प्यार के लिए - 4 Ashish Kumar Trivedi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्यार के लिए - 4

(4)

सुज़ैन ने अपना फैसला डॉ. प्रवेश दबस ‌को सुना दिया था। डॉ. प्रवेश दबस गंभीर थे। वह कुछ सोच रहे थे। कुछ पलों के बाद उन्होंने कहा,

"सुज़ैन फैसला लेने का आपको अधिकार है। हॉस्पिटल उस फैसले को स्वीकार करेगा।"

उन्होंने सुज़ैन की तरफ देखकर कहा,

"लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते मैं कह सकता हूँ कि आपने जिस उम्मीद में यह फैसला लिया है वह पूरी नहीं होगी। आपने जिन लोगों के बारे में बताया है उनका केस चमत्कार था। पर यहाँ चमत्कार की उम्मीद नहीं है।"

"क्यों ? अगर ऐसा हुआ है तो एड्रियन के साथ भी हो सकता है।"

"सुज़ैन मैंने ही एड्रियन का केस हैंडिल किया है। मैं अच्छी तरह से उसकी स्थिति को समझ रहा हूँ। आप सिर्फ भावनात्मक रूप से फैसला ले रही हैं। जबकि इस फैसले के और भी पहलू हैं।"

"अपने पति के लिए भावनात्मक फैसला लेने में गलत क्या है ?"

"मैं आपके फैसले को गलत नहीं कह रहा हूँ। लेकिन और भी बहुत सी बातें हैं। वक्त के साथ आपको समझ में आएंगी।"

डॉ. प्रवेश दबस की बात सुज़ैन को अच्छी नहीं लगी। उसने कहा,

"आपका इशारा पैसों की तरफ है। उसकी व्यवस्था करना मेरी ज़िम्मेदारी है।"

यह कहकर वह कमरे से निकल गई।

अपने निर्णय पर पहुँचने के बाद सुज़ैन के मन में तसल्ली थी कि उसने वह किया जो एड्रियन के लिए सही था। अपने निर्णय के बारे में बताने के लिए वह ग्रेस के पास गई थी। अपने फैसले के बारे ‌में बताकर उसने कहा,

"आपने कहा था कि निर्णय लेते समय एड्रियन के बारे में सोचना। मैंने वैसा ही किया। अब मुझे तसल्ली है। लेकिन डॉ. प्रवेश दबस मेरे निर्णय पर उंगली उठा रहे हैं। शायद उन्हें पैसों की चिंता है। मुझे फर्क नहीं पड़ता है। अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं एड्रियन को घर में रखने की व्यवस्था कर लूँगी। आप मेरी मदद कर दीजिएगा।"

ग्रेस ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। सुज़ैन ने कहा,

"नो प्रॉब्लम आंटी। आपको दिक्कत हो तो मैं कोई और व्यवस्था कर लूँगी।"

"मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है। लेकिन मुझे एक बात पूछनी है। क्या तुमको लगता है कि एड्रियन इस तरह से ज़िंदा रहकर खुश होगा।"

ग्रेस का यह सवाल सुज़ैन को अजीब लगा। उसने कहा,

"क्यों नहीं आंटी ? एड्रियन के पास बहुत सारे सपने हैं। वह उन्हें पूरा करना चाहता है। इसलिए मुझे यकीन है कि वह जल्दी ही ठीक हो जाएगा।"

"सुज़ैन एड्रियन जिस स्थिति में है उसमें वह सिर्फ सांस ले रहा है। वह भी सपोर्ट सिस्टम पर। अपने आप कुछ भी नहीं कर सकता है। ऐसे में....."

कहते हुए ग्रेस रुक गईं। सुज़ैन उनका इशारा समझ गई थी। उसे बुरा लगा। उसने कहा,

"आप भी डॉ. प्रवेश दबस की तरह बात कर रही हैं। लेकिन आप लोगों के ‌लिए आसान है। पर यही फैसला अगर अपने किसी नज़दीकी के बारे ‌में लेना पड़े तो समझ में आएगा।"

यह कहकर सुज़ैन जाने के लिए खड़ी हो गई। ग्रेस ने ‌उसे रोककर कहा,

"मैंने तुम्हें अपने बेटे डैनियल के बारे में बताया ‌था। मुझे भी उसके लिए ऐसा ही फैसला लेना पड़ा था।"

