Pal Pal Dil ke Paas - 25 books and stories free download online pdf in Hindi

पल पल दिल के पास - 25

भाग 25

अभी तक आपने पिछले भाग में पढ़ा कि केस हारने के बाद मिनी को नियति को सौपना नीना देवी के लिए बड़ा मुश्किल होता है। वो इसे सह नही पा रहीं। खुराना उन्हे एक और उम्मीद दिखाता है। नीना की समाप्त प्राय आशा को उम्मीद की किरण दिखाई देती है। नीना देवी खुराना की बातों पर यकीन कर उसे इस दिशा में ही काम करने को कहती हैं। नीना देवी की खुराना से नाराजगी थोड़ी कम हो जाती है।

खुराना नीना देवी को भरोसा दे कर जाने को हुआ तभी खुराना को नीना देवी ने रोक लिया और बोली, खुराना रुको..! कॉफी पी कर जाओ।"

फिर नीना देवी ने आवाज लगा कर शांता को कॉफी लाने को बोला। खुराना प्रसन्न हो उठा की आखिर उसकी मेहनत रंग लाई। उसका हठ करके रुकना काम कर गया। कहां तो नीना देवी उससे मिलने तक को राजी नहीं थी, कहां अब कॉफी पिला रही है। वो "जी मैडम" कह कर रुक गया और फिर कॉफी पी कर कर अपने घर चला गया। उसका प्रयास सफल हो गया था।

इधर नियति नीता मौसी के साथ उनके घर आ गई रहने। उस दिन तो रात हो गई थी इस लिए काम चल गया। सोते वक्त नियति ने नीता मौसी के कपड़े पहन लिए। पर अब उसे सुबह ऑफिस भी जाना होगा। वो क्या पहन कर जायेगी? इस लिए नियति ने एक दिन की छुट्टी ले ली और अपने घर जा कर अपना सामान ले आने की नीता से इजाजत ले ली।

नीता मौसी ने दुनिया देखी थी। उन्हे मेरी आंखों में नियति के लिए प्यार सपष्ट दिख रहा था। उस गहराई को महसूस कर पा रही थी जो मेरे दिल में नियति के लिए थी। उन्हे भरोसा हो गया था मेरे नियति के प्रति प्यार पर। वो आश्वस्त थी की मैं हर परिस्थिति में उसका साथ निभाउंगा। फिर सबसे अच्छी बात उन्हे ये लगी की नियति की आंखों में भी स्पष्ट इकरार नही दिख रहा था उन्हें तो इनकार भी नही दिख रहा था। वो नियति का घर एक बार फिर से बसते हुए, खुशियों से महकते हुए देखना चाहती थीं। नीता मासी के आंखो में एक सपना तैरने लगा था, नियति की खुशहाल जिंदगी देखने का। आखिर कब तक नियति अपने जीवन को रंगहीन बना कर जिएगी..? क्या उसे मुस्कुराने और खुश रहने का हक नहीं..! अभी उसकी उम्र ही क्या है? इस उम्र में तो अक्सर लड़कियों को शादियां हुआ करती है। और नियति ने इसी उम्र में अपने जीवन के सारे रंग देख लिए थे. सुहाग के जोड़े का सुर्ख रंग उसने पहना था तो वैधव्य की सफेद चादर भी उसने ओढ़ी थी। नीता ने निश्चय कर लिया की वो अपनी पूरी कोशिश करेगी कि एक बार फिर से नियति के जीवन में रंग निखर जाए।

इसी कारण जब नियति ने कहा की वो घर जाकर अपना सामान ले आना चाहती है तो नीता ने मना नहीं किया। वो चाहती तो सब कुछ नया खरीद सकती थी। पर बस इतना कहा, " जाओ नियति बेटा पर जो बहुत जरूरी सामान हो वही लेकर आना। बाकी सब मैं यही मार्केट से ला दूंगी। मिनी का भी तो कुछ भी समान नहीं है। चलो पहले मार्केट चल कर मिनी की जरूरत का सामान लेते है, फिर तुम्हारे घर चल कर तुम्हारा सामान भी ले आयेंगे।"

नीता, नियति को तैयार होने को बोल कर गई और फिर तुरंत ही वापस आ गईं।

बोली, "अरे! नियति ये तो मैने सोचा ही नहीं। हम तैयार तो हो रहे है, पर हम जायेंगे कैसे? ड्राइवर ने तो आज की छुट्टी ले रक्खी है।"

