प्रेम का कमल - 4 Akshika Aggarwal द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम का कमल - 4

उस रात नीरज सो नहीं पाया। उसके आँखो के आगे नीलिमा का ही चेहरा घूम रहा था। जिसके चलते नीरज रात भर करवट बदल रहा था। जैसे तैसे उसे 4 बजे नींद आई तो 5बजे वेक अप अलार्म बज गया। वह धीरे- धीरे आँख मलता हुआ उठा तैयार हो कर अपने तम्बू से बाहर निकला तो वह नीलिमा से टकरा गया। तब उन दोनों की आंख पहली बार चार हुई थी। पहली बार चार हुई थी। नीलिमा का संतुलन बिगड़ गया और वह उसके बाहो में आ गिरी नीरज उसकी सुराई दार गर्दन से अपनी नजरे हटा नही पा रहा था उसके दिल की धड़कन और तेज हो गई। के तभी मिश्री से मीठी आवाज में थैंक यू बोलकर नीलिमा ने अपने आप को सम्भाला और खड़ी हो गयी वो उसकी आँखों की गहराई में अपना दिल डूबा ही चुका था। वह उसे देख कुछ नहीं बोला और हल्की सी मुस्कान नीरज के होंटो पर आ गयी। कि तभी उनका स्काउट गाइड लीडर लोकेश ने सबको बोला "इधर आजाओ टीम बाटनी है" सब एक घेरा बना कर खड़े हो गए।
इत्तिफ़ाक़ से लोकेश ने नीलिमा औऱ नीरज को एक ही टीम में डाला। अब नीरज और नीलिमा एक ही स्कॉउट टीम के मेंबर थे। इस बात से वह बहोत खुश था। एक बार फिर वह नीलिमा को देखने लगा वह उसकी आँखों की गहराई में खो गया। उसकी मुस्कान उसके दिल मे उत्तर गई। वो उसकी आँखों के तलातुम में डूबने ही वाला था कि राज नीरज का दोस्त जो उसकी तरह ही पैसे वाला, मस्त मोला इंसान था वो बोला"कि कहां खो गये जनाब यह गरीब घर की छोटे से परिवार में रहने वाली लड़की है। और तुम 500 करोड़ के एम्पायर के अकेले मालिक तुम्हारा और उसका कोई मेल नहीं" बस इतना सुनते ही उसके मन मे जो प्रेम का गुलाब खिलने वाला था वो घृणा और गुस्से के शौलो में बदल गया
जितना वो उसकी हसीन अदाओं और खूबसूरती का कायल था उतना ही वह उसके गरीब होने से नफरत करता था क्योंकि बात उन दिनों की है जब नीरज के पिता जवान थे और अपना कारोबार जमा ही रहे थे तब उनकी लाई हुई मेहनत की कमाई घर के एक नोकर ने चुरा ली थी जिस कारण वश नीरज के पिता को वयापार में बहोत नुकसान हुआ क्योंकि वह पैसे उनके होने वाली डील में प्रयोग होने वाले थे। और उस डील के ना होने के कारण वह सड़क पर आ गए। बस फिर उसी दिन से उन्हें गरीबो से नफरत हो गयी जिनका असर उनके बच्चों पर भी हुआ उनकी बीवी के अलावा यह बात कोई नहीं समझ पाया के हर गरीब बेईमानी नहीं होता आज भी कुछ करीब पूरी ईमानदारी और वफ़ादारी से अपनी रोजी रोटी कमा रहे हैं।
बस इसीलिए तब से नीलिमा नीरज को एक आंख नहीं भाइ वो उसको देखते ही गुस्से से लाल हो जाता था उसको देख ते ही नीरज के तन बदन में आग लग जाती उसे बिल्कुल मंजूर नहीं था की नीलिमा उसकी टीम में हो। वह लोकेश के पास गया और बोला "नीलिमा को इस टीम से निकाल कर दूसरी टीम में डालदो लोकेश बोले आखिर क्यों?
