चौकीदार काका ! Surbhi Goli द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चौकीदार काका !

चौकीदार काका!

गीत ने फ़ाइल बंद की और घड़ी की ओर देखा, जिसे देख कर आज भी उसका मूड बिगड़ गया।

"आज फिर लेट!" उसने सिर हिलाते हुए कहा और अपना बैग उठा कर, अपने केबिन की लाइट्स ऑफ़ कर दीं।

हमेशा की तरह आज भी वो अपने ऑफिस में अकेली ही बची थी, सिर्फ कम्पनी की चौकीदारी करने वाले एक बूढ़े काका के।

जब वो कम्पनी से बाहर आयी तो चौकीदार बाहर ही खड़ा हुआ था, जो बेहद नाराजगी के साथ आज भी गीत को घूर रहा था।

गीत हमेशा उस से सॉरी बोलती थी और ये वादा करती थी कि वो कल से टाइम पर काम खत्म कर लेगी, लेकिन गीत का कल कभी नहीं आता था।

गीत ने आज भी वही बात दोहराई और आज भी बूढ़े चौकीदार ने सिर्फ गीत को घूरते हुए कम्पनी को लॉक करने के कुछ भी नहीं किया।

गीत के मन में हमेशा ये बात रहती थी कि चौकीदार कभी उसे डाँटता या फिर कुछ और कहता क्यों नहीं?

लेकिन आज उसे इसमें भी अपनी ही गलतीं समझ आयी, "शायद वो चौकीदार हैं, इसलिए वो मुझसे कुछ न कहते हो!"

सोचते हुए गीत रुकी ओर पीछे मुड़ी,

"चौकीदार काका!" उसने पुकारा।

चौकीदार आहिस्ता से उसकी ओर मुड़ा, उस बूढ़े की आंखों में अजीब सा गुस्सा नजर आता था, उसकी आंखें भी अजीब तरह की ही थीं..

चूंकि गीत अकेली थी और बूढ़े की आंखे डरावनी थीं तो जाहिर था वो थोड़ी हिचकी सवाल करने में, "वो मैं, मैं आपसे...मैं आपसे ये जानना चाहती हूं कि...आप मुझे इस हरकत के लिए डांटते या समझाते क्यों नहीं??"

बूढ़ा उसे एक पल तक घूरते हुए वहां से हाथ पीछे कर के अपनी कुर्सी की ओर बढ़ा!

गीत को इस बात की आश कम थी कि उसे उसके सवाल का जवाब मिलेगा, इसलिए उसने बूढ़े को जाते हुए देख, अपने कदम भी पार्किंग एरिया में रखी अपनी स्कूटी की तरफ बढ़ा दिये।

गेट के पास ही बूढ़े की कुर्सी और लट्ठ रखा रहता था, वो भी वहीं जा कर बैठा हुआ था।

जैसे ही गीत ने पार्किंग एरिया से अपनी स्कूटी निकाली और स्टार्ट की, बूढ़े ने उसे रोका!

गीत ने रुकने में वक्त न लगाते हुए बूढ़े की ओर मुड़ कर देखा।

बूढ़ा गीत की ओर धीरे धीरे बढ़ने लगा,

अब वो गीत के एक दम करीब था, और उसकी आँखों में देख रहा था,

"भगवान में विश्वास रखती हो???" बूढ़े ने भारी स्वर में धीरे से पूछा, वो गीत के चेहरे को अच्छी तरह से परख रहा था, शायद उसके हावभाव!

गीत ने हिम्मत जुटाते हुए "जी.." कहा।

"और शैतान में....???"

गीत ये सवाल सुन कर एक पल के लिए हैरान नजर आयी, लेकिन अगले ही पल उसके चेहरे पर मुस्कान झलकने लगी, "जी..जी बिल्कुल नहीं!" उसने एक दम नॉर्मली कहा।

अब बूढ़े के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान खिंची, "यही..यही तो वजह है मेरे खामोश होने की!" कहते हुए बूढ़ा पीछे हाथ किये हुए ही अपनी कुर्सी की ओर मुड़ गया,

"पर..पर मैं कुछ नहीं समझी!" बूढ़े को वापस अपनी कुर्सी की ओर बढ़ते देख गीत ने बेचैनी से कहा।

"नहीं समझोगी! जब तक साक्षात्कार नहीं करोगी तब तक तो बिल्कुल भी नहीं..."

