ब्लाइंड डेट- अंतिम भाग Jitin Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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ब्लाइंड डेट- अंतिम भाग

आने वाला शनिवार तक विकास ने जो ज़िन्दगी जी वो बेमतलब सी थी। पहले प्यार में मिले धोखे जैसी उसे कुछ होश नहीं था। कि वो क्या कर रहा हैं। वो घर पर होने के वक़्त सड़क पर होता और सड़क पर होने के वक़्त घर पर, लेकिन जो बात सबसे ज्यादा मुख्य थी वो ये थी कि उसने इंटर्नशिप प्रोग्राम में जाना छोड़ दिया था। अगर वो वहाँ आ रहा होता तो शायद राजन को कोई फिक्र नहीं होती, लेकिन जब वो नहीं आया तो पाँच दिन बाद शुक्रवार की रात को राजन, विकास के कमरे पर उसका हालचाल लेने पहुँचा और जाकर उससे बड़ी तेज़ आवाज में बोला, “मुझे लगा तूने आत्महत्या करली, पर तु तो ज़िंदा हैं। इस बात के लिए खुशी मनाऊँ या तुझे अब खुद ही मार दूँ।

राजन की बात विकास ने सुनी लेकिन जवाब की जगह अपना सवाल पूछा, “कल चलेगा, फिर दोबारा ब्लाइंड डेट पर”

राजन, ‘मैंने, इस जवाब की तो उम्मीद नहीं की थी।‘

तूने जो उम्मीद की थी, वो भी पूरी हो जाएगी। पहले मेरे सवाल का जवाब तो दे दें।“

राजन, ‘वो तो आज के गिलास तय करेंगे। जवाब हाँ होगा या ना’

अगर गिलासों के ऊपर छोड़ा हैं। फिर तो समझो हाँ ही हैं।

राजन, ‘तो अब मेरे पहले सवाल का जवाब देगा। कम से कम शब्दों में’

'ऐसे समझ ले भाई प्यार हो गया हैं। पहली नज़र का' विकास ने इस बात को ऐसे बोला जैसे उसने सदी की सबसे बड़ी बात कह दी हो और राजन की तरफ समर्थन वाली मुद्रा में देखने लगा।

विकास की बात सुनकर राजन ने अचंभित होना तो चाहा पर चाहकर भी हो नहीं पाया। फिर होठों के बीच अपनी हंसी दबाकर बोला, 'मुझे तुझसे ये उम्मीद नहीं थी।'

"उम्मीद नहीं थी" में विकास को उदासीनता का स्वर लगा। एक पल को उसने सोचा, मैं भी किस से बात करने ने बैठ गया। जिसे प्यार के बारें में रत्ती भर कुछ पता नहीं, लेकिन फिर उसे राजन के अंदर छुपा बैठा अपना मित्र नज़र आ गया और उसने अपने हाल ही में हुए प्रेम को विस्तार से बताना शुरू कर दिया।, "भाई राजन, तु समझा नहीं, 'उस लड़की से मुझे कुछ अलग सा ही प्यार हो गया हैं। इस अलग से को तु जो कहना चाहे कह ले, पर मुझे कुछ तो हो गया हैं। जिस वजह से अब कहीं भी दिल नहीं लगता, कहीं मन नहीं लगता, कहीं भी दिमाग ठिकाने पर नहीं रहता। कुल मिलाकर बात ये हैं। कि मुझे कहीं भी कुछ भी अच्छा नहीं लगता, बस उससे बात करने का मन करता रहता हैं।, दिल की हर एक धड़कन के साथ बस उसे याद करने का मन करता रहता हैं।, दिमाग उसके बारें में और जानने की जिद्द करता रहता हैं।, बाँहें उसे अपने आगोश में लेनी की ख्वाहिश पाल कर बैठी हैं। मेरी हँसी बस अब उसकी ही बातों में खिलखिलाना चाहती हैं।, मेरी बातें तो बस अब उसकी ही बातें करना चाहती हैं। और मेरे सोचने की क्षमता तो बस उसके ही ख्यालों में खोना चाहती हैं। तू ढंग से समझ नहीं रहा राजन, मेरे पूरे बदन की हर चीज़ अंदर बाहर दोनों तरफ की बस उसका ही राग गाना चाहती हैं।

विकास की बात बीच में ही काटते हुए राजन बोला, "रुक जा भाई, साँस लेलें, ठंड रख...तू तो ऐसे कर रहा हैं। जैसे दुनिया में तू पहला मर्द हैं। और वो पहली औरत और तुम दोनों का मिलन ना हुआ तो दुनिया का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।

