इश्क़ ए बिस्मिल - 20 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 20

हालातों के बीच एक गहरा समन्दर है,
उस पार उतरूं तो कैसे?
अफ़सोस तैरने का हुनर कहां मेरे अंदर है।
अरीज पूरी रात सो नहीं पाई थी इस डर से के कहीं उसकी आंख लग जाए और उमैर ना आ जाए, सुबह फ़ज्र की अज़ान की आवाज़ कान में पड़ते ही वह सोफे से उठी थी। अज़ीन उसकी गोद में सर रखकर सोफे पर ही सो गई थी। उसने अज़ीन का सर अपनी गोद से उठाकर सोफे के कुशन के निचे रख दिया था। नज़रें इधर उधर दौड़ाते ही उसे कमरे में एक स्लिडिंग डोर दिखा था अरीज को लगा की वह अटैच बाथरूम है। उसने स्लिडिंग डोर घस्काया तो पता चला वह ड्रेसिंग रूम है। ड्रेसिंग रूम के अंदर उसे एक डोर और दिखी। उसने उसे खोल तो वहाँ बाथरूम को पाया था।
वह बाथरूम में जाकर फ़्रेश हुई और फिर उसने वज़ू कर लिया था। उसे जाईनमाज़ कहीं दिख नहीं रहा था, उसने ज़्यादा ढुंढने की कोशिश भी नहीं की थी, अपने सूटकेस से एक दुपट्टा निकाला था और उसपर नमाज़ अदा करने के लिए खड़ी हो गई थी।
नमाज़ अदा करने के बाद उसने दुआ मांगी थी अज़ीन की बेहतरी की दुआ, अपनी ज़िम्मेदारियों पर खरा उतरने की दुआ, खुद के लिए उसने कभी दुआ मांगी ही नहीं थी। दुआ से फ़ारिग होकर वह उठी थी फ़र्श से दुपट्टा उठाकर उसे तय करते हुए मुड़ीं थी और तुरंत जैसे बर्फ़ के मुजस्सिमे की तरह जम सी गई थी। ६ फ़ुट लम्बा कद, कसरती जिस्म, सफ़ेद नुमा गुलाबी रंगत, पतली खड़ी नाक, गहरी काली आंखें, घंने काले बाल। अरीज ने फिल्मों के अलावा हक़ीक़त में रूबरू इतना खूबसूरत मर्द अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं देखा था। यूं तो उसके बाबा भी बड़े ख़ूबसूरत थे, मगर इस आन-बान के साथ उसने अपने बाबा को कभी नहीं देखा था, वह आम से हुलिये में रहते थे। उन्होंने ख़ुद पर कभी इतना ध्यान नहीं दिया था, उनकी ज़िंदगी की priorities उनकी फ़ैमिली थी।जाने उमैर कब से उसके पीछे खड़ा उसे देख रहा था। अरीज ने घबराकर नज़रें नीची कर ली, लेकिन उसे यूं चूपचाप मुजरिमों की तरह खुद का खड़ा होना awkward फ़ील हो रहा था इसलिए उसने उमैर को सलाम किया था लेकिन उसके सलाम का जवाब देने के बजाय उमैर ने कहा था।
“इतनी छोटी सी उम्र में इतना ख़ुराफ़ाती दिमाग़ कहां से मिला तुम्हें?” वह उसे नफ़रत से देख रहा था। अरीज ने उसकी बात पर नज़र उठाकर उसे देखा मगर अफ़सोस अपनी सफ़ाई में कुछ कह नहीं सकी, उसे यह सब आता ही नहीं था।
“जूते-चप्पल छोड़ बाज़ दफ़ा लोगों की एड़ियां तक घिस जाती है इतनी दौलत कमाने में मगर कमाल है तुमने तो एक अलग रिकॉर्ड कायम किया होगा बिना मेहनत किए कुछ घंटों में ६० करोड़ की जायदाद हासिल कर ली।“ उमैर के लफ़्ज़ नश्तर की तरह उसके दिल को काट रहे थे, इतना दर्द, इतनी पीड़ा सहने के बाद भी उसने अपने होंठ को जैसे सी लिया था, उसने अपने मुंह से आह तक नहीं निकाली थी। हां बस दर्द की शिद्दत की वजह से आंखों पर ज़ोर ना चला सकी थी। सदा अपनी मनमानी करने वाली आंखों ने अपने बंद खोल दिए थे, बेसब्र आंसुओ ने आंखों से आज़ादी हासिल कर ली थी और अब बेमोल ही गालों पर बिखर गए थे।
“बहुत मुबारक हो तुम्हें यह घर, और यह एक तरफा रिश्ता।“ उमैर गुस्से में चलता हुआ अपने ड्रेसिंग रूम में पहुंचा था वहाँ वार्डरोब की तरफ बढ़ा था और एक सूटकेस निकाल कर वहाँ पर मौजूद एक दीवान बेड पर पटक दिया था फिर उसे खोलकर जल्दी जल्दी उसमें अपने कपड़े भरता जा रहा था।
अरीज बस रो कर रह गई थी, कुछ कहना चाहती थी मगर हिम्मत जुटा नहीं पा रही थी। उमैर जैसे तैसे अपनी पैकिंग कर चुका था और अब जाने ही वाला था कि अरीज ने उसे रोका था। “प्लीज़ आप कहीं मत जाइए, मुझे अपने नाम यह यह घर नहीं चाहिए थी, बस तहफ़्फ़ुज़ चाहिए थी....” वह और भी कुछ कहने वाली थी मगर उमैर ने उसे रोक दिया था।