"साक्षात्कार??? किसका साक्षात्कार???" गीत अब ओर भी बेचैन होने लगी थी,

बूढ़ा अपनी कुर्सी पर जा कर आराम से बैठ गया, बिल्कुल चुपचाप, उसने हाथ हिलाते हुए गीत को जाने का इशारा किया।

लेकिन गीत अब अड़ गई थी, उसने स्कूटी स्टैंड पर लगाई और बूढ़े की ओर तेजी से जा कर उसके सामने खड़ी हो गई।

"जो भी कहना चाहते हैं, साफ साफ कहिये.., मैं पहेलियां सुलझाने में बचपन से ही कमजोर हूँ।" गीत ने कहा।

"मुझे परेशान मत करो! चली जाओ यहाँ से चुपचाप..., समय देखो! निकलता जा रहा है, तुम पहले ही देर कर चुकी हो, अब और वक़्त मत गवाओ।" बूढ़ा गीत पर भड़कते हुए बोला।

"मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है लेट होने में, आप अगर सचमुच चाहते हैं कि मैं और लेट न हो जाऊं, तो प्लीज जल्दी से मुझे ये समझाइए की आप किस साक्षात्कार की बात कर रहे थे???" गीत ने तेजी से कहा।

बूढ़ा व्यंगात्मक ढंग से बिल्कुल मौन हो कर हँसा, उसने सिर हिलाते हुए कहा.."मूर्ख लड़की!"

"क्या?? आप..मुझे....?? लगता है आपकी ही मति भ्रष्ट हो गई है इस बुढापे में!" गीत चिड़ कर बोली और पैर पटकते हुए अपनी स्कूटी के पास पहुँच गई, वो बैठी और स्कूटी स्टार्ट कर के वहां से निकल गयी।

रास्ता बिल्कुल सुनसान था, इस वक़्त रात के ग्यारह बज रहे थे, गीत एक पढ़ी लिखी और मेहनती लड़की थी, जिसकी उम्र लगभग पच्चीस छब्बीस रही होगी।

उसने आज तक किसी को अपने आप को 'मूर्ख' कहने का मौका नहीं दिया था, लेकिन आज बूढ़े के मुँह से ये शब्द सुन कर वो काफी परेशान हो गई थी।

इतनी परेशान की हमेशा सोच समझ कर बात करने वाली और शांत रहने वाली गीत स्कूटी चलाते हुए अपने आप में ही बढबढाने लगी!

"अपने आपको समझते क्या हैं?? जो भी मुँह में आयेगा बोल देंगे? मैं कल ही बॉस से उनकी शिकायत करूंगी..." गीत की इस बेचैनी ने शायद उसकी आँखों पर भी पट्टी बांध कर रख दी थी।

हवा के साथ बातें करती गीत की स्कूटी कब एक शराबी से टकरा गई उसे पता भी नहीं लगा।

लेकिन जैसे ही उसकी स्कूटी लड़खड़ायी गीत का दिमाग वर्तमान में लौंट आया। वो बुरी तरह से डर गई थी, मगर उसकी ईमानदारी ने उसे वहां से भागने नहीं दिया। वो स्कूटी से उतरी और उस शराबी आदमी की ओर दौड़ी जो स्कूटी से टकरा कर सड़क पर उल्टा बिछ गया था।

उसने उसका चेहरा घुमा कर देखा तो पाया कि वो खून से सना हुआ है, उसका सिर फट चुका है, लेकिन सांसे अब भी चल रहीं हैं।

"ओ गॉड...ये..ये मैंने क्या कर दिया!" गीत के पसीने छूट गए थे, उसने तुरंत अपने बैग से फोन निकाला और एम्बुलेंस का नम्बर डायल कर दिया,

"हेलो..हेलो सर! स्टील इंडिया कम्पनी के पास एक एक्सीडेंट हुआ है। प्लीज आप लोग जल्दी आ जाइये।" गीत उस आदमी से थोड़ा दूर हट कर बात करने लगी,