विकास, "मैंने पहले ही कहा था। तेरी समझ ना आएगी मेरी बात, लेकिन तू तो सुन ही नहीं रहा था। और इसी वजह से मैं किसी से भी मिल नहीं रहा था"

राजन, "तेरा पहली बार हैं। क्या, ये प्यार, क्रश, मोहब्बत, रतजगे, बेबसी, बेचैनी, बेख़याली, जो भी तू कहें उस से आमना-सामना"

विकास, "मोहब्बत ने हमें कहीं का ना छोड़ा,

वरना आदमी हम भी काम के थे।"

अबकी बार शेर को सुनते ही राजन समझ गया लड़का बावला हो लिया, और इलाज इस चीज़ उसके पास तो हैं। नहीं, तो फायदा इसी में हैं। कि फ़िलहाल शराब का सेवन किया जाए और उसके बाद शनिवार को ब्लाइंड डेट पर ले जाने का वादा करके अपने घर की तरफ प्रस्थान किया जाए।


दूसरी डेट

विकास तो इन्टरशिप प्रोग्राम में जा नहीं रहा था। इसलिए, उसे वहाँ क्या हो रहा हैं। इस बात की कोई ख़ास परवाह भी नहीं थी। पर राजन के लिए ऐसा नहीं था। अबकी बार इंस्टिट्यूट ने शुक्रवार की सुबह एक नया प्रोग्राम लांच कर दिया। जिसमें शनिवार और रविवार दोनों दिन दिल्ली से बाहर की तरफ करनाल जाना था। पहले तो राजन ने सोचा छुट्टी करकर विकास के साथ जाएगा। पर जब नोटिफिकेशन में अतिरिक्त मार्क्स मिलने की बात पता पढ़ी तो उसने बिना एक भी पल गवाएँ अपना इरादा बदल दिया। और करनाल जाने के लिए तैयार हो गया,ये बात विकास को भी उसने बताई पर उसका जवाब सुनते-सुनते ही उसे फ़ोन बीच में काटना पड़ा। और उसने मान लिया कि अब इस लड़के को पागल होने से कोई नहीं बचा सकता।


राजन तो करनाल चला गया था। इसलिए विकास के साथ जाने वाला अब कोई नहीं बचा था। पर ऐसी स्थिति उसकी मनस्थिति को कमजोर कर देगी ऐसा नहीं था बल्कि, उसे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था। और फर्क पड़ता भी क्यों, आखिर, वो इश्क़ में था। और इश्क़ तो ताक़त देता हैं।

शाम होने से पहले ही विकास जाने की तैयारी में लग गया। उसने अपने सबसे पसंदीदा और भाग्य का साथ देने वाले कपड़े पहने, और आठ बजने से पहले से ही होटल पहुँच गया। उसने ब्लाइंड डेट वाले हॉल में घुसने से पहले अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर लिया और इंतज़ार करने लगा miss poem के आने का….

लोगों का लगातार आना जाना चलता रहा लेकिन miss poem का कहीं कोई पता उसे नहीं लग रहा था। हॉल में भरपूर अँधेरा होने के बावजूद उसे लग रहा था कि जैसे ही miss poem हॉल के अंदर आएगी वो उसे झट से पहचान लेगा। पर काफ़ी देर की मशक्कत के बाद भी ऐसा होता दिखाई नहीं दिया तब उसने सोचा क्यों ना बाहर चला जाए और वहाँ गेट पर ही खड़े होकर अन्दाज़ा लगाया जाए। लेकिन जो ही वो बाहर चलने के लिए उठा उसे कानों में फिर वहीं स्वर पड़ा, जिसने उसे पिछले एक सप्ताह से दीवाना बना रखा था।

ये कैसी मुश्किल हैं। मेरे दिल को मालूम नहीं,

जाने किस तलाश में मुझे ले जाती हैं।

डरती हूँ। मैं इन सब से कहीं भटक ना जाऊं

पर कोई तो कशिश हैं। जो बार-बार मुझे पुकारती हैं।


सब लोगों ने एक बार फिर तालियाँ बजाई। तालियों के खत्म होते ही विकास ने बिना इंतज़ार किए miss poem कह कर पुकारा। आवाज़ सुनकर miss poem की वो लड़की विकास को पहचान गई और वेटर से उसने खुद को विकास के पास ले जाने के लिए कहा,

अब एक बार फिर वे दोनों एक-दूसरे से दस फ़ीट की दूरी पर आमने-सामने बैठे थे।

अबकी बार बात करने की शुरुआत miss poem ने की, "तुम मेरी poem सुनने आये हो या मुझसे मिलने या फिर कोई और बात हैं।"

