Tom Kaka Ki Kutia - 45 books and stories free download online pdf in Hindi

टॉम काका की कुटिया - 45

45 - का अंत

कासी और एमेलिन के भाग जाने के बाद लेग्री के दास-दासियों में भूतों की चर्चा ने बड़ा जोर पकड़ा। हर घड़ी उन्हीं की चर्चा होने लगी।

 रात को बंद किए हुए दरवाजे खुले मिलते, रात को किसी के दरवाजा खटखटाने की-सी आवाज आती, इससे सबने यही नतीजा निकाला कि यह सारी कार्रवाई भूतों के सिवा और किसी की नहीं है। दासों में से कोई-कोई कहता - "भूतों के पास सब दरवाजों की तालियाँ जरूर हैं। बिना ताली के वे दरवाजा कैसे खोल सकते हैं? दूसरे उसका खंडन करते - "यह कोई बात नहीं, भूत बिना ताली के भी दरवाजे खोल सकते हैं।"

 भूत की सूरत-शक्ल के बारे में भी बड़ा मतभेद होने लगा। किसी ने कहा - "भूतों के सिर नहीं होते। उसके दोनों कंधों पर दो आँखें होती हैं।" पर दूसरे ने उसकी बात काटकर कहा - "मैं तो खुद अपनी आँखों से दो-तीन भूत देख चुका हूँ। कोई भी भूत बिना सिर का नहीं होता।" तीसरे ने कहा - "हाँ-हाँ सिर तो होता है। यह तो मैं भी मानता हूँ, लेकिन वह पीठ की ओर फिरा हुआ होता है। मैंने जितने भूत देखें हैं उनमें एक का भी सिर छाती की तरफ नहीं था।" इस पर चौथा दास बोला - "मालूम होता है, तुम सब लोगों ने जितने भूत देखे हैं, सबके सब विलायती थी, देशी उनमें एक भी नहीं था।"

 दास-दासियों में भूत के रूप-रंग के विषय में यों ही तर्क-वितर्क होते रहे, पर कोई बात तय नहीं हुई। मतभेद ज्यों-का-त्यों बना रहा।

 दास-दासियों की ये भूत-संबंधी चर्चाएँ लेग्री के कानों तक भी पहुँचने लगीं। उसने हजार यत्न किए, पर इन चर्चाओं का अंत न हुआ। दिन-पर-दिन भूत-चर्चा का बाजार गर्म होता गया। उत्तर के कमरे में बहुधा रात को किसी के पैरों की आहट सुनाई देती थी। इससे उठते ही सवेरे उसकी बात छिड़ जाती थी। रोज-रोज भूतों की कथाएँ सुनते-सुनते गँवार, धर्मज्ञानहीन लेग्री के मन में बुरी तरह डर समा गया। इन भयंकर स्मृतियों को मन से दूर रखने के लिए वह पहले से दूनी-चौगुनी शराब पीने लगा।

 जिस दिन सवेरे टॉम की मृत्यु हुई, उस दिन वह पास के एक दूसरे खेत में गया था। वहाँ से घर लौटने में अधिक रात हो गई। घर पहुँचते ही वह सोने के कमरे में गया और सारी किवाड़ें बंद करने लगा। उत्तर की ओर का दरवाजा बंद करके किवाड़ों के पीछे उसने एक कुर्सी रख दी। अपने सिरहाने एक भरी हुई पिस्तौल रखी। डटकर शराब चढ़ाई। फिर लेट गया। कुछ देर बाद उसे नींद आ गई। नींद में पहले की भाँति उसे अपनी माता की मूर्ति दिखाई दी। अनंतर चिल्लाहट सुनाई दी। इससे उसकी आँख खुल गई और उसे साफ-साफ आदमी के पैरों की आहट सुनाई पड़ी। दरवाजे पर नजर पड़ते ही उसने देखा कि दरवाजा चौपट पड़ा है, घर की रोशनी बुझ गई है, अंधेरे में किसी ने उसके बदन पर ठंडे हाथ लगाए, जिससे वह खाट से उछलकर दूर जा खड़ा हुआ। इतने में श्वेत-वस्त्रधारी मूर्ति अंतर्धान हो गई। लेग्री ने दरवाजे के पास जाकर देखा तो दरवाजे को बाहर की ओर से बंद पाया। देखते ही देखते बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। सवेरे जागने पर देखा गया कि खाट की जगह वह जमीन पर पड़ा है।

