Exploring East India and Bhutan-Chapter -25
सोलवां दिन
मानसी पिछले दो दिनों से परेशान थी, जाहिर है, भसीन के मना करने के बाद उसे आगे के रास्ते बंद नजर आ रहे थे. इसलिए वह हमारे साथ ना जा कर होटल में ही रही थी व् लगातार पता नही किस-किस को कॉल कर रही थी, हमने भी लगा कि उसे सोचने का समय दिया जाये, आखिर उसके भविष्य का सवाल था, और फैसला भी उसी को लेना था.
वापिस आ कर हम मानसी के रूम में चले गये, मानसी ने मुस्करा कर हमारा स्वागत किया
“भैया, क्या लेंगे”
“कॉफ़ी चलेगी” मैंने कहा, और मानसी ने फ़ोन उठा कर तीन कॉफ़ी का आर्डर कर दिया. कुछ क्षण तो तीनो खामोश बेठे रहे
“कल का प्रोग्राम बनाएं“ आखिर मैंने खामोशी तोडी. विनीता ने मुझे घुर कर देखा, मै भी अपनी मुर्खता पर लज्जित हुआ
“मानसी, तुमने आगे का कोई फेसला लिया“ विनीता ने मानसी के पास बैठते हुए कहा. मानसी पहली तो कुछ पल खामोश रही, फिर उसने कहा
“दीदी, मैंने भसीन का चैनेल छोड़ने का मन बना लिया है, अब भसीन से बात इतना आगे बड चुकी है कि वहां रुकने का अब कोई मतलब नहीं है, ना ही अब मुझे वहां अपना कोई फ्यूचर नजर आ रहा है“
“एकदम सही फेसला” मैंने मानसी की बात काटते हुए कहा
“और चेनेल छोड़ने के बाद क्या करोगी” विनीता ने उसके गले में बाहें डालते हुए कहा
“अभी कुछ फाइनल नहीं किया है, पर थोड़ा बहुत मेरे दिमाग में चल रहा है“
“और वो थोड़ा बहुत क्या है” मैंने सवाल किया
“ मैंने अपनी मम्मी से भी बातचीत की है, व् आशुतोष से भी. आशुतोष ने मुझे बताया है, कि रानिपूल में ना केवल भसीन रहता है, बल्कि वहां दो और बड़े न्यूज़ चैनेल के मालिकों के बंगले भी हैं, और उसने मुझे वहां बुलाया है”
“किसलिए”
“अभी कुछ फाइनल नहीं किया है, पर मै उन दोनों चेनेल के मालिकों से पर्सनली मिलना चाहती हूँ, आशुतोष कहता है, वह यह काम करवा देगा”
“करवाएगा क्यों नहीं, मानसी मैडम कहें और आशुतोष ना करे, ये हो नहीं सकता” मैंने चुटकी ली
“भैया” मानसी ने मुझे शरारती नजरों से देखा
“अब तुमने फेसला ले ही लिया है, तो डरना क्या की कहीं फेसला गलत ना हो जाए, बल्कि ये उम्मीद करके खुश होना शुरू कर दो, कि आगे वही होगा जो तुमने सोचा है” विनीता ने कहा
“दीदी तुम लाजवाब हो” मानसी विनता से लिपट गई
“चलो रिलैक्स करते हैं, शाम ढल चुकी है, चिंता ख़त्म करो पार्टी शुरू करो“
और महफिल रूफ रेस्टोरेंट में जम गई, और बातों का सिलसला शुरू हो गया.
“भैया, आप लोग टाइगर नेस्ट मोनेस्ट्री गए थे”
“हाँ”
“ज़रा उसके बारे में बताये, मुझे रुची है”
“विनीता तुम बताओ” मेने कोनिअक गिलास में डालते हुए कहा
“ठीक तो सुनो” विनीता ने कहा :
Taktsang Palphug monastery paro, (Tiger Nest Monastery)
यह मठ पारो सिटी सेंटर से लगभग 10km की दूरी पर10240 ft की उचाई पर क्लिफ साइड घाटी में स्थित है.
यह भूटान का सबसे लोकप्रिय दर्शनीय स्थानों में से एक है, और साथ में भूटान के सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में इसका उंचा स्थान है. असल में यह भूटान का सांस्कृतिक प्रतीक बन गया है. भूटान जाएँ तो यहाँ आना तो बनता ही है.
इस मठ का निर्माण1692 में किया गया था, यहाँ भूटान में बौद्ध धर्म की शुरुआत करने वाले गुरु पद्मसंभव ने तीन साल, तीन महीने, तीन सप्ताह, तीन दिन और तीन घंटे का ध्यान किया था, गुरु पद्मसंभव को भूटान में कुल देवता का दर्जा हासिल है.
और इस मोनेस्ट्री के निर्माण के पीछे कहानी यह है कि, एक बाघ दानव को मारने के लिए गुरु पद्मसंभव तिब्बत से यहाँ पहुंचे थे, गुरु पद्मसंभव की मदद के लिए और उन्हें यहाँ तक उन्हें पहुँचाने के लिए सम्राट की पूर्व पत्नी ने खुद को एक उड़ने वाली बाघिन में तब्दील कर लिया था. तिब्बत से इसी फ्लाइंग टाईग्रेस की पीठ पर बैठ कर उड़ते हुए गुरु पद्मसंभव इस क्लिफ पर पहुंचे थेऔर बाद में उन्होंने इसी स्थान को मठ के निर्माण की जगह के रूप में चुना.
यहाँ कैंप तक आप अपने वाहन से आ सकते है, पर इससे आगे आपको पैदल ही चलना पड़ता है, रास्ता पथरीला व् एकदम उबड़ खाबड़ है, मठ तक पहुंचने में लगभग 700 खडी सीढ़ियों चढ़ कर मठ में प्रवेश होता है, इसमें तीन से चार घंटे भी लग सकते हैं, वैसे मठ तक पहुंचने के लिए घोड़े भी किराये पर मिल जाते हैं.
मठ के खुलने का समय अक्टूबर से मार्च तक सुबह 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक और अप्रैल से सितंबर तक शाम 6 बजे तक है. आप मठ के अंदर छोटे कपडे पहन कर नही जा सकते, महिलाओं के लिए लंबी आस्तीन के साथ पूर्ण लंबाई के कपड़े, और पुरुषों के लिए लंबी पैंट पहनने का ड्रेस कोड है. मठ के अंदर टोप, स्कार्फ पहनने की अनुमति नहीं हैं. आपको मठ के प्रवेश द्वार पर सुरक्षाकर्मियों के साथ अपना कैमरा, पर्स,बेग और मोबाइल फोन जमा करना पड़ता है.