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नए आगंतुक

नए आगंतुक

शाम ढल रही थी। सभी वृक्ष आपस में क्षेमकुशल पूछते सान्निध्य का आनंद ले रहे थे।

“तेरे पर खिला फूल किसी मानव स्त्री के ज़ुडे में पिरोया हो ऐसी शोभा देता है। तेरी ये मादक सुगंध! मार डाला मुझे। तेरे बदन से फूटती ये खुशबू का क्या कहूं मेरी प्राण प्यारी?“ कड़ीपत्ते ने अपने बगल में खड़ी जसुद को बताया।

"हाँ, लेकिन हम कहते हैं कि कड़ीपत्ताजी, हमारे मकान मालिक ने घर बदल दिया। जातेजाते हम से बात भी करते गए और कहते गए की ”फूलो फलो। हमें याद रखना।” आप साथ जीते हैं, आप मुझसे बात करते हैं और जसुद को प्यार भी करते हैं, राम जाने नए मालिक किस तरह के पौधे लाएगा। कोई एरे गेरे न आ जाए। हमें तो अपनी जात बचाने की फ़िक्र भी लगी रहती है। हम ठहरे पौधे। यह क्यारी छोड़कर भाग तो नहीं निकल सकते!“ सकुचाई सिकुड़ती शर्मीली रातरानी बोली।

कनेर के पौधे ने झुक झुक कर रातरानी से स्पर्श का मज़ा लेना चालू रखा और अखियां मिलाने का व्यर्थ प्रयत्न करता रहा।

कड़ीपत्ते ने इसे टोंका, "भाई थोड़ा कम झुलाकर, रातरानी के साथ तुम्हारे कंधों को घिसा करना अच्छा नहीं है।”

"अरे, कनेर कुमार, सीधे रहो! मेरे बहुत करीब मत आना। मैं तुम्हारे हाथ में इस तरह से नहीं आने वाली" शर्म से लाल रातरानी ने ग़ुस्से से लाल होते हुए कहा।

सब पौधे अपनी जगह पर खड़े इस तरह अपने समूह जीवन का आनंद ले रहे थे ।


इतने में ही खट खट धड़ धड़ाधड़ आवाज़ आई । दो गमले रखे गए। जगह कम होने पर कड़ीपत्ता जासुद की और ज्यादा झुका। “आ मेरी लाली, मेरी लाड़ली!” कहते अपनी लंबी डाली से जैसे उसकी कमर पकड़ता हो, उसकी और झुका।

यह देखकर रातरानी बोल उठी ”कुछ शर्म भी करो। बहोत प्यार जताना हो तो अपने आसपास जाली करा लो। “

नए गमले में से डोक बाहर निकाले गुलाब ने आसपास देखा। “वाह, नए पड़ोसी है तो सुंदर। इससे दोस्ती करनी पड़ेगी। " उसने रातरानी की ओर देखते सोचा।

दूसरी दो चार दृष्टि आसपास हुई। गमले में से कुछ पौधे सीना ताने टट्टार हुए अपने पास पड़ोस में नए आए आगंतुक का निरिक्षण करने लगे।

दूसरे गमले में से बोनसाई ने ’भें...’ करते चीत्कार किया । वह ड़र गया था। गुलाब ने कहा, "शांत हो जा.! यह हमारा नया घर है। मकान मालिक हमें यहां सम्हालकर ले आया है। यहां आपको मज़ा आएगा । इतने में " ठाड़..तड़ाक " सी आवाज आई। एक छोटी सी चीख सुनाई दी। कोई सुहाना विदेशी पौधा बीचमें घुंसते कड़ीपत्ते से टकराया।

“ प्लीज़ अंकल मुझे दबाओ मत। “ नाजुक विदेशी पौधी बोल उठी।

“अरी नाजुक़ लाल पत्ते वाली, तेरा नाम तो बता!” रातरानी ने पूछा।

विदेशी बोली ”आपको नहीं आएगा। मुझे विदिशा कहो तो चलेगा।”

कड़ीपत्ता आदेश देता बोल उठा ”देखो, हम भी बड़ी मुश्किल से एडजस्ट होते हैं। ऐसे में आप सब नए कहाँ से आ पहुंचे? ऐसे तो नहीं चलेगा।”

गुलाबने कहा ”कड़ीपत्ता जी, आपने पारसीओं की दूध में सक्कर वाली बात तो सुनी है ना! इसी तरह हम भी ऐसे धूल मिल जाएंगे। जैसे दूध में शक्कर और मिट्टी में खातर. (खाद)।”

जसुद अब तक शांत थी। वह बोली ”ठीक है। सब थोड़े में एडजस्ट हो जाओ। लेकिन ये तो बताओ, आप सब आए कहाँ से?

