“निया.. निया..” चंचल ये बोलते हुए निया के कमरे की तरफ बढ़ी तो निया ने भी फटाफट फोन काट दिया।
“हाँ चंचल..”
“मुझे नींद नहीं आ रही, तो मैं सोच रही थी की कुछ काम खत्म कर लू, तुम्हें भी कुछ करना है? या कोई हेल्प चाहिए हो मेरी तो बताओ?”
“अब इस टाइम भी काम कराएंगी क्या?”, निया दबी आवाज़ में बोली। "चंचल अगर आप बोर हो रहे हो तो, कोई फिल्म वगरह देख सकते हो ना, काम क्यों करना है?"
“ह..ह.. वो भी है, तुम्हें पता है कोई, अच्छी सी मूवी?”
“हाँ.. कई आई तो है नई.. मैं बताती हूँ।"
“वैसे.. आई एम सॉरी.. की हमारी वजह से तुम लोग को इतनी परेशानी हो रही है। ध्रुव से बात कर रही थी अभी?”
“अ.. अ.. हाँ, पर आप फिक्र मत कीजिए.. मैंने कोई चीटिंग नहीं की है।"
“हाँ.. मुझे पता है, मुझे तुम पे पूरा भरोसा है।"
“ह.. ह.. चंचल ये सब करने के बाद आप कह रहे हो, की आपको मेरे पे पूरा भरोसा है?"
“पता है, सुनील ने तो मुझे अभी तक एक बार भी फोन नहीं किया। लगता है बहुत मज़े हो रहे है वहाँ।", चंचल ने निया की बात को नजरअंदाज करते हुए अपनी बात कही।
“अ.. अ.. मैं क्या ही कह सकती हूँ इसमें।"
“सच.. मुझे बताओ वहाँ क्या चल रहा है।"
“वो लोग भी सब सोने चले गए थे..”, निया अभी बोल ही रही थी की इतने में चंचल का फोन बजता है। निया ये सोच कर चेन की सांस लेती है की सुनील ने चंचल को फोन कर दिया।
“हंजी माँ...”
“नहीं माँ, वो ऑफिस का काम था तो बस इसलिए..”
“पर माँ.. ये तो हम दोनों के लिए जरूरी है।", चंचल फोन पे किसी को कुछ समझा रही होती है, और समझाते समझाते अंदर अपने कमरे में चली जाती है।
कुछ देर बाद भी चंचल जब बाहर नहीं आती तो हॉल में बैठी निया वापस अंदर सोने चली जाती है।
अगले दिन ऑफिस में, जहाँ निया बैठे बैठे नींद की झपकियां ले रही होती है, वहीं हॉल में बिना तकिये के सोया ध्रुव बार बार अपनी गर्दन आगे पीछे करके अपना गर्दन का दर्द ठीक करने की कोशिश करता है।
आज उन दोनों को पहली टेस्टिंग के रिजल्ट्स बताने थे, और अभी तक दोनों ही कुछ नहीं मिला था। यही बात जब दोनों ने अपनी मीटिंग में बोली, तो उनके लटके हुए चेहरे देख कर नीतू ने उन्हें कहा।
“मुझे पता है की आप लोग बहुत काम करते है, पर फिर भी, इतनी सुबह सुबह अगर आप थोड़ा फ्रेश लगेंगे तो अच्छा होगा। चाहे तो आप आज की आधी छुट्टी ले सकते है, पर दो दिन बात मेरे बॉस आने वाले है, और तब मैं ये हरकते बर्दाश्त नहीं करूंगी।"
“सॉरी मै'म..”, नीतू का इशारा समझते हुए निया और ध्रुव बोले।
उस मीटिंग के बाद चंचल और सुनील को भी कुछ हो गया था, और उन्होंने आज, कल से बिल्कुल अलग बर्ताव करते हुए, दोनों को अपने अपने हाल पे छोड़ दिया था।
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पहले से ही नींद के मारे ध्रुव को कुनाल फोन करता है।
“भाई सुन.. मैंने ना एक बहुत अच्छी जगह देखी है, वहाँ चलते है, डिनर पे।"
“यार मुझे काम है।"
“अर्रे तो अभी थोड़ी बुला रहा हूँ.. डिनर के टाइम चलते है, और ऐसा करियों ना की निया को भी साथ लेता आइओ, मैं यहाँ से रिया को भी बुला लूँगा। तुम दोनों को भी थोड़ा इक्कठे टाइम मिल जाएगा।"
“अ. ठीक है, डिनर टाइम पे देखते है।"
“क्या हुआ है??”, कुनाल जो सीढ़ियों से ऊपर जाता हुआ ध्रुव से बात कर रहा था, उससे उसके पीछे आती हुई रिया ने भी पूछा।
“रिया.. तू अभी भी सीढ़ियों से आती है!", वो उसे देख कर मुस्कराते हुए बोला।
“मुझे एक बार ना, मेरे एक दोस्त ने कहा थी की जब भी मन उदास हो ना तो सीढ़िया चढ़ना सबसे अच्छा होता है। समय और मन का तूफान दोनों ही जल्दी बीत जाते है।"
“तो मन उदास है तुम्हारा?”
