Tom Kaka Ki Kutia - 43 books and stories free download online pdf in Hindi

टॉम काका की कुटिया - 43

43 - कसौटी

चलते-चलते हजारों मील की मंजिल तय हो जाती है और देखते-देखते अमावस्या की घोर निशा बीतकर प्रभात का सूर्य निकल आता है। काल का अबाध-अनंत प्रवाह पाप-पंक में डूबे दुराचारियों को धीरे-धीरे उस घोर अमा-निशा की ओर धकेल रहा है, परंतु साधुओं और महात्माओं को विपत्ति-वेदनाओं से हटाकर धीरे-धीरे सूर्य की शत-शत किरणों से प्रदीप्त दिवस की ओर ले जा रहा है।

 पार्थिव पद और प्रभुत्व से शून्य टॉम के जीवन में कितने ही उलटफेर हुए। पहले वह स्त्री-पुरुषों सहित सुख से सानंद जीवन बिताता था, अकस्मात् दिन फिरे, और सुख की घड़ियों की जगह दु:ख की घड़ियों ने उसे घेर लिया। स्त्री-पुत्रों से वियोग हो गया। उस समय उसे दासता की बेड़ियाँ बहुत अखरीं। समय ने फिर पलटा खाया और सहृदय हाथों में जा पड़ा। इसी लिए वह दासता की लोहे-जैसी कठिन बेड़ी कुसुम-जैसी कोमल हो गई। परंतु विधाता से उसका यह सुख भी अधिक दिनों तक नहीं देखा गया। देखते-देखते वह ऐसे हाथों में चला गया, जहाँ उसकी सांसारिक सुख-रूपी आशा-लताओं को जड़-मूल से उखाड़कर नष्ट कर डाला गया। उसके पश्चात् दुर्भेद्य गहरे अंधकार को भेदकर स्वर्गीय उज्ज्वल तारों की अपूर्व ज्योति उसके नेत्रों के सम्मुख चमकने लगी, उसके लिए स्वर्ग का द्वार उन्मुक्त हो गया।

 कासी और एमेलिन के भाग जाने के बाद लेग्री की क्रोधाग्नि एकदम भभक उठी और बेचारा टॉम ही उस धधकती हुई क्रोधाग्नि का शिकार हुआ। लेग्री जब दोनों दासियों को पकड़ने के लिए सब गुलामों को बुला रहा था, उस समय टॉम की आँखों से खुशी टपक रही थी। टॉम ने हाथ उठाकर आकाश की ओर देखा। लेग्री ने उसका यह भाव देख लिया था। दूसरे इस बात से भी वह टॉम की नीयत जान गया कि सब गुलाम तो भगोड़ी दासियों को पकड़ने के लिए दौड़-धूप करने लगे, पर टॉम ने उसका साथ नहीं दिया। लेग्री ने एक बार टॉम को पकड़नेवालों के साथ जबर्दस्ती भेजने की सोची, लेकिन फिर उसके पहले आचरण का स्मरण करके उसने उसे भेजना व्यर्थ समझा, क्योंकि टॉम जिस बात को बुरा समझता है, उसे वह जीते-जी कभी न करेगा।

 लेग्री के लाव-लश्कर सहित एमेलिन और कासी को पकड़ने चले जाने पर खेत पर केवल टॉम तथा दो-एक वे लोग रह गए, जिन्होंने टॉम से प्रार्थना करना सीखा था। ये लोग मिलकर कासी और एमेलिन के कल्याण के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने लगे।

 बहुत खोज के बाद आधी रात के समय लेग्री जब निराश और परेशान होकर घर लौटा, तब टॉम पर उसकी क्रोधाग्नि एकदम भभक उठी। वह मन-ही-मन सोचने लगा कि जब से उसने टॉम को खरीदा है तब से आज तक उसने उसकी आज्ञा का उलंघन-ही-उलंघन किया है। यह चिंता नरकाग्नि की तरह उसके हृदय को जलाने लगी। ज्योंहि वह अपने बिस्तर पर बैठा, अपने-आप से बोला - "मैं टॉम से नफरत करता हूँ। मुझे उससे जबर्दस्त नफरत है। क्या वह मेरी चीज नहीं है? क्या मैं उससे मनमाना व्यव्हार नहीं कर सकता? अच्छा देखता हूँ, मुझे रोकनेवाला कौन है।" - ऐसा कहकर वह बार-बार जमीन पर पैर पटकने लगा। लेकिन उसने फिर सोचा कि टॉम को मैंने अधिक दामों पर खरीदा है, ऐसी कीमती चीज को यों नष्ट करना ठीक नहीं है। कल उससे कुछ कहना-सुनना मुनासिब नहीं होगा।