और सुनो, ये कड़ीपत्ता जी बोलने में कड़ुए लगते है लेकिन दिल के है बहोत मीठे। उनके बिना किसी की भी दाल फिक्की। आप सबका ध्यान रखते हैं।"

विदेशी बोल उठी ”हाउ नाइस? आप जब हमारे भाई साब का वर्णन करती थी, आपके गाल पर शर्म की सुर्खी देखने लायक मनभावन थी।

हम अभी ही यहाँ नए रहने आए। पहले थे वह जगह.. हमें उनके नाम तो कैसे मालूम होंगे? लेकिन मालकिन बहुत प्यारी थी। हर रोज सुबह पानी देती थी। हां, मालिक कभी एक दो डाली तोड़ लेता था. हमारे पर प्यार से हाथ भी फेरता था।"

रातरानी जीभ बाहर निकाले बोली “हाय दइया! हाथ फ़िरोता था? एक मर्द ?”

विदेशी ने उत्तर दिया ”लेकिन हमें तो यह पसंद था। प्यार प्यार में फर्क होता है जी!”

गुलाब ने कहा “अच्छा. मेरे पुराने साथियों? हम सब इन पुराने रहने वाले पड़ोसियों के साथ एकरस होते मिलजुल कर रहना चाहते हैं। मैं मेरे कांटे सकुड़ लेता हूँ। विदिशा, आप मेरे करीब आइए।”

कड़ीपत्ता रूक्ष आवाज़ में बोला, ”चलो सब अपनी अपनी जगह पर बने रहो और अपनी अपनी जगह निश्चित कर लो। इसके बाहर निकलने का प्रयत्न भूल से भी मत करना, वरना पछताना पड़ेगा। मैं यहाँ का सबसे पुराना रहने वाला हूँ। सबसे बड़ा हूं। आप सब को जैसा मैं कहूं वही करना होगा। और.. एइ यु नए पौधे, ये रातरानी को क्या घूर रहा है? सुन, तमीज़ से रहना पड़ेगा यहाँ।”

गुलाब ने कहा “आपकी आज्ञा सर माथे पर। लेकिन हमें अपने हक्क तो चाहिए। मूल प्रसारने की योग्य जगह तो चाहिए। वह तो हम लेंगे।”

करेन बहुत रंगीन मिज़ाज का था। वह नई आई पड़ोसन विदेशी पर झुक गया। "माय.. स्वीटी? ओ लाल पत्ती वाली तेरा नाम तो बता?” कहते उसने विदिशा को सूंघ लिया और उससे डाली मिलाई। विदिशा शर्म की मारी एक और ज़ूक गई।

“वाह नशीब! पडोशन तो अच्छी मिली! आदमियों की तरह हम अखबार लेने उसके घर नहीं जा पहुंचते पर हवा के झोंकों के साथ झुक कर स्पर्श का तो आनंद ले सकेंगे! वैसे तो यह गुलाब न देखता हो तब इसे एक फ़्लाइंग कीस भी दे सकते है।” उसने मनोमन कहा।

विदिशा को उसकी मादक सुगंध पसंद आई। उसने न तो कोई प्रतिभाव दिया न तो कोई विरोध।


चाँद उग आया। आज हर कोई भूखा था क्यों कि सब आज एक नए स्थान पर आए थे। गुलाब ने कहा, “सुबह पानी जरूर पिया होगा । आज की रात उपवास करें। आओ, मेरे पास से कुछ धूल ले लो, मिट्टी उसमें है, नमकीन जैसा नाश्ता हो जाएगा।”