लेकिन गीत को तब हैरानी हुई जब दुसरीं ओर से किसी के हँसने की आवाजें उस ने सुनी,

"आप.. आप हँस रहे हैं?? यहां इतना सिरियस एक्सीडेंट हुआ है और..??" गीत का गुस्सा पूरी तरह निकल पाता उस से पहले ही फोन की दुसरीं ओर से एक आवाज आयी -

"देखिए मैडम! जितने जल्दी हो सके आप उस जगह से निकल जाइये, आप जिस एक्सीडेंट की बात कर रहीं हैं वो आज से पांच साल पहले हो चुका है, और हां! ऐसे कॉल हमें पिछले पांच सालों से हर इक दो दिन में आते रहते हैं, उसी जगह से जिस जगह पर आप हैं।"

"लेकिन..आप ऐसा कैसे...हेलो..." कॉल कट चुकी थी।

गीत की धड़कने उसके काबू से बाहर थीं।

जब उसने पीछे मुड़ कर उस आदमी की ओर देखा, तब गीत के छक्के ये देख कर छूटे की वहां अब न तो कोई आदमी था, न ही उसका सड़क पर फैला हुआ खून!

गीत का मुँह बिल्कुल खुला हुआ था, उसके जीवन में इस तरह की घटना आज पहली बार घटी थी।

उसने देर न करते हुए अपनी स्कूटी स्टार्ट की ओर सीधा अपने घर पहुँची।

उसने दरबाजा खटखटाया, वो भूल चुकी थी कि दरवाजे के बाहर डोरबेल भी है।

किसी ने जल्दी से दरवाजे खोले।

सामने गीत के पापा थे, जिन्होंने इस वक़्त सूती कुर्ता पायजामा पहना हुआ था।

"क्या हुआ गीत! तू इतनी डरी हुई क्यों लग रही है बेटा???" गीत के पिता गीत के चेहरे को देख कर हैरानी से बोले, गीत अपने पिता के गले से लग कर फबक फबक कर रोने लगी।

गीत के पिता का घबरा जाना वाजिब था, उन्होंने उसे सोफे पर बैठाया और पानी पीने के लिए दिया।

गीत ने एक गिलास पानी एक बार में ही पी लिया।

"पापा...मुझे..मैं आज.." गीत का दिमाग बुरी तरह उलझा हुआ था, वो अब भी रो रही थी।

"काम डाउन बेटा! पहले अपने आपको रिलेक्स करो..गहरी सांसे लो.." गीत के पिता उसे समझाते हुए बोले।

जब गीत ने खुदको थोड़ा सहज महसूस किया तो उसने अपने पिता को सारी घटना सुना दी, जिसे सुन कर वे हैरान हुए।

"लेकिन बेटा ये कैसे हो सकता है?? मुझे लगता है कि शायद तुम पहले से ही ऐसा कुछ सोच रहीं थीं, और फिर अचानक वो ख्याल तुम पर इतना भारी हो गया कि...."

"नो पापा! मैं..मैं ऐसा कुछ नहीं सोच रही थी, मैं तो..मैं तो उस चौकीदार की बात से परेशान थी जो रात के वक़्त कम्पनी में ड्यूटी करता है।" गीत ने कहा।

"कौनसी बात...??" गीत के पिता ने सवाल किया।

"उसने मुझे मूर्ख कहा.." गीत ने परेशानी भरे लहजे में जवाब दिया।

"लेकिन उसने तुम्हे मूर्ख क्यों कहा??" गीत के पिता ने बैचेनी से सवाल किया।

इस सवाल का जवाब देने के लिए गीत को ऑफिस से निकलने वाली सारी बात उन्हें बतानी पड़ी।

ये बात सुन कर गीत के पिता ने सिर हिलाया और मुस्कुराए।

"पापा... आप स्माइल क्यों कर रहे हैं?? उसने मुझे बेबकूफ कहा और आप...??" गीत बोली।

"तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुआ, उसकी वजह उस चौकीदार का वो सवाल है जिसमें उसने पूछा था कि 'क्या तुम शैतान पर भी विश्वास करती हो??'" रुक कर "देखो बेटा, साइंस ने बहुत तरक्की की है, उस तरक्की में उसने मनुष्य के दिमाग का अध्ययन भी किया है, जिसमें उसने पाया कि मनुष्य के विचार ही प्रबल हो कर उसे भ्रमित कर देते हैं,