“ओह प्लीज़ यह नौटंकी बंद करो।“ उमैर ने तंग आते हुए कहा था और बीना उसे कुछ बोलने का मौका दिए वहां से चला गया था। अरीज उसे जाते हुए देखती रह गई।
देखते देखते सूरज की सुनहरी ठंडी किरने हल्के रेशमी परदों से छनन कर पूरे कमरे में भर गई थी, मगर अरीज को उसकी ज़िन्दगी वीरान अंधेरों में गुम होती महसूस हुई। वह चलती हुई खिड़की के पास आई थी, यह वह वक़्त था जब इंसान उस आग के गोले को अपनी आंखों में समा सकता, मगर इंसान मिट्टी का बना होकर भी किसी इंसान की आंखों में आंखें तब तक नहीं डाल सकता जब तक वह अपनी बेगुनाही साबित ना कर दे।
उसने सफ़ेद रेशमी परदों के पीछे लगे भारी draperies को खिड़कियों पर फैला दिया, पूरा कमरा एक बार फिर से मद्धम अंधेरों में डूब गया।
“आपी!....आपी!....आपी!” अज़ीन उठ गयी थी और अब अरीज को उठा रही थी। अरीज हड़बड़ा कर उठ बैठी, वह बड़ी गहरी नींद में सो रही थी, जाने कितने दिनों के बाद, यह सब भूलकर के वह कहां है, यह भूलकर के चंद घंटे पहले बना उसका शौहर उस पर लालज का इल्ज़ाम लगा कर गया था। आंखों के खुलते ही कल घटने वाली सारी बातें अचानक से याद आ गई थी। उसने अज़ीन के गालों पर प्यार किया था।
“आपी मुझे भूख लगी है।“ अज़ीन ने उसे उठाने की वजह बताई।
अरीज ने वाॅल क्लाॅक की तरफ़ नज़र उठाई, घड़ी में 9:45 बज रहे थे। वह सिर्फ़ तीन घंटे सोई थी। उसे अज़ीन की भूख का सुनकर परेशानी हो रही थी। एक ज़मान ख़ान के सिवा कोई उसे यहां पसंद नहीं कर रहा था, उसका शौहर और उसकी सास उसके खिलाफ़ खड़े थे, उन दोनों का बस चलता तो उन दोनों बहनों को घर से बाहर निकाल देते, तो फ़िर भला उन्हें क्यों फ़िक्र होती के वह दोनों भूखे हैं या प्यासे।
कल निकाह के बाद ज़मान ख़ान उन दोनों बहनों को शानदार रेस्टोरेंट लेकर गये थे, छोटी सी अरीज खाने के मामले में थोड़ा पीछे थी इसलिए अपने भूख के मुताबिक बहुत थोड़ा सा खाना खाया था और अरीज से कुछ खाया नहीं गया, उमैर रवैए से वह काफ़ी डिस्टर्ब हो गई थी।
अज़ीन की भूख को शांत करने के लिए उसने कमरे में नज़र दौड़ाई, शुक्र था उसे रूम रेफ्रिजरेटर दिख गया था। वह कभी किसी की चीजों को बिना उसकी परमिशन के हाथ नहीं लगाती थी इसलिए काफ़ी कशमकश में थी कि रेफ्रिजरेटर खोले या नहीं तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और साथ ही ज़मान ख़ान की आवाज़ भी आई
“बेटा अरीज!” उनकी आवाज़ सुनते ही अरीज ने दिल ही दिल में अल्लाह का शुक्र किया।
“जी।...जी अंकल...” उसने जवाब दिया, तो ज़मान ख़ान अंदर आ गये और अपने पीछे नसीमा बुआ को नाश्ता लेकर अंदर आने का इशारा भी किया।
यह देख अरीज ने अल्लाह का एक बार फिर से शुक्र अदा किया।
“मैंने नौ बजे आपको आवाज़ दी थी ताकि आप दोनों कुछ खा पी लें, मगर आप शायद गहरी नींद में थी इसलिए मैंने ज़्यादा डिस्टर्ब नहीं किया।“ नसीमा बुआ ने पहले बड़े गौर से अरीज को देखा, मन ही मन उसकी ख़ुबसूरती और सादगी को सराहा, क्योंकि उनकी बेगम साहिबा और उनकी लाडली सोनिया काफ़ी बनी संवरी रहा करतीं थीं, बल्कि इस सुसाइटी से ताल्लुक रखने वाले लोगों का अपना ही एक रौब, गुरूर और वक़ार रहता था और हुलिए से अरीज उसे कहीं से भी इस सुसाईटी की नहीं लग रही थी, अपने ख़्यालात मन में रखते हुए वह सेन्टर टेबल पर नाश्ता लगाने लगी। अज़ीन नाश्ता देख कर पहले ही सोफ़े पर बिराजमान हो गई थी।
जब नसीमा बुआ नाश्ता लगाकर खड़ी हुई तो ज़मान ख़ान उस से कहने लगे “नसीमा! यह अरीज है, मेरी ग़ैर मौजूदगी में तुम्हें इनका बहुत ज़्यादा ख़्याल रखना है, क्योंकि यह इस घर की मालकिन है और साथ ही साथ हमारे उमैर साहब की दुल्हन भी।“ ज़मान ख़ान की बात खत्म हुई थी और यहां नसीमा बुआ को झटके लगे थे।