 इसके दूसरे दिन से लेग्री ने शराब की मात्रा और बढ़ा दी। उसने मन-ही-मन दो-तीन रात शराब पीकर एकदम बेहोशी ही हालत में बिताने का निश्चय किया, जिससे कोई भी दुश्चिंता उसके पास न फटकने पाए, पर दो-तीन दिन इस प्रकार खूब शराब पीने के कारण उसे भयानक ज्वर आया और वह पागल-जैसा हो गया। पहले किए अपने बुरे कामों तथा निष्ठुर आचरणों की बातें बकने लगा। वे सब लोमहर्षक बातें आदमी के दिल को कँपा देनेवाली थीं। इससे उस दशा में कोई उसके पास खड़ा नहीं होता था। दिन-रात वह अकेला बेसुध पड़ा रहता। तीन दिन के बाद उसके मुँह से खून गिरने लगा। और उसी के कुछ क्षणों बाद वह पापात्मा, नराधम अंग्रेज अपने चिर-कलंकित जीवन से मुक्त हो गया।

 उसकी लाश का उसके गुलामों ने रेड नदी में बहा दिया और उसके पास जो माल-टाल था, उसे लेकर उत्तर की ओर निकल भागे।

 जिस रात को लेग्री मूर्च्छित हुआ था, उस रात को तीन-चार गुलामों ने देखा कि दो स्त्रियाँ सफेद चादर से अपना बदन ढके हुए घर से निकलकर बाहर चली गईं। उसके दूसरे ही दिन सवेरे बाहरी मकान का दरवाजा भी खुला हुआ पाया गया। इससे लेग्री के दिल में और भी डर समा गया था।

 सूर्योदय के कुछ ही पहले कासी और एमेलिन नगर के निकट पेड़ों के नीचे बैठकर विश्राम कर रही थीं। वृक्षों की ओट में बैठकर कासी ने स्पेन देश की कुलीन स्त्रियों के वस्त्र धारण किए और एमेलिन ने उसकी परिचारिका का-सा वेश बना लिया। कासी भले घर में जन्मी थी और सभ्य जनों की-सी उसने शिक्षा पाई थी। इससे उसे देखकर कोई भगोड़ी दासी नहीं समझ सकता था। उसने नगर में जाकर एक संदूक मोल लिया। उसमें सब कपड़े रखे और उसे एक कुली के सिर पर उठवाकर निकट के एक होटल में जाकर रहने लगी।

 उस होटल में पहुँचते ही पहले जार्ज शेल्वी से उसकी भेंट हुई। जार्ज शेल्वी भी यहाँ जहाज के लिए ठहरा था। कासी ने अपने गुप्त स्थान से जार्ज शेल्वी को टॉम की लाश ले जाते देखा था। जब उसने लेग्री को पीटा था, तब भी वह उसे देख रही थी। इससे जार्ज का चेहरा उससे सर्वथा अपरिचित न था, विशेषकर जार्ज के चले जाने के बाद कासी ने दूसरे दास-दासियों की बातचीत से पता लगा लिया था कि वह टॉम के पूर्व मालिक का पुत्र है। अत: उसने आग्रहपूर्वक जार्ज से घनिष्ठता बढ़ाने का यत्न किया।

 कासी के कुलीन स्त्रियों के-से वस्त्र एवं आचार-व्यव्हार के कारण किसी को उस पर संदेह न हुआ, खासकर होटल में जो खाने-पीने आदि की चीजों का दाम देने में कंजूसी नहीं करता, उससे सब संतुष्ट रहते हैं। कासी इन बातों को खूब जानती थी। इसी से वह लेग्री के संदूक से अच्छी रकम ले आई थी।

