टॉम काका की कुटिया - 35 Harriet Beecher Stowe द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टॉम काका की कुटिया - 35

35 - नरक-स्थरली

बड़े ही दुर्गल और बीहड़ रास्ते से एक गाड़ी चली आ रही है। उसके पीछे-पीछे टॉम और कई गुलाम बड़ी कठिनाई से मार्ग पार कर रहे हैं। गाड़ी के अंदर हजरत लेग्री साहब बैठे हुए हैं। पीछे की ओर माल-असबाब से सटी दो स्त्रियाँ बँधी हुई बैठी हैं। यह दल लेग्री साहब के खेत की ओर जा रहा है।

 यह जन-शून्य मार्ग मुसाफिरों के लिए वैसे ही कष्टकर था; पर स्त्री, पुत्र और पिता-माता से बिछुड़े हुए गुलामों के लिए तो यह और भी दु:खदायक था। इस दल में अकेला लेग्री ही ऐसा था, जो मस्त चला जा रहा था। बीच-बीच में वह ब्रांडी का एकाध घूँट लेता जाता था। कुछ दूर आगे बढ़ने पर उसको नशा चढ़ आया। उससे उत्तेजित होकर अपने गुलामों को गाने का हुक्म दिया। भला उन दु:खी हृदयों से कहीं संगीत की ध्वनि निकल सकती थी? वे सब एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। लेकिन लेग्री ने उनपर चाबुक फटकारते हुए कहा - "गाओ सूअरो, देर क्यों करते हो।"

 तब टॉम ने गाना आरंभ किया :

 मेरे यरूशलम सुख-धाम,

 कितना मधुर तुम्हारा नाम।

 नाश जब होगा दु:ख का फंद,

 लूँगा तब दर्शन-आनंद!

 लेग्री को टॉम का गाना बिलकुल पसंद नहीं आया, उल्टा वह गुस्से से उस पर चाबुक चलाकर बोला - "रहने दे अपने भजन-वजन! मैं नहीं सुनना चाहता। मैं एक मजेदार गीत सुनना चाहता हूँ।" अब लेग्री के साथ उसका जो एक पुराना नौकर था, वह गाने लगा-

 तुमको कहता कौन मनुज, बाबा, तुम राक्षस-अवतार।

 हरते हृदय-हारिणी निज पत्नी की गर्दन मार ।।बाबा.।।

 कपि-स्वाभाव हनुमत के चेले, ये सब हैं तब पापड़ बेले।

 स्वाँग सभ्यता के वश खेले, केवल सभा-मंझार ।।बाबा.।।

 ईसा मूसा का सिर खाया, और सकल उपदेश भुलाया।

 इब्राहीम दास दल भाया, थे जो कई हजार ।।बाबा.।।

 उस हब्शी गुलाम के इस तरह गला फाड़-फाड़कर चिल्लाने पर लेग्री ऐसा मस्त हुआ कि खुद भी उसी के सुर-में-सुर मिलाकर चीखने लगा। रास्ते भर मालिक और नौकर दोनों यों ही गाते हुए चले जाते थे।

 थोड़ी देर बाद लेग्री ने एमेलिन की ओर घूम-घूमकर उसके कंधे पर हाथ धरते हुए कहा - "प्यारी जान, अब हमारा घर आ पहुँचा।"

 लेग्री ने जब एमेलिन का तिरस्कार किया था, तब वह बहुत ही डरी थी। पर अब, जब इस नीच ने, प्यारी जान कहकर उसके कंधे पर हाथ रखा, तब उसने सोचा कि इस मधुर व्यव्हार की अपेक्षा लेग्री यदि उसे ठोकर मारता तो कहीं अच्छा था। लेग्री की आँखों का भाव देखते ही एमेलिन की छाती धड़कने लगी। लेग्री के छूने से वह और पीछे हट गई और पूर्वोक्त रमणी के साथ सटकर उसकी ओर ऐसी कातर दृष्टि से देखने लगी जैसे संकट के समय बच्चा माँ की ओर देखता है।

 फिर लेग्री ने उसके कान छूकर कहा - "तुमने कभी झुमका नहीं पहना?"

