स्मृतिबद्ध Deepak sharma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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स्मृतिबद्ध

आपरेशन थिएटर में सबसे पहले मैं दाखिल होती हूं।

डाक्टरों में।

’’रेडी सिस्टर?’’ ड्रिप वाली नर्स से मैं पूछती हूं।

’’येस डाक्टर, ’’पैन्टोथौल की ड्रिप की दिशा में वह हाथ बढ़ाती है। ड्रिप की नली पेशंट की बांह से सम्बद्ध करने की ज़िम्मेदारी उसकी है और पेशंट को पूरी तरह से आपरेशन के लिए बेहोश करने और बेहोश रखे रहने का ज़िम्मा मेरा।

आक्सीजन और ईथर के सम्मिश्रण वाले अपने यन्त्र के विभिन्न निशान मैं जांचती हूं और पेशंट की ओर मुड़ लेती हूं, ’’नन्दिता जोशी?’’

’’येस, डाक्टर,’’ पेशंट ने एक शान्त भाव ओढ़ रखा है, जिसे से जोड़ कर देखती हूं इस वर्ष मैं पैंतीस हूं रही हूं और मेरे युवा-काल की उतावली अभी भी मेरे साथ-साथ चलती है।

’’जोशी हाउस?’’ मैं हल्की सीटी बजाती हूं, ’’आपका बंगला मेरे इस नर्सिंग होम के रास्ते में पड़ता है और आपके लान की मैं घोर प्रशंसक हूं। खूब खूबसूरत है और खूब बड़ा भी.....’’

बेहोश करते समय अपने पेशंटस को बातों में उलझाए रखना मैं ज़रूरी मानती हूं।

उन्हें उनके चिन्ता-भार से मुक्त करने निमित्त।

’’लान क्या?’’ ड्रिप वाली नर्स जोड़ती है, ’’अन्दर बंगला भी खूब बड़ा है। मैडम को इन्जेक्शन देने मैं वहां जाती रही हूं। डाक्टर सेन के भेजने पर।’’

डाक्टर सेन हृदयरोग के इस विशिष्ट नसिंग होम के स्वामी हैं और शहर के सब से बड़े सर्जन।

’’आप बहुत भाग्यशालिनी हैं, मैंम,’’ मैं फिर हल्की सीटी बजाती हूं,’’ पति, बड़े व्यवसायी। भरा-पूरा परिवार। बेटे, बहुएं, पोते-पातियां। और सभी आप को बहुत मानते भी हैं। देखिए, सभी यहां जमा हैं और सभी को आपकी बहुत चिन्ता है....’’

पहिए वाली कुर्सी से जब नन्दिता जोशी अपने कमरे से आपरेशन थिएटर में लायी जा रही थीं तो उनके पति ने, दोनों बेटों ने, दोनों बहुएं ने, तीनों पोते-पोतियों ने उन्हें बारी-बारी से अपने-अपने अंक लगाया था और ’आए लव यू’ बोला था।

एक वृद्धा को छोड़ कर, जिस ने प्रार्थना की मुद्रा में अपने हाथ जुड़े के जोड़े रखे थे।

’’जानती हूं,’’ नन्दिता जोशी मुस्करायी है।

’’सभी आपको बहुत प्यार करते हैं,’’ मैं उस का कंधा थपथपाती हूं, ’’और इस का श्रेय आप को जाता है। प्यार तो कमाने वाली चीज़ है, खरीदने वाली नहीं...’’

’’बहुत अच्छा सोचती हैं आप,’’ नन्दिता जोशी, ’’लेकिन कभी कभी....’’

उस की आवाज़ दूरी ग्रहण कर रही है।

’’कभी कभी क्या?’’ मैं उत्सुक हो आयी हूं। अपने हाथ रोक लिए हैं मैं ने।

’’सुहास...सुहास....., ’’नन्दिता जोशी बुदबुदाती है।

’’आपको सुहास दिखाई दे रहे हैं?’’ उसकी मूर्च्छावस्था का चरण मैं आंकना चाहती हूं ’’कहां?’’

’’रेलवे प्लेटफ़ार्म पर.....’’

’’वहां क्या कर रहे हैं?’’

’’मेरा इन्तज़ार।’’

’’क्यों? आप के साथ उन्हें जाना था कहीं?’’

’’जाना था मगर आलमारी खुली नहीं। मां ने चाभियां छुपा दी थीं। बहुत खोजा था मैं ने। मां का बटुआ। मां का बक्सा। बाबू जी के कमरे मेें गयी थी। उन की मेज़ का दराज, सब में खोजा था। लेकिन हाथ खाली ही रह गया था.....’’

’’फिर आप रेलवे प्लेटफ़ार्म पर गयी ही नहीं?’’

’’गयी थी....गयी थी.....’’

’’सुहास मिले थे?’’

’’हां । मिले और देखते ही पूछे, सामान कहां है?’’

’’कहां जाना था आपको?’’ मैं उत्सुक हो आयी हूं। बेहोशी में जाते समय पेशंट कई बार अपने दिल की डिबिया खोल दिया करते हैं, ’’अकेली? सुहास के साथ?’’

’’हाथ में मैं कुछ न ले गयी थी। बोली थी, मेरा कुल सामान मेरा कलेजा है। वह लेती आयी हूं.....’’

’’और सुहास सामान लाया था क्या?’’ मैं पूछती हूं।

’’खाली हाथ वह भी था और मैं भी,’’ उसकी आवाज़ और दूरी ग्रहण कर रही है।

’’गाड़ी नहीं पकड़ी फिर आप दोनों ने?’’