नीरज बोला नीलिमा हमारे ग्रुप की इक लौती लड़की है। और लड़कियां कमजोर होती है। हम नहीं चहाते की उसकी वजह से हमारा स्कॉउट कमजोर हो।
इतना सुनते ही लोकेश गुस्से से बोला"तुम 21वी सदी में होकर किस जमाने की बात कर रहे हो। आज कल की लड़कियां लड़को से हर क्षेत्र में आगे है। पढ़ाई हो या खेल कूद सानिया मिर्ज़ा और कल्पना चावला की तरह आगे बढ़ कर इस देश का नाम रोशन कर रही हैं। औऱ नीलिमा भी खेल कूद और पढ़ाई में अव्वल है। स्कॉलरशिप हासिल कर इस इस कॉलेज में आई है। और पढ़ाई के साथ साथ पार्ट टाइम जॉब करके अपने घर का खर्च और जिम्मेदारी भी उठा रहीं है। उसके होने से तुम्हारी टीम और मजबूत होगी कमजोर नहीं। और नीलिमा इसी टीम में रहेगी।"
अब हर दिन नीरज उसे मानसिक तौर पर प्रताढीत करता था। वह हर दिन उसकी बुराई करता था वह उसपर हँसता था उसका तिरस्कार करता था वह अपने दोस्तों के पास गया और जोर जोर से हँसी ठिठोली लगा कर बोला" वो देखो चॉल में रहने वाली जा रही है। इसकी औकात नहीं इस कॉलेज में पढ़ने की ना जाने कहाँ से आ गयी? इसकी एक महीने कीतनख्वाह से ज्यादा महँगे मेरे जूते है।" कई क बार तो उसे केम्प के तम्बू में बंद कर देता था ताकि वो कैम्पिंग की सही जगह पर ना पहोच पाए।
दूसरी और नीलिमा भी उसे बिलकुल पसंद नहीं करती थी वह गरीबो के प्रति उसकी सोच और व्यवहार से बिलकुल पसंद नहीं करती थी वह उसके साथ कभी सहमत नहीं होती थी। आये दिन उनमें झगड़ा होता था। जिस वजह से स्काउट मेंबर और बाकी टीचर्स को बहोत तकलीफ होती थी। अपने झगड़ों के कारण वह कभी दोस्त नहीं बनपाए।
पर एक दिन ऐसा कुछ हुआ जिसका इल्म किसी को भी नहीं था। पूरी काइनात इन दोनों को मिलाना चाहती थी शायद इस ही लिए। नीरज साथ वो हुआ जो किसी का भी कलेजा चीर कर रख देती। नीरज नैनिताल की खूबसूरत वादियों में पैरा ग्लाइडिंग कर रहा था और दूसरी ओर से नीलिमा ग्लाइडिंग करते हुये आ रही थी। वह दोनो दो परिंदों जैसा फील कर रहे थे। एक दम से नीलिमा के उड़ते हुए काले की एक लट उसके चेहरे पर आ गयी जो कि मनभावन लग रही थी नीरज ने उसको देखा तो एक टुक देखता ही रह गया जिस कारण वश उसका ध्यान भटक गया और उसके ग्लाइडर का बैलेंस बिगड़ गया और वह पेड़ो से बीच से हो कर नीरज जमीन पर गिरने ही वाला था कि फौलादी जिगर वाली नीलिमा ग्लाइडिंग करते हुए नीरज के ग्लाइडर के नजदिक लायी और पैराशूट खोल कर नीरज को सम्भाला पर ऊँचाई से गिरने के कारण वह गहरे सदमे में पहोच कर बेहोश हो गया जिसके ईलाज के लिए उसे रामसे हॉस्पिटल ले जाया गया जहाँ उसका इलाज एक बहोत बड़े डॉक्टर ने किया ।और उसकी जान बचाई।
जैसे ही 12 घंटे बाद नीरज होश में आया उसने धीरे से आंखे खोली और होस्पिटल बेड पर अपने आप को पाया। वो चिल्लाने लगा "डॉ! डॉ!मैं यहां कैसे आया हूँ?" उसकी आवाज सुनकर उस हॉस्पिटल की नर्स एक दम हरकत में आई। वह डॉक्टर सुरेश कुमार शर्मा के पास गई औ हडबडा कर बोली "डॉ बेड नंबर 6के पेशेंट को होश आ गया है?आप जल्दी चलिये। वो डॉ !डॉ चिल्ला रहा है" डॉ जैसे ही केबिन के बाहर निकले वार्ड नं 13 के पास पहुंचे उसका दोस्त राज और उसके पिता रोशन कुमार ठाकुर वहा पहले से खड़े थे। वह डॉ को आते देख उनके पास पहुंचे और चिंतित स्वर में बोले "डॉ साहब नीरज कैसा है?"