 "जी नहीं! डरत हुए एमेलिन बोली।"

 "तुम यदि मेरी बात सुनो और मानो तो मैं घर चलकर तुम्हें एक जोड़ा झुमका दूँगा। तुम्हें इतना डरने की जरूरत नहीं। मैं तुमसे कोई बहुत मेहनत का काम नहीं लूँगा। तुम मेरे साथ मौज में रहोगी, बड़े आदमियों की तरह रहोगी - सिर्फ मेरी बात माननी पड़ेगी।"

 यों ही बातें होते-होते गाड़ी लेग्री के खेत के पास जा पहुँची। पहले इस खेत का मालिक एक अंग्रेज था। वह लेग्री-जैसा नीच नहीं था। उस समय यह जगह भी देखने में आज-जैसी बेडौल न थी। लेकिन उसका दिवाला निकल जाने पर लेग्री ने बड़े सस्ते दामों में यह खेत खरीद लिया था। इस समय यह जगह बिलकुल नरक के समान दिखाई पड़ती थी।

 गाड़ी जब घर के फाटक पर पहुँची, तब तीन-चार दासों के साथ शिकारी कुत्ते खड़खड़ाहट सुनकर भौंकते हुए बाहर निकले। पीछे से यदि वहाँ का एक हब्शी गुलाम इन कुत्तों को न डाँटता और लेग्री उतरकर इन्हें न पुकारता, तो जरूर ये कुत्ते टॉम और नए आए दासों को नोच डालते।

 लेग्री ने टॉम तथा दूसरे गुलामों की ओर घूमकर कहा - "देखते हो, कैसे बेढब कुत्ते हैं। अगर किसी ने यहाँ से भागने की कोशिश की, तो ये कुत्ते बोटी-बोटी नोच डालेंगे।"

 फिर लेग्री ने पुकारा "सांबो!"

 एक नर-पिशाच-सा हब्शी सामने आकर खड़ा हो गया।

 लेग्री ने पूछा - "काम-काज तो खैरियत से चल रहा है?"

 "जी हुजूर, बड़ी खैरियत से।"

 फिर "कुइंबो" कहते ही एक और नर-पिशाच वहाँ आ पहुँचा। वह अब तक एक किनारे खड़ा अपने मालिक का मन अपनी ओर खींचने की चेष्टा कर रहा था।

 लेग्री ने पूछा - "उस दिन तुझसे जो काम करने को बताया था, वह सब हुआ?"

 "जी हाँ, सब हो गया।"

 ये दो काले पिशाच लेग्री के खेत के प्रधान कार्याध्यक्ष थे। बहुत दिनों से निर्दयी आचरण करते-करते अब ये ऐसे नृशंस हो गए थे कि कोई भी नीच-से-नीच काम करने में नहीं हिचकते थे। लेग्री ने इन्हें शिकारी कुत्तों से भी बढ़कर खूंखार बना दिया था। गुलामी की प्रथा के देश में ये हब्शी अंग्रेजों से भी अधिक अत्याचार करने लगे थे। और कोई कारण नहीं, केवल इन हब्शियों की आत्मा का बेहद पतन हो गया था। संसार में चाहे जिधर नजर उठा कर देखिए, अत्याचार-पीड़ित या चिर-पराजित जाति के लोगों के मन में किसी प्रकार का वीरोचित भाव नहीं जमने पाता। ऐसी जाति के हृदय में नीचता, ईर्ष्या, द्वेष और हिंसा आदि अनेक प्रकार के दोष अपना घर कर लेते हैं।

 अपने खेत का काम खूबी से चलाने के लिए लेग्री ने एक बड़ी चाल खेल रखी थी। वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि अत्याचार-पीड़ित जाति के लोगों में परस्पर किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं होती। कुइंबो सांबो से खार खाता था और जलता था और सांबो कुइंबो से। मौका मिलने पर कोई किसी की बुराई करने से न चूकता था और खेत के और गुलाम इन दोनों से द्वेष रखते थे। लेग्री सांबो का कुसूर कुइंबो से और कुइंबो का सांबो से जान लेता था।

 लेग्री के सामने उसके दोनों पार्षद सांबो और कुइंबो के खड़े होने पर ऐसा जान पड़ता था, मानो तीन भयानक दानव खड़े हैं। जंगल के खूंखार पशुओं से भी इनकी प्रकृति निकृष्ट थी। उनकी वे भयावनी शक्लें, डरावनी आँखें और कर्कश आवाज सर्वथा इस स्थान के उपयुक्त जान पड़ती थीं।

