Wo Tum the ??? - 7 - Last part books and stories free download online pdf in Hindi

वो तुम थे??? - 7 (अंतिम भाग)

विक्रम की आंखो में शिवी के लिए आंसू है और एक डर भी कि दो मिनट बाद क्या होगा?????? क्या उस गुरु मा
की बात सच निकलेगी। वो ये सब सोच ही रहा था कि तभी तेजी से डमरू की आवाज़ सुनाई देने लगती है और मंदिर की घंटी बजने लगती है। अदृश्य रूप में शिवल्या की आत्मा वहां रखे शिवलिंग में प्रवेश कर जाती है और क्षण भर में ही शिवल्या के अंदर की शिविका जाग जाती है। पर उसकी खुली आंखों को देखकर विक्रम को यही लग रहा होता है कि वो उसकी शिवी है।

वो उसके माथे से उसकी जुल्फे हटाते हुए कहता है:- मुझे पता था शिवी तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकती। और वो औरत जो खुद को गुरु मा बता रही थी उसकी एक एक बात झूठ है! मै ये भी जानता हूं।

शिवल्या विस्मय से :- शिवल्या! हा ये वही है जिससे करीब बीस वर्षों से मेरा अस्तित्व जुड़ा हुआ है। अचेतन से आज फिर चेतन बनी हूं मै।

विक्रम:- ये तुम क्या कह रही हो शिवी। अस्तित्व किसका अस्तित्व??

शिवल्या:- शिविका का अस्तित्व। मै शिवल्या नहीं शिविका हूं। मानुष यही सत्य है।

विक्रम:- तो क्या वो सच था जो उस गुरु मा ने बताया था। तो तुम शिविका हो???😲😯😯😧

शिविका:- हां वो सत्य था क्योंकि शिवल्या की नियति यही थी मानुष।

विक्रम:- पर तुम कौन होती हो उसकी किस्मत बताने वाली।।।????

शिविका:- उसकी किस्मत तो कब की मिट चुकी थी। तुम उसे जब से जानते हो उससे बहुत पहले वो मेरी आत्मा से जुड़ी थी।

विक्रम:- क्या मतलब तुम्हारा???

शिविका:- मेरा अर्थ यह है कि शिविका के पिता की वजह से शिवल्या की मा की दुर्घटना हुई थी। शिवल्या शिवालय में जन्मी थी पर मेरा सारा जीवन इसी शिवालय से जुड़ा था। मै स्वर्ण श्रोणितपुर की निवासी थी। पर एक व्यक्ति के दोष के कारण मैंने अपनी निरपराध बहन को दण्ड दिया।

और वो मुझसे छलावा करता रहा जिसकी वजह से मैंने अपने प्राण त्याग दिए। पर शिव के वीर के पद को किसी को ना सौंप पाने के कारण मेरी आत्मा मुक्ति ना पा सकी। मरने से पहले शिवल्या की मां यही इसी शिवालय में अपने पति से छिपते हुए यहां अाई और यही शिवल्या ने जन्म भी लिया पर बेजान होकर..............….....................

विक्रम:- क्या मतलब तुम्हारा???

शिविका:- पर मै उस मा के दुख को नहीं देख सकी। इसलिए मैंने शिवल्या के शरीर में प्रवेश किया। पर उसको जीवित करने के लिए!!!

विक्रम:- अगर तुमने उसे जीवित किया तो आज मारा क्यों??

शिविका:- एक काम के लिए। और वो मुझे अभी करना होगा। इससे पहले रात बीत जाए मुझे उस किले में जाना होगा!!

विक्रम:- कौन सा किला??

शिविका:- हमारा किला!! पर तुम्हे अब यहां से चले जाना चाहिए मानुष।

विक्रम:- जब तक तुम मेरे सवाल का जवाब नहीं दोगी तब तक मै यहां से नहीं जाऊंगा। बताओ क्या मेरी शिवी वापिस आएगी???

शिविका:- मै तुमको किसी भी तरह के झूठे बंधन नहीं देना चाहती पर जब तक मेरा कर्तव्य पूरा नहीं होता तब तक कुछ कहा नहीं जा सकता। ......

