एडजस्ट एवरीव्हेर Dada Bhagwan द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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एडजस्ट एवरीव्हेर

एडजस्ट  एवरीव्हेर’ इतना ही शब्द यदि आप जीवनमें उतार लेंगे तो बहोत  हो गया | आपको शांति अपनेआप मिल जायेगी | प्रथम छह मास तक मुश्केली आयेगी | फिर खुदबखुद शांति हो जायेगी | पहेले छह मास पिछले रिएक्शन आयेंगे | शुरुआत देरसे कीया इस वजहसे | इसलिए  ‘ एडजस्ट  एवरीव्हेर’ ! यह  कलियुगमें, ऐसे भयंकर कालमें तो एडजस्ट नहीं होगे तो ख़तम हो जायेगें |

ये कालमें तो भिन्न-भिन्न प्रकृतियाँ होती है | उनके साथ एडजस्ट हुए बिना कैसे चलेगा? संसारका अर्थ ही समसरण मार्ग,याने निरंतर परिवर्तन होते ही रहना है | तब ये बूढ़े लोग पुराने जमानेका ही पकड़ने रहते है |अरे,ये जमानेके मुताबिक चलें नहीं तो मर जायेगे | जमानेके मुताबिक एडजस्टमेंट लेना चाहीए | मुझे तो चोरके साथ, जेबकतरेके साथ, सबके साथ एडजस्टमेंट हो जाता जाता है | चोरके साथ हम बात करते है तो वह भी समज जाता है कि ये करूणावाले है | हम चोरको कभी, ‘तू गलत है’,ऐसा नहीं कहेंगे | क्युकी वह उसका व्युपोइन्ट है | तब लोग उसे ‘नालायक’ कहकर गालियां देते है | क्या ये वकील लोग झूठे नहीं है ? ‘अरे, बिलकुल गलत केस भी जीता दूंगा |’  ऐसा कहेनेवालेको ठग नहीं कहा जायेगा? चोरको लुचचा – लफंगा कहेंगे और ये बिलकुल गलत केसको सच्चा कहेता है, उस पर संसारमें विश्वास किस तरहसे किया जायेगा? फिर भी उसका चलता है ना? किसीको हम गलत नहीं कहेते | वह उसके व्युपोइन्टसे करेक्ट है| किन्तु उसको सच्ची बातकी समझ  देनी चाहिये कि यह चोरी करता है, उसका फल तुजे क्या मिलेगा?

ये बूढ़े लोग घरमें आते ही कहेंगे,’ये लोहेकी तिजोरी क्यों,ये रडियो क्यूँ? , ये ऐसा वैसा क्यूँ है? वो इस तरहसे डखल करते रहते है | अरे, कोई युवानसे  दोस्ती कर | ये युग तो बदलता ही रहेता है |’  इसके बिना किस तरहसे ये जियेगें? कुछ नया देखा याने मोह स्वरुप हुआ | नया न हो तो किस तरहसे जियेगें ? ऐसा नया-नया तो अनंत आया और गया, उसमें आपको दखल करनेका नहीं है | आपको अच्छा न लगा तो आप मत करो | ये आइस्क्रीम एसा नहीं कहेता है कि आप हमारेसे दूर भागो | आपको न खाना हो तो मत खाईये | ये बूढ़े मोग तो उसके पर क्रोध करते है | ये मतभेद तो जमाना बदल गया उससे है | ये बच्चे  लोग तो जमानेके हिसाबसे करेंगे | मोह याने नया नया उत्पन्न होता है और नया नया ही दिखता है| हमने बचपनसे ही बहुत सोच लिया है की यह उल्टा हो रहा है या सीधा हो रहा है और यह भी हमको समजमें आ गया था कि किसीकी भी सत्ता नहीं है, यह जगतको बदलनेकी | फिर भी हम क्या कहेते है कि जमानेके मुताबिक एडजस्ट हो जाव | लड़का नई टोपी पह्नके आये तो उसे ऐसा नहीं कहेना कि एसा कहांसे ले आया? उसके बदले एडजस्ट होकर कहना कि ऐसी अच्छी टोपी कहांसे लाया ? कित्नेकी आयी? बहोत सस्ती मिली? इस तरहसे एडजस्ट हो जाना |

अपना धर्मं क्या कहेता है कि प्रतिकूलतामें अनुकुलता देखो | रातको मुझे विचार आया, यह चादर मैली है | फिर एडजेस्टमेंट रख दिया कि बहोत अच्छी है तो वह इतनी स्मूध लगी कि न पुचो बात! पंचेनिद्रेयज्ञान प्रतिकुलता दिखाता है | और आत्मा अनुकुलता दिखाता है | इसलिए आत्मामें ही रहो |

ये बांद्राकी खाड़ी में से दुर्गंध आये, तो क्या उसके साथ लड़ने जा शकते है? इसी तरह यह मनुष्य भी दुर्गंध फैलाते है, उसे कुछ कहेने जा शकते है? दुर्गंध आती है, वह सब खाड़ियाँ ही कही जाती है और सुगंध आती है, उसे बाग कहा जाता है | जिसकी जिसकी दुर्गंध आती है, वह सब कहेते कि ‘आप हमारे साथ वीतराग रहो|’

