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भरोसा - 5 - अंतिम भाग

5

(अंतिम भाग)

करन प्रश्नार्थभरी नज़रों से इन्सपेक्टर के सामने देखते हुए उन्हें जवाब दे रहा था। वो इस तरह से जवाब दे रहा था कि पुलिस को ऐसा लगे कि जैसे वो उन्हें पूरी तरह से सहकार दे रहा हो!

करन से सारी पूछताछ करने के बाद इन्सपेक्टर ने करन को कहा, "हम आपको अपनी माँ पर घातकी हुमला करने व उनके किंमती ज़ेवर चुराने के जुर्म में गिरफ्तार करते है।"

यह सुनकर करन एकदम से चौंक गया।

"क्या? वोट रबिश!" करन ने चिल्लाकर कहा।

"अब , आप हमें सीधी तरह से सब सच-सच बता रहे हैं कि हम आप से सच उगलवाये?" इन्सपेक्टर ने करन को डंडा दिखाते हुए कहा।

"ये क्या बकवास है? आप एसा कैसे कर सकते हो! आप लोग मुझे फसा रहे हो! आप के पास सबूत क्या है कि मैंने ही अपनी माँ पे जानलेवा हुमला किया था और उनके सारे ज़ेवर भी मेरे पास है!" करन ने कहा।

"सबूत? है न हमारे पास सबूत! आपकी खुदकी माँ! और ये आपकी अमेरिका से इन्डिया आने की टिकट, जिसमें जो डेट लिखी है वो डेट पढ़कर हमें ये मालूम हो गया है कि आप घटनावाली रात को ही अपनी माँ के पास, अपने घर पहँच गए थे! पुलिस को गुमराह करने के लिए आपने यह बताया कि आप पहली ही फ्लाइट पकड़कर इन्डिया आ रहे है, जब कि आप तो पहले से ही इन्डिया आ चुके थे और एक बात पुलिस को आप पर किसी भी तरह का कोई शक न हो इसके लिए आपने अपना इन्टरनेशनल मोबाइल नंबर भी एक्टिव रखा था। हमने सब पता करवा लिया है।" इन्सपेक्टरने कहा।

"माँ….! तो माँने सबकुछ बता दिया!" करन के मुँह से निकल गया।

"अब हमें सब सच-सच बता दो कि उस रात को हुआ क्या था? वरना हमारे पास सच उगलवाने के और भी बहुत तरीके है।" इन्सपेक्टर ने करन को डराते हुए कहा।

करन थोड़ा पहले से ही डरा हुआ तो था ही, इन्सपेक्टर की ऐसी बात सुनकर और ज्यादा डर गया। क्योंकि वो कोई क्रीमीनल तो था नहीं इसलिए पुलिस की बातों से डर गया और कहा, "मैं आपको सब सच-सच बता रहा हूँ कि उस रात को हुआ क्या था?"

उस देर रात मैं माँ को मिलने आया था। माँ मुझे इस तरह अचानक देख बहुत ही खुश हुई थी। घर मैं अंदर जाते ही मेरी नज़र टेबल पर पड़े हुए ज़ेवर पर पड़ी। इतने सारे ज़ेवर देख कर मैं हैरान रह गया था पर वे तिजोरी में क्यों नहीं और बाहर ऐसे टेबल पर क्यों पड़े थे? ये बात मेरी समज में आ रही थी, इसलिए मैंने माँ को उसके बारे में पूछा, तब माँ ने मुझे वो तुषार और उसकी बीवी चित्रा के बारे में सब बताया, मैं ये सुनकर हैरान था कि माँ कैसे किसी पे इतना भरोसा रख सकती है! इस बात को लेकर मेरी माँ के साथ बहुत बहस हुई। हमारे बीच झगड़ा भी हुआ।"

"झगड़ा होने की वजह?"

"मैं माँ को ये मकान जो उनके नाम पे है, उसे मेरे नाम पर करवाने के लिए ज़ोर देकर कह रहा था और वो मना कर रही थी।"

"उनको मारने की वजह?"

