आत्म विवाह - 1 r k lal द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आत्म विवाह - 1

आत्म-विवाह (सोलोगैमी)

आर० के० लाल

अरे भाई! तुमने आज की मजेदार खबर सुनी? अच्छे नागरिक को देश-दुनिया की खबर भी जानना चाहिये। यह नहीं कि सुबह उठते ही काम पर निकल पड़े और सारा दिन खटने कै बाद घर जाकर सो गये। लोकल ट्रेन में यात्रा करते हुये विनोद अपने दोस्त वेंकट से बोला।

वेंकट ने जवाब दिया, “सर! मेरे पास इतना समय कहां है? हमारा बड़ा परिवार है, कमाने वाला अकेला मैं ही हूं । उसी चक्कर में सारा समय निकल जाता है। हाँ, दोपहर को खाने के बाद फुर्सत पाता हूँ और जब मैँ पान की दुकान पर जाता हूं तो वहां सारी खबर मिल जाती है। लोग कहते हैं कि पान खाने से समझ आती है इसीलिए शायद लोग वहां भीड़ लगाये रहते हैं । पान वाले के पास तरह – तरह की तंबाकू और गुटके तो होते ही हैं, साथ ही अनेकों धमाकेदार खबरें भी होती हैं । अपना पान वाला बहुत समझदार है । अखबार वाले तो उससे ही खबर लेकर अपने अखबार में छापते हैं । उसके पास सब तरह की खबर रहती है कि कौन लड़की किसके साथ भाग गई, किसके यहां कौन मेहमान आया है, किसने किस तरह दो नंबर का पैसा कमा कर अपना मकान बनवाया है और कौन इस बार पी एम बनेगा”।

वेंकट ने आगे बात बढ़ायी, “ कितनी गर्मी पड़ रही है । पैर का पसीना सिर तक पहुंच रहा है । लोकल मैं भी समय नहीं बीतता, इसलिए समय बिताने के लिये कुछ जानकारी ही हाँसिल कर लेते हैं इससे गर्मी भी कम लगेगी । हां बताइए कि आज की ब्रेकिंग न्यूज़ क्या है? कहीं चीन से लड़ाई तो नहीं शुरू हो गई है? पिछले कई वर्षों से तनाव चल रहा है । अगर ऐसा है तो मुझे बहुत फायदा हो सकता है क्योंकि वहां तुरंत भर्ती होगी और मुझे भी मौका मिल सकता है”।

विनोद ने कहा, ऐसी कोई बात नहीं है सब कुछ सामान्य चल रहा है। फिर उन्होंने कहा, “अविश्वसनीय लेकिन अपने देश में स्वयं के साथ ही विवाह अर्थात सोलोगैमी का आगाज हो चुका है। चर्चाओं में है कि गुजरात ने इसमें भी बाजी मार ली है और अपना नाम प्रथम स्थान पर दर्ज करा दिया है जहाँ की एक लड़की ने पहल की है”।

वेंकट ने बीच में ही टोंक दिया, “ अरे भाई मैं तो बहुत कम पढ़ा-लिखा हूं । आप रोज ऐसे शब्दों का प्रयोग कर देते हैं जो मेरे सिर के ऊपर से निकल जाता है । अब ये सोलोगैमी क्या बला है ? क्या कोई वैज्ञानिक आविष्कार किया गया है?

विनोद ने कहा, “अरे नहीं भाई! यह एक तरह की शादी होती है , वह भी बिना दूल्हा या दुल्हन के इसका मतलब स्वत: विवाह । इसमें लोग अपने आप से ही शादी कर लेते हैं । इसमें अपॉजिट सेक्स की जरूरत नहीं होती। ऐसी शादी करने वाला शख्स खुद से शादी तो करता है साथ ही स्वयं से प्यार करने का वादा भी करता है। सोलोगेमी के मामले इससे पहले भी विदेशों में कई जगह मिलते हैं कई सेलीब्रिटीज ने इस तरह की शादी करने का फैसला लिया। मगर इस तरह की शादियों के कानूनी मान्यता नही दी जाती है।

अरे क्या कह रहे हो भैया, बिना दूल्हा या दुल्हन की भी शादी होती है कोई । अपने गाँव के कथावाचक पंडित राम लखन ने एक बार बताया था कि वेदों में तरह-तरह की शादियों का वर्णन है जैसे ब्रह्म,दैव,आर्ष,प्राजापत् ,गान्धर्व ,आसुर,राक्षस एवं पैशाच। इसमें ब्रह्म विवाह ही अच्छा माना जाता है। मगर उन्होंने इस तरह की शादी का कोई जिक्र नहीं किया था । हमारी सामाजिक व्यवस्था में शादी का एक महत्वपूर्ण मकसद होता है जिसे सभी को निभाना पडता है वरना बिरादरी वाले क्या कहेंगे? क्या इस शादी मैं सभी रश्मे की गयीं थी? वेंकट ने प्रश्न दागा और कहता रहा कि विवाह दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उनके बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। लोग शादी करके अपना परिवार आगे बढ़ाते हैं। शारीरिक जरूरत और इच्छाओं को पूरा करने के लिए भी शादी जरूरी होती है। शादी खास रीति-रिवाजों से भरा होता है

