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भारत मां का भगत

गर्व से झूम जाती धरती सुन जिसकी गाथा ,
मां भारती का लाडला पुत्र था ।
आज़ादी को जिसमें बांधा ,
वो खुद ही तो वह सूत्र था ।
आज़ादी ही जिसकी महबूबा देश ही जिसका जगत
ऐसा था वो भारत मां का भगत।

बचपन में जब बालकों का खेल गिल्ली डंडा होता था ,
तब वो इंकलाबी मिट्टी में बंदूकें बोता था।
कहता, इतनी बंदूकें होंगी कोई गिन न पाएगा ,
भागेगा हर अंग्रेज़ यहां से लौट स्वदेशी राज आएगा
आज़ादी ही जिसकी महबूबा, देश ही जिसका जगत,
ऐसा था वो भारत मां का भगत।

पढ़ाई में भी अव्वल था तो खेलों में भी पट्ठा,
कॉलेज की लड़कियां जान छिड़के इतना मनोरम वो जट्टा।
पर वो था सिर्फ आज़ादी का ही दीवाना कहता अभी वक्त नहीं ,
देश से ही इश्क है किसी और के लिए दिल का तख्त नहीं।
आज़ादी ही जिसकी महबूबा, देश ही जिसका जगत,
ऐसा था वो भारत मां का भगत।

फिर कूद पड़ा वो आजादी की लडाई में,
जब कुछ ही दिन थे उसकी सगाई में।
लिखा इक रोज़ खत अपनी मंगेतर को यह जन्म मां की गोद में बिताऊंगा ,
अगर मिला अगला जन्म तो मांग तेरी ही सजाऊंगा।
आज़ादी ही जिसकी महबूबा, देश ही जिसका जगत,
ऐसा था वो भारत मां का भगत।

फिर शामिल हुआ वो गरम दल में,
जहां होती वार्ता ए इंकलाब हर पल में।
वहां हर कोई इंकलाब सीख भारत की जय बोला था,
लालाजी की हत्या पर भड़का हर युवा अब शोला था ।
आज़ादी ही जिसकी महबूबा देश ही जिसका जगत,
ऐसा था वो भारत मां का भगत।

देश में फैली आग तो भगत भी कहां पीछे रहने वाला,
लालाजी की मौत का बदला लेना चाहता था वो दियाला।
कर दी सांडर्स की हत्या, फिर फैंक असेंबली में बम,
कहा भारत मां से चले तेरी आज़ादी को बिहाने हम ।
आज़ादी ही जिसकी महबूबा, देश ही जिसका जगत,
ऐसा था वो भारत मां का भगत।

फिर चला ऐतिहासिक इंकलाबी मुकदमा कइयों पर,
पर नाम लिखा था तीन पुत्रों का उन मौत की बेड़ियों पर।
उस दिन उस अंग्रेज की भी आँख भर आई ,
भगत राजगुरु सुखदेव को जिसने सज़ा ए मौत सुनाई ।
आज़ादी ही जिसकी महबूबा देश ही जिसका जगत,
ऐसा था वो भारत मां का भगत।

२४ मार्च थी तारीख ए शहादत तय,
पर अंग्रेजों को लगने लगा था इंकलाब से भय ।
परंतु फिरंगियों ने यहां भी खेल रचाया था,
तीनो शेरों को एक दिन पहले फरमान ए फांसी सुनाया था ।
आज़ादी ही जिसकी महबूबा देश ही जिसका जगत,
ऐसा था वो भारत मां का भगत।

उन्होंने फंदा चूमा ऐसे दुल्हन के महंदी हाथ जैसे ,
फिर पहनी फंदे की माला समझ वरमाला उसे।
आ गया वो पल जिसकी थी उन्हें प्रतीक्षा
उत्तीर्ण हुए वो उसमें जो थी देशभक्ति की परीक्षा।
आज़ादी ही जिसकी महबूबा देश ही जिसका जगत,
ऐसा था वो भारत मां का भगत।

फिरंगी अपनी गंदी हरकतों से न आए बाज़
पार्थिव देह भी न दी उनकी जिनपर हो रहा था पूरे देश को नाज़।
गुपचुप जला बहा दिया भारत मां के इस वीर को
कैसे सहा होगा उस मां ने सपूत वियोग की पीर को
आज़ादी ही जिसकी महबूबा, देश ही जिसका जगत,
ऐसा ही था वो भारत मां का भगत।
जाओ भगत हम देशभक्त रखेंगे तुम्हे याद ,
तुम ही वो भारत के रक्षक थे, जिसके कारण है हम आज़ाद।
रखा तुमने अपनी प्रतिज्ञा का मान ,
सुना रही ये कहानी तुमको यह कलम ए ‘शान' ।
आज़ादी ही जिसकी महबूबा, देश ही जिसका जगत,
ऐसा था वो भारत मां का भगत।

सृष्टि तिवाड़ी ‘शान'


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