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कापुरुष - 1


भाग -1  एक ऐसी कहानी जिसमें आदमी पारिवारिक दबाव में आ कर दो शादी तो करता है पर खुद पर शर्मिंदा भी है  …


                                           कहानी -   कापुरुष 

 

“ अरे जवान लड़के  पर  इस तरह कोई हाथ उठाता  है क्या ?  . “    माँ सीता देवी ने अपने बड़े बेटे डॉक्टर सोनी  से कहा  .

 सोनी को अपने छोटे भाई हीरा के गाल पर जोरदार तमाचा लगाते  देख कर माँ से  कहा 


“ माँ अगर तुमने इसे बचपन में मारा होता तो आज मुझे  इस आवारा लड़के पर हाथ उठाने की जरूरत नहीं पड़ती  . “ 


“ क्या किया है इसने ? बिना पूछे  मुंबई चला गया था , यही न ? “   माँ ने फिर कहा 


“ नहीं , सिर्फ इतना ही नहीं  . इसने अपनी भाभी के झुमके चुरा कर बेच डाले और उन्हीं रुपयों से मुंबई भाग गया हीरो बनने  . इसे किसी तरह मैंने बी ए कराया  . बी ए में किसी तरह पास मार्क लाया  , इस डिग्री पर इसे कोई नौकरी नहीं  मिल रही थी  . तब फिर किसी तरह  प्राइवेट लॉ की डिग्री ली   . फिर मैंने अपने एक दोस्त सीनियर वकील के अंडर भेजा ताकि कुछ वकालत सीखे और अपने पैरों पर खड़ा हो सके  . पर इन पर  हीरो बनने का भूत सवार था  . अब तुम ही इसे समझाओ . “


“ मैं तो गया था वकील साहब के पास  . पहले ही दिन उन्होंने मुझे डाँट कर भगा दिया और कहा मैं किसी काम का नहीं  . “  हीरा ने बड़े भाई से कहा 


“ वाह , एक डाँट से तू भाग आया  . गलती करने पर क्या वो तेरी खातिरदारी करते ? इतना ही नहीं तुमने वकील साहब को कहा था कि मुझे आपकी गुलामी नहीं करनी है  . “


माँ ने कहा “ मैं सोच रही हूँ इसकी शादी कर दूँ . बहू आएगी तो  खुद जिम्मेदारी समझेगा और रास्ते पर आ जायेगा . “ 


“ बहुत खूब कहा माँ , खुद अपनी जिम्मेदारी तो उठाने लायक है नहीं और बीबी बच्चों को कहाँ से खिलायेगा ? और मैं आखिर कितने लोगों का बोझ उठाऊँगा ? मेरे बच्चे भी बड़े हो रहे हैं उन्हें बाहर पढ़ने के लिए भेजना है  . मुझसे छोटा पंजाबन से शादी कर दिल्ली में मस्ती से रहता है  . उसे हमलोगों से कोई लेना देना नहीं है  . “  डॉ. सोनी  ने कहा 


डॉ सोनी शहर में सरकारी डॉक्टर थे , साथ में कुछ प्राइवेट प्रैक्टिस भी हो जाती थी  . इसलिए वे अपनी माँ सीतादेवी के साथ साथ  दो छोटे भाईयों हीरा और मोनी  की भी जिम्मेदारी उठाने में सक्षम थे  . पिता का निधन तो दस वर्ष पहले ही हो गया था  . एक मकान के अलावा कोई पैतृक संपत्ति भी नहीं थी  . 