सुज़ैन बैठ गई। वह पूरी बात जानना चाहती थी।‌ उसने कहा,

"आपने भी ऐसा फैसला लिया ? प्लीज़ पूरी बात बताइए।"

ग्रेस ने ‌उसे बताया कि एक्सीडेंट के बाद डॉक्टरों की बहुत कोशिश के बाद भी डैनियल ठीक नहीं हो पाया। वह उस स्थिति में चला ‌गया जहाँ वह ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहा था। ग्रेस के लिए उसे इस हालत में देखना कठिन हो रहा था। फैसला उन्हें ही लेना था। वह खुद नर्स रह चुकी थीं। समझती थीं कि डॉक्टर ने बहुत सोचकर ही यह बात कही होगी। लेकिन माँ का दिल उम्मीद पालकर बैठा था। डॉक्टर ने कई बार उन्हें समझाया था पर वह मान नहीं रही थीं।

तीन महीने बीत गए थे। डैनियल की स्थिति में कोई सुधार नहीं था। उनकी आर्थिक स्थिति भी बिगड़ रही थी। वह बड़ी मुश्किल में थीं। एक दिन वह डैनियल के पास कुर्सी पर बैठी थीं। थकावट के कारण ना जाने कब आँख लग गई। उन्हें डैनियल की आवाज़ सुनाई पड़ी। उन्हें लगा कि जैसे वह बेड पर लेटा कह रहा हो मम्मी मैं इस तरह लेटे हुए ऊब गया हूँ। मैं जीना चाहता हूँ पर इस तरह नहीं। निर्णय आपको लेना है। मुझे सुकून से जाने दीजिए। उनकी आँख खुली तो डैनियल वैसे ही निश्चल पड़ा था।

"सुज़ैन मैं नहीं कह सकती कि वह सपना था या उस तरह से डैनियल ने अपनी बात मुझ तक पहुंँचाई थी। पर उसके बाद मैं उसके बारे में सोचने लगी। डैनियल भी ज़िंदादिल लड़का था। कभी बेकार नहीं बैठता था। कुछ ना कुछ करता रहता था। दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता था। उस घटना के बाद मैं बहुत दिनों तक सोचती रही। अंत में अपने दिल को मज़बूत करके मैंने डैनियल के लिए फैसला लिया। उसका सपोर्ट सिस्टम हटा दिया गया। धीरे धीरे उसने दुनिया को अलविदा कह दिया।"

ग्रेस यह बताते हुए रो रही थीं। वह उठीं और अंदर चली गईं। बाहर बैठी सुज़ैन सोच रही थी कि एड्रियन तो कभी मजबूरी में भी बिस्तर पर लेट नहीं पाता था। एकबार जब उसे तेज़ बुखार था तब भी उससे बिस्तर पर लेटा नहीं जा रहा था। सुज़ैन के डांटने पर उसने कहा कि उसे बुखार से अधिक बिस्तर पर लेटे रहना तकलीफ दे रहा है।

कुछ देर में ग्रेस लौटकर आईं। सुज़ैन ने उनसे पूछा,

"आपको पहली बार मे ही एड्रियन के बारे में पता चल गया था। तब आपने सारी बात क्यों नहीं बताई।"

"मैं चाहती थी कि तुम अपने आधार पर निर्णय लो। हाँ मैंने यह ज़रूर कहा था कि अपने निर्णय के बारे में मुझे बताना। तुमने अपने हिसाब से निर्णय लिया है। अब एकबार उसे फिर से एड्रियन की नज़र से परखना।"

सुज़ैन ने उनकी बात पर विचार करने के बाद कहा,

"ठीक है आंटी मैं सोचकर देखूँगी।"

ग्रेस ने सुज़ैन को नए सिरे से सोचने का मौका दिया था। वह यह सोचकर ग्रेस के घर से ‌चली आई कि एड्रियन के दृष्टिकोंण से भी विचार करेगी।

ग्रेस ने अपना अनुभव बताया था। फिर भी सुज़ैन के लिए निर्णय लेना आसान नहीं था। जब भी वह इस निर्णय पर पहुँचती कि एड्रियन को शांति से मुक्त होने देना चाहिए, उसके मन में आता कि यदि एड्रियन कोमा में जाने की जगह पैरालाइज्ड हो जाता तब भी तो बेड पर होता। तब वह उसकी सेवा करती। उसके ठीक होने का इंतज़ार करती।‌ यह तर्क उसने डॉ. प्रवेश दबस ‌को ‌भी दिया था। उन्होंने समझाया कि दोनों स्थितियों में फर्क है। अगर एड्रियन पैरालाइज्ड हो जाता तब भी उसके ठीक होने की उम्मीद होती। यहाँ उम्मीद नहीं है।