विनोद ने बताया, “ हां इस शादी में दूल्हे को छोड कर सब कुछ था । लड़की ने पहले से शादी अनाउंस कर दिया था । बकायदा उसने अपने सभी रिश्तेदारों और न्यूज़ चैनलों को जानकारी दी थी उसने कार्ड भी छपवाया था और अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बुलाया था। उसने दुल्हन की तरह मेकअप किया था, जुड़े सजाये, हाथ में कंगन डाले, माथे पर बिंदिया सजाई थी । उसका चेहरा नूरानी चमक रहा था फिर उसने स्वयं अपने हाथों से अपनी मांग में सिंदूर भरा था । टेप रिकार्डर चलाकर मंत्रोचार के बीच फेरे लिये थे। अंत में सब ने कई तरह के व्यंजनों का आनंद लिया। यह बात दूसरी थी कि लोगों के विरोध के चलते डर के मारे उसकी दो-तीन सहेलियां और कुछ घर वाले ही सम्मिलित हुये थे । डर की वजह से उसने निर्धारित तिथि से दो दिन पहले ही सब कुछ कर डाला था” ।

वेंकट असहमति जताते हुये बोला, “ राम-राम यह भी कोई शादी है । अपनी इच्छा की पूर्ति और अपने आनंद के लिए यदि कोई कहीं गलत काम करने का प्रयास करता है तो उसे समाज नहीं स्वीकारता । मुझे तो इस प्रकरण को अच्छी तरह समझना है । विडम्बना है कि देखा-देखी हम लोग अपनी पुरानी परंपराओं को छोड़ रहे हैं। इस शादी में किस उद्देश्य की पूर्ति हो रही है हमें समझाइये मेरे हिसाब से इसे शादी कहना गलत है क्योंकि शादी तो दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन होता है।”।

विनोद ने समझाना चाहा, “ समाज हमेशा परिवर्तनशील होता है। पता है, आज हमारा समाज कितनी तरक्की कर चुका है लोगों की सोच कितनी आगे बढ़ गई है अब लोग देशी न होकर के इंटरनेशनल होते जा रहे हैंइस तरह की शादियों के समर्थक बताते हैं कि अनिश्चितता के भय अर्थात पता नहीं शादी के बाद कैसा हस्बैंड और परिवार मिलेगा , मै इतना खुश नहीं रह पाऊँगी, आदि के कारण सोलोगैम अपनाने वालों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ने की संभावना है क्योंकि वर्तमान में युवा विवाह के प्रति रूचि नहीं दिखा रहे हैं। सोलोगैमी को अपनाने वालों का कहना है कि यह खुद का मूल्य समझने और खुद से प्यार करने की तरफ एक कदम है। इसे सेल्फ मैरिज भी कहा जा सकता है। सोलोगैमी अपनाकर सिंगल लोगों का मानना है कि वे जीवन में सबसे ज्यादा खुश रहेंगे, उनके ऊपर कोई रोक टोक और पाबंदियां नहीं होंगी”।

वेंकट ने कहा कि इसके लिये शायद इस तरह का व्याह रचाने की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं है । कोई कभी भी दूल्हन अथवा दूल्हे की तरह से सज सकता है। इस पर तो किसी तरह की सामाजिक पाबंदियां नहीं है । सिंदूर डालकर अपना इंटेंशन प्रदर्शित करने का कुछ और ही मतलब होगा । मुझे तो लगता है कि इसमें कोई गूढ़ रहस्य छिपा है । हो सकता है कि कुछ दिनों बाद कोई इस पर प्रकाश डाले। मैने पढ़ा है कि किसी संस्कृति मैं विवाह को पूर्णत: किसी की ईच्छा पर नहीं छोडा जा सकता। हर समाज में इसके कुछ नियम पाये जाते हैं चाहे वह मोनोगेमी हो या पोलीगेमी । इसलिये उसी के अनुरूप काम किया जाये तो सर्व मान्य होगा।

पास में बैठे एक सज्जन ने बताया कि कल शाम उनके मोहल्ले में चर्चा हो रही थी कि किशोर कुमार की बेटी भी परेशान है क्योंकि उसकी शादी कहीं नहीं हो पा रही है। उसने अपनी सहेलियों से पूछा कि क्या वह भी इसी तरह खुद से ही शादी करके अपनी मांग में सिंदूर भर ले ताकि कोई उसे कोसे नहीं। कौन करेगा उसकी मदद ? पता नहीं उसकी फिलिंग दूसरे तक पहुंच रही है या नहीं, क्या वे उसकी भावना का सही मूल्यांकन कर पा रहे हैं या नहीं?

गंतव्य स्टेशन आ जाने के कारण बिना किसी निष्कर्ष के ही चर्चा रुक गयी। उन दोनों ने सही बात जानने के लिये पान वाले अथवा गाँव के कथा वाचक से बात करने का मन बनाया।

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