 उसने निकट के खेतों से ढूँढ़ने वाले, शिकारी कुत्ते, बंदूकें और बहुत से गुलाम इकट्ठे किए। अब उसने निश्चय किया कि जितनी दलदली जमीन है, उसका चप्पा-चप्पा खोज डाला जाएगा। यदि कासी और एमेलिन मिल गईं, तब तो ठीक, नहीं तो टॉम के प्राण लेने का उसने पक्का संकल्प किया। वह अंदर से उबलकर दाँत पीसने लगा। उसके पापासक्त मन ने इस भयंकर नर-हत्या के संकल्प का पूरी तरह समर्थन किया।

 कानून गढ़नेवाले कहा करते कि मनुष्य अपना स्वार्थ सोचकर दास-दासियों के प्राण नहीं ले सकता, पर क्रुद्ध होने पर ये हत्यारे अपने-पराए तथा भले-बुरे का होश खो बैठते हैं। इनके हाथों में बेचारे गुलामों के प्राण सौंपकर उन लोगों ने नि:संदेह बड़ा पापपूर्ण काम किया था।

 प्रात:काल जब लेग्री अपने आदमी इकट्ठे कर रहा था, तब कासी उत्तर दिशावाले दालान के एक सूराख से उसकी सब कार्रवाई देख-सुन रही थी। पकड़नेवाले दल में दो तो पास के दूसरे दो खेतों के परिदर्शक थे और बाकी लेग्री के शराबी सहचर थे। सभी बड़े उत्साह से तैयार हो रहे थे और गिलासों में भर-भरकर शराब उड़ा रहे थे। उनकी सारी बातचीत सुनने की इच्छा से कासी घर की एक दीवार से कान लगाए चुपचाप खड़ी थी।

 उनमें से एक परिदर्शक कह रहा था - "मेरा शिकारी कुत्ता भगोड़ों को पकड़ते ही नोच डालता है।" दूसरे ने कहा - "जैसे ही भगोड़ी दासियाँ मेरी नजर के सामने पड़ेंगी, मैं उन्हें तुरंत बंदूक का निशाना बनाकर भागने का मजा चखा दूँगा।"

 उन दोनों राक्षसों की बातें सुनकर कासी बोल उठी - "हे भगवान! क्या इस संसार में सब पापी-ही-पापी बसते हैं? हमने ऐसा कौन-सा अपराध किया है, जो हम लोगों पर ये इतना अत्याचार करते हैं।" फिर एमेलिन की ओर मुँह करके बोली - "बेटी, तू अगर आज मेरे साथ न होती तो मैं अभी उन सबके पास जाकर कहती, "लो, मुझे गोली से मारकर अपनी साध पूरी कर लो।" स्वाधीन होकर ही मेरा क्या हुआ जाता है? अब मुझे अपनी दोनों संतानों का मुँह देखने को मिलेगा? मैं फिर पहले-जैसा पवित्र जीवन प्राप्त कर सकूँगी?"

 कासी के मुँह का भाव देखकर एमेलिन सहम गई और भय से कुछ भी न बोल सकी। उसने एक भयभीत बालक की भाँति कासी का हाथ पकड़ लिया।

 कासी ने हाथ छुड़ाते हुए कहा - "मेरा हाथ छोड़ दे, मैं तुझे प्यार नहीं करना चाहती। अब संसार में किसी को भी प्यार करने की मुझे इच्छा नहीं होती।"