 लेग्री ने कहा - "सांबो, इन सबको ठिकाने पर ले जा। यह औरत तेरे लिए लाया हूँ। मैंने तुझसे वादा किया था कि अबकी बार तेरे लिए एक गोरी मेम लाऊँगा। इसे ले जा।" इतना कहकर एमेलिन की जंजीर से बँधी हुई लूसी को खोलकर सांबो की ओर ढकेल दिया।

 लूसी चौंककर पीछे हटी और बोली - "सरकार, नव अर्लिंस में मेरा बूढ़ा पति है।"

 लेग्री ने कहा - "तो इससे क्या हुआ? यहाँ तुझे एक पति नहीं चाहिए? मैं वे सब बातें नहीं सुनता। (चाबुक उठाकर) जा, चुपचाप सांबो के साथ हो ले।"

 फिर एमेलिन से बोला - "प्यारी, आओ, तुम मेरे साथ अंदर चलो!"

 लेग्री ने आँगन में खड़े होकर जब एमेलिन को "प्यारी" कहा, तब घर के झरोखे में से एक स्त्री का चेहरा बाहर झाँकते हुए दिखाई दिया। दरवाजा खोलकर लेग्री के अंदर जाते ही उस स्त्री ने गुस्से से दो-चार बातें सुनाई। इस पर लेग्री ने कहा - "तेरा साझा, चुप रह! जो मेरे जी में आएगा, करूँगा। एक छोड़कर तीन लाऊँगा।"

 टॉम अश्रुपूर्ण नेत्रों से एमेलिन की ओर देख रहा था। उसने लेग्री की सब बातें सुनी थीं, पर आगे न सुन सका, क्योंकि वह शीघ्र ही सांबो के साथ चला गया।

 लेग्री के दासों के रहने का स्थान बड़ी ही मैला-कुचैला और गंदा था। घुड़साल की तरह फूस की छोटी-छोटी झोपडियाँ थी। उन सब गंदी झोपड़ियों को देखकर टॉम की जान सूख गई। वह पहले खुद ही एक झोपड़ी में इधर-उधर घूमकर अपनी बाइबिल रखने के लिए कोई जगह ढूँढ़ने लगा। फिर सांबो से बोला - "इनमें से मुझे कौन-सी झोपड़ी मिलेगी?"

 सांबो ने कहा - "अभी तो मालूम नहीं, सारी झोपड़ियाँ बंद पड़ी हैं। तुमको कहाँ रखा जाएगा, सो मैं नहीं जानता।"

 बड़ी देर के बाद टॉम को एक जगह मिली, पर वह ऐसी जगह थी, जिसके बारे में कुछ कहने की आवशकयता नहीं।

 शाम को सब दास-दासी खेत से अपनी-अपनी झोपड़ी को लौटे। इनमें से हर एक के बदन पर फटे-पुराने कपड़े थे, शरीर धूल से लथपथ और मुँह बिलकुल पिचके हुए। अकाल-पीड़ित लोगों की भाँति भूख-प्यास से घबराकर वे झोपड़ियों में घुसे। सुबह से शाम तक ये खेत में काम पर पिसे, बीच-बीच में कितनी ही बार कारिंदे की लातें और चाबुकों की मार खाई। अब इस वक्त यहाँ आकर इन्हें खाने के लिए एक-एक पाव गेहूँ दिया गया। उसी गेहूँ को पीसकर इन्हें रोटियाँ पकानी पड़ेंगी। अपना साथी होने लायक कोई आदमी ढूढ़ने की गरज से टॉम हर एक पुरुष और स्त्री का मुँह ध्यान से देखने लगा, पर यहाँ उसे एक बालक तक में मनुष्यात्मा की गंध न मिली। पुरुष पशुओं की तरह खूँखार, खुदगर्ज और बेरहम थे; स्त्रियाँ बहुत सताई गई और कमजोर थीं। उनमें दूसरी जो कुछ सबल थीं वे निर्बलों को धकेलकर अपना काम बनाती चली जा रही थी। किसी के मुख पर दया का नामोनिशान तक न था। हर एक दूसरे को वैर-भाव से घूर रहा था। सबको अपने-अपने पेट की चिंता पड़ी थी। वास्तव में घोर अत्याचार सहते-सहते उनका कलेजा पत्थर जैसा कठोर हो गया था। भूख-प्यास के सिवा मानव-प्रकृति की अन्य सब प्रकार की आकांक्षाएँ मिट गई थीं। संध्या-समय हर एक को जो गेहूँ मिलता, उसे सब अलग-अलग पीसते। दासों की संख्या के हिसाब से चक्कियों की संख्या बहुत कम थी। इससे बड़ी रात तक चक्कियों की घरघराहट चला करती। जो बलवान थे वे सबसे पहले अपना काम बना लेते, और निर्बलों की भोजन बनाने की बारी सबके अंत में आती।

 लेग्री ने सांबो को जो अधिक अवस्थावाली स्त्री सौंपी थी, उसकी ओर सांबो ने एक थैली गेहूँ फेंककर पूछा - "तेरा नाम क्या है?"