बोनसाई ने जड़ों को थोड़ा फैलाया। गीली मिट्टी से उसका पेट एक मानव बच्चे के दूध की बोतल जितना हो गया।

कड़ीपत्ता बोला “ सब शांत रहें और चंद्रमा को देखें। और हाँ, हर किसी को अपनी अगली जोड़ी के साथ ही ठहरने का, क्या? अपनी सीमा से आगे मत बैठो। खबरदार अगर किसी ने अपनी सीमा से एक कदम भी आगे रखा तो। जड़ें काट दूंगा। “

ऊंचाई में छोटे गुलाब ने अपने कांटे आहिस्ता कड़ीपत्ते के तने में चुभे। कड़ीपत्ते ने एक घुर्राती आवाज की। सब वह निरव शांत रात्रि में मानो पिघल गए।


भोर भई। घंटी के रणकार जैसी मृदु आवाज़ आई ”मेरे प्यारे पौधे, जागो।”

यह घर की नई मालकिन आई। उसने सबको पानी देना शुरू किया। पहले दूर बैठी वृद्ध तुलसी को, फिर एक एक करके सबको। करेन ने विदिशा को इम्प्रेस करने के लिए अपना परफ्यूम उड़ाया। " ऐंह ऐंह . . " आवाज़ की ।

कड़ीपत्ते को अपनी जगह कम करना पसंद न आया और ये लाल चटक जासुद, महकती रातरानी पर से अपना एकचक्रीय अधिकार जाएगा इसका भी उसे डर था। “कुछ तो करना पड़ेगा ये सब स्त्री वर्ग को मेरी रखने।” उसने मनोमन कहा।

“पहले तो चौड़ा होना पड़ेगा। ये सब मेरी जगह छीन ले यह में तनिक भी नहीं बर्दास्त करूँगा।” कहकर उसने जोर से झूलना शुरू किया । अपने सूखे पत्ते नए पौधों पर बिखरने शुरू किए। नए पौधों ने ”अब बस भी करो” कहा लेकिन वह तो अपने जोश में था। ऊपर से डालियां, नीचे से मूल उसने हो सके उतने विस्तार किए।

थोड़ी देर में मालिक आ पहुँचा। स्वभाव के अनुसार "यह कड़ीपत्ता दूसरे पेड़ को बढ़ने नहीं देता है। यह आंगन में भी सूखा कूड़ा कचरा गिराता है। यह बहुत पुराना है। इसे रहन-सहन सिखाना पड़ेगा। लाओ उसकी यह बढ़ी डालियाँ काट दूँ ।" कहते उसने कड़ीपत्ते पर कैंची चलाई।

कड़ीपत्ते ने जोर से “अरे बचाओ.. मैं क्या बीच में आता हूँ? मैँ ने क्या बिगाड़ा है ? " कहते चीख लगाईं। मालिक अपने काम में मशगूल था। उसने हो सके इतनी डालियाँ कड़ीपत्ते की तोड़ ली। अब लीडर कड़ीपत्ता और समझौता करते गुलाब के बीच ऊंचाई का ज्यादा फ़ाँसला न रहा। मालिक ने लिस्सी लिस्सी विदिशा पर हाथ फेरा। जसुद की डाली भी झुलाइ। उस पर पानी डाला और उस हरी हरी फूलों भरी सद्यस्नाता को चूमी। कड़ी पत्ता घूरता रह गया। क्यारी से जूड़ा वह कर भी क्या कर सकता था? अब मालिक ने रातरानी को हाथ में लिए सहलाई और फिर चला गया।

करेन विदिशा पर लुढ़का। नयी सुन्दर पडोशन से परिचय तो बढ़ाना होगा ना? जसुद से भी थोड़ा पास आने कहा। टुटा कड़ीपत्ता गुस्से से घूरता रहा। गुलाब ने जसुद को ’हाय‘ बोला।

“यह पुरानी पड़ोसन अच्छी है मगर उसका ‘वो’ टेढ़ा है” वह बोला। विदिशा ने करेन को मधुर स्मित दिया। करेन को यह नयी पड़ोसन पसंद आई। दोनों के बीच में तारा मैत्रक रचा।


अब सूरज की किरणें बगीचे को रोशन कर रही थी। वह रोशनी से अपना नाश्ता सब हँस कर किये जाते थे।

गुलाब बोला “लो जासुद, आप को मैं नयी कली देता हूं, मेरी ओर से भेंट।"

रातरानी को बताया " क्या कहें ? आप तो बहुत स्मार्ट और सुगंधित दिखती हैं?”

