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मेरे अल्फ़ाज़


(1) दिल में तुम्हारे भारत माता
लहु में हिंदोस्ता हो
धर्म के नाम पर ना लड़ाई
जाती के नाम पर ना पिटाई हो
नल से बहनें वाला सामान्य पानी भी तुम्हारे लिए गंगा हो

हर घर तिरंगा हो
हर घर तिरंगा हो🇮🇳


(2)
जिसे देखकर मेरी आंखें पलकें मीचाना भूल जाए
वो नजर हो तुम

जिसे सुनकर
धक..धक..धक..धक... मेरे दिल कि धड़कन
सुनाई देने लगे मुझे... वो आवाज़ हो तुम

जिसे लिखकर.. वाहवाही कि मुझपे
बरसात हो जाए.. वो ग़ज़ल हो तुम


(3)
कि चल पड़े है अब उन रास्तों पे
जहां तेरे कदमों के निशान ना मिले
तूं क्या, तेरे जैसा कोई और ना मिले

तूं यादों में तो आए
पण मेरी आदत ना बन पाए

तूं ख्वाबों में तो आए
पण तुझे हकीकतों में हम ढूंढना ना चाहे

तूं मेरे होंठों कि हंसी में तो नजर आए
मगर मेरे आंसूओं कि वजह ना बन पाए
कि चल पड़े है अब उन रास्तों पे
जहां तेरे कदमों के निशान ना मिले


(4)
कहीं कोई हिम्मत जुटा रहा है
कहीं कोई टूट कर बिखरा पड़ा है

कहीं झोपड़ी का अंधेरा गम बयान कर रहा है
कहीं महल का उजाला दर्द छुपा रहा है

कहीं कोई अस्पताल में जीने कि चाहत लिए पड़ा है
कहीं कोई घर में बैठा मरने के तरीके ढूंढ रहा है

तुम अकेले ही थोड़ी झेल रहे हो
आखिर हम भी तो इंसान है
हमारे अंदर भी बहुत कुछ चल रहा है


(5)
तेरी समझ से परे हूं
तुने जो समझ रखा है
मैं वो नहीं हूं
जो लिखते लिखते खत्म हो जाऊं मैं वो कलम नहीं
जो तेरे नजर अंदाज करने पे मर जाऊं मैं वो जान नहीं
जो तेरे भाव देने पे कुत्ता बन जाऊं मैं वो इंसान नहीं
जो तेरी याद में बिखर जाऊं
मैं वो पत्ता नहीं
जो एक बार पढ़ ले और समझ में आ जाऊं मैं वो पन्ना नहीं
जो तेरे छोड़ जाने पे टुट जाऊं मैं वो शीशा नहीं
जो तेरी आंखों के समंदर में डूब जाऊं मैं वो नदी नहीं
जो तेरा होकर खुद को भूल जाऊं मैं वो कमजोर नहीं
जो तेरी बनाईं हदों में रहुं
मैं वो सरहद नहीं
जो तेरे पीछे हटते कदमों को ना समझे, मैं वो ना समझ नहीं
जो तेरे मना करने पे तेरे करीब आऊं, मैं वो बेसब्र नहीं
जो तेरे दिये जख्मों को भूल जाऊं मैं वो लापरवाह नहीं
जो तेरी बेवफ़ाई पे गाली बकुं में वो किरदार नहीं
तेरी समझ से परे हूं तुने जो समझ रखा है मैं वो नहीं




(6)
किसी से मुलाकात करो तो आईना बन कर करना, कि वो तुम्हारी मुलाकात से खुद को सुंदर मेहसूस करे, ना कि टुटा हुआ कांच का वो टुकड़ा जो सामने वाले को सिर्फ और सिर्फ छूबन दे जाए

(7)
अब किसी से ना कोई मसलें है
अब मेरे खुद से ही गीले खुद से ही शिकवे
और खुद से ही सुलेह है


(8)

तुम मंदिर जलावोगे, मस्जिद तोड़ोगे
मगर गीता और कुरान की
पवित्रता कैसे मिटा पाओगे

गीता और कुरान कितने पवित्र
शब्द है
आपकी जुबान से निकले
तो ऐसा लगता है
मानों जैसे जुबान ने
गंगा नहा लिया हो

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