या यह बुरा व्यक्ति आज अच्छी जगह जायगा ?"


इस बार उनके प्रश्न के उत्तर में मैं केवल मंद-मंद मुस्कुराया, लेकिन मेरे मन ने मेरे मन में ऐसा उत्तर तैयार किया कि - " मेरे लिए तो आप सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हैं।"


पता नहीं क्यों, उसके करीब आने के बाद, दूसरों के साथ मेरे रिश्ते फीके पड़ने लगे थे। मैं अपना सारा समय उसे सोचने और याद करने में लगाती थी।


उसने टैक्सी रोकी, हम दोनों टैक्सी में सवार हुए और गोदावरी की ओर चल पड़े।
आज मैं उसी टैक्सी में उसी सीट पर एक ऐसे शख्स के साथ बैठी थी, जिससे कल तक मिलने का मुझे अंदाज़ा भी नहीं था। उनके न आने का अविश्वास अब मेरे मन से दूर हो गया था। यह मन बहुत प्रसन्न महसूस कर रहा था कि मैं अभी यहाँ उसके साथ हूँ।