’’नहीं,’’ नन्दिता जोशी की आवाज़ लोप हो जाती है.......

उसकी बेसुधी अब सम्पूरित है। मेरे संकेत पर एक नर्स डाक्टर सेन को उनकी टीम के साथ बुला लाती है। बाएपास की प्रक्रिया शुरू होती है।

आगामी पांच घंटे हम नन्दिता जोशी के शल्योपचार में बिताते हैं। सम्पूर्ण एकाग्रता तथा सतर्कता के साथ। डा0 सेन सर्वप्रथम उसकी छाती में एक चीरा देकर उसके सर्कुलेटरी सिस्टम, रक्त-परिवाही तन्त्र, को उस हार्ट-लंग मशीन से सम्बद्ध करते हैं जो उसके फेफड़ों में आक्सीजन और हृदय में रक्त का संचार करने वाली है। फिर एक शीत घोल उसके दिल में पम्प करते हैं जो उसके हृदय की गति को रोकने वाला है। फिर उसकी जांघ में एक चीरा दे कर उसकी एक शिरा अलग करते हैं। शिरा काा एक सिरा एर्योटा नाम की शरीर की सब से बड़ी धमनी से जोड़ते हैं और शिरा का दूसरा सिरा उस बिगड़ी हुई धमनी के ऐसे अंश से जा जोड़ते हैं जो अवरोध कर रहे उसके स्थल से बाहर स्थित है, ताकि रक्त संचार को अवरूद्ध कर रहा उस बिगड़ी धमनी का वह भाग बाएपास किया जा सके। ग्राफ़टिड धमनियों की सिलाई पांचवे घंटे के बीतते-बीतते समापन तक आ पहुंचती है।

अब नन्दिता जोशी के दिल को गरमाने-तपनाने की बारी आयी है जिससे उसका हृदय अपनी गति, अपनी धड़कन पुनः आरम्भ कर सके।

किन्तु खेद, खेद, खेद....

नन्दिता जोशी में प्राण फूंकने की तीनों सर्जनों की चेष्टाएं निष्फल रहती हैं और उसकी मृत्यु की घोषणा अब अनिवार्य हो गयी है।

’’जोशी परिवार को बुला लेते हैं,’’ डा0 सेन मेरी दिशा में देखते हैं,’’ मेरी समझ में वे सभ्य लोग हैं, और इस समाचार को ठंडे दिमाग से लेंगे। ज़्यादा हाय-हाय नहीं मचाएंगे, न ही कोई बखेड़ा खड़ा करेंगे...’’

’’येस सर,’’ मैं कहती हूं और अपने कदम लाउंज की ओर बढ़ा देती हूं।

दूर ही से वे मुझेे दिखाई दे रहे हैं। वृद्धा अभी भी प्रार्थना की मुद्रा लिए है। दोनों बहुएं अपनी-अपनी थरमस समेट रही है। परिवारजन के लिए थरमस में से मठा शायद अभी-अभी उंडेला गया है। वृद्धा को छोड़ कर सभी के हाथ में शीशे के गिलास हैं और सभी गिलास भरे हुए हैं।

अपने को तत्काल प्रकट करना मुझे उचित नहीं लगता है और मैं अपने कदम रोक लेती हूं।

किन्तु एक ओर बैठी वृद्धा मुझे देख ही लेती हैं और बिना दूसरों को कुछ कहे-बताए मेरे पास पहुंच लेती हैं।

’’आपरेशन ठीक हो गया?’’ उसके स्वर में बहुत उतावली है।

’’अभी चल रहा है,’’ दुखद समाचार टाल जाने की मंशा से मैं बात बदल देती हूं और फिर सुहास के प्रसंग को ले कर मेरे भीतर तीन जिज्ञासा भी है, ’’मगर यह बताइए आप नन्दिता जी की मां हैं या सास.....’’

’’मां हूं...’’

’’सुहास कौन था? नन्दिता जी उसी का नाम पुकारती रही थीं जिस समय उन्हें अचेतावस्था में लाया जा रहा था.....’’

’’धीरे बोलो, बिटिया,’’ वृद्धा कांपने लगी है, ’’उसे इधर कोई नहीं जानता। दोनों साथ पढ़ते थे। साथ में कभी-कभार थिएटर और टी.वी. भी किए थे। मगर फ़िल्म करने के लोभ में वह मुम्बई के लिए निकल गया और इसे हम ने यहां ब्याह दिया। सब उसे भूल भी गए थे कि अचानक उसकी आत्महत्या की खबर टी.वी. पर क्या दिखाई गयी िकइस का दिल जो बैठा तो बैठता चला गया.....’’

’’कैसी हैं मां?’’ जभी नन्दिता जोशी का एक बेटा हमारी ओर चला आया है।

’’मैं आप लोग ही के पास भेजी गयी हूं। डा0सेन उधर आपरेशन थिएटर में बुला रहे हैं,’’ मैं अपने आप को तुरन्त सम्भाल ली हूं।

वृद्धा के कथन से उत्पन्न हुई अपनी नसों की झनझनाहट के बावजूद।

’’कोई ख़ास बात है क्या?’’ बेटा अधीर हो आया है।

’’डा0सेन मुझ से बेहतर जानते हैं। वह बताएंगे....बताने को मेरे पास कुछ नहीं है.....’’ मैं कहती हूं और आपरेशन थिएटर की ओर बढ़ लेती हूं।

’’आप यहीं रूकिए, आंटी जी,’’ नन्दिता जोशी का बेटा वृद्धा को अपने साथ आते देख कर बोल पड़ता है, ’’हमीं अन्दर जाएंगे......’’