विक्रम:- अगर ऐसा है तो मै भी तुम्हारे साथ जाऊंगा। क्योंकि शिवल्या को वापिस लाने के लिए मै कुछ भी कर सकता हूं।

शिविका:- मानुष! तुम क्या करोगे वहां जाकर। क्या तुम्हे
शिवल्या से प्रेम है?? प्रेम माया है और उसमें फसकर व्यक्ति कुछ प्राप्त नहीं करता खोता है।

विक्रम:- नहीं। वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है। मै उसके लिए सब कुछ कर सकता हूं। और दोस्ती में इंसान को जो भी मिलता है उससे उसकी खुशी दुगनी हो जाती है। दोस्त हो तो बाते करते करते लंबा रास्ता भी छोटा लगने लगता है, बेस्वाद खाना भी मजेदार हो जाता है और जब दुखी हो तो उसके साथ होने पर गम भी आधा हो जाता है।

शिविका:- तुम मुझे एक सच्चे मित्र लगते हो मानुष। शिव की इच्छा रही तो तुम अपनी दोस्त को ठीक वैसे ही प्राप्त कर लोगे जैसे सावित्री ने सत्यवान को किया था।

विक्रम:- हां। पर इस बार सत्यवान सावित्री को पाएगा। चलिए अब आप मुझे किले तक लेे जाइए।

शिविका:- ठीक है चलिए।

दोनों मंदिर की सीढ़ी से उतरते ही है कि श्लोक वहां अा जाता है। बाहर निकलते ही फिर से विक्रम उसके वश में हो जाता है। शिविका उससे लड़ने के लिए तलवार निकालती है जो मंदिर के पास के पेड़ के पास ही एक कोने में पड़ी होती है।

शिविका:- दूर हट जाओ श्लोक। मेरी तलवार कि धार कम जरूर हो गई होगी पर मेरे साहस में कोई कमी नहीं हुई है।

श्लोक:- तुम्हे क्या लगता है शिविका तुमने अपने प्राण ऐसे ही त्यागे थे। वो मै था जिसने सुरम्य के खिलाफ तुम्हे भड़काया था। तुम दोनों ही उन शक्तियों को पाओ, ये होते हुए मै देख नहीं सकता था अब मरो तुम।

शिविका:- क्या??? वो सुरम्य नहीं था??? तो वो तुम थे??

श्लोक:- हां। वो मै था???? और आज तुम्हारी सभी शक्तियों को मै पा लूंगा। मैंने इतने लंबे वक्त तक जीने के लिए ही ये रूप लिया है। देखो इसे।

तभी उसके बड़े बड़े दात बाहर अा गए उसकी आंखे लाल हो गई। पर शिविका की आंखो में कोई डर नहीं था। लेकिन विक्रम ये सब देखकर शॉकड़ रह गया। श्लोक ने अपने बड़े नाखून के हमले से शिविका की तलवार तोड़ डाली और जोर जोर से कहने लगा:- शिविका अब तुम मरी............

पर इससे पहले की वो कुछ कर पाता विक्रम ने एक पेड़ की टहनी से उसे मारना शुरू कर दिया। पर ज्यादा समय तक वो उसके सामने टिक नहीं पाया और उसके बड़े धक्के देने पर पेड़ पर का गिरा जिससे उसके सिर पर चोट लग गई। पर वो फिर लड़ने के लिए उठा। इस बार उसने उसे इतना पीटा की विक्रम उठ ना पाया। आखिर एक वैंपायर के सामने विक्रम क्या ही कर पाता??

शिविका गुस्से से उसे कहने लगी:- महादेव से डर दुष्ट। शिव के वीरो का दंश तुमने देखा नहीं है!!

श्लोक:- शिविका एक स्त्री कभी भी इस पद के लिए उपयुक्त थी ही नहीं। अगर गुरु मा मुझे शिव का वीर बनाती तो ऐसा होता ही नही। मेरी सगी मा जब पराई बन गई तो तुम्हारे भगवान का क्या कहे!!