एड्रियन को हॉस्पिटल में भर्ती हुए डेढ़ महीना हो गया था। सुज़ैन दुविधा में थी। लेकिन अब उसके लिए यह स्थिति कठिन हो रही थी। उसकी छुट्टियां ‌खत्म हो गई थीं। उसे ऑफिस भी जाना था। नौकरी छोड़ नहीं सकती थी। कठिनाई हो रही थी फिर भी वह जैसे तैसे काम चला रही थी।

रोज़ ऑफिस से वह सीधे हॉस्पिटल पहुँच जाती थी। वहाँ कुछ देर एड्रियन के पास गुज़ारती थी। दिन पर दिन एड्रियन की हालत खराब हो रही थी। उस हालत में उसे देखना सुज़ैन के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था। वह ईश्वर से प्रार्थना करती थी कि अब वही कोई निर्णय लें। या तो एड्रियन को ठीक कर दें या फिर उसे खुद ही अपने पास बुला लें।

कुछ देर पहले ही वह ऑफिस से हॉस्पिटल आई थी। आज वह बहुत अधिक परेशान थी। अपनी मानसिक स्थिति के कारण ऑफिस के काम पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रही थी। कोई ना कोई गलती कर देती थी। आज बॉस ने केबिन में बुलाकर चेतावनी दी थी कि या तो काम में मन लगाए नहीं तो रिज़ाइन कर दे। अपने करियर में पहली बार उसने बॉस की डांट खाई थी।

अब पैसों में की समस्या भी होने लगी थी। सुज़ैन को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे मैनेज करेगी। उसने बेड पर लेटे हुए एड्रियन से कहा,

"एड्रियन प्लीज़ अब होश में आओ। दिन पर दिन मेरे लिए चीज़ें मुश्किल हो रही हैं। मेरी मदद करने वाला कोई नहीं है। ऐसा कोई नहीं है जो दो बोल बोलकर मन को तसल्ली दे। मुझे तुम्हारी ज़रूरत है।"

वह रो रही थी। तभी नर्स ने कहा,

"मिसेज़ माइकल कोई ग्रेस वेटिंग लॉन्ज में आपका इंतज़ार कर रही हैं।"

सुज़ैन ने अपने आपको संभाला। पर्स से फेस वाइप निकाल कर चेहरा पोंछा। चलते हुए ‌एड्रियन से बोली,

"जा रही हूँ। कल संडे है। चर्च होते हुए सुबह तुम्हारे पास आऊँगी।"

वेटिंग लॉन्ज में पहुँच कर सुज़ैन ग्रेस से मिली। ग्रेस ने उससे कहा कि दोनों हॉस्पिटल के कैफेटेरिया में बैठकर बातें करते हैं। दोनों कैफेटेरिया में जाकर बैठ गईं। ग्रेस ने कहा,

"अभी तक तुम फैसले पर नहीं पहुँच पाई।"

"आसान नहीं है आंटी।"

"मैंने कहा था कि एड्रियन के दृष्टिकोण से सोचो।"

"उस हिसाब से भी सोचा। लगता है कि जिस एड्रियन ने बचपन से कष्ट सहकर भी जिंदादिली बनाए रखी। मैं कैसे मान लूँ कि वह जीना नहीं चाहता होगा। माना कि वह कुछ कह नहीं पा रहा है। पर जितना मैंने उसे समझा है वह भरपूर ज़िंदगी जीना चाहता था।"

"यह भी हो सकता है कि वह इस तरह जीना ना चाहता हो। चाहता हो कि तुम उसे शांति से जाने में मदद करो।"

"आंटी हर कोई अपने तरीके से मायने निकाल सकता है। फिलहाल मैं उस चीज़ के लिए तैयार नहीं हूँ।"

"ठीक है सुज़ैन जब तक तुम तैयार ना हो कोई फैसला मत करो। मैं तुम्हारे बारे में चिंतित थी इसलिए मिलने आई थी। कभी कभी तुम भी घर आ जाया करो।"

कुछ देर तक ग्रेस सुज़ैन से बात करती रहीं‌। सुज़ैन को उनसे बात करके अच्छा लगा।