"बार - बार उन्हें समझाने पर भी वो मेरी बात सुनने को तैयार ही नहीं थी। वो बार - बार मुझे मेरी गलतियाँ बताकर मेरा गुस्सा बढ़ाती ही जा रही थी और गुस्से में मैं घर का सामान उठा - उठाकर फेंकने लगा था तब माँ मुझे रोकने के लिए मेरे हाथ पकड़ने आ रही थी तब मेरे हाथ में पकड़ा हुआ गमला उनके सिर पर लग गया था।"

"उनको तात्कालिक हॉस्पिटल ले जाने की बजाय तुम वहाँ से भाग गए?" इन्सपेक्टर ने उसकी बात को काटते हुए कहा।

"मुझे लगा कि मेरे हाथों से माँ का खून हो गया है और इसलिए मैं डर के मारे उधर रखे वो ज़ेवर ले कर वहाँ से भाग गया था।"

"ज़ेवर ले कर क्यों भागे थे?"

"क्योंकि मैं चाहता था कि वो ज़ेवर पुलिस के हाथ न लगे और तुषार और चित्रा फंस जाए। "

"और तुम आसानी से बच जाओ!"

"यकीन मानिए मेरा, मेरी माँ को मारने का कोई इरादा नहीं था। पर उस रात मेरा गुस्सा मेरे काबू में ही नहीं रहा था।" करन रोते हुए बोला।

"आपको इस बात का एहसास है कि आप के गुस्से की वजह से आपकी माँ की जान भी जा सकती थी!" इन्सपेक्टर ने क्रोधित होते हुए करन को कहा।

करन की बात सुनकर इन्सपेक्टर अस्पताल गौरी मौसी के पास पहुँचे और उन्हें करन की कही हुई सारी बातें सुनाई। इन्सपेक्टर की बात सुनकर गौरी मौसी पहले तो बहुत ही रोने लगी और बाद में उन्होंने भी वही कहा जो करन ने बताया था। गौरी मौसी के दिए हुए बयान पर पुलिस ने करन को गिरफ्तार नहीं किया और कडक शब्दों में चेतावनी दे कर उसे छोड़ दिया।

उस रात करन ने संयोग से गौरी मौसी को नहीं मारा था पर जान - बूझकर उसने उन पर जानलेवा हमला किया था, पर गौरी मौसी ने ये सच इन्सपेक्टर को नहीं बताया था क्योंकि वो एक माँ थी और एक माँ होने के नाते वो नहीं चाहती थी कि उनके एक लौते बेटे को हवालात की सजा हो! इसलिए उन्होंने सच को छिपाया था। उन्होंने अपने दिल पर पत्थर रख के करन को कभी भी अपना मुँह न दिखाने की सजा पहले ही सुना दी थी, इसलिए ही करन उन्हें मिले बिना ही अमेरिका वापस चला गया था।

गौरी मौसी के लिए आसान नहीं था यूं अपने बेटे से रिश्ता तोड़ देना पर उनका भरोसा अपने बेटे से उठ गया था। और जिन रिश्तों में भरोसा नहीं रहता है वो रिश्ता सिर्फ नाम का ही रह जाता है! वैसे रिश्ते पीड़ादायक बन जाते है।

उनके मन की पीड़ा भैरवी भांप गई थी। वो बार - बार मौसी को पूछती रही पर मौसी ने उसे कुछ नहीं बताया, मौसीने उसे अपने मन की बात नहीं बताई क्योंकि अब किसी भी प्रकार के इन्सानी रिश्तों पर उनका भरोसा नहीं रहा था।

अस्पताल से वापस घर आने के बाद गौरी मौसी दिन - रात बस अब अपने आप को प्रभु - भक्ति में लीन रखने लगी थी। नाहीं वो अब किसीसे ज़यादा बात कर रही थी और नाहीं किसीकी बात सुनने में उनको कोई रुचि रही थी। उन्होंने अपने मुँह पे सदा के लिए राम नाम बसा लिया था।

 

( समाप्त )

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