शिविका:- चयन उपयुक्तता को ढूंढता है इसलिए मै चुनी गई। पर तुमने अपने दोस्त सुरम्य को ही धोखा दिया। मित्रता का भी तुमने उपहास बना दिया।

श्लोक:- सुरम्य अब समीर बन चुका है। क्योंकि मेरे कहने पर उसे लगता है कि तुमने पुनर्जन्म लिया है और इसलिए वो उस नीलकमल मणि को लेकर यही अा रहा है।

शिविका:- क्या???? नीलकमल मणि। ये तो अभिषेक में प्रयुक्त होती है.....

श्लोक:- हा शिविका। वो तुम्हे फिर से तुम्हारी जगह देने के लिए वो मणि ला रहा है जिससे अतीत फिर से बदला जा सके। वो तुम्हारे लिए पागल है। और उसके पागलपन से मै अपना पूरापन जरूर पाऊंगा।

शिविका:- असंभव। मेरी हस्तलिपि के बिना ये संभव नहीं हो सकता।

श्लोक:- जो मा के पास थी। उसे तो मैंने सालो पहले उनसे चुरा लिया था।

शिविका :- सुरम्य अभी भी मुझसे प्रेम करता है। मै उसे सत्य बता दूंगी

श्लोक:- कैसे बताओगी शिविका?? जीवित रहोगी तो बताओगी ना!!!

शिविका:- सुरम्य को अगर पता चला कि इन सब के पीछे तुम हो तो वो तुम्हे जीवित नहीं छोड़ेगा श्लोक।

श्लोक:- मै तो भयभीत हो गया शिविका। पर अचंभा ये असमंजस तो देखो कि मुझे भय ही नहीं लग रहा बस मै भयभीत हूं। नाम के लिए.........
और मै तुम्हारा रूप लूंगा अपने काम के लिए।।

अभी सुरम्य को आने में कुछ प्रहर शेष है तो कुछ उपभोग ही कर लिया जाए। अरे यहां तो दो शिकार है किसको पकडू??
शिविका या इस विक्रम को?? चलो विक्रम को ही पकड़ लेता हूं।

शिविका:- उस मानुष को छोड़ दो दुष्ट। वो एक अच्छा मित्र और मनुष्य है। तुम्हारी तरह कायर नहीं वीर है। अपनी प्रेमिका के लिए संघर्षरत है।

श्लोक:- अच्छा। तो फिर एक काम करता हूं। तुझे ही पकड़ लेता हूं।

शिविका:- ये देह मेरी नहीं है धूर्त। ये इस भले मानुष के मित्र की है। मेरे रहते हुए इसे छूने की भी हिम्मत ना करना। वरना परिणाम में मै दीप्ति माला तुम्हे नहीं दूंगी। तुम्हारा अभिषेक कभी पूरा नहीं होगा।

श्लोक:- अच्छा। ठीक है फिर तो इस मानुष की मृत्यु तय है। अगर तू उसे बचाना चाहती है तो मुझे खुद अपनी शक्तिया दे दे वरना....

शिविका:- नहीं।। ऐसा मै कभी नहीं करूंगी।

श्लोक:- वो मेरे वश में है। मेरे चुर बगैर ही वो स्वयं के प्राण लेे लेगा। मेरी एक चुटकी पर।

शिविका:- नहीं। उसे छोड़ दो। मै तैयार हू।

शिविका कुछ मुख्य मंत्र कहकर कहने लगी हे शिव आपने जो कृपा शक्ति शिव के वीरों को दी थी। आज मै उसे जागृत करती हूं। इसके लिए मुझे कुछ क्षण के लिए मेरी वो देह लौटा दे।

तभी एक चमकीली रोशनी फैली और शिविका की सुसज्जित देह सामने अा गई। शिविका ने शिवल्या की देह में भूमि पर बैठकर ओम बोला और उसकी देह से निकल अपनी देह में जा घुसी। शिवल्या की जीवन ज्योति फिर से लौट आईं और अपने सामने शिविका को देखकर उसे सब पता चल गया। आत्मा से अचेत होकर भी वो उसके चेतन में सभी बाते समा गई थी जो शिविका ने उसकी देह में जागृत होकर की थी। विक्रम की बुरी हालत देखकर वो रोने लगी और फिर उसने कहा:- विक्स। तुमने मुझ को बचाने के लिए कितना कुछ किया। बताओ क्यों?? क्या दोस्त के लिए कोई ऐसा करता है??

