मुझे कोई अफ़सोस नहीं जॉन हेम्ब्रम द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मुझे कोई अफ़सोस नहीं

एक दिन मुझे मेरा एक दोस्त आकर कहता है "ये तू क्या फालतू की चीजें कर रहा है?"
"ये तुम क्या कह रहे हो,तुम्हे कोई चीज़ नही पसंद इसका ये मतलब तो नही की वो फालतू है" मेने उसे गुस्से से कहा।
"ऐसी चीजे तुम्हे ही पसंद होगी भला किसी को लिखना कैसे पसंद हो सकता है"
"क्यों नही हो सकता? अगर मैं इसी आधार पर तुम्हे कहूं की किसी को इतना खाना कैसे पसंद हो सकता है" मेने उसे जवाब में कहा।
"तुम क्या कहना चाहते हो? की मै मोटा हूं?"
"कहना क्या है ये तो साफ दिख रहा है"
उसने गुस्से में आकर मेरा कॉलर पकड़ लिया,पर मैं घबराया नही मेने उसे शांति से कहा "जब शब्दो से काम न बने तो हाथों का इस्तेमाल करना यही तो तुम्हारी सबसे बड़ी कमज़ोरी है"
उसने गुस्से में मुझसे कहा "तुम अपनी हद पार कर रहे हो"
"जब तुमने ऐसा करने से पहले नही सोचा तो अब तुम दूसरों को क्या बता रहे हो?"
"तुम्हारी आदत ही है तुम दूसरों को दुख दो उनका मज़ाक उड़ाओ तो सब ठीक और जब तुम्हे जरा सा कुछ क्या कह दे तुम तो आग बबूला हो जाते हो"
मेने उसे धक्का देकर खुद को उससे मुक्त किया और उससे कहा "तुम्हारे जैसा इंसान मेने आज तक नही देखा अच्छा यही होगा कि तुम यहां से चलते बनो,क्योंकि अब मैं तुम्हारा दोस्त नही हूं वैसे मैं तुम्हारा दोस्त था ही कब दोस्तों जैसा तो कभी व्यवहार ही नही किया तुमने तुम्हारे लिए तो मैं बस एक नौकर था नही जरूरत मुझे तुम्हारी"
उसने गुस्से में मुझे एक पंच मारा मेने भी पलटकर उसे दो पंच मारे दो मुक्के पड़ते ही वो रोने लगा और मैं उसे मारने ही वाला था की वो उठकर वहां से भाग गया।
मुझे उससे इसकी बिलकुल उम्मीद नही था जो इंसान इतना हट्टा कट्टा हो लेकिन उसकी मानसिकता रत्ती भर भी न हो ऐसे में हैरानी तो होती ही ही।
उस दिन मुझे खुद पर बड़ा नाज़ हुआ कई सालों बाद मेने खुद के बारे में सोचकर उससे पीछा छुड़ा लिया।
मुझे कोई अफ़सोस नहीं है की मेने उसे मारा या उसे बुरा भला कहा मुझे जरा भी अफसोस नहीं है।

इसकी शुरुवात कुछ ऐसे होती है।
मेने नए स्कूल में एडमिशन लिया था और उस वक्त में काफी अंतर्मुखी भी था और थोड़ा शर्मिला भी मुझे लोगो से बात करना और नए दोस्त बनाने में बड़ी मुश्किल होती थी पर स्कूल के पहले दिन मुझे एक लड़का मिला जिसने मुझसे दोस्ती करने में दिलचस्बी दिखाई थी तो मेने भी उससे दोस्ती कर ली थी पर उसके साथ मुझे कभी ऐसा लगा ही नहीं की हम दोस्त है वो मुझसे अपने चेले की तरह पेश आता था मुझसे काम करता था और खुद कुछ नही करता था। मैं दोस्त समझकर उसके काम कर दिया करता था,उसका एक और दोस्त भी था वो उससे भी वैसे ही पेश आता था। और अक्सर दोनो मिलकर मेरा काफी मज़ाक भी उड़ाया करते थे पर मैं दोस्त समझकर उन्हे इग्नोर कर देता था।
उसे अपनी जीवन की कोई परवाह नहीं थी वो पैसे वाला था और अपने मोटे शरीर से सबको डरा के रखता था उसे अपनी कोई परवाह नहीं थी और वो मुझे भी वैसा ही बनाने को कोशिश करता,वो बिना बात के मुझे अपने शरीर का घमंड दिखाया करता था और बिना वजह तंग किया करता था इन सब से तंग आकर मेने उससे छुटकारा पाने का सोच लिया था और उस दिन मेने वो काम कर दिखाया।
मैं उसे बता देना चाहता था की अगर कोई मेरी इज्ज़त नहीं करेगा तो मेरी नज़रों में भी उसकी कोई इज्ज़त नहीं रहेगी, मैं उसे बता देना चाहता था की मैं तुम्हारे उस दोस्त की तरह नही हूं जो तेरी चेले की तरह सेवा करता है अगर मेरे साथ कोई बुरा करेगा तो मैं उसका भी वही हाल करूंगा मैं उन लोगो मे से नही हूं जो बुरा करते या सहते है दोनो ही उस मामले में उतने ही भागीदारी होते है बुरा करने वाला भी उतना ही दोषी होता है और बुरा सहने वाला भी,पर मैं न तो बुरा करने वाला हूं और न ही बुरा सहने वाला।
मुझे कोई अफसोस नहीं है अपने किए का मुझे पूरा यकीन होता है की मैं जो भी करूंगा सही और अच्छा ही करूंगा और मेने जो भी किया मुझे उसका कोई अफसोस नहीं।