 एमेलिन ने कहा - "दुखिया कासी माँ, इतना दु:ख मत करो। यदि ईश्वर हमें स्वतंत्रता देता है तो शायद वह तुम्हें तुम्हारी बेटी से भी मिला देगा। यह न हो सका तो मैं तुम्हारी बेटी बनकर रहूँगी। अब अपनी दुखिया माँ को देखने की आशा मैंने भी छोड़ दी है। मैं अब तुम्ही को अपनी माँ समझूँगी। कासी माँ, तुम मुझपर प्यार करो या न करो, मैं तुम्हें अवश्य प्यार करूँगी।"

 कासी बोली - "ओह, अपनी दोनों संतानों के लिए मेरा हृदय कैसा हाहाकार कर रहा है। मेरी आँखें उन्हें देखने के लिए तरस रही हैं।" फिर उसने अपनी छाती पीटते हुए कहा - "हे भगवान! मुझे अपनी संतानों से मिला दे। मैं तभी शांतिपूर्ण हृदय से प्रार्थना कर सकूँगी।"

 एमेलिन ने कहा - "उस पर विश्वास करो - वह हमारा पिता है!"

 कासी बोली - "हम लोगों पर भगवान का कोप बरस रहा है। वह हम लोगों पर नाराज हो रहा है।"

 एमेलिन ने बताया - "नहीं कासी, वह अवश्य हम लोगों पर कृपा करेगा। हम लोगों को उसका भरोसा करना चाहिए।"

 इन दोनों में जब ये बातें हो रही थीं, उस समय लेग्री अपने आदमियों सहित निराश और परेशान होकर घर लौट आया था। जब वह बहुत उदास मुँह बनाए घोड़े की पीठ से उतरा, उस समय कासी बड़ी प्रसन्नता से, सूराख के रास्ते, उसे देख रही थी। उतरते ही उसने कुइंबो से कहा - "जल्दी जा और टॉम को यहाँ ला। इस मामले में जरूर उसका हाथ है। उसके काले चमड़े के अंदर से सारी बातें बाहर निकालनी होंगी।"

 टॉम को पकड़कर लाने के उद्देश्य से सांबो और कुइंबो, दोनों बड़ी प्रसन्नता से उछलते-कूदते हुए चले। आपस में इन दोनों की एक घड़ी नहीं बनती थी, लेकिन टॉम पर इन दोनों की ही शनि-दृष्टि थी, क्योंकि लेग्री ने टॉम को अपना मुख्य परिदर्शक बनाने का संकल्प लिया था।

 सांबो और कुइंबो ने टॉम से जाकर कहा - "चलो, साहब बुला रहे हैं।" और हाथ पकड़कर वे उसे ले जाने लगे। टॉम ने जान लिया कि कासी और एमेलिन के भागने का वृत्तांत पूछने के लिए ही लेग्री उसे बुला रहा है। टॉम सब बातें जानता था और वे इस समय कहाँ हैं, इसका भी उसे पता था, पर उसने मन-ही-मन ठान लिया था कि चाहे जान चली जाए, पर वह इस गुप्त भेद को प्रकट करके उन दोनों अनाथ औरतों को सर्वनाश के मुँह में नहीं जाने देगा। यह सोचकर, वह ईश्वर के चरणों में अपने को सौंपकर, मृत्यु के लिए कटिबद्ध हो गया। वह हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना करने लगा - "ओ परम पिता, मैं आपके हाथों में अपने प्राणों का समर्पण करता हूँ, आज तक आपने ही मेरी रक्षा की है।"

 उसे ले जाते हुए कुइंबो कहने लगा - "अहा-हा! अब की बार बच्चू को छठी का दूध याद आ जाएगा, आज मालिक बेहद गुस्सा हो गए हैं। अब छिपने-छिपाने की गुंजाइश नहीं है, सारी बातें पेट से बाहर निकालनी पड़ेंगी। गुलामों को भागने में मदद देने से क्या मजा आता है, यह अबकी बार ही मालूम पड़ेगा। अबकी बार तेरी खोपड़ी दुरुस्त हो जाएगी।"

 कुइंबो की असभ्य और क्रूर बातें टॉम के कानों में नहीं पहुँचीं। जिस समय कुइंबो यह सब बकवास कर रहा था, उस समय टॉम के कानों में अति मधुर कंठ के ये शब्द सुनाई दे रहे थे - "शारीरिक यातना देनेवालों से भय मत करो, क्योंकि इसके आगे उनका कोई बस नहीं है।"