विकास, "poem तो हम दोनों के बीच की कड़ी हैं। जो हमें मिलाती हैं। क्योंकि तुम्हारी poem के अलावा और हैं। ही क्या हम दोनों के पास जिससे एक-दूसरे को पहचान सकें।"

Miss poem, "अच्छा! ऐसा क्या हैं। मुझमें, मतलब मेरी poem में जो बिना देखें, बिना कुछ भी जाने मुझसे मिलने चलें आए।"

विकास, "क्या हैं? नहीं जानता, ना जानने की कोशिश करनी हैं। पर जब तुम्हारें बारें में सोचता हूँ। तो जैसे लगता हैं। मेरा आने वाला हर पल तुम्हारा हैं। तुम्हारा साथ मुझे मेरे अंदर एक जज़्बात जगाता हैं।"

Miss poem, "लगता हैं। तुम्हें किसी ने बताया नहीं, कुछ देर की मुलाकातें साथ रहना तय नहीं करती। और ये पहली नज़र का प्यार नज़रों का धोखा हैं।"

विकास, "धोखा हैं। फिर तो और अच्छा हैं। हम अपनी ज़िंदगी से जुड़ा हर काम आधा सच जानकर ही करते हैं। सभ्यता के पहले मानव से लेकर आखिरी मानव तक हर कोई अपना जीवन उम्मीद में जिएगा और उम्मीद भी तो एक धोखा ही हैं।"

Miss poem, "ऐसे तो हम शाम तक बतियाते रहेंगे। चलो सीधी बात पर आते हैं। तुम मेरा नाम तक नहीं जानते और साथ रहने की बात करते हो, बिल्कुल स्पष्ठ शब्दों में कहूँ तो मुझसे प्यार करने की बात करते हो, दुनिया के साहित्य के पन्ने पलटकर देखो सभी में प्यार खूबसूरती से होता हैं। और अगर किसी में इसके उल्टा हैं। तो प्यार कम और दया ज्यादा दिखाई देता हैं। जैसे कि सुना होगा तुमने अगर लड़की सुंदर हैं। तो लड़का कहेगा 'मैं तुम्हारें साथ, तुम्हें हरदम प्यार करते हुए साथ रहना चाहता हूँ' और अगर लड़की थोड़ी भी बदसूरत हैं। तो लड़का कहेगा 'मैं तुम्हारें साथ, तुम्हारी हर कमी के साथ तुम्हें अपनाना चाहता हुँ' किंतना विरोधाभास हैं। ना दोनों बातों में, पर ये तो हमारे सभ्य समाज के उदहारण हुए, अगर मैं अपनी बात करूँ, तो बताओ अगर मैं सुंदर नहीं हुई, तो क्या मुझे छोड़ कर चले जाओगे, कुछ लोग कहते हैं। लड़का की खूबसूरती से कम उसके चरित्र से ज्यादा प्यार करता हैं। तो बताओ अगर मैं चरित्रहीन हुई तो क्या मुझे मार दोगे। क्या एक लड़की के आगे अपनी मैं का समर्पण कर सकोगे।"

विकास, "देखो, मैं इतनी बातें नहीं जानता। पर ये तय हैं। कि मैंने तुम्हें बिना देखे पसंद किया हैं। तो उस पसंद को प्यार में ना बदलने के लिए मुझे कोई वजह नहीं दिखती। और जो वजह तुमने ऊपर बताई हैं। मैंने तो वो जानी ही आज हैं।"

Miss poem, "तुम अपनी बातों से मेरे सब्र का बाँध तोड़ रहे हो…. क्या परेशानी होगी प्यार करने में….लगता हैं। तुम अंदाज़ लगाने में कमजोर हो या फिर लगाना ही नहीं चाहते…।हम्ममम्म...एक काम करों थोड़ी देर में मुझे पार्किंग एरिया में मिलों। पता चल जाएगा किसी को बिना देखे पसंद करने का मतलब क्या होता हैं।"

विकास, "ठीक हैं। जैसा तुम चाहो"


सोमवार की शाम;

राजन, "क्यों भाई, क्या हुआ। शनिवार की शाम को दर्शन नहीं हुए क्या, जो ऐसे मुँह लटकाकर बैठा हैं।"

राजन की बात सुनकर, विकास ने एक तीखी नज़र उस पर ऐसे डाली जैसे पूरा देखना उसे किसी मुक़दमे में फंसा देगा, और जल्दी से अपनी नज़र उससे हटाकर तुरंत अपने मोबाइल में गड़ा ली"