 स्त्री ने कहा - "लूसी।"

 "अच्छा, लूसी, आज से तुम मेरी औरत हो। यह गेहूँ ले जाकर मेरे और अपने खाने के लिए रोटियाँ पका लो।"

 "मैं तुम्हारी स्त्री नहीं हूँ, कभी होने की भी नहीं। तुम यहाँ से जाओ।"

 "फिर ऐसा कहेगी तो डंडे से सिर फोड़ दूँगा।"

 "तेर खुशी! अभी मार डाल! जितनी जल्दी मौत आए उतना ही अच्छा। अब तक मर गई होती तो अच्छा था।"

 सांबो जब उसे मारने चला तब कुइंबो ने, जो कई स्त्रियों को धकेलकर अपना गेहूँ पीस रहा था, कहा - "खबरदार सांबो, आदमी मारकर तुम काम का नुकसान करते हो। मैं मालिक से कह दूँगा।"

 इस पर सांबो ने कहा - "मैं मालिक से कह दूँगा कि तू चार स्त्रियों को धकेलकर अपना गेहूँ पीस रहा था।"

 टॉम को सारे दिन पैदल चलना पड़ा था, इससे वह थककर चूर हो गया था। भूख से तबियत परेशान थी, पर ठिकाना नहीं था कि कब खाना नसीब होगा। कुइंबो ने उसके हाथ में एक थैली गेहूँ थमाकर कहा - "ले यह गेहूँ, जा रोटी बना-खा। यह एक हफ्ते की खुराक है।"

 करीब आधी रात तक टॉम देखता रहा, पर उसकी गेहूँ पीसने की बारी न आई। रात के एक बजे जब चक्की खाली हुई तो उसने देखा कि दो रोगी स्त्रियाँ चक्की के पास बैठी हुई हैं। वे बहुत थकी हुई थीं, उनके शरीर में ताकत नहीं थी। यहाँ बहुत पहले आने पर भी अब तक उन्हें किसी ने गेहूँ नहीं पीसने दिया।

 टॉम ने उठकर पहले उनके गेहूँ खुद पीस दिए और फिर अपने पीसे। यह पहला मौका था। इसके पहले कभी किसी ने दया नहीं दिखाई थी। यहाँ के लिए यह एक अलौकिक बात थी। बहुत मामूली दया का काम होने पर भी टॉम का यह आचरण देखकर उन दोनों स्त्रियों का हृदय कृतज्ञता से भर गया। उनका श्रम-खिन्न कठोर मुँह स्त्री-सुलभ ममता के भाव से चमक उठा। बदले में उन्होंने टॉम की रोटियाँ बना दीं। जब वे दोनों रोटियाँ बना रही थी, टॉम ने चूल्हे के पास बैठकर अपनी बाइबिल निकाली। उसके हाथ में पुस्तक देखकर एक स्त्री ने कहा - "तुम्हारे हाथ में यह क्या है?"

 टॉम ने कहा - "बाइबिल।"

 "दीनबंधु, केंटाकी छोड़ने के बाद अब तक बाइबिल के दर्शन नहीं हुए थे।"

 टॉम ने चाव से कहा - "तुम क्या पहले केंटाकी में थी?"

 "हाँ, वहीं थी, और अच्छी थी। कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसी दुर्दशा में पड़ना होगा।"

 दूसरी स्त्री ने कहा - "वह कौन-सी पुस्तक बताई?"

 टॉम बोला - "बाइबिल।"

 दूसरी स्त्री ने कहा - "बाइबिल क्या होती है?"

 पहली स्त्री बोली - "तुमने क्या कभी इस पुस्तक का नाम नहीं सुना? केंटाकी में मेरी मालकिन कभी-कभी यह पुस्तक पढ़ा करती थी। तब मैं भी सुना करती थी। यहाँ तो केवल गाली-गलौज सुनने में आती है। अच्छा, तुम पढ़ो, जरा मैं भी सुनूँ।"

 टॉम बाइबिल में से पढ़ने लगा- "थके मांदे, भार से दबे हुए मनुष्यों, तुम मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।"

 पहली स्त्री ने कहा - "वहा, ये तो बड़ी बढ़िया बात है। ये बातें कौन कहता है?"