फिर कुछ देर सोच कर बोली, "ऐसा न करूं नियति बेटा की …. प्रणय को बोल दूं क्या…? आज उसने भी अपनी मां के साथ समय बिताने को छुट्टी ले रक्खी है।"

नियति जल्दी अपने से बड़े किसी की भी बात को फौरन काटती नही थी, पर उसने धीरे से ही कहा, "मौसी जी …. पर उनको बुलाने की क्या जरूर है….? हम ऑटो से चले चलेंगे।"

नीता ने कहा, "नियति बेटा तू कितना संकोच करती है...? प्रणय बहुत अच्छे है वो कुछ नहीं सोचेंगे। बल्कि उल्टा वो खुश ही होंगे मिनी से मिल कर। देखा नही तूने कल वो और मिनी कितना चिपके थे एक दूसरे से। मैं बोल देती हूं फोन करके। वो आ जायेंगे। बस तू मुझे नंबर दे।"

नियति ने संकोच वश नीता मौसी को मना नही किया और प्रणय का फोन नंबर दे दिया।

नीता ने फोन कर अपना परिचय दिया तो मैं तुरंत पहचान गया। बोला, "जी मैम बताइए कैसे याद किया?"

नीता ने तुरंत टोका और हंस कर बोली, "अगर आप मुझे मैम की बजाय मासी कहोगे तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा।

मैं भी हाजिर जवाब था। तुरंत नहले पर दहला मारते हुए बोला, "और आप भी मुझे आप की बजाय प्रणय बेटा कह कर पुकारेंगीं तो मुझे भी ज्यादा अच्छा लगेगा।"

नीता मासी खुश हो गई। वो बोली, "मुझे ऐसा आभास हो रहा है कि मेरी ओर तुम्हारी खूब जमेगी। क्यों प्रणय बेटा।"

मैं भी बोला, "जी मासी मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?"

नीता मौसी ने अपनी बनावटी समस्या बताई और हेल्प करने को कहा वो बोली, "अगर बेटा...! तुम्हारा ड्राइवर खाली हो तो भेज दो।"

मैने तुरंत कहा, "अरे! नहीं मासी जी मैं भी आज खाली ही हूं । मैं खुद ही आ जाता हूं। मुझे भी खुद के लिए शॉपिंग करने वक्त नहीं मिलता। मैं भी इसी बहाने आप सब के साथ अपनी भी शॉपिंग कर लूंगा। आप लोग तैयार रहिए मैं एक घंटे में पहुंचता हूं।" कह कर मैंने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

नियति बड़ा असहज महसूस कर रही थी। वो मुझे बिल्कुल भी परेशान नहीं करना चाहती। उसकी नजर में मैं पहले ही उसके लिए बहुत कर चुका था। अब वो मुझे और परेशान नहीं करना चाहती थी। वो भी इतने छोटे से काम के लिए।

पर नियति को क्या पता की ये मेरे लिए परेशानी की बात नही थी बल्कि मेरे मन की मुराद पूरी होने जैसे थी। मैं कल नियति और मिनी को उनके घर छोड़ने के बाद यही सोच रहा था की अब ना जाने कब मुलाकात हो। मैं खुद को नियति के सामने छिछोरा नही साबित करना चाहता था। ना ही मैं कोई नव युवक था की कोई हल्की हरकत करता। मुझे मर्यादित रहना था। फिर ये भी था की नीना देवी की बात मुझे शूल की तरह दिल में चुभ गई थी। मैं बिल्कुल असमंजस में पड़ गया था की आखिर कैसे और कब हमारा रिश्ता परवान चढ़ेगा? वैसे तो ईश्वर मेरी बात को बड़ी देर में सुनता था। आज पता नहीं कैसे इतनी जल्दी मेरे मन की बात समझ ली और नीता मासी को उसका माध्यम बना दिया।

मैने मां से बताया की नियति की मासी का फोन आया था और उन्हें मार्केट जाने के लिए मेरी मदद चाहिए।

मां ने मुझे कहा की मुझे जरूर जाना चाहिए। मैं बड़े उत्साह से तैयार होने लगा। और कुछ ही देर में गाड़ी को तेज रफ्तार में चलाते हुए नीता मासी के घर की ओर चल पड़ा। साथ ही मेरे होठों पर अनायास ही ये गाना आ गया और मैं गुनगुनाने लगा, " चला जाता हूं किसी के धुन में धड़कते दिल के तराने लिए..."

पढ़े अगले भाग में क्या हुआ जब प्रणय नियति , मिनी और नीता मासी के साथ शॉपिंग के लिए गया? क्या सब कुछ ठीक रहा या कोई….?

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