वो पहली बारिश - भाग 36 Daanu द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वो पहली बारिश - भाग 36

“ध्रुव, मैंने तुम्हें डिटेल्स मेल की है.. कल नीतू मै'म के बॉस आने वाले है, तो हमने कल के सारे प्लांस शेयर किए है।"

“हाँ.. मिस्टर दीवेश ना..”

“तुम्हें पता है, वो अपने टाइम में कई बड़े बड़े अवार्ड्स जीत चुके है।"

“हाँ.. सब पता है, उन्होंने कहाँ और कैसे अवार्ड्स जीते है।"

“पर तुम्हें कैसे पता, ये बातें तो बस अभी ही हो रही थी अंदर।"

“अ.. अ.. वो मैं तुम्हें बताने ही वाला था की...”

“की?”

निया के इस सवाल पे ध्रुव समझाता है की नीतू की फ्रेंड का कॉल आया था, और उसने उसे मिस्टर दीवेश के बारे में सब बताया है, क्योंकि वहीं वो इंसान है जिसकी याद से वो नीतू को बाहर निकालना चाहती है।

“क्या.. उन्होंने तुम्हें बस ये दोस्त दोस्त वाली चार लाइन बोली और तुम मदद करने के लिए मान गए?"

“हाँ.. ऐसा कुछ सुन कर कोई किसी को नजरअंदाज कैसे कर सकता है।"

ध्रुव की ये बात सुनते ही निया ने अपना सर पकड़ लिया।

“कितने पंगे में फसेंगे यार..”, निया आगे बोलते हुए बोली। "एक ये कुनाल और शिपी, फिर चंचल और सुनील, और अब नीतू और दीवेश.. मैं तो पागल ही ना हो जाऊ।"

“नहीं.. कुनाल और शिपी के लिए तो अभी थोड़ा टाइम है, क्योंकि पहली बारिश से पहले हम कुछ कर नहीं सकते.. डेटा का कुछ मिला भी तो नहीं, और चंचल और सुनील भी अभी शांत है, तो उनका भी कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। बस फिर बचे, नीतू और दीवेश, शायद इनके लिए कुछ करते करते, हमे भी कुछ पता लग जाए।"

“इन सब में सबसे जरूरी चीज़ भूल गए तुम, हमारा काम।"

“वो तो चल ही रहा है, ना... उसे करने से थोड़ी मना किया है मैंने।"

“नौकरी जाने की धमकी भूल गए, शायद तुम..”


“याद है.. तो तुम मेरा साथ नहीं देना चाहती फिर?” ध्रुव ने गंभीर होकर पूछा।

“नहीं साथ तो देना ही पड़ेगा.. दोस्ती की इतनी बड़ी बड़ी बातें करने वाले दोस्त को कैसे छोड़ सकती हूँ मैं।"

***********************
अगले दिन सुबह जल्दी ऑफिस पहुँच कर निया ने नीतू और चंचल के कहे अनुसार अपने सारी पिपीटी तैयार कर ली, दोपहर के खाने की जगह का इंतजाम कर लिया और बाकी भी छोटी मोटी सारी चीजे देख ली।

मिस्टर दीवेश असल में ज़रोर के पहले कुछ कर्मचारियों में से थे, और ज़रोर को आगे पहुँचाने में उनका बड़ा योगदान था। नीतू ने जब नया नया ज़रोर में काम करना शुरू किया था, तो भी नीतू के लगभग उम्र में बराबर होने के बावजूद वो उसके मेन्टर थे।
हर छोटी बड़ी चीज़ में उनसे मदद लेती नीतू और उन्हें, पता ही नहीं लगा था की कब उन लोगों की एक दूसरे से सब बातें बताने की आदत इतनी बढ़ गई, की ऑफिस के साथ साथ अपनी निजी ज़िंदगी की बातें करने लग गए।
“ओए.. चलो डेट करते है।", एक विशेष प्रोजेक्ट की डिस्कशन की बीचों बीच दीवेश नीतू से बोले।

“आप 2 महीने पहले मेरे सामने अपने ब्रेकअप को लेकर रो रहे थे और अब ये कह रहे हो।"

“तो.. ब्रेकअप ही तो था ना वो, मेरी ज़िंदगी थोड़ी खत्म हुई थी, जो मैं एक नई शुरुवात नहीं कर सकता।"

“हाँ..”

“मतलब तुम राज़ी हो?”