विक्रम दर्द की आह लेते हुए:- सॉरी शिवी। मै तेरी बाते कभी समझ नहीं पाता था। पर जब तू मुझे छोड़कर गई
तब मुझे रियलाइज हुआ कि तू मेरे लिए कितनी इंपॉर्टेंट है। मुझे नहीं पता कि इतनी चोटो के बाद मै जिंदा रहूंगा या नहीं। बट मेरी फीलिंग्स तेरे लिए हमेशा जिंदा रहेंगी। मुझे पता चल गया कि मुझे तुझसे बहुत प्यार है। बस तू बता कि तू क्या feel करती है।

शिवल्या:- वहीं जो तुम feel करते हो। पर मै तुमसे पहले ही ये समझ चुकी थी।

दोनों ही मुस्कुरा देते है पर श्लोक शिविका से इतने में उसकी सारी शक्तियां छीनने लगता है। और उस पर हमला कर देता है कि तभी एन मौके पर सुरम्य वहां अा जाता है और उसके वार को काट देता है और कहता है:- मैंने सब कुछ देख लिया है, सब सुन लिया है श्लोक। तुम विश्वास घाती हो।।

श्लोक:- विश्वासघाती तुम सब थे। तुम हमेशा शिविका का साथ देते थे। जब उसने अपनी बहन को दण्ड दिया तो भी तुमने उसका साथ दिया। तुम्हारी वजह से ही मेरी जगह उसको मिली। स्वर्ण श्रोणितपुर के राजकुमार होने के कारण तुमने अपनी प्रेमिका का साथ देकर एक योग्य व्यक्ति यानि मुझे नकारा। इसलिए जो तुम्हारे साथ हुआ ठीक हुआ। अब भुगतो विनाश।

सुरम्य:- मेरी शिविका कहां है?? बताओ???

शिवल्या:- शिविका तो आपके सामने खड़ी है। तो आपको दिखाई क्यों नहीं दे रही??

विक्रम:- हां शिवी ये हमारे सामने ही तो खड़ी है शिविका!

शिविका :- मै तुम्हारे सामने हूं सुर। पर तुम मुझे नहीं देख पाओगे।

सुरम्य:- पर क्यों शिविका????

शिविका:- मेरी आखिरी इच्छा के कारण। जब मै जीवित थी तो तुम पर लगे सारे आक्षेप के कारण तुम्हे दोषी मानती रही और मरने पर मैंने ये इच्छा कि की मेरी देह तो क्या मेरी आत्मा को भी तुम ना देख पाओ। इसी वजह से तुम मुझे देख नहीं पाओगे।

सुरम्य:- शिविका इस सभ्यता को देख मैंने बहुत कुछ सीखा ताकि तुम्हे दोबारा मिलने पर कहीं में तुम्हारे जमाने से पीछे ना रह जाऊं। पर आज मै तुम्हे देख भी नहीं पा रहा।

शिविका:- अपने मन को कमजोर मत करो सुर।

श्लोक:- अरे तुम्हारी जन्मों जन्म की वार्ता कभी खत्म नहीं होगी। पर शिविका की शक्तियां जल्दी ही खत्म होने वाली है क्योंकि धीरे धीरे उनका स्थानांतरण मुझमें हो रहा है। अच्छा मित्र मुझे नील कमल मणि दो। वरना शिविका का क्या होगा ये तुमने सोचा भी नहीं होगा!!

शिविका:- सुर वहीं करना जो उचित हो। अगर तुमने मेरे आत्म को उसे नील कमल मणि देकर बचा भी लिया तो भी मै मृत ही रहूंगी।

सुरम्य:-
तुम्हारी आंखों को देखने के लिए में सदिया तरसा हूं
तुम्हारी आस में मै जिया कई अरसा हूं
फिर क्यों बेखुदी कर रही हो शिविका
तुम्हे हाथो से छूने के लिए मै ऊपर से बरसा हूं.....