जसुद तुलसी को “क्यों बा, जेसी कृष्णा ” कहती प्रणाम करने लगी.

युद्धमें पराजित शस्त्रहीन योद्धा जैसा कड़ीपत्ता एक कोने में कटा हुआ खड़ा था। किसी को उसके सामने देखने की फुर्सत नहीं थी। वह मुंह लटकाए खड़ा था. पुराने पौधे और नए अब आपस में मीठी गोष्ठी कर रहे थे।

विदीशा ने गुलाब से कहा ”आप युवा हो. मिलनसार हो। रक्षा भी कर सकते हो। क्यों आप हमारे नए नेता न बने?”

गुलाब ने जसुद की ओर देखा। उसने मूक सहमति दे दी। तुलसी बा को तो बस माला फिराने में ही रस था। कोई भी नेता हो उसे भला क्या पड़ी थी? विदिशा जैसे प्रणाम करती हो, उसकी ओर झुकी। तुलसी बा को यह नयी जवान और खूबसूरत लड़की पसंद आई । उसने अपने मांजर उसकी और नीचे किए जैसे आशीष देती हो। सब से आवकार देती हो वैसे अपने पत्ते का डोलन करते उसने प्यार से बोनसाई को बुलाया।

गुलाब ने हवा मेंअपनी ड़ाली ऊँची की और सबसे कहा, "तो, नये एवं पुराने साथीओं, मैं तुम्हारा नया नेता हूं। मैं नया हूं लेकिन मैं आपके द्वारा चुने हुए मेरे नेतृत्व का उत्साह से स्वीकार करता हूं और मैं आपको गाय बकरियों या जानवरों को कूदने से बचाने की गारंटी देता हूं। यदि वह खाद जो मालिक ने कम कर दी है या कोई पानी नहीं आता है, तो मैं मालिक का ध्यान आकर्षित करूंगा। और कड़ीपत्ते भाई, तुम बड़े हो। मैं अपना काम जरूर करूंगा। आपको एक मार्गदर्शक बनकर रहना होगा। यहां कोई भी उतना परिचित नहीं है जितना आप। आप यहाँ मेरे पिता समान हैं। सभी के गुरु। जब हम आप से पूछें, तो परामर्श देते रहें।

सब हमारे साथ बोलिए, “जय हरी। (आदमियों का हरि) जय हरी भरी बागवानी। जय हो हमारा बगीचा। ”

सभी ने उसके साथ जयघोष किया।

जसुद देखती तो रही लेकिन सब अब गुलाब को नेता बनाना चाहते थे। उसका कड़ीपत्ता केवल नाम का बड़ा रह गया था। यद्यपि कड़ीपत्ते को अपनी नेतागिरी जाना पसंद नहीं था, थोड़ी हिचकिचाहट के साथ, नए नायक के नाम पर उसने गुलाब का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

हम आदमी कई सालों तक अपने पड़ोस में रहते हुए भी उससे परिचित नहीं होते लेकिन यहाँ तो सब ऐसे घुलमिल गए थे जैसे ‘दूध में शक्कर’ या उनकी भाषा में ‘मिट्टी में खातर’ ( खाद) ।

जड़ें सलामत तो डालियाँ बहोत । सभी पेड़ एक दूसरे को जानते थे। जैसा कि मनुष्य गृहिणी पड़ोसन से कटोरे का व्यवहार करती हैं, पानी या मिट्टी के कणों को एक दूसरे से पास ऑन करने की प्रथा शुरू हो गई थी। अगर कोई भी झगड़ा हुआ तो अपना बड़प्पन दिखाते उसे सीधा करने के लिए कड़ीपत्ता तैयार था पर यहाँ कहाँ ऐसा होने वाला था?

-सुनील अंजारीआ




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