“नहीं.. जिस दोस्त ने मुझे ये बोला था, वो खुद आज सीढ़ियाँ चढ़ रहा था तो उसकी खबर लेने चली आई।"
“वो.. मैं.. मैं तो बस लिफ्ट आने में देर थी तो यहाँ से या गया।"
“तुम जैसे ही आए.. लिफ्ट आ गई थी, और पता है, मैं भी वहीं खड़ी थी, पर तुम्हारा ध्यान कहीं और ही था।"
“ओ.. ओ.. सॉरी।"
“बात क्या है?”
“बात.. कुछ नहीं, बस वो ऑफिस... ऑफिस में कुछ बहस हो गई थी।"
“फिर तो तुझे पहले ही किसी ऐसे के पास आ जाना चाहिए था जो इन मामलों में प्रो हो।", रिया बड़ी सी मुस्कराहट के साथ बोली।
“और उसे मैं कहाँ ढूंढू?”
“दिल तोड़ दिया तुमने तो मेरा, इतनी बड़ी प्रो तुम्हारे सामने खड़ी है, और तुम्हें कोई और ढूँढ़नी है।", रिया ने मज़ाकियाँ लहजे में बोला।
“ओ.. ओ.. मैडम, मुझे माफ कीजिएगा।", कुनाल ने भी सामने से हँसते हुए हाथ जोड़ कर जवाब दिया।
“अच्छा.. चल घर पे, तुझे एक मस्त सी चीज़ खिलाती हूँ। मैंने निया के लिए रखी हुई थी, पर वो तो कल ऐसे ही भाग गई, कम से कम तू ही खा ले।"
“हाँ, चलो।"
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ऑफिस में ही थोड़ी देर आराम करके फिर से काम में लगे हुए निया और ध्रुव, जब तक देखते है, की लगभग सब जा चुके है, तो चंचल और सुनील से पूछते है।
“तो आज भी?”
“नहीं.. तुम लोग जा सकते हो.. शायद हम ज्यादा ही आगे बढ़ गए थे।", चंचल और सुनील ने जावाब दिया।
“निया.. तुम्हारा जो भी समान है, वो मैं कल ले आऊँगी, चलेगा ना?”, चंचल ने पूछा।
“जी मै'म..” चेन की सांस भरते हुए निया बोली।
“शुक्र है", ध्रुव और निया सांस छोड़ते हुए बोलते है, और ऑफिस से निकल जाते है।
अगले दिन सुबह, ऑफिस पहुंचे ध्रुव को नीतू की दोस्त का कॉल आता है।
“हाय..”
“हाय.. आपने कहा था ना की आप हमारी मदद करोगे, तो मुझे आपको कुछ जरूरी बताना था।"
“देखिए.. मुझे भी आपको बताना है, असल में नीतू हमारी बॉस है। और उन्होंने हमे आपके साथ काम करने से मना किया है।"
“हाँ.. पता है मुझे।"
“पता है तो फिर भी आप?”
“आपने शायद सुना नहीं सही से, मैं दोस्त हूँ उसकी।"
“बताया तो है ये आपने।"
“तो बस फिर, मैं उसके बताए और उसके लिए करने में से, हमेशा उसके लिए ही करना चुनती हूँ। मुझे उम्मीद है, आपके भी दोस्त होंगे, और आप ये समझते होंगे।"