 चार भाईयों में डॉ सोनी  सबसे बड़ा था  . उस से छोटा मोनी भारत सरकार की नौकरी में था  . उसने दिल्ली में एक पंजाबिन लड़की से शादी कर ली थी  . मोनी शादी के बाद बस एक बार  अपने घर आया था और अपनी पत्नी से सब का परिचय गर्मजोशी से कराया था  . सीता देवी ने गैर जातीय विवाह के लिए पहले तो मोनी को बहुत डाँटा दुत्कारा  .  बाद में रिश्तेदारों और अन्य लोगों के कहने पर कि जो हुआ सो हुआ अब बहू को स्वीकार करने में ही परिवार की भलाई है  . पर इसके बाद के  कुछ वाकयों  ने रिश्ते को बहुत कमजोर कर दिया था  . हुआ यों  कि घर में सिर्फ एक ही बाथरूम था  . वह भी एक संकरी अँधेरे गलिराये के अंत में  . सुबह सुबह बहू को बाथरूम जाना था  . वह लाइटर और सिगरेट ले कर गयी  . लाइटर टोर्च का भी काम कर रहा था और सिगरेट जलाने का  भी  . बिना सिगरेट पीये उसका काम नहीं होता  . बहू के आने के ठीक बाद सीता देवी को बाथरूम जाना था  . बाथरूम से आने पर उसने बहू को डाँटना शुरू किया  . बेटे मोनी ने किसी तरह माँ को शांत कराया  . 


दूसरे दिन सीता देवी ने  बेटे की शादी की ख़ुशी में कुछ ख़ास लोगों को पार्टी दी  . उस पार्टी में पुरुषों के लिए कुछ शराब का भी इंतजाम था  . पर पंजाबिन बहू ने भी जम कर पिया बल्कि मदिरा पान करने वाली एकमात्र स्त्री वही थी  . इतना ही नहीं इसके साथ साथ उसने सिगरेट के कश भी लिए  . यह सब यहाँ आरा जैसे शहर  के लिए अपवाद था और शिष्टाचार के विपरीत था  . इसके चलते सीता देवी ने बहू को आमंत्रित मेहमानों के सामने ही काफी खरी खोटी सुनाई  . फिर मोनी ने माँ  को समझाया कि बहू का जन्म पालन पोषण सब दिल्ली में हुआ है  . वहां ऐसे मौकों  पर थोड़ा बहुत पीना बुरा नहीं मानते हैं  . सीता ने कहा “  मेरे घर में दारू बीड़ी पीने की इजाजत नहीं है , तुमलोगों को पीना है तो दिल्ली में जो करना हो करो ,  यहाँ नहीं  . “ 


अकसमात बहू भी जोर से बोल पड़ी “ मैडम , मैं बीड़ी नहीं पीती  . यहाँ की तरह खैनी और ताड़ी हमारे यहाँ नहीं पी  जाती है  . हमलोग  विलायती सिगरेट और विलायती शराब पीते हैं  . आपलोग क्या समझेंगे ? और जहाँ तक आपकी इजाजत की बात रही मैं तो आपकी चौखट पर दुबारा नहीं आनेवाली हूँ  और देखती हूँ आपका बेटा भी कैसे आता है .  “ 


  दूसरे दिन मोनी अपनी पंजाबन बीबी के साथ दिल्ली लौट गया और  उस के बाद से उसने इधर कभी रुख नहीं किया  . हाँ , कभी कोई छोटा भाई दिल्ली जाता तो वहां उसके स्वागत सत्कार  में मोनी कोई कमी नहीं करता  .


  सब  से छोटा अभी बी ए कर रहा था पर उसे पढ़ाई से कोई खास मतलब नहीं था  . वह  राजनैतिक रैलियों और मीटिंग में ज्यादा बीजी रहता था  . शहर में कोई हड़ताल या बंद आदि का आयोजन करना हो तो पार्टी वाले उसको बुला लेते थे  . डॉ सोनी  अपने दोनों छोटे भाईयों की करतूतों से परेशान रहता था  . 