डॉ अस्वाशन देते हुए बोले "पेशेंट अब होश में आया है । Let me examine फिर आप उस से मिल सकते हैं। डॉ अंदर गए और बोले "How are you young man?" नीरज ने कहा I am better पर मुझे यहाँ कोन लाया?" डॉ उसे तसल्ली देते हुए बोले "let me examine you बाद में सब पता चल जाएगा।" डॉ ने टोर्च मांगी और उसकी आँखों को चेक करने लगे। फिर अपने स्टैटिस्कोप से उसकी दिल की धड़कनें चेक करने लगे । फिर बोले "you are out of danger". You can meet your dad let me call him." डॉ बाहर गए और बोले "petient is out of denger you can meet him". राज और उसके पिता अंदर गए और नीरज के सिर पर हाथ रख कर बोले कैसे हो तुम और ये सब कैसे हुआ?" नीरज बोला "डैड पैरा ग्लाइडिंग कर रहा था कि मेरा बैलेंस बिगड़ गया ग्लाइडर जोरो से नीचे आ रहा था कि मैं बेहोश हो गया उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं"। इतना सुनकर राज ने बात बताई वह बोला नीरज तुम्हे उस गरीब नीलिमा ने बचाया है वह तुम्हे पैराशूट के सहारे नीचे लाई है।" इतना सुनकर नीरज को वह सारी घटना याद आ गयी किस तरह वह नीलिमा की बालो की और देखकर खो गया था और उसका बेलेंस बिगड़ गया। वह बोला" मै नीलिमा से मिलना चाहता हूं। "राज बोला"पहले ठीक हो जाओ फिर मिल लेना और उसकी अच्छी कीमत अदा करना।
कुछदिनों बाद नीरज ठाकुर बिलकुल सही हो गया चल ने फिरने लगा कैम्प अभी भी बाकी था तो उसके पिता वापिस दिल्ली चले गए और नीरज फिर से कैम्प का हिस्सा हो गया। उस दिन कम्प में नीरज ने नीलिमा को एक चिठ्ठी दी जिसमे लिखा था कि" मुझे उसी जगह मिलो जहां हम पैरा ग्लाइडिंग कर रहे थे। नीलिमा पहले तो सोच ने लगी कि "जाऊं या ना जाऊं"पर फिर वह चली गयी। इस बार वह लाल सलवार सूट पहने हुए बालो में गुलाबी रँग का हेयर बैंड लगाए हुए और होंटो पे अच्छी मुस्कान इस उम्मीद में लिए जाती है कि शायद नीरज बदल गया हो । नीरज भी वहां सफेद T-shirt काली जैकेट और काली जीन्स और नीला गॉगल्स चढाये हाथ मे एक ब्रीफ केस लेकर पहोचता है नीलिमा चुप चाप खड़ी है। लेकिन नीरज बोला" मैं सब जानता हूँ तुम गरीब लोग जो भी करते हो पैसों के लिए ही के लिए ही करते हो यह मत सोचना की तुम ने मुझ पर कोई एहसान किया है। मैं तुम्हे इसकी मुह मांगी क़ीमत सकता हूँ ये लो ब्रीफ केस इसमें 5 लाख रुपये है इतना तुम ने कभी एक साथ नहीं देखे होंगे, चाहो तो गिनलो। इतना सुनते ही नीलिमा ने अपना आपा खो दिया ।उसने गुस्से से वो ब्रीफ केस खोल कर उसने उसके पैसे उसके मुंह पर दे मारे और कहा"कि हम गरीबो के लिए जान की कीमत अनमोल होती है। तुम अमीर क्या जानो जान की कीमत अपने पैसे अपने पास रखो क्योंकि जब भी तुम इन पैसों को देखोगे तुम्हें याद रहेगा कि तुम्हारी जिंदगी किसी गरीब की कर्जदार है। ये मेरा एहसान रहा तुमपर। "