जैसा आज तुम्हारे साथ हुआ!" गीत के पिता ने उसे समझाया।

"लेकिन पापा...." गीत अभी भी सन्तुष्ट नहीं थी।

"अब बस! तुमसे मैंने कितनी बार कहा है कि टाइम पर घर आया करो, तुम्हारी वजह से मेरी नींद भी डिस्टर्ब होती है, लेकिन तुम मेरी बात कभी नहीं सुनती!

अब अगर अपने इस बूढ़े बाप की सेहत की थोड़ी भी परवाह हो तो जा कर सो जाओ और मुझे भी चैन से सोने दो, और हां! आज फिर तुमसे उम्मीद करता हूँ कि तुम कल से टाइम पर घर लौटोगी।" कहते हुये गीत के पिता अपने रूम में चले गए।

गीत ने भी अपने आपको किसी तरह समझाया और वो सोने चली गई, "शायद पापा की बात सही है, ये सब मेरे मन का भ्रम ही होगा!" कहते हुए गीत ने लेम्प बुझाया और चादर ओढ़ कर सो गई।

दुसरीं सुबह!

गीत अपने केबिन में बैठी अपने बॉस के आने का इंतजार कर रही थी, और अभी तक उसका काम में मन नहीं लग पाया था।

"आज बॉस इतना वक़्त क्यों लगा रहे हैं आने में??" गीत चिड़चिड़ाई।

पर तभी उसने ग्लास वॉल से अपने बॉस को आते देखा, वो तुरंत खड़ी हो गई,

और केबिन से निकली।

उसके बॉस जैसे ही अपने केबिन में पहुचे, गीत ने नॉक किया।

"आ जाओ..."

गीत अंदर पहुँची "हेलो! गुड मॉर्निंग सर!" गीत ने पास जाते हुए कहा।

"गीत..कोई जरुरीं बात है क्या?? तुमने तो मुझे चेयर पर बैठने का भी मौका नहीं दिया।" गीत के बॉस ने पूछा।

"आ...वो..एक्चुअली सर! बात खास नहीं है पर मैं, पर मैं थोड़ी सी परेशान हूँ.. इसलिए, वैट नहीं कर पाई!" गीत ने कहा।

"जल्दी बताओ! ऐसी कौनसी बात है, जिसने तुम्हे इतना परेशान कर दिया..." गीत के बॉस मुश्कुराते हुए बोले।

"सर मुझे नाईट शिफ्ट वाले कम्पनी के वॉचमेन की कम्प्लेन करनी है आपसे...उसने कल मुझे..." गीत आगे बोल पाती उसके पहले ही -

"एक मिनिट.. एक मिनिट...क्या कहा तुमने??" बॉस ने उलझन के साथ सवाल किया।

"मैने कहा कि मुझे नाईट शिफ्ट वाले वॉचमेन की..."

"लगता है तुम कुछ ज्यादा ही परेशान हो गीत!" हँसते हुए बॉसअपनी चेयर पर बैठ कर बोले।

"मैं कुछ समझी नहीं!" गीत ने परेशानी के साथ कहा।

"हमारी कम्पनी में नाईट शिफ्ट के लिए कोई वॉचमेन नहीं है, सीसीटीवी कैमरे ही एक मात्र सिक्योरिटी है रात के वक़्त कम्पनी की।" बॉस ने अपने शब्दों पर जोर डालते हुए कहा।

"लेकिन..ऐसा कैसे हो सकता है???" गीत का दिल धक्क सा रह गया था।

"बुरा मत मानना पर तुम्हे किसी डॉक्टर को दिखाना चाहिए गीत!" बॉस ने कहा और अपने लैपटॉप पर काम करने लगे।

"सर...." गीत के मुँह से निकला।

"सॉरी! पर मुझे अब काम करने दो।" बॉस ने कहा।

गीत को बाहर आना पड़ा।

वो दिन भर अपने काम में मन नहीं लगा पायी, तभी किसी ने नोक किया..