कुछ दिनों के बाद सीता देवी ने डॉ सोनी से कहा “ तुम्हारे ससुर तो हज़ारीबाग में म्युनिसिपल कमिश्नर हैं  . उनसे कह कर हीरा के लिए किसी नौकरी का इंताजम कर न  . “ 


“ वे क्या कर सकते हैं ? हीरा की सरकारी नौकरी पाने की उम्र की सीमा चंद महीनों में खत्म हो रही है  . इतनी जल्दी कुछ नहीं हो पायेगा और वैसे भी मैं हर किसी के सामने अपना मुँह नहीं खोलना चाहता हूँ  . “ 


“ तुम नहीं कह सकते तो बहू से कह कर देखो या मैं ही बोलूँ बहू से  . “ 


“ बेहतर होगा तुम ही बात कर लो क्योंकि मैं बोलूँ और वे नहीं मानें तो मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा  . “ 


सीता देवी ने अपनी बड़ी बहू शीला से कहा “ बहू , आखिर देवर के लिए तुम्हारा भी कुछ फ़र्ज़ बनता है न ? “ 


“ आप ही बोलें मैं क्या कर सकती हूँ  . जब भी उसे पैसे चाहिए वह मुझसे ही मांगता है और यथासम्भव मैं उसे निराश नहीं करती हूँ  . यहाँ तक कि उसने मेरे जेवर चुरा कर बेच डाले पर मैंने कुछ नहीं कहा  . मेरी भी एक सीमा है माँ  . “ 


“ हाँ बहू , तुमने सही कहा है  .  मैं चाहती थी कि एक बार अपने पिताजी से हीरा की सिफारिश करके कोई नौकरी लगवा देती तो तुमलोगों के सर का बोझ कुछ कम होता  . हीरा की शादी करा देती और वह भी अपनी गृहस्थी में लग जाता  .  बस एक बार कह कर देखो , अगर वे कुछ कर सके तो अच्छा है  . नहीं कुछ हुआ तो हमारे  मन में संतोष होगा कि हमने प्रयास तो किया  . “ 


कुछ दिनों के बाद डॉ सोनी की पत्नी शीला ने अपने पिता से फोन कर कहा “ पापा  , मेरा देवर हमलोगों के सर पर बैठा  . अगर आपके प्रयास से हीरा को कोई नौकरी वहां मिल जाती तो इनके सर का बोझ कुछ हल्का हो जाता  . “ 


शीला  के पिता , सुरेश ने कहा “ तुमने बहुत देर कर दी , पहले क्यों नहीं कहा ? अभी कुछ ही महीनों पहले स्कूल में टीचर की भर्ती हुई थी  . फिलहाल तो सम्भव नहीं है  . अगर तुमलोग कहो तो प्राइवेट स्कूल में कह कर देखता हूँ  . पर वे लोग वेतन कम देते हैं और जितने पर सिग्नेचर कराते हैं उस से भी कम पे करते हैं  . “ 


“ ठीक है , कुछ नहीं  से कुछ तो अच्छा रहेगा  . एक बार आप कोशिश कर के देखिये  . “ 


शीला को ज्यादा दिनों तक इन्तजार नहीं करना पड़ा  . एक दिन उसके पिता ने फोन कर कहा “ एक प्राइवेट स्कूल , मॉडल स्कूल , से मैंने बात की है  . उन्होंने कहा है कि हीरा को वे टीचर की नौकरी दे सकते हैं  . फिलहाल पगार ज्यादा नहीं होगी , सात आठ हजार से ज्यादा नहीं  . “ 


“ ठीक है पापा , हीरा के लिए अच्छी  शुरुआत होगी  . मैं उसे भेज देती हूँ  “


अगले सप्ताह हीरा हज़ारीबाग जाने के लिए तैयारी कर रहा था  . डॉ सोनी ने कहा “ देखो मेरे ससुराल में तुम ज्यादा दिन नहीं रहना  . जल्द ही अपने लिए कोई कमरा ढूंढ कर शिफ्ट कर जाना  . “ 


“ जी भैया , मैं वहां दो चार दिन ही रहूँगा  . आप परेशान न हों  . “ 

 

क्रमशः

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