इश्क़ ए बिस्मिल - 22 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 22

हदीद!”
उमैर अभी अभी बाहर से आ रहा था और उसने अज़ीन को धक्का देते हुए देख लिया था। वह हदीद पर चिल्लाते हुए दौड़ाते हुए आया था। अज़ीन औंधे मुंह गिरी हुई थी। उसने हदीद को घूरते हुए ज़मीन पर घुटने के बल बैठकर अज़ीन को सीधा किया था और परेशान हो गया, झूले के सामने नीचे हदीद की रीमोट कन्ट्रोल कार थी जिसके उपर गिरने से अज़ीन की पेशानी पर चोट लगी थी और उसमें से बहुत ख़ून निकल रहा था। अज़ीन दर्द के मारे रो रही थी, उमैर उसकी पेशानी का जायज़ा ले रहा था कि कितना चोट आया था। तभी दौड़ती भागती हुई अरीज पहुंच गई थी। नमाज़ पढ़ने के बाद कमरे में अज़ीन को ना पाकर वह परेशान हो गयी थी। वह समझ गई थी कि अज़ीन ज़रूर लाॅन में झूला झूलने के लिए गयी होगी, अपनी तसल्ली के लिए उसने खिड़की से लाॅन में झांक कर देखा तो अज़ीन को गिरते हुए पाया। वह बिना कुछ सोचे समझे भागती हुई अज़ीन के पास पहुंची थी।
अज़ीन की पेशानी से ख़ून रिसते देख वह अज़ीन से भी ज़्यादा रोने लगी। उमैर को हदीद की हरकत की वजह से अरीज के सामने शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। मगर यह वक़्त अफ़सोस करने का नहीं था, ख़ून बहुत ज़्यादा बह रहा था इसलिए उमैर ने अज़ीन को गोद में उठाया और कार पोर्च की तरफ़ भागा था और अरीज भी उसके पीछे पीछे दौड़ गई थी।
अरीज अज़ीन को अपनी गोद में समेटे कार की पिछली सीट पर बैठी थी और उमैर ने ड्राइविंग सीट सम्भाल ली थी।
“अज़ीन... मेरा बच्चा... कुछ नहीं होगा तुम्हें...सब ठीक हो जाएगा।“ जब तक वह लोग हास्पिटल नहीं पहुंच गए, अरीज उसी तरह अज़ीन से रो रोकर बातें कर रही थी। अरीज की ज़ात से कोई दिलचस्पी ना होते हुए भी उमैर का पूरा ध्यान अरीज की तरफ़ था।
हास्पिटल पहुंचते ही सारी फ़ार्मालिटीज़ पूरी कर दी गई थी और अज़ीन की ट्रीटमेंट भी शूरू हो गई थी, तब तक अरीज का बूरा हाल हो गया था, उसके मन में रह रहकर वसवसा जाग रहा था, चोट झूले से गिरने से लगी थी, मगर उसकी घबराहट और डर को देखकर ऐसा लग रहा था कि वह छत से गिर गई हो, ऐसा सिर्फ इसलिए हुआ था क्योंकि उसने दो सालों में अपने सबसे क़रीबी दो रिशते को, अपनी पहचान, अपने मां और बाप को खोया था और अब वह अज़ीन को किसी कीमत पर हर्ग़िज खोना नहीं चाहती थी, आज उसे उसकी सास और शौहर हिकारत भरी नजरों से देख रहे थे, उसकी खुद्दारी पर उंगली उठा रहे थे, उसे लालची समझ रहे थे मगर उसने सब बर्दाश्त किया सिर्फ़ और सिर्फ़ अज़ीन की खातिर उसके बहतरीन मुस्तकबिल की खातिर, अगर आज उसे कुछ हो जाएगा तब शायद उसके जीने का मक़सद ही ख़त्म हो जाएगा।
अज़ीन को स्टीचेज़ लग रही थी, अरीज में बिल्कुल हिम्मत नहीं थी कि वह अपनी आंखों से यह सब देखती, सो वह रूम के बाहर कोरिडोर में लगे जोइंट चैयर्ज़ पर बैठी गई थी, उमैर अन्दर गया था मगर डाक्टर ने उसे भी बाहर रहने को कहा था। रूम से निकलते ही उसकी नज़र सामने बैठी अरीज पर ठहरी थी, बहुत ज़्यादा उदासी में घिरी, अपनी नज़रें फ़र्श पर टिकाए वह जाने किस सोच में गुम थी। उसकी आंखें रो रोकर सूज चुकी थी। उमैर कुछ सोचकर वहां से चला गया था, जब वापस आया तो उसके हाथ में एक सेंडविच और एक पानी की बोतल थी, जो उसने अरीज के सामने पेश की थी। अरीज की सोच का तस्लसुल टूटा था, उसने अपनी नज़रें उठाकर उमैर को देखा था,
“वह आंखें थी या जादू था?