 इस उत्साहपूर्ण वाक्य को सुनने से टॉम को अपनी हड्डियों तक में नए बल का अनुभव हुआ। लगा, जैसे ईश्वर के स्पर्श-मात्र से उसके शरीर में नया रक्त और उत्साह दौड़ने लगा है। सैकड़ों आत्माओं का बल मानो उस अकेले की आत्मा में प्रवेश कर रहा है। आगे बढ़ते हुए वह ज्यों-ज्यों पेड़-पत्तों, लता-पादपों एवं दासों के झोपड़ों को पीछे छोड़ता जाता था, त्यों-त्यों उसे मालूम हो रहा था, मानो वह अपनी दुरावस्था को भी पीछे छोड़ता जा रहा है। उसकी आत्मा आनंद में नृत्य करने लगी। उसके पिता का घर निकट आ गया है, उसकी दासता की बेड़ियों के टूटने का समय आ पहुँचा है!

 लेग्री ने टॉम के कोट का कालर पकड़कर खींचते हुए बड़े क्रोध से कहा - "टॉम, तू जानता है कि मैंने तुझे मार डालने का संकल्प कर लिया है!"

 टॉम ने धीरता से कहा - "यह आपके लिए बहुत सहज काम है सरकार!"

 लेग्री बोला - "टॉम, तू इन भगोड़ी दासियों के संबंध में जो कुछ जानता है, मेरे सामने कह दे, नहीं तो आज मैंने तेरी जान लेने की ठान ली है।"

 टॉम इस प्रश्न पर चुप खड़ा रहा।

 खूंखार शेर की तरह गरजते हुए तथा जमीन पर पैर मारते हुए लेग्री बोला - "मैं जो पूछ रहा हूँ, उसका जवाब दे!"

 टॉम ने दृढ़ता और धीरज से साफ शब्दों में कहा - "सरकार, मुझे कुछ नहीं कहना है।"

 लेग्री गालियाँ देते हुए बरसा - "पाजी, काले ईसाई, तू मुझसे यह कहने की हिम्मत कर सकता है कि तू उनके बारे में कुछ नहीं जानता?"

 टॉम चुप खड़ा था।

 लेग्री उसे मारते हुए जोरों से गरजा - "जल्दी बोल! तू क्या जानता है?"

 टॉम ने कहा - "सरकार, मैं जानता हूँ, पर बता नहीं सकता। मुझे मरना स्वीकार है।"

 यह सुनकर लेग्री कुछ देर गुस्से को थामकर बोला - "सुन बे टॉम! एक बार मैंने तुझे छोड़ दिया, इससे तू यह मत समझ कि अब की बार भी छोड़ दूँगा। इस बार मैंने ठान लिया है कि कुछ रुपयों का नुकसान हो जाए तो कोई परवा नहीं। मैं या तो तुझे अपने काबू में करूँगा, या तेरे शरीर से रक्त की एक-एक बूँद निकालकर तेरी जान ले लूँगा।"

 टॉम ने एक बार उसकी आँखों में अपनी आँखें डालकर देखा और उत्तर दिया - "सरकार, अगर आप बीमार होते, किसी आफत में फँसे होते, या आपकी जान के लाले पड़े होते और मेरे प्राण देने से आप बच सकते, तो मैं आपके लिए प्रसन्नता के साथ अपने प्राण न्यौछावर कर देता। अब भी अगर मेरी इस तुच्छ देह के रक्त से आपकी आत्मा का कल्याण हो सके तो मैं बड़ी खुशी से आपके लिए अपने शरीर का सारा खून बहाने के लिए तैयार हूँ; परंतु सरकार, इस नर-हत्या रूपी भयंकर पाप से अपनी आत्मा को कलंकित न कीजिए। इस काम में मेरी निस्बत आपकी ही अधिक बुराई होगी। मेरे प्राण आप खुशी से ले सकते हैं - इससे मेरे तो सारे ही दु:खों का खात्मा हो जाएगा, परंतु अपने पिछले पापों तथा इस नवीन नर-हत्या रूपी पाप के कारण आपका बहुत ही अमंगल होगा। सरकार, एक बार इस पर गौर करके देखिए।"