गीत ने हल्की आवाज में हामी भरी।

"गीत! आज मैं अपनी गर्लफ्रेंड के साथ मूवी देखने जाना चाहता हूं, लेकिन काम इतना है कि..., क्या तुम मेरी हेल्प कर सकती हो??" ये गीत के साथ काम करने वाला लड़का समीर था, जो लगभग उसका हमउम्र था, उसने रिक्वेस्ट करते हुए कहा।

लेकिन गीत अपना माथा पकड़े बैठी हुई थी।

"क्या हुआ गीत! तुम परेशान लग रही हो..." समीर ने कहा।

"हाँ, मैं सोच रही हूं कि किस डॉक्टर की अपॉइंटमेंट लूँ..." गीत ने कहा।

"डॉक्टर की अपॉइंटमेंट?? क्या हुआ तुम्हे???" समीर घबरा कर बोला।

गीत को सारी बात समीर को बतानी पड़ी।

समीर जिसे सुन कर दहशत में था।

"क्या हुआ समीर! आर यू ओके???" समीर का चेहरा देख कर गीत ने पूछा।

"गीत...वो चौकीदार आज से पांच साल पहले मर चुका है, जो तुझे दिखता है, हो न हो उस से तेरा कोई न कोई कनेक्शन जरूर है, वरना वो तुझे कभी नहीं दिखता, जैसे हम लोगो को कभी नहीं दिखा।" समीर खौफ के साथ बोला।

"कनेक्शन?? लेकिन तुम फिर उसके बारे में कैसे जानते हो??" गीत की जिज्ञासा बढ़ी।

"क्योकि मैंने उसे मरते हुए देखा था, उसके मुँह से मैंने कुछ शब्द सुने थे, वो सड़क पर ग्यारह बजे घायल पड़ा हुआ था, एकदम खून से लथपथ!" समीर बोला।

"वो शब्द क्या थे, जो तुमने सुने???"

"उसने कहा था, जिसने मुझे मौत से पहले मारा है मैं उसे मारे बिना...., बस इतना ही! इसके बाद वो मर गया। मैंने ही एम्बुलेंस को फोन किया था।

उसके बाद उस रास्ते पर अब भी वही घटना होती है, कुछ उस पर भरोसा करते हैं कुछ नहीं!

लेकिन उसकी आत्मा ने आज तक किसी को मारा नहीं, शायद वो उसी को मारेगा जिसने उसे मारा है।" समीर के माथे से पसीना चू रहा था।

"लेकिन वो मुझे ही क्यों दिखता है? पांच साल पहले तो मैं यहां कभी आयी भी नहीं थी, मुझे तो छः ही महिने हुए इस कम्पनी में काम करते हुए।"

समीर के पास भी इस सवाल का जवाब नहीं था। वो वहां से अपनी फाइल्स ले कर चला गया। उसने गीत को कम्पनी से जल्दी निकलने को कहा, लेकिन गीत अब कम्पनी छोड़ देने के बारे में ही सोचने लगी थी।

आज गीत ने शायद ही कोई काम किया था। शाम तक अच्छी तरह सोच लेने के बाद उसने कम्पनी को इस्तीफा देने का बहाना भी निकाल लिया था, जिसे बॉस को न चाहते हुए भी एक्सेप्ट करना पड़ा।

इस वक़्त रात के आठ बज रहे थे, आज गीत भी सभी के साथ ऑफिस से निकल रही थी।

अब भी उसके दिमाग से बीती रात घटी घटना और समीर की कही बातें नहीं निकल रहीं थीं।

उसने पार्किंग से अपनी स्कूटी उठाई, आज गेट पर कोई वॉचमेन नहीं था।

उसने स्कूटी स्टार्ट की और वो अपने घर की ओर, जितनी तेजी से बढ़ सकती थी बढ़ी!