शायद ज़ंजीर थी,
जो यह दिल गिरफ़्त में था।
उमैर उसे देखता रह गया था, गुस्से में उसने पहले ध्यान ही नहीं दिया था, उसकी आंखें बला की खूबसूरत थी, इतनी खूबसूरत की एक बार देखने के बाद दुबारा उन आंखों को देखने की चाहत जाग सकती थी। ग़ज़ाली आंखों के उपर सायादार पलकें। उमैर के दिल को कुछ हुआ था, वह थम सा गया था, उसके हाथ अभी भी अरीज को सैंडविच और पानी की बोतल बढ़ा रहे थे, अरीज ने बिना कुछ बोले सर नहीं में हिला कर लेने से इंकार किया था और साथ ही पलकों की चिलमन फिर से गिरा ली थी, जादू का सिलसिला टूटा था, उमैर होश में वापस लौटा था।
वह अरीज की साइड की एक चैयर छोड़कर वह बैठ गया था। दुबारा उसने अरीज को सैंडविच और पानी की औफ़र नहीं की थी, बल्कि सैंडविच की आधी wrapper खोल कर ख़ुद खाने लगा था, दरासल पिछली रात से वह भूखा था, गुस्से में उसे खाने का होश ही नहीं था।
आधा घंटा गुज़र गया था मगर उन दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई थी, कोई काम की बात भी नहीं, यहां तक कि हां-हूं भी नहीं। सिर्फ़ एक आवाज़ थी जो उस ख़ामोशी को वक़्फ़े-वक़्फ़े में तोड़ रही थी। अरीज की सिसकारियों की आवाज़ जिससे उमैर परेशान और बेज़ार दोनों हो रहा था।
जब उसकी बर्दाश्त की हदें पार हो गई तब उसने हार कर अरीज से कहा “वह सिर्फ़ एक झूले से गीरी है, खेल-कूद में बच्चों को अक्सर चोट लग जाया करतीं हैं मगर इसका यह मतलब नहीं कि बड़े उस झूले को ऊंची बिल्डिंग समझकर मैटर को ख़्वामख़्वा बहुत बड़ा बना दे।“ उमैर ने बीना उसकी तरफ़ देखे चीढ़ कर कहा था। उसके इतना कुछ बोलने के बाद भी जब उसे कोई जवाब नहीं मिला तो उसने मुड़ कर अरीज को देखा जो उसे ही देख रही थी।
“मेरा अज़ीन के सिवा इस दुनिया में कोई नहीं है। उसकी तकलीफ़ उससे ज़्यादा मुझे महसूस होती है।“ अरीज ने गर्दन मोड़ ली थी और अब अपनी हथेली की लकीरों को देखते हुए कह रही थी, जब कि उमैर उसे ही देख रहा था।
“क्यूं झूठ बोल रही हो? कैसे कोई नहीं है तुम्हारा इस दुनिया में? मेरे बाबा तो सबसे ज़्यादा तुम्हारे ही है, इतना ज़्यादा तुम्हारे हैं कि अब वह ना बीवी के अपने रहे ना बेटे के, और मुझे तो डर लग रहा है हदीद के लिए, जब उन्हें पता चलेगा कि उसने तुम्हारी दिलोजान से अज़ीज़ बहन को चोट पहुंचाई है तो वह उसका क्या हाल करेंगे? कहीं तुम्हारे घर से ही ना निकाल दें उसे।“ वह तानें पे तानें कहता रहा, वह हर्ग़िज ऐसा नहीं था मगर पिछले २४ घंटे में वह ऐसा हो गया था, उसके अंदर इतनी तल्ख़ियां भर गई थी कि उसे खुद तकलीफ़ हो रही थी और वह इन तल्ख़ियों का ग़ुबार उसी के सामने निकाल देना चाहता था जो इसकी वजह बनी थी।
अरीज बिना कुछ बोले बस चुपचाप सुनती रही, वह इतना भी ग़लत नहीं कह रहा था, उमैर के बाबा वाक़ए उसके हो गये थे, इतने अपने की उन्होंने उसकी खातिर ना बेटे के बारे में सोचा और ना ही बीवी की सुनी, मगर इन सब बातों में अरीज का कोई हाथ नहीं था, ना ही कोई प्लान था ना कोई मक़सद, उसे सिर्फ़ एक तहफ़्फ़ुज़ चाहिए थी, एक आसरा चाहिए था एक सहारा चाहिए था।
वह कह चुका था, जो उसे कहना था। उसके बाद फिर से ख़ामोशी छा गई। अरीज ने दिल ही दिल में दुरूद शरीफ़ का विर्द जारी रखा। थोड़ी ही देर में डाक्टर पेशेन्ट रूम से बाहर निकल आए।
“चोट काफ़ी गहरा है, मगर डरने की कोई बात नहीं है, ५ स्टीचेज़ लगे हैं, एक हफ्ते तक रोज़ाना ड्रेसिंग करना होगा, एक हफ्ते के बाद एक दिन गैप करके ड्रेसिंग होगी।“ डाक्टर उन दोनों को समझा रहा था।
एक घंटे के बाद वह लोग अरीज को घर लेकर जा सकते थे।