पल पल दिल के पास - 19 Neerja Pandey द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पल पल दिल के पास - 19

भाग 19

इम्तहान

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि नीता मिनी को नियति से मिलवाने जाती है, वो भी नीना से बिना बताए चोरी से। इस बात का पता चलने पर नीना नीता से नाराज हो कर उस को भला बुरा कहती है। नीता को नीना दीदी की बातें बुरी लगती है और वो अपनी बड़ी बहन नीना से नाराज हो कर कर अपने घर चली जाती है। उसके जाने से नीना को उस वक्त तो कोई भी फर्क नहीं पड़ा। क्योंकि वो नियति से मिनी को मिलवाने से नाराज थी। पर जब दूसरे दिन सुबह नीता नही आई तो उन्हें उसकी कमी महसूस हुई। नीता भी उनके घर का ही एक अभिन्न हिस्सा बन गई थी। जब तक नीता सुबह नही आ जाती थी, नीना देवी को घर में कुछ कमी सी महसूस होती थी। नीता के आने पर ही ब्रेकफास्ट शांता टेबल पर लगाती थी। दोनो बहन एक साथ ही ब्रेकफास्ट करती थी। नीता अपने घर अकेली रहती थी इस लिए नीना देवी उसका इंतजार किए बगैर कभी ब्रेकफास्ट नही करती थी। अब आगे पढ़ें :–

नीना देवी को नीता के ना आने से घर बड़ा ही सूना सूना सा लग रहा था। एक पल को इच्छा हुई की फोन करे और नीता को बुला ले। पर फोन उठाते ही दूसरे ही पल नीना को कल का सारा घटना क्रम याद आ गया। फिर उसने हाथ में लिया फोन रख दिया। नीना की नजरों में नीता का अपराध अछम्य था। नीता को नीना छोटी बहन नही बेटी समझती थी। वो नीता से बहुत प्यार करती थी पर वो प्यार नियति से उसकी नफरत के मुकाबले कम ही था। नीना देवी ने अपना सर झटक कर नीता के ख्यालों से आजाद होने की कोशिश की। नीना देवी ने अपनी अकड़ को कायम रखते हुए नीता की कमी को नजर अंदाज करने की कोशिश की। ये सोच लिया कि कुछ दिनों में आदत पड़ जायेगी फ़िर नीता की कमी उन्हे महसूस नहीं होगी।

नीता अपनी दीदी नीना से नाराज हो कर चली तो आई थी, क्योंकि उसे अपना अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ था। पर इधर नीता के लिए भी बहुत मुश्किल था मिनी और नीना दीदी के उस घर से दूर रहना। उसके जीने का आधार ही उस घर से जुड़ा था। नीता को अपने बड़े से बंगले का सन्नाटा बहुत ही चुभता था। वक्त काटना मुश्किल हो जाता था। पहले मयंक और अब मिनी में ही नीता की जान बसती थी। बार बार जीजी के घर की ओर अपने उठते कदम नीता पीछे खींच लेती। उसे कल का अपमान याद आ जाता। नीता ने अपनी भावनाओं पर काबू किया और ये फैसला किया की अब वो मिनी से नियति के साथ उसके घर पर ही मिलेगी। नीता ने कल के घटना क्रम से नियति को अवगत कराना जरूरी समझा। फिर नियति को फोन किया, "नियति बेटा मुझे अफसोस है की अब मैं तुम्हे मिनी से नही मिला पाऊंगी। कल देर होने पर नीना दीदी मिनी को ढूंढने लगी थी। जब उन्होंने मिनी के हाथ में चॉकलेट देखा तो मिनी से पूछ लिया की मैने उसे दिलाई है..? पर मिनी ने मम्मा ने दिया कह दिया। अब तुम बेटा खुद ही सोच लो की आगे क्या हुआ होगा..?" फिर नीता ने कल रात के सारे घटनाक्रम के बारे में बताया। ये सब कुछ सुन कर नियति दुखी हो गई। वो बार बार अफसोस जाहिर कर रही थी की उसका साथ देने के कारण ही उनका इतना अपमान हुआ। ना वो मिलने को बुलाती ना ही इतना बड़ा तमाशा होता। ना ही नीता को मिनी से अलग हो कर अकेलापन झेलना पड़ता। नीता ने नियति को समझाते हुए कहा कि "इसमें उसकी कोई गलती नही है, जिसकी गलती है उसे तो इसका अहसास भी नही है। हमेशा से दीदी की मनमानी झेली है। आखिर कब तक झेलती मैं भी। जो हुआ अच्छा ही हुआ। अब मुझे जीजी से कोई हमदर्दी या लगाव नहीं रह गया। अब तो मुझे सिर्फ उनके सोच पर तरस आता है। आज वो अकेली है। जिसकी जिम्मेदार वो खुद है।"