 टॉम की यह बात सुनकर उस पाषाण-हृदय नर-पिशाच अंग्रेज के मन में भी पल भर के लिए डर पैदा हो गया। उसे ऐसा मालूम पड़ा जैसे स्वर्ग से उतरा कोई देवदूत उपदेश दे रहा हो।

 लेग्री चकित होकर टॉम का मुँह देखने लगा। उस समय वहाँ खड़े सब लोग एकदम सन्न थे। ऐसा सन्नाटा छाया हुआ था कि सुई भी गिरती तो सुनाई देती। यह लेग्री के चरित्र को सुधारने का अंतिम सुयोग था।

 पापी मनुष्य को अपकर्मों से दूर होने के लिए मंगलमय परमात्मा समय-समय पर, पल-पल पर, अवसर देते हैं; क्षण-क्षण पर पापी की आँखों के सामने ऐसी अवस्थाएँ आती हैं कि वह इस ईश्वर-प्रदत्त सुअवसर का सदुपयोग करके, सहज में आत्म-संयम करके, अपने जीवन की गति को बदल सकता है। लेग्री, खूब सोच लो, तुम्हारे लिए यह अंतिम अवसर है।

 परंतु सारे जीवन नर-हत्या करते-करते इन अर्थ-पिशाच स्वार्थी गोरों का हृदय पत्थर से भी ज्यादा सख्त हो गया था। अत: साधु-भाव क्षण भर से अधिक इस हृदय पर नहीं टिक सका। लेग्री दो-चार पल ठहरा। एक बार मन में विचार आया कि क्या करूँ? इस चिंता ने मन को डाँवाडोल किया, किंतु अभ्यस्त पैशाचिक भाव के मन में आते ही, तत्काल लेग्री का क्रोध भड़क उठा और वह गाय के चमड़े से बने चाबुक से टॉम को पीटने लगा।

 उस दिन के भीषण लोमहर्षक कांड का वर्णन करने में लेखनी एकदम असमर्थ है। नृशंस प्रकृति का मनुष्य बिना हिचकिचाहट के जो भयंकर अत्याचार करता है, उसे सुनने में भी सहृदय मनुष्य कानों पर हाथ रख लेते हैं। सिर्फ हाथ ही नहीं रखते, कभी-कभी उन कठोर अत्याचारों की बात सुनकर उनके हृदय में बरछी-सी लग जाती है और उनकी मौत का कारण बन जाती है। इसी से दूसरों का कष्ट देखकर इवान्जेलिन के हृदय की ग्रंथि खुल गई और वह संसार को त्यागकर परमपिता की गोद में चली गई।

 परम कारुणिक ईसा ने संसार के कल्याण के लिए बड़ी-से-बड़ी यातनाएँ, घोर-से-घोर संकट तथा दुस्सह अपमान सहे थे, इसी से वे मृत्यु के उपरांत देवता समझे गए। फिर उन्हीं ईसा का प्रचारित ईसाई-धर्म जिनकी एकमात्र पूँजी है, वे भला क्यों इस यातना को सहने में असमर्थ होने लगे? जिन राजाओं के भी राजा परमेश्वर ने 1900 वर्ष पूर्व ईसा की सूली के पास आकर कहा था - "बेटा, कोई डर नहीं है! चले आओ! तुम्हारे लिए स्वर्ग-राज्य का द्वार खुला हुआ है।" - वही अनंत मंगलमय जगत-पिता आज, पार्थिव पद और प्रभुत्व से हीन दीन टॉम के पास खड़ा होकर उसे आश्वस्त कर रहा है और मधुर कंठ से कह रहा है - "कोई भय नहीं है, टॉम! तुम्हारी दु:ख-निशा का अंत हो गया। स्वर्ग का द्वार तुम्हारे लिए मुक्त है। तुम राजमुकुट धारण करके स्वर्ग-राज्य में प्रवेश करो। तुम्हें उठा लेने के लिए मेरी भुजाएँ फैली हुई हैं।"