 संध्या होते-होते जहाज आ गया। जार्ज शेल्वी ने बड़े शिष्टाचार से कासी का हाथ पकड़कर उसे नाव पर चढ़ाया और स्वयं विशेष कष्ट सहकर जहाज के बीच का एक अच्छा कमरा उसके लिए किराए पर ले दिया। जहाज जब तक रेड नदी में था, तब तक कासी कमरे से बाहर न निकली। शारीरिक अस्वस्थता का बहाना बनाकर कमरे में ही सोती रही, पर जब जहाज मिसीसिपी नदी के मुहाने पर पहुँचा तो कासी आई। जार्ज ने फिर इस नदीवाले जहाज में भी उसके लिए एक कमरा किराए पर ले दिया। इस जहाज में आते ही कासी की शारीरिक अस्वस्थता दूर हो गई और जहाज में वह इधर-उधर टहलने लगी।

 जहाज के अन्य यात्री उसके वस्त्र और सौंदर्य देखकर आपस में कहने लगे - "जवानी में यह स्त्री बड़ी सुंदर रही होगी।"

 जार्ज ने जब से कासी को देखा, उसके मन में यह विचार उठ रहा था कि उसने ऐसा ही सुंदर चेहरा और कहीं देखा है। इससे वह बड़े ध्यान से कासी के मुख की ओर देखता था। खाते-पीते, बातें करते, बराबर जार्ज की आँखें उसके मुँह पर लगी रहती थीं।

 यह देखकर कासी के मन में उद्विग्नता उत्पन्न हो गई। वह सोचने लगी कि वह आदमी निश्चय ही मुझपर संदेह करता है। पर जार्ज की दया पर भरोसा करके उसने आदि से अंत तक अपना सारा वृत्तांत उसे कह सुनाया।

 सुनकर जार्ज को बड़ा दु:ख हुआ। उसने उससे सहानुभूति दिखाई और ढाढ़स बँधाया। लेग्री के दास-दासियों का कष्ट वह अपनी आँखों से देख आया था। इससे वहाँ से भागी हुई स्त्रियों पर सहज ही उसके मन में दया हो आई थी। उसने कासी को विश्वास दिलाया कि तुम डरो नहीं। मैं जी-जान से तुम्हारी रक्षा करूँगा।

 कासी के कमरे से सटे हुए कमरे में मैडम डिथो नाम की एक फ्रेंच भद्र महिला सफर कर रही थी। जब उस फ्रेंच महिला को जार्ज की बातचीत से पता चला कि वह केंटाकी का आदमी है, तो वह उसके साथ बातचीत करने के लिए विशेष उत्सुक हुई। शीघ्र ही उसने जार्ज से परिचय कर लिया। उसके बाद जार्ज प्राय: उसी के कमरे के द्वार पर कुर्सी डालकर उससे बातें किया करता। कासी अपनी जगह से उसकी सारी बातें सुनती रहती।

 एक दिन मैडम डिथो ने बातें-ही-बातों में जार्ज से कहा - "पहले मैं भी केंटाकी में ही थी।" और उसने केंटाकी प्रदेश के जिस गाँव का नाम लिया, जार्ज शेल्वी का घर भी वहीं था। जार्ज को उसकी बातों से बड़ा आश्चर्य हुआ।

 इसके बाद एक दिन मैडम डिथो ने जार्ज से पूछा - "अपने गाँव में तुम हेरिस नाम के आदमी को जानते हो?"

 "हाँ, इस नाम का एक बूढ़ा आदमी हमारे गाँव में है।" जार्ज ने उत्तर दिया - "उसके बहुत से दास-दासी हैं न?"

 "उसके एक जार्ज नाम के वर्णसंकर दास को आप जानते हैं? शायद आपने उसका नाम सुना होगा" मैडम डिथो ने पूछा।

 जार्ज बोला - "क्या? उसका तो मेरी माता की एक दासी से विवाह हुआ था। पर अब तो वह कनाडा भाग गया है।"

 मैडम डिथो ने कहा - "अच्छा कनाडा भाग गया है? ईश्वर का धन्यवाद है!"

 जार्ज मैडम डिथो की बात सुनकर बड़ा चकित हुआ, पर उससे आगे कुछ नहीं पूछा। मैथम डिथो दोनों हाथों से मुँह ढककर आनंद से अश्रु बहाने लगी। फिर कुछ सँभलकर बोली - "जार्ज मेरा भाई।"

 जार्ज ने बहुत विस्मित होकर कहा - "ओह, ऐसा!"

