Tom Kaka Ki Kutia - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

टॉम काका की कुटिया - 4

4 - टॉम की बिक्री

टॉम को बेचने के संबंध में हेली से शेल्वी साहब की जो बातचीत हुई थी, वह पहले अध्याय में लिखी जा चुकी है। उसे पढ़कर पाठकों को केवल इतना मालूम हुआ होगा कि शेल्वी साहब के यहाँ टॉम नाम का एक स्वामिभक्त क्रीत दास था और उसे खरीदने के लिए ही हेली शेल्वी साहब के पास आया था। इस अध्याय में हम टॉम का विशेष परिचय देते हैं। टॉम यद्यपि अफ्रीका-वासी काला क्रीत दास था, फिर भी उसे धर्माधर्म का खूब ज्ञान था। वह बहुत ही सीधा, परिश्रमी और सदाचारी था। स्वार्थपरता उसे छू तक नहीं सकी थी। वह सब तरह से भला था। शेल्वी साहब पर कर्ज का बोझ न होता, तो वे उसे कभी न बेचते। शेल्वी साहब के यहाँ उनके रहने के स्थान से थोड़ी ही दूरी पर, दास-दासियों के रहने योग्य कई छोटे-छोटे घर थे। अमरीका के प्रायः सभी धनाढ्य बनियों के घर अफ्रीका के अभागे काले दास-दासियों से ठसाठस भरे थे। इनमें से अधिकांश महापुरुष इन अभागे दास-दासियों को सदा सताते और उनपर घोर अत्याचार करते रहते थे। पर इनमें जहाँ हजार बुरे थे, वहीं पाँच भले भी थे। सभी जातियों में भले-बुरे दोनों होते हैं। उन सज्जन अंग्रेजों के यहाँ दास-दासियों को थोड़ा-सा आराम रहता था। पहले कहा जा चुका है कि शेल्वी साहब की मेम का हृदय दया-धर्मादि गुणों से अलंकृत था। दास-दासियों पर अत्याचार करना तो दूर, वह सदा उनकी आत्माओं को उन्नत करने में लगी रहती थीं। वह उन्हें लिखना-पढ़ना सीखने का अवसर देती तथा उन्हें उपदेश देकर सदा उत्तम मार्ग पर चलाने की चेष्टा करती।

 शेल्वी साहब के गुलामों में टॉम सबसे पुराना था। क्लोई नाम की एक दासी के साथ टॉम का विवाह हुआ था। उसके गर्भ से टॉम को तीन-चार संतानें हुईं। क्लोई शेल्वी साहब के घर की मुख्य रसोइन थी। वह दूसरे दास-दासियों पर सदा हुक्म चलाती थी और अपने मन में समझती थी कि केंटाकी भर में उसकी-सी रसोइन दूसरी नहीं है। उसके बनाए भोजन में किसी तरह की भूल बताने से वह बहुत ही गुस्सा होती थी। इसलिए वह जो कुछ बनाती थी, वही सबको अच्छा जान पड़ता था। क्लोई में और भी अनेक गुण थे। वह पतिपरायण थी और अपनी संतान को बड़ा प्यार करती थी। टॉम का घर अन्य दास-दासियों के घरों की निस्बत कुछ बड़ा था। शेल्वी साहब के तेरह वर्ष के लड़के जार्ज से टॉम कभी-कभी पढ़ना सीखा करता था। प्रतिदिन संध्या-समय टॉम मुहल्ले के सारे दास-दासियों को बटोरकर अपने घर में उन लोगों के साथ मिलकर ईश्वर की उपासना करता और उन्हें बाइबिल पढ़कर सुनाया करता था। अधिक पढ़ा-लिखा न होने पर भी टॉम का हृदय भक्ति और प्रेम से भरा था। वह बड़ी सीधी-सादी भाषा में ईश्वर की उपासना करता था। दूसरे दास-दासी टॉम को अपना पादरी मानते थे। जिस समय दास-व्यवसायी हेली ने शेल्वी के कमरे में बैठकर टॉम को खरीदने का प्रस्ताव किया था, उस समय शेल्वी का पुत्र जार्ज स्कूल में था। जार्ज को इन बातों का जरा भी पता न था। स्कूल से लौटकर वह नित्य टॉम को पढ़ाने के लिए उसके घर जाया करता था, वैसे ही आज भी उसके घर बैठा पढ़ा रहा था। पर टॉम या जार्ज किसी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि आज टॉम के सारे सुखों का सूर्य डूब जाएगा, आज टॉम को पतिपरायण स्त्री और संतान से जन्म भर के लिए बिछुड़ना पड़ेगा।

 शेल्वी साहब ने संध्या के सात बजे दास-व्यवसायी हेली को बुलाया था। हेली ठीक समय पर शेल्वी साहब के यहाँ आ पहुँचा। इधर टॉम जब जार्ज के पास बैठा पढ़ रहा था, एक कमरे में बैठे शेल्वी साहब और हेली दोनों टॉम की बिक्री के विषय में लिखा-पढ़ी कर रहे थे। लिखा-पढ़ी समाप्त हो जाने पर हेली बोला - "सब ठीक है, अब तुम इस बिक्री के इकरारनामे पर दस्तखत कर दो।" शेल्वी साहब ने बड़े खिन्न मन से हस्ताक्षर करके उसे हेली को सौंप दिया। हेली ने उन्हें एक पुराना बंधक रखा हुआ दस्तावेज वापस किया। इस दस्तावेज के लिए ही शेल्वी साहब को स्वामिभक्त टॉम और इलाइजा के नन्हें बच्चे हेरी को बेचना पड़ा था। हस्ताक्षर का कार्य निबट जाने के बाद शेल्वी साहब हेली से बोले - "तुमने वचन दिया है कि टॉम को किसी निर्दयी बनिए के हाथ नहीं बेचोगे, देखना अपनी बात मत छोड़ना।"

 हेली बोला - "जब टॉम को मुझे बेच ही डाला, तब इस बात को बार-बार क्यों दुहराते हो?"

 शेल्वी साहब ने कहा - "मैंने संकट में पड़कर बेचा है।"

 इस पर हेली हँसते हुए कहने लगा - "और मैं भी तुम्हारी तरह संकट में पड़ जाऊँ तो? पर हम खुद उसपर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं करेंगे। तुमसे हम कह चुके हैं कि हम दया-धर्म को साथ रखकर अपना कारोबार करते हैं।"

 टॉम और इलाइजा के बच्चे को खरीदकर हेली जब चला गया तो शेल्वी साहब उदास होकर अलग बैठ गए और चुरुट का कश खींचते हुए मन-ही-मन विचार करने लगे कि दास-व्यवसायी भी कैसे पाजी होते हैं! खरीदने के क्षण भर पहले ही कहता था कि टॉम को किसी भलेमानस के हाथ बेचूँगा, और इकरारनामे की लिखा-पढ़ी होते ही बदलकर बातें बनाने लगा!

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