 मार खाते-खाते जब टॉम बेदम हो गया और उसके प्राण निकलने की तैयारी होने लगी, तब भी उसे लुभाने के लिए लेग्री ने कहा - "भागी हुई दासियाँ कहाँ हैं? अब भी बता दे, तो तुझे छोड़ सकता हूँ।"

 परंतु जिसने परमपिता के हाथों में आत्म-समर्पण कर दिया है, उसे कौन लुभा सकता है। उसके मुख से "हे पिता!" "हे परमेश्वर!" के सिवा कोई आवाज नहीं निकली।

 टॉम का धीरज देखकर क्रूर हत्यारे सांबो का हृदय भी क्षण भर के लिए पिघल गया। उसने लेग्री से कहा - "सरकार, अब और मार की दरकार नहीं। इसकी जान तो यों ही निकल जाएगी।"

 लेकिन पापिष्ठ लेग्री ने फिर कहा - "अभी और मार! और मार! जब तक कोई बात नहीं बताएगा, तब तक मैं इसे नहीं छोडूँगा।"

 इसी समय धरा पर क्षत-विक्षत पड़े हुए मुमूर्ष टॉम ने लेग्री की ओर देखकर कहा - "ओ अभागे! तू मेरा और अधिक कुछ नहीं कर सकता। जा, मैं तेरे सारे अपराधों को क्षमा करता हूँ।" इतना कहते-कहते वह अचेत हो गया।

 उसके शरीर को हिला-डुला कर देखते हुए लेग्री ने कहा - "मालूम होता है, मर गया। अच्छा हुआ, अब इसका मुँह बंद हो गया।"

 यह ठीक है लेग्री, कि तूने उसका मुँह तो बंद कर दिया, पर उसकी आवाज तो तेरे अंत:करण में सदा गूँजती रहेगी! उसे कौन बंद कर सकेगा?

 फिर लेग्री वहाँ से चला गया। लेकिन टॉम के प्राण अभी शरीर से नहीं निकले थे। मार के समय टॉम ने जो प्रार्थना की थी, उसे सुनकर सांबो और कुइंबो जैसे नर-पिशाचों का हृदय भी पिघलने लगा। लेग्री के चले जाने पर वे दोनों तुरंत उसे उठाकर एक झोपड़ी के अंदर ले गए और टॉम को बचाने की चेष्टा करने लगे।

 सांबो बोला - "हम लोगों ने बड़ा पाप-कर्म किया है। आशा है, इसके लिए मालिक ही को जवाब देना पड़ेगा, हम लोगों का कुछ न होगा।"

 फिर वे दोनों टॉम के जख्मों को धोने लगे। घावों को धोकर उन्होंने उसे एक खाट पर लिटा दिया। इसके बाद उनमें से एक लेग्री के पास गया और अपने पीने का बहाना बनाकर थोड़ी-सी ब्रांडी ले आया और थोड़ी-थोड़ी करके टॉम के गले में डालने लगा।

 कुछ देर में टॉम को होश आ गया। कुइंबो बोला - "टॉम भाई! हम लोगों ने तुम पर बड़े-बड़े अत्याचार किए हैं।"

 टॉम ने कहा - "मैं हृदय से तुम लोगों को क्षमा करता हूँ।"

 सांबो ने कहा - "टॉम, हमें एक बात बताओ कि ईसा कौन है? तुमने जिसे पुकारा था, वह कौन है?"

 ईसा का मधुर नाम सुनकर टॉम के शरीर में बल आ गया। वह तेजी के साथ ईसा की दया की कथा कहने लगा। तब इन दोनों नराधमों का दिल भी पसीजा और वे काँपते हुए बोले - "आहा! ऐसा सुंदर नाम हमने पहले कभी नहीं सुना था। हे ईश्वर! हमपर दया कर!"

 टॉम ने कहा - "ओ अभागों! तुम्हें धर्म-मार्ग पर ले जाने के लिए मैं सारे कष्ट उठा सकता हूँ।"

 इतना कहकर उसने इन दोनों की आत्माओं के उद्धार के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।

 टॉम की प्रार्थना पूरी हुई। सांबो और कुइंबो ने उसी समय कुपथ छोड़कर सुपथ पर चलने की दृढ़ प्रतिज्ञा की।

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