काॅलेज टाईम Naveen RG द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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काॅलेज टाईम

12वी कक्षा कि परीक्षा थी। और परीक्षा केंद्र अलग काॅलेज में लगा जहां मैं किसी को जानता नहीं था। परीक्षा का पहला दिन था तो मैं समय से पहले ही अपनी मेज़ पर जाकर बैठ गया था और आसपास बैठे अन्य विद्यार्थियों को देख रहा था। तो थोड़ी देर बाद ही एक साधारण सी दिखने वाली लड़की मेरे सामने वाली मेज़ पर आकर बैठ गई।
कुछ देर तक तो मैं उसके रंग रूप को निहारने लगा और फिर जैसे ही परीक्षा आरंभ हुई तो मैं उस अनजान लड़की से उसका पेपर दिखाने की जिद करने लगा। वैसे तो मैंने अपनी तैयारी पूरी कर ली थी पर उससे मजाक में छेड़ने लगा।

मैंने अपनी प्रश्न पत्रीका के सारे उत्तर उन 20-22 पन्नो में लिख लिये थे लेकिन वह लड़की सप्लिमेंट पर सप्लिमेंट लिए ही जा रही थी लिए ही जा रही थी। शुरुआत में उसे देखकर लगा था कि उसे कुछ भी नहीं आता होगा पर पुरी क्लास में सबसे ज्यादा सप्लिमेंट उसी ने लिए थे।
उसके बालों का रंग हल्का लाल था तो मैं उसे उसके बालों के रंग को लेकर उसे मजाक करने लगा कि तुम्हारे बाल ऐसे क्यों है, बालों को तेल नहीं लगाते क्या, मुझे तुम्हारा घर पता है नाम पता है, पापा को भी जानता हूं। तो वह हर बार मुझे गुस्से में घूर कर देखती और अपने परीक्षा देने में व्यस्त हो जाती।

और जब परीक्षा खत्म होने के बाद उसनेे सीधा और सरल भाषा मे कहा ज्यादा नाटक मत करो नहीं तो अपने पापा को बताउंगी, तो मैंने भी वहां से कन्नी काटना हि उचित समझा।

अगले दिन मेरा रूम बदल गया था लेकिन देखता तो क्या फिर वही लड़की वहीं रुम में थी, लेकिन इस बार मैं उसके पीछे बैठ गया। क्यों की आज वह मुझसे पहले ही पहुंच चुकी थी। अब तक ना मैं उसे जानता था और ना ही वो मेरे बारे में कुछ जानती थी लेकिन परीक्षा शुरू होने के थोड़ी देर बाद जैसे ही मैंने उसका नाम लिया तो वह चौंक गई । वह बार बार मुझे गुस्से में घूर रही थी मानो कल तक तो पप्पा से पिटवा के हि मानेगी। उसके रौद्र रूप को देखकर आज मैं खुद ही शांत हो गया लेकिन जैसे ही परीक्षा खत्म हुई तो मुझे गुस्से में पुछने लगी कि तुमको मेरा नाम कैसे पता है?? मैंने फिर उसका नाम लिया और इस बार उसके पापा का और सरनेम भी जोड़ दिया तो वह और भी चौंक गई।
और मैंने वहां से जितनी जल्दी संभव हो निकल गया।

और फ़िर ऐसे ही परीक्षा अपने अंतिम चरण में पहुंच गई लेकिन आज मैं बाहर उसका इंतजार कर रहा था। और जब उसके पापा जब उसे लेने आए लेकिन वह भी आज शायद नहीं जाना चाहती थी।
और करीब एक साल तक हमारी कभी मुलाकात भी नहीं हो पाई। और फ़िर अचानक एक दिन नये नं से काॅल आया 'फराह है क्या?' मैं समझ गया यह वही है और आज 10साल से ज्यादा समय हो गया, हम दोनों काफी अच्छे दोस्त बन चुके हैं।