 मैडम डिथो ने गर्व से सिर उठाकर कहा - "हाँ मिस्टर शेल्वी जार्ज, जार्ज हेरिस मेरा भाई है।"

 "मुझे आपकी बात सुनकर बड़ा अचंभा हुआ।"

 "मिस्टर शेल्वी, जिस समय जार्ज बहुत छोटा था। उसी समय हेरिस ने मुझे दक्षिण के एक दास-व्यवसायी के हाथ बेच डाला था। उस दास-व्यवसायी से मुझे एक सहृदय फ्रांसीसी ने खरीद लिया और गुलामी की बेड़ी से मुक्त करके शास्त्र के अनुसार मुझसे विवाह कर लिया। कुछ दिन हुए मेरे लज्जा की मृत्यु हो गई। अब मैं अपने उस छोटे भाई जार्ज को खरीदकर दासता से मुक्ति देने की इच्छा से केंटाकी जा रही हूँ।"

 जार्ज बोला - "जार्ज हेरिस मुझसे कई बार कहा करता था कि मेरी एमिली नाम की एक बहन को हेरिस ने दक्षिण में बेच डाला है।"

 मैडम डिथो ने कहा - "मेरा ही नाम एमिली है।"

 "आपका भाई बड़ा बुद्धिमान और चरित्रवान युवक है, पर गुलाम होने के कारण कोई उसके गुणों का आदर नहीं करता। हमारे यहाँ की दासी से उसका विवाह हुआ था। इसी से मैं उसे अच्छी तरह से जानता हूँ।" जार्ज ने कहा।

 "उसकी स्त्री कैसी है?"

 "वह भी एक रत्न है। परम सुंदरी और बुद्धिमती है, मधुर बोलने वाली, सुशील और धर्मपरायण है। मेरी माता ने अपनी कन्या की तरह बड़े यत्न से उसका लालन-पालन किया था। वह लिखने-पढ़ने, सीने-पिरोने तथा घर के सभी कामों में बड़ी निपुण है।"

 "क्या वह आप ही के घर जन्मी थी?"

 "नहीं, मेरे पिता उसे नवअर्लिंस से मेरी माता को उपहार में देने के लिए खरीद लाए थे। उस समय वह आठ-नौ बरस की थी। उन्होंने उसे कितने में खरीदा था, यह बात माता के सामने कभी प्रकट नहीं की, पर थोड़े दिन हुए उनके कागज-पत्रों से हम लोगों को मालूम हुआ कि उसके लिए उन्होंने बहुत अधिक मूल्य दिया था। ऐसा लगता है, उसके अपूर्व सौंदर्य के लिए ही इतने ज्यादा दाम दिए गए थे।"

 कासी जार्ज के पीछे बैठी थी। उसके इन बातों को बड़े ध्यान से सुनने का पता जार्ज को नहीं था। पर जार्ज की बात समाप्त होते ही कासी ने उसकी बाँह पर हाथ रखकर कहा - "मिस्टर शेल्वी, क्या आप बता सकते हैं कि आपके पिता ने उसे किससे खरीदा था?"

 जार्ज ने कहा - "याद पड़ता है कि सिमंस नाम के किसी आदमी से उन्होंने खरीदा था।"

 "हे भगवान!" यह कहकर कासी तुरंत मूर्च्छित होकर गिर पड़ी।

 कासी की इस आकस्मिक मूर्च्छा का कारण मैडम डिथो और जार्ज की समझ में नहीं आया। वे मिलकर उसे होश में लाने का उपाय करने लगे। होश में आने पर कासी बालिका की भाँति जोर-जोर से रोने लगी।

 माँ कहलानेवाली महिलाएँ पूरी तरह से कासी के मनोभाव को समझ सकेंगी। कासी यह मानकर कि वह अब अपनी कन्या से नहीं मिल पाएगी, निराश हो गई थी, पर ईश्वर की कृपा से फिर मन में उसे देख पाने की आशा बँध गई और इसी से वह हृदय के उमड़े वेग को सँभाल न सकने के कारण बच्चे की तरह रोने लगी।

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