 टॉम बोला - "ईश्वर!"

 पहली स्त्री ने पूछा - "ईश्वर कहाँ मिलेंगे? पता लग जाता तो मैं उनके पास जाती। उनके पास गए बिना मुझे विश्राम नहीं मिलेगा। मेरा शरीर बहुत थक गया है। इस पर सांबो मुझे नित्य धमकाता और कोड़े लगाता है। कोई दिन ऐसा नहीं होता कि आधी रात के पहले खाना नसीब हो जाए। खाकर जरा आँख झपकी कि सवेरा हुआ ही दीखता है और चट से खेत में जाने का घंटा बज जाता है। अगर परमेश्वर का पता मालूम हो जाता तो उनसे ये सब बातें जाकर कहती। हाय भगवान, अब तो यह कष्ट नहीं सहा जाता।"

 टॉम ने कहा - "ईश्वर यहाँ भी है, और सब जगह है।"

 स्त्री बोली - "तुम्हारी बात पर मेरा विश्वास नहीं जमता, ऐसी बातें बहुत बार सुनी हैं कि ईश्वर यहाँ है, वहाँ है; पर न मालूम कहाँ है कि हम लोगों का दु:ख देखकर भी वह क्यों कुछ नहीं करता। मैं अब झोपड़ी में लेटकर सोती हूँ, यहाँ ईश्वर हर्गिज नहीं है।"

 यह कहकर वह स्त्री चली गई। टॉम अकेला बैठा प्रार्थना करने लगा।

 नीले आकाश में जैसे यह चंद्रमा उदय होकर चुपचाप, गंभीरतापूर्वक जगत का निरीक्षण कर रहा है, उसी प्रकार परमात्मा चुपचाप गंभीर भाव से जगत् के पाप, ताप और अत्याचारों को देख रहा था। जिस समय यह काला गुलाम हाथ में बाइबिल लिए हुए असहाय दशा में उसको पुकार रहा था, उस समय उसकी हर बात उस परमात्मा के कानों तक पहुँच रही थी। वह घट-घट व्यापी अंतर्यामी है। पर ईश्वर यहाँ मौजूद है, इसका विश्वास उस अनपढ़ स्त्री को कोई कैसे कराए? भला इस अत्याचार और यंत्रणा में पड़ी हुई ऐसी स्त्री के लिए ईश्वर पर विश्वास करना कब संभव हो सकता था?

 टॉम के मन को आज उपासना के अंत में पूरी शांति नहीं मिली। वह बड़े अशांत चित्त से सोने गया। किंतु झोपड़ी की गंदी हवा और दुर्गंध के मारे उसकी वहाँ ठहरने की इच्छा न होती थी, लेकिन करता क्या? बेतरह थका हुआ था, जाड़ा भी सता रहा था, लाचार जाकर पड़ रहा। सोते ही आँख लग गई, स्वप्न आया, मानो झील के किनारे बाग में वह चबूतरे पर बैठा हुआ है और इवा बड़ी गंभीरता से उसके सामने बाइबिल पढ़ रही है।

 "जब तुम जल पर से पैदल जाओगे तब मैं तुम्हारे साथ रहूँगा और जल तुम्हें डुबा न सकेगा। जब तुम अग्नि में कूदोगे, तब भी मैं तुम्हारे साथ रहूँगा, इससे अग्नि तुम्हें जला न सकेगी। मैं तुम्हारा एकमात्र विधाता और परमेश्वर हूँ।"

 ये शब्द मधुर संगीत की भाँति टॉम के कानों में गूँजने लगे, मानो इवा सोने के रथ पर चढ़ी हुई बार-बार स्नेह-दृष्टि से उसकी ओर देखती हुई आकाश में उड़ रही थी और रथ में से उस पर फूलों की वर्षा कर रही थी।

 टॉम की आँख खुल गई। लेकिन यह कैसा स्वप्न है? अविश्वासी इसे स्वप्न समझकर झूठा मान सकता है, पर जिस दयालु बालिका ने जीते-जी सदा, दूसरों के दु:ख पर आँसू बहाए, क्या वह मृत्यु के बाद दु:खी को धीरज देने नहीं आ सकती? क्या यह संभव है? कदापि नहीं!