अब कोर्ट की तारीख करीब आ रही थी दोनो पक्ष अपनी अपनी तैयारी में जी जान से जुटा हुआ था। खुराना अपने सारे जुगाड़ सारे हथकंडे, आजमा लेना चाहता था। आखिर उसे अपना ऑफिस भी तो बचाना था।

इधर मैं भी रस्तोगी के साथ मिल कर सब कुछ ठीक करने की कोशिश में लगा था। रस्तोगी जितना पहले इस केस में लापरवाही कर चुका था, अब सूद समेत उस लापरवाही के कर्ज को उतार कर नियति को न्याय दिलाना चाहता था।

जैसे जैसे वक्त बीत रहा था नीना की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी। मगर नीना को ये हरगिज मंजूर नहीं था की वो नियति से हार मान ले। खुराना ने नीना के कहे अनुसार अपने से भी बड़े लॉयर को भी अपनी टीम में रख लिया था। संतोष साल्वे बहुत बड़े देश के जाने माने वकील थे। उनके कहे अनुसार ही सब कुछ वो कर रहा था। इसमें खुराना को अपना भी फायदा नजर आ रहा था। जो कुछ भी अब होगा उसका जिम्मेदार वो अब अकेले नहीं होगा। नीना मैडम का कोप भाजन उसे अकेले नहीं बनना होगा।

कोर्ट की तारीख के मुकर्रर दिन नीना का मूड सुबह से ही खराब था। एक अनिश्चितता सा महसूस हो रहा था नीना को। ये ख्याल की आज पता नही क्या होगा अदालत में...? नीना को परेशान कर रहा था। नीना देवी ने मिनी को भी तैयार करने को शांता को कह दिया था। शांता ने मिनी को भी नहला धुला कर तैयार कर दिया था। नीना को मिनी को साथ ले कर जाने की एक वजह ये भी थी की वो जज साहब के सामने ये जाहिर करना चाहती थी की वो मिनी का इतना ख्याल रखती है की जहां भी जाती हैं अपने साथ ले कर जाती है। उसे खुद से एक पल के लिए भी अलग नहीं करती। नीना देर करके जज साहब के सामने अपनी इमेज खराब नही करना चाहती थी इसलिए समय से पहले ही मिनी और शांता के साथ कोर्ट के लिए रवाना हो गई।

मैने भी निकलने की तैयारी कर ली थी। मैं समय से एक मिनट भी लेट नही होना चाहता था। तय कार्यक्रम के मुताबिक मुझे रास्ते में रस्तोगी को भी लेना था। मैने नियति को भी बोला की साथ वो भी चले वरना उसे देर हो सकती है। पर उसने वादा किया की "मैं बिल्कुल भी देर नहीं करूंगी समय से पहुंच जाऊंगी।"

जब से मां ने सुनवाई की तारीख के बारे में जाना था, वो अलग ही जिद्द पकड़ कर बैठी थी। मैने अपना किया वादा नही निभाया था। नियति से मिलवाने का वादा किया था पर अभी तक उसे पूरा नहीं किया था। उन्होंने हठ कर लिया था की "तू तो लेकर आएगा नही मैं भी आज तेरे साथ ही चलूंगी।" मैने पहले तो टालने की बहुत कोशिश की पर जब मां नही मानी तो साथ ले चलने को तैयार हो गया।