“नहीं.. मैंने ऐसा नहीं कहा.. हम पहले मीटिंग की बात करले.. वो इस समय ज़्यादा जरूरी है।"


“ठीक है, एक ने दो महीने पहले दिल तोड़ा था, और एक आज तोड़ रही है।", दीवेश ने नीतू से अजीब सा मुँह बनाते हुए कहा।

“यक.. ये ऐसे बकवास करना आप पे सूट नहीं करती।", नीतू ने भी सामने से हँसते हुए जवाब दिया, जिसपे दीवेश भी सामने से हंस दिए।

“ठीक है, फिर चलो काम करे..” , दीवेश के ये बोलते ही दोनों फिर अपने काम में लग गए।

उस दिन के बाद दीवेश ने तो फिर कभी इस बात का जिक्र नहीं किया, पर एक दिन डिनर पे साथ बैठी परेशान सी नीतू ने पूछ लिया।

“वो जो ऑफर आपने दिया था, वो अभी भी है क्या?”

“कौन सा ऑफर?”

“डेट करने का ऑफर..”, नीतू ने धीरे से बोला।

“अगर तुम चाहो तो..”

“ठीक है। डेट करते है, फिर।", नीतू के ये बोलते ही जैसे दीवेश और नीतू की ज़िंदगी बदल सी गई।

ज़रोर जो उस समय ज्यादा पुरानी नहीं थी, तेज़ी से अपना काम बढ़ा रही थी, और उसी के साथ भारत के कई शहरों में अपना ऑफिस खोलना शुरू कर रही थी। उसी काम के सिलसिले में दीवेश अक्सर बाहर रहता था।

एक रोज़, जब वो ऑफिस में लौटा तो नीतू ने ज़रोर से इस्तीफा दे रखा था। दीवेश को जैसे ही ये पता चला, उन्होंने नीतू को कॉल किया।

“हाय.. कहाँ हो तुम?”

“बाहर आई थी, समान खरीदने..”

“अच्छा.. कहाँ?”

“ये जो मेरे घर के पड़ोस में बड़ी दुकान है ना, वहाँ।"

“ठीक है.. मैं आता हूँ, वहीं रुकना।"

“क्यों कुछ खरीदना है क्या? मुझे बता दो, मैं ले आऊँगी।"

“नहीं.. तुम वहीं मेरा इंतज़ार करो, मैं बस 15 मिनट में पहुँच जाऊंगा।"

नीतू वहीं बड़ी दुकान के बाहर खड़े होकर दीवेश का इंतज़ार करने लगी।

कुछ 10-15 मिनट बाद जब वो आया, तो नीतू ने वहाँ पड़ा कार्ट झट से उठाया, और दीवेश के पास जा कर खड़ी हुई थी की इतने हल्की हल्की बारिश शुरू हो गई।

“कैसी रहा सब?”

“ठीक था.. हम कहीं बाहर चले क्या?”

“अ.. अ.. चल सकते है, पर मुझे कुछ जरूरी समान लेना है, और अभी नहीं लिया तो ये दुकान भी बंद हो जाएगी और ये बारिश भी कहीं तेज ना हो जाए।", घड़ी और बारिश की तरफ़ इशारा करके नीतू बोली।
“ठीक है... चलो फिर।"

वो दोनों अंदर गए ही, तो सामने पड़े दो पैकेट को उठा कर नीतू ने बोला।

“ये खाए है, कभी? बहुत स्वादिष्ट होते है।"

“तुमने इस्तीफा डाल रखा है?”, उसकी बातों को नजरअंदाज करके, दीवेश ने बोला।

“और पता है, ये भी बहुत अच्छा है ।", नीतू ने भी वही तरीका अजमाते हुए कुछ का कुछ जवाब दिया।

“नीतू मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूँ।"

“पर आप ये क्यों नहीं समझ रहे, की मैं वो कुछ के बारे में बात नहीं करना चाहती।"

“और इससे क्या होगा।"

“पता नहीं..”, नीतू ने दो चार समान और अपनी टोकरी में डालते हुए कहा।

“क्या हुआ है, तुम बताओगी नहीं तो मुझे पता कैसे चलेगा?”, दीवेश ने नीतू के आगे आकार खड़े होते हुए पूछा।

“ब्रेकअप.. चलिए ब्रेकअप करते है।", नीतू ने जवाब दिया।

“ब्रेकअप? अगर आज तुमने ब्रेकअप कर लिया, तो मुझसे उम्मीद मत करना की दोबारा कभी तुमसे कोई बात करूंगा.. या फिर कभी कुछ पूछूँगा।"

“ठीक है.. ब्रेकअप करते है फिर..”, अपने सामने, बस उस कार्ट की जितनी दूरी पे खड़े दीवेश की आँखों में नम आँखों से देखते हुए नीतू ने बोला।