रास्ता कल जितना सुनसान नहीं था, क्योकि अभी ग्यारह नहीं बजे थे।

वो थोड़ा रिलैक्स फील कर रही थी।

पर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि गीत का डर एक बार फिर जाग उठा, उसकी सांसे तेज होने लगीं।

तूफानी हवाएं धीरे धीरे गीत का रास्ता रोकने लगीं, आंखों में पड़ती उड़ती हुई धूल से गीत रास्ता ठीक से नहीं देख पा रही थी। उसने अपनी स्कूटी साइड में किसी तरह खड़ी कर ली।

तूफानी हवाओ में साथ - साथ बिजली भी अपना कहर ढाने लगी, और कुछ ही देर में हल्की बूंदाबांदी के साथ बारिश भी शुरू हो गई।

"ये सब क्या हो रहा है?? अचानक बारिश..." गीत घबराई हुई सी बड़बड़ाई।

"पापा को भी नहीं बुला सकती, आज वो अपने दोस्तों के बीच कविताएं पढ़ रहे होंगे।" तमाम ख्यालों से झूझती गीत को पता ही नहीं चला कि धीरे-धीरे वक़्त निकलता जा रहा है।

वो आधी भीग चुकी थी, पेड़ के नीचे खड़ा रहना भी राहत का अहसास नहीं था।

"कोई लिफ्ट देने वाला भी नहीं नजर आ रहा!"

तभी गीत की आंखों ने दूर से आती हुई एक बस को देखा। उसे उम्मीद थी कि वो उसकी कोई मदद जरूर करेगी। गीत फ़ौरन पेड़ से हट कर आसमान के नीचे आ गयी। जो अब भी झमाझम बरस रहा था, उसने अपने हाथ हिलाने शुरू कर दिए..

लेकिन गीत को झटका तब लगा जब बस अपनी ही स्पीड से गीत की ओर बढ़ती गई।

उसके नजदीक आते ही गीत को फौरन साइड होना पड़ा।

वो हैरान थी "अगर मैं हटती नहीं तो..ये तो मुझे कुचलता चला जाता!"

बारिश इतनी तेज थी कि गीत स्कूटी को हाथ लगाने में भी डर रही थी, बारिश में स्कूटी पर बैठकर उसे भगाने का मतलब है 'आंख कर पट्टी बांध कर भागना!"

लेकिन गीत के पास अब इसके अलावा और कोई चारा नहीं था। लगातार तीन घण्टे की घनघोर बारिश के बाद गीत ने ये जोखिम उठा लेने का फैसला लिया।

वो अपनी वाटर प्रूफ वॉच देख सकती थी। वो देख सकती थी कि ग्यारह बजने में सिर्फ दस मिनिट बाँकी हैं, ग्यारह बजने से पहले उसे वो रास्ता पार करना ही होगा, जिस रास्ते पर कल उसके साथ एक अजीब और अविश्वसनीय घटना घटी थी।

उसने किसी तरह स्कूटी स्टार्ट की ओर आगे बढ़ने लगी, वो इस बारिश से जितना लड़ सकती थी लड़ रही थी।

टाइम बस खत्म होने वाला ही था, और रास्ता बिल्कुल सामने।

"ओ गॉड..प्लीज, हेल्प मी!" उस रास्ते के करीब जाते - जाते गीत की धड़कने बेहाल हो रही थी।

लेकिन तभी...

उसने देखा कि सामने से आने वाली एक कार बेकाबू को कर एक पेड़ से जा टकराई!

उस कार का अगला भाग पूरी तरह तहस नहस हो चुका था।

ये नजारा देख कर गीत के हाथ ब्रेक पर कस गये, उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं।

"नहीं! अब मैं बिल्कुल भी इस छलावे में नहीं आऊंगी, ये जरूर उसी बुरी शक्ति का काम है। आज फिर मुझे वो भ्रमित कर रही है।" गीत ने अपने मन को पक्का किया और स्कूटी को तेजी से उस पार ले गई।

कुछ ही देर में वो अपने घर पर थी।

लेकिन जब वो घर पहुँची तो उसने देखा।

"ओह मैं तो भूल ही गई थी, पापा आज लेट आएंगे।?" उसने सोचते हुए दुसरी चाबी से लॉक खोला और अंदर चली गई।