मैं मां के साथ घर से निकला रास्ते में रस्तोगी को लिया। फिर कोर्ट पहुंच गया। नियति भी लगभग मेरे साथ ही पहुंची। हमारे केस का पहला ही नंबर था। आज रस्तोगी की तत्परता देखते ही बन रही थी। नियति के साथ उसके दोनो मामा और मां भी आई थी। और मेरी मां… वो तो सिर्फ नियति को भर नजर देखने आई थी। पर उन्हे क्या पता था की वो उसके लगभग पूरे परिवार से मिल लेंगी?

कोर्ट की कार्यवाही शुरू हुई। पहले रस्तोगी ही खड़ा हुआ। उसने मेरी ओर देखा। मैने थम्स अप कर उसे चीयर अप किया। उसने मुस्कुराकर आंखो से ही मुझे धन्यवाद किया। रस्तोगी ने पूरा मामला जज साहब के सामने बड़ी ही कुशलता से रक्खा। बड़े ही भावुक अंदाज में एक मां की ममता की तड़प को जज साहब के सामने दर्शाया। जज साहब की भाव भंगिमा से ऐसा प्रतीत हो रहा था की वो रस्तोगी की बातों से सहमत हो।

रस्तोगी की बात खत्म होने पर खुराना की बारी आई। जज साहब ने खुराना को अपना पक्ष रखने को कहा। संतोष साल्वे खुद खड़े तो हुए पर बिना कुछ कहे खुराना को पूरा मामला पेश करने को कह दिया। खुराना ने कस्टडी का विरोध पुरजोर तरीके से किया। तथ्य के रूप में ये रक्खा कि नियति एक जिम्मेदार मां नही साबित हो सकती। उसे जीविकोपार्जन के लिए पैसे चाहिए होंगे, और उसके लिए बाहर जाना होगा। नियति की गैरमौजूदगी में बच्ची की देखभाल कौन करेगा? क्या वो ठीक होगा जज साहब? फिर जिस ऐशो आराम से मेरी क्लाइंट नीना देवी बच्ची को पाल रही है। जिस बड़े प्ले स्कूल में उसको वो भेज रही है क्या नियति जी भेज पाएंगी?"

जज साहब अभी सोच ही रहे थे कि रस्तोगी ने अपनी बात कहने की अनुमति मांगी। रस्तोगी ने कहा, "जज साहब सबसे जरूरी है इतने छोटे बच्चे के लिए मां की ममता वो मेरी क्लाइंट उसमे कोई कमी नही करेंगी इसका यकीन तो आपको भी होगा।"

रस्तोगी खुद बहुत कॉन्फिडेंस में था पर संतोष साल्वे की मौजूदगी भर से ही सामने वाले विरोधी वकील की हालत डावाडोल हो जाती थी। फिर भी रस्तोगी अपना बेस्ट दे रहा था। उसे हर हाल में नियति को मिनी के सुपुर्द करवाना था अदालत के जरिए।

खुराना ने तुरंत ही विरोध किया कहा, "योर ऑनर आप खुद देख सकते है मेरी क्लाइंट नीना देवी बच्ची का कितना ज्यादा ख्याल रखती है। वो एक पल के लिए भी बच्ची को खुद से अलग नहीं करतीं। यहां तक की वो कोर्ट में भी भी बच्ची को ले कर आई है। जो आपके सामने है, आप खुद देख सकते है।"

क्या रस्तोगी नियति का पक्ष सही ढंग से पेश कर पाया? क्या नियति को मिनी की कस्टडी मिल पाएगी। क्या नीना देवी का मिनी को साथ लाकर जज साहब पर अच्छा असर डालने की कोशिश कामयाब रही। पढ़े अगले भाग में।