The Author Sakshi Pandey फॉलो Current Read दोस्ती बचपन की By Sakshi Pandey हिंदी लघुकथा Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books My Passionate Hubby - 5 ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन... इंटरनेट वाला लव - 91 हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त... अपराध ही अपराध - भाग 6 अध्याय 6 “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच... आखेट महल - 7 छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक... Nafrat e Ishq - Part 7 तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी शेयर करे दोस्ती बचपन की (4) 1.7k 5.6k दोस्तों ,इस दोस्ती शब्द के कई पर्यायवाची होते जैसे सखा,मित्र,यार आदि। दोस्ती एक एहसास होता है। इस पृथ्वी पर एक दोस्ती एसी भी है जिसमें न किसी प्रकार की लालच,ईस्या होता है ,ओर वो है बाबा और पोते की दोस्ती मैं अपनी और बाबा की दोस्ती इस मंच के माध्यम से आप के सामने प्रस्तुत करता हूं। जब मैं घर में पैदा हुआ था तब माँ के बाद सबसे ज्यादा खुश बाबा हुये थे और हो भी क्यों न बुढ़ापे का आखरी दोस्त पोता,पोती होते हैं। मेरा बाबा के साथ बचपन से ही हम दोनों एक दोस्त की तरह थे। एक बार की बात है मौं कोचिंग पढने बहन जी(मैम) के घर बाबा के कपड़े पहन कर चला गया। बाबा के घर आने पर मेरी दादी ने सब बात बतायी तब वे मुस्कुराये और बोले मेरे पोते का मेरे हर सामान पर उतना ही समान अधिकार है जितना की मेरा। क्या आप ऐसा दोस्त कहीं देखा है। ऐसे तो बहुत किस्से हैं यह तो एक ही किस्सा है चलिए एक और किस्सा आपको सुनाता हूं । मैं बचपन में बहुत जिद्दी था इसी जिद के कारण शाम को बाजार से वापस आए और खाने के लिए चटपटी चीजें नहीं लाए इस कारण इस कारण से मैं गुस्सा होकर बाबा की जेब से ₹500 का नोट निकाल कर उनके सामने फाड़ डाला और वह बोले चलो कोई नहीं बेटा कल मैं जरूर लेकर आऊंगा और फिर प्लयार से समझाते हुये बोले लक्ष्मी का अपमान नहीं करते हैं और यह बात उनकी हमें आज तक याद है और वह कहा करते थे की पैसा और कमाया जा सकता है ,लेकिन यादें बनाई जाती है। मैं एक और किस्सा बताना चाहता हूं मेरे बाबा स्कूल ना जाने के सख्त खिलाफ थे । एक बार की बात है मैं स्कूल नहीं गया और वह घर वापस आए उन्हें किसी से पता चला कि आज मैं स्कूल नहीं गया तो वह नाराज हो गये और उन्होंने हम से 2 घंटे तक बात नहीं की मेरे माफी मांगने के बाद उन्होंने मुझे पढ़ाई के महत्व को बताया और फिर घर में हलवा बनवाए, क्योंकि हलवा हमें बहुत पसंद है । अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि हमारे और बाबा के बीच कुछ ऐसी खट्टी मीठी सी हमारी दोस्ती थी । हमें आशा है कि आपके और आपके बाबा के बीच हमारी तरह ही कुछ खट्टी और कुछ मीठी दोस्ती होगी इसीलिए कहते हैं की बाबा के जीवन का आखिरी दोस्त उनका पोता होता है ,और पोते के जीवन का पहला दोस्त उसका बाबा होता है। हमे आशा करते हैं कि आप भी अपने बाबा के जीवन के किस्से को याद करेंगे और अपने बूढ़े के सेवा करेंगे । ऐसे ही और कहानी को पढ़ने के लिए आप हमारे इस कार्य को आगे अपने छोटे बड़े आदि को पढ़ने के लिए प्रेरित और शेयर करेंगे ,जिससे हमे आगे और भी अच्छी कहानियां लिखने की प्रेरणा मिलेगी । यह मेरी पहली कहानी का भाग एक है और आगे का भाग जल्द ही हम इस मंच के द्वारा आपके सम्मुख लाएंगे। धन्यवाद Download Our App