यूं तो विकास के ऐसे व्यवहारों की राजन को अब तक अच्छे से आदत पड़ चुकी थी। लेकिन आज उसका इन आदतों के साथ सामंजस्य बनाने का कोई मन नहीं था। इसलिए, उसने उसका कन्धा झंझोड़कर एक बार फिर धमकी भरे लहज़े में पुछा, " बताना भी हैं। कुछ या मैं जाऊं, और आज मेरे जाने का मतलब हैं। महीनों दिख मत जाना मुझे मेरे सामने"

धमकी का असर विकास पर किंतना हुआ ये तो उसे खुद भी पूरी तरह मालूम नहीं था। पर उसने फिर शनिवार की शाम के बारें में बोलना शुरू किया।

"देख भाई, ये पहली नज़र के प्यार-व्यार कुछ नहीं होते हैं। सब नज़रों का भ्रम हैं। जो मुझे भी बड़ी बुरी तरह से हुआ, लेकिन अब सब ठीक हैं। अब ऐसी कोई समस्या नहीं हैं। मेरे ऊपर से जो बोझ उतर गया हैं। ना उसके लिए जितना ईश्वर की आराधना करूँ उतना कम हैं।

राजन, "अबे, सीधा-सीधा बताना वाकई में क्या हुआ हैं। ये फ़ालतू के गीत बाद में गाना"

विकास, "तेरे लिए होंगे फालतू के गीत मेरे लिए नहीं हैं। अब अगर तू नहीं सुन सकता तो कानों में उंगली देले।

वैसे बात भी कुछ नहीं हैं। और बात भी बहुत कुछ हैं। उस दिन शनिवार की शाम को पहले में उससे मिला फिर मेरी उससे बातचीत हुई। मैं प्यार-मोहब्बत की बात कर रहा हूँ। वो पता नहीं कौन सी दुनिया की फालतू की बात गा रही हैं। फिर अचानक से बोली बाहर पार्किंग एरिया में मिल, मैं पहुँचा वहाँ, जाकर देखा तो व्हीलचेयर पर थी बन्दी और चेहरे के उल्टे हाथ की तरफ वाले हिस्सें पर बहुत लंबा सा एक घाव था। अब कोई मुझे बताएँ ऐसी लड़की से कौन प्यार कर सकता हैं। प्यार तो दूर की बात हैं। दस मिनट भी कोई साथ में भी कैसे रह सकता हैं। ऊपर से उसकी बातें अँधेरे में तो फिर भो बर्दाश्त थी लेकिन उजाले में ईश्वर रहम करें। दरअशल, उसने जो आखिरी बात कहीं मुझसे वो बड़ी अजीब सी बात थी। मैंने पहले जीवन में ऐसी कोई फालतू बात नहीं सुनी और उसके कहने के बाद भी मेरी समझ में नहीं आई। उसने कहा कि "अगर मैं कोशिश करके अपने पूरे मन को काबू करके उसे साथ रहने के लिए तैयार भी हो जाऊं तो भी मैं ये नहीं कर सकता।" ये कैसी बात हुई। ये तो मेरी इच्छा हैं। ना कि मुझे किसके साथ रहना हैं। और किसके साथ नहीं, इसमें मन को काबू करना ये बीच में कहाँ से आ गया।


विकास अपनी बात ख़त्म कर चुका था लेकिन राजन को लगा ये साँस लेने के लिए रुका हैं। लेकिन जब 30 सेकंड तक कोई क्रिया नहीं हुई तब राजन बोला, "तूने सब कुछ उसका बताया।, तूने क्या कहा इस बारें में तो कुछ बताया नहीं'

मैं क्या कहता, ऐसी स्थिति में मेरा मानना हैं। कि चुप निकल लो बोल कर ऐसा तो नहीं कि कोई तीर मार लेंगे हम, इसलिए, मैं वहाँ से चुपचाप घर आ गया और अपने पुराने काम में लग गया। और अब सोच लिया हैं। किसी के प्रेम के चक्कर में नहीं पड़ना।

राजन, "अच्छी बात हैं।, ऐसी बातों पर मैं भी क्या कहूँ। 'जो हुआ सौ हुआ' पर अबकी बार उजाले में प्यार करना, अंधेरा तुझ पर भारी पड़ गया।….चल खोल ले बोतल अब किसी तरह तेरे गीत सुनते हुए रात तो गुज़ारनी ही हैं। ना, बचाव के लिए तेरी तरह चुपचाप निकल भी तो नहीं सकते।

विकास, "ये मज़ाक था।"