शिविका:- ये तुमने क्या सुनाया सुर।

सुरम्य:- इसे शेर कहते है शिविका। नए समय में प्रेम जताने का तरीका।

शिविका:- अद्भुत है ये तरीका।

श्लोक:- तुमने तो शेर सुना दिया सुरम्य पर ये याद रखना कि इस जंगल का शेर मै ही हूं। और नीलकमल मणि मुझे दे दो क्योंंकि उसके माध्यम से मै फिर से अतीत में जाकर सब बदल दूंगा।

सुरम्य:- नहीं......। इस मणि का उपयोग सिर्फ शिव के वीर ही कर सकते है। तुम नहीं...। अगर तुमने ऐसा किया तो तुम्हे घोर दण्ड मिलेगा।

श्लोक:- तुमने सही कहा। इसलिए मै इसका दुरुपयोग तो करूंगा पर इसका अंजाम भुगतेगी शिविका।

सुरम्य:- नहीं?? तुम ऐसा नहीं कर सकते।

श्लोक:- पर मै ऐसा ही करूंगा मित्र।

अब सिर्फ एक क्षण शेष है। सारी शक्तियां मुझ में समा रही है। अब मुझे कोई हरा नहीं सकता। मायूसी और हार का आभास तो सुरम्य और शिविका को हो रहा था पर साथ ही साथ विक्रम और शिवल्या के अंदर डर था कि अब क्या होगा?????

कि तभी किसी तरह के वार की आवाज़ सुनाई दी। जिसे सुनकर सब हैरान हो गए और सोचने लगे की वार किस पर हुआ है। पल भर में ही श्लोक मुंह के बल जमीन पर गिर गया और फिर ये साफ हो गया कि वार श्लोक पर हुआ है। और जिसने उस पर वार किया है वो गुरु मा है।

गुरु मा:- तू मेरा पुत्र नहीं शैतान था श्लोक। इसलिए तुझे मेरे हाथो ही मरना था।

श्लोक कराहते हुए:- आपने आज भी मेरे शत्रुओं का साथ दिया है मा। आपने ठीक नहीं किया।

गुरु मा:- ठीक तो अब होगा। शिविका तू मुझे नीलकमल मणि दे।

सुरम्य:- वो मेरे पास है गुरु मा।

गुरु मा नीलकमल मणि लेकर कहती है:- हे शिव प्रभु न्याय करो। दोषी को दण्ड दो और निर्दोष को मुक्ति।

इतने भर में ही एक दिव्य प्रकाश निकलता है जिसमें सुरम्य शिविका और श्लोक अपने समय लौट जाने का मार्ग खुल जाता है। पर श्लोक की सभी शक्तियां चली जाती है और शिविका सुरम्य को फिर से दिखाई देने लगती है और शिवल्या को धन्यवाद दे कर आभार जताती है। शिव मंदिर वहां से गायब हो जाता है और दोनों के घाव भी भर जाते है । शिवल्या और विक्रम एक दूसरे को प्यार भरी नज़रों से देखते है।

दोनों अपनी कार में जाते है। वक्त वहीं होता है ग्यारह बजे का पर इस ना बिताए वक्त में बहुत कुछ बीत गया होता है।

शिवल्या प्यार से विक्रम को कहती है:- ये इंटरव्यू तो लंबा चला तो अब इंटरव्यू लेने चले मिसेज खन्ना का??

विक्रम:- हां क्यों नहीं। क्या पता इस बार कुछ और मजेदार मिल जाए शिवी???

और इतने में गाड़ी चल देती है। शिवल्या के हाथो पर एक दिव्य निशान बन जाता है जो नीलकमल की तरह होता है, अब ना जाने कब उसे इसका एहसास होगा। मतलब अंत भी कुछ लेकर आया है। और इस तरह कहानी ख़तम हो जाती है।


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