यह तो अच्छा या बुरा कहेनेसे भुतोंकी तरह सताते है |  हमें तो दोनोंको सरीखा कर देनेका है | इसको अच्छा कहा इसलिए दूसरा बुरा हुआ, फिर वह अपनेको सताता है | लेकिन दोनोंका मिक्ष्चर कर डाले, फिर उसकी असर नहीं होती है | ‘एडजस्ट एवरीव्हेर’ कि हमनें शोध कि है | अच्छा कहता हो या बुरा कहता हो, दोनोंके साथ एडजस्ट हो जाव | हमको कोई कहे कि तुम्हारेमें अक्कल नहीं है, तो हम उसे तुरंत ही एडजस्ट  हो जायेंगे और उसे कहेंगे कि, ‘ ये तो पहेलेसे ही नहीं थी | अभी तू कहाँ ढूंढने आया है उसे? तुझे तो आज पता चला | में तो उसे बचपनसे ही जनता हूँ | ऐसा कह दिया याने भांजगड मीट गई न ? फिर वह दुबारा अपने पास अक्कल ढूंढने ही नहीं आयेगा | एसा अगर न करे तो हम ‘अपने घर ‘ कब पहोंचेगे?’ 

अगर पत्नी सामने हो गई, आपको कुछ वजहसे घर पहोचनेमें देर हो गई | अब पत्नी उलटा – सुलटा बोलने लगी | ‘इतनी देरसे आते है, ऐसा नहीं चलेगा |’ऐसा तेसा उसका दिमाग फिर गया तो हमें कहेना चाहिए कि, हाँ, तेरी बात सही है, तूं कहेती हो तो में वापस चला जाता हूँ और तू कहेती हो तो में अन्दर आ आ जाऊ | तब तो कहेंगी, ‘नहीं, नहीं, वापस मत जाओ, यहाँ ही सो जाव  चुपचाप |’ थोड़ी देरके बाद कहेना, तू कहेती हो तो में खाना खा लेता हूँ, नहीं तो में ऐसा ही सो जाता हूँ | तब वो कहेंगी,’नहीं, खा लो|’ याने हमें उसके वश होकर खा लेना | याने एडजस्ट हो गये | फिर सुबहमें  फर्स्टकलास चाय आपके पास आएगी | और अगर उपरसे आप उसको डांटेतो चायको कप फटाक करके ठोकेगी और ऐसा तिन दिन तक चलते ही रहेगा | ये तो में रास्ता बताता हूँ कि एडजस्ट एवरीव्हेर |

व्यवहारमें रहा उसको कहा जायेगा कि जो ‘एडजस्ट एवरीव्हेर’ हो गया |  अब यह डेवलपमेन्टका जमाना आ गया | मतभेद नहीं होने देना | इसलिए मैंने ये शब्द दिया है आजके लोगोको, एडजस्ट एवरीव्हर | एडजस्ट , एडजस्ट , एडजस्ट | कढ़ी खारी हो गई तो समझ जानेका कि दादाजीने एडजस्टमेंट लेनेको कहा है | तो फिर चुपचाप कढ़ी थोड़ी सी खा लेने कि | और यदि आचार याद आ गया तो थोडा सा मांगके खा लेनेका | लेकिन झगडा नहीं घरमें होने देनेका | खुद मुश्केलीमें हो, कोई जगह पर फंस गया हो तो वहां अपना एडजस्टमेंट कर लेंगे तो भी यह संसार खुबसुरत लगेगा |

तुम्हारे साथ कोई डिसएडजस्टमेंट होनोको आये, उसके साथ तू एडजस्ट हो जा | दैनिक जीवनव्यवहारमें देरानी-जेठानीका आपसमे एडजस्ट न होता हो और अगर उसे ये संसारके घटनाक्रसे छुटना हो तो एडजस्ट होना ही चाहिये | पति और पत्निमे भी अगर एक संबंध तोड़ने फिरे और दूसरा जोड़ते ही रहेगा तो ही संबंध बना रहेगा और शांति रहेगी | जो एद्ज्स्टमेंट लेना नहीं शीखा है, उसे लोग मेंटल (पागल) कहेंगे | यह रिलेटीव सत्यमें आग्रह-दुराग्रह्की बिलकुल जरुरत नहीं | आदमी तो किसको कहेंगे? Everywhere Adjustable! चोरोंके साथ भी एडजस्ट हो जाना चाहिये |

संसारमें और कुछ नहीं शीखा तो उसे कोई हरकत नहीं है, लेकिन एडजस्ट होना तो जरुर आना चाहिय | सामनेवाला डिसएडजस्ट  होते रहा और हम एडजस्ट होते रहे, तो संसारमें पार उतर जायेंगे | दुसरोंको अनुकूल होते आया, उसे कोई दुःख नहीं होगा | ‘एडजस्ट एवरीव्हर ‘ हरेकके साथ एडजस्टमेंट हो जाना, यही सबसे बड़ा धर्मं है |

         -जय सचिदानंद