उसने अपने कपड़े चेंज किये और बालों को टोबिल से पोछते हुए वो किचन में अपने लिए सूप बनाने चली गई, जहां वो अब भी बीती बातों को याद कर रही थी।

"आज तो मैं बाल - बाल बच गयी, और अब कल से किसी बात का डर भी नहीं रहेगा, पर एक अच्छी जॉब हाथ से निकल गयी।" उसने गरमा गरम सूप एक वॉल में डाला और सोफे पर बैठ कर पीने लगी।

"लेकिन वो एक्सीडेंट! कहीं मैंने कुछ गलत तो नहीं किया? अगर वो एक्सीडेंट सच-मुच हुआ होगा तो???" गीत का दिमाग कई सारे सवालों में उलझा हुआ था।

आखिरकार उसने चुपचाप सो जाना ही सही समझा, पर न जाने क्यों आज गीत की नींद कहाँ गायब थी?? उसे अपने आप में ही अजीब सा लग रहा था, एक मनहूसियत सी उसका जी कचोट रही थी।

■■■

सुबह का सूरज उगले ही, गीत अपना भारी सिर पकड़े हुए बिस्तर पर उठ कर बैठी।

"पता नहीं आंख कब लगी!" गीत थकी हुई आवाज में बोली।

गीत बाथरूम की ओर बढ़ ही रही थी कि तभी उसने डोरबेल की आवाज सुनी!

"दूध वाला तो दूध बकेट में रख कर चला जाता है, फिर इतनी सुबह कौन है!" सोचते हुए गीत दरवाजे की तरफ बढ़ी।

उसने एक बार फिर लगातार डोरबेल की आवाजें सुनी।

"आ गई बबा..." कहते हुए उसने जल्दी से दरवाजा खोला।

गीत निढाल सी खड़ी रह गई जब उसने दो लोगो, और पुलिस को उसके घर के बाहर एक स्ट्रेचर पर पड़ी लाश के साथ देखा।

"मिस गीत! कल रात आपके पिता और आपके पिता के एक दोस्त का स्टील इंडिया कम्पनी के पास वाले रास्ते पर कार एक्सीडेंट हुआ, जिसमें आपके पिता.....आपके पिता की मौत हो गई। उनके दोस्त बच गये हैं। वो अभी हॉस्पिटल में एडमिड हैं। अपनी तखलीफ़ के साथ भी उनने एक छोटा सा बयान हमें दिया है...

उन्होंने बताया कि आपके पिता कल कवि सम्मेलन के बाद आपको उनके दोस्त की गाड़ी में ड्राप करने आ रहे थे, उन्होंने बताया कि आपके पिता ने उन्हें आपके साथ घटी एक अजीब घटना के बारे में भी बताया था, उसी की फिक्र में वो आपको उस बारिश में लेने आये थे, उन्हें यकीन था कि आप जल्दी घर नहीं लौटीं होंगी हमेशा की तरह और आपका फोन भी नहीं लग रहा था, इसलिए उन्हें आपको ड्राप करने आना पड़ा, लेकिन...." इंस्पेक्टर ने कहते हुए अफसोस जताया।

गीत निढाल सी अपने घुटनों पर गिर गई, उसकी आँखों से बेतहाशा आंसू बहने लगे।

इस कार एक्सीडेंट के बाद फिर कभी उस रास्ते पर किसी को रात के ग्यारह बजे पांच साल पहले घटी घटना दिखाई नहीं दी।

गीत ने अपनी लेट होने की गलतीं से अपने पिता तो खो दिया था।

लेकिन ये ही शायद नियति थी, चौकीदार के अपराधी को सजा देने की।

शायद ये सच है कि हर किसी का वक़्त आता है, कभी - कभी बीस साल बाद तो कभी पांच साल बाद भी! फिर चाहे वह एक जीता जागता इंसान हो या भटकती हुई अतृप्त आत्मा!

इसलिए इंसान को गलतीं करने के बाद या तो अपनी सजा खुद ही काबुल कर लेनी चाहिए, या गलतीं न करने की आखरी हद तक कोशिश!

समाप्त।

"मैं सुरभि गोली...✍🏻"