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जेन ऑस्टिन - अंतिम भाग

घर में हुए इस कारनामे को एक महीना गुज़र चुका था। लेकिन बिगड़ी हुई व्यवस्था अभी तक ठीक नहीं हुईं थी। और इस बिगड़ी हुई व्यवस्था की उथल-पुथल में निशा बड़ी शांत रहने लगी थी। उसका कॉलेज तक छूट चुका था। और शेखर के घर दूध लेकर जाना तो दूर की बात; बल्कि, घर से बाहर जाने वाले दरवाज़े और उसके पास की खिड़की की तरफ जहाँ से वो शेखर को देखती थी। वहाँ पर भी जाने की पाबंदी लगा दी गई थी। घर के बाहर भी कोई दुनिया है। इसका आभास तो जैसे उसके लिए खत्म ही हो चुका था। और बाहर की बातें अब घर में चोरी छुपे ही होती थी।

प्रीति पर तो घर की औरतों द्वारा नज़र रखी ही जाती थी। कि कहीं ये खुद को नुकसान ना पहुँचा ले, बल्कि निशा पर भी नज़र रखी जाती कि कहीं ये भी प्रीति के नक्शे कदम पर ना चलने लगे, इसलिए अब वो ऑस्टिन का कोई रोमांटिक उपन्यास भी नहीं पढ़ सकती थी। जिसके किरदार में खुद की झलक देखकर अपने मन को तसल्ली दे सकें और ना ही अपने मन में उठने वाले प्रेम के ज्वार भाटा को कागज़ों पर उड़ेल सकती थी। वो बस चुपचाप घर के कामों में लगी रहती और काम ना होने पर किसी कोने में अकेली पड़ी रहती क्योंकि प्रीति को तो इतनी भी आज़ादी नहीं थी। कि अपनी मर्जी से घर के अंदर भी घूम-फिर सकें और दोनों का एक साथ दिखना तो जैसे घर में महाभारत को शुरू करना था। इसलिए उस दिन के बाद से दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई थी।


गाँव, शहर, कस्बा कोई भी जगह हो, जब भी कोई लड़की कुछ ऐसा कर बैठती हैं। जो घरवालों को नागुज़र होता है। तो उनके पास इस स्थिति को संभालने का एक ही तरीका होता हैं। कि घर में जितनी भी लड़की शादी की उम्र की हैं। उनकी जल्द से जल्द डोली उठा दो, चाहे लड़के जैसे भी हो, बस इसी सिद्धांत पर चलते हुए उन दोनों की भी शादी तय कर दी गयी।

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सुहागरात को निशा जब कमरे में मोमबत्ती की रोशनी में अपने पर्स में साड़ी से सेफ़्टी पिन निकाल कर रख रही थी। तब उसे अपने पर्स में प्रीति का लिखा हुआ एक पत्र मिला, पहले तो उसने सोचा बड़ी बहन हैं। ऐसे ही लिख दिया होगा बाद में पढ़ लूंगी, पर थोड़ी ही देर बाद उसके दिमाग में विचार कौंधा की कहीं प्रीति ने मुझे इस पत्र में उस लड़के के बारे में तो नहीं बताया जिसके साथ वो घर छोड़ कर चली गई थी। उसने तुरंत पत्र खोलकर पढ़ना शुरू किया-----

“निशा, मैं काफ़ी वक़्त से तुझसे कुछ कहना चाहती थी। और वो ये था कि मैं जिस लड़के के साथ घर छोड़ कर गई थी। वह शेखर था। मैं जानती हूँ तुझे बुरा लगेगा, क्योंकि तू भी उससे प्यार करती थी। तू सोचती थी। वो तेरे लिए खिड़की पर आता हैं। पर वो मेरे लिए आता था। लेकिन तूने कभी ये ध्यान देने की कोशिश नहीं की, तुझे बता दूं, मैं उससे प्यार तब से करती थी। जब वो हमारे घर के सामने रहने भी नहीं आया था। हम दोनों एक साथ कॉलेज में एक ही क्लास में पढ़ते थे। और वो यहाँ पर सिर्फ मेरे लिए ही रहने के लिए आया था।

तू ये सोच रही होगी मुझे तेरे बारे में कैसे पता चला। दरअशल मुझे शेखर ने ही बताया था। कि तू उसे लाइन देती हैं। पहले तो मुझे इस बात पर यकीन नहीं हुआ। लेकिन बाद में जब मैंने तेरी बुक बिकमिंग जेन पर शेखर आइ लव लिखा देखा तो मैं समझ गईं, बड़ा गुस्सा आया था, तुझ पर, लेकिन शेखर ने मना कर दिया था। तुझे कुछ भी कहने के लिए।

तुझे याद होगा। शेखर के साथ जाने से दस दिन पहले तूने मुझे सेंस एंड सेंसिबिलिटी नॉवेल दिया था पढ़ने के लिए, बस उसी नॉवेल को पढ़कर मुझे लगा था कि कहीं मेरा शेखर भी जॉन विल्लुबी की तरह मुझे छोड़कर किसी और के पास ना चला जाए, क्योंकि मैं इतनी सुंदर नहीं था ना, इसलिए मैंने उसके साथ भाग जाने का रास्ता चुन लिया पर मुझे क्या पता था। मेरे ऐसा करने पर मैं अपने साथ-साथ तेरी भी ज़िन्दगी ख़राब कर दूँगी।

मुझे अब भी याद हैं। निशा, उस दिन जब दोनों चाचा मुझे घर ला रहे थे। तब छोटे वाले चाचा कह रहे थे। साले को उम्र भर जेल में डाल दूंगा, बेटीचोद ठाकुरों की लड़की को लेकर भागता हैं। सच निशा पता नहीं मुझे क्यों ऐसा लगता हैं। जैसे इन लोगों ने शेखर के साथ बहुत बुरा किया हैं। कहीं उसे इन्होंने मार ना दिया हो, और उसके परिवार वालों को वहाँ से कहीं दूसरी जगह भगा दिया हो, क्योंकि पिछले दो महीने से उनके घर का ताला लगा हुआ हैं।

कहने को तो बहुत कुछ हैं। लेकिन बस इतना कहना चाहती हूँ, जब तू मेरा ये पत्र पढ़ रही होगी शायद तब तक मैं ज़िंदा ना रहूँ, इसलिए तेरी ज़िंदगी बर्बाद करने के लिए मुझे माफ़ कर देना।“

पत्र को पढ़कर निशा ने खुद को ढंग से संभाला भी नहीं था। तभी मनोज पीछे से कमरे में दाखिल हुआ और उसने पीछे से निशा की आँखों पर हाथ रखकर उसे पलंग पर ले जाकर बैठा दिया।

थोड़ी देर तक मनोज निशा को अपने बारे में बताता रहा कि उसका बचपन कैसा था।, जवानी कैसी थी।, अब उसके क्या सपने हैं। वो अपनी पत्नी से क्या चाहता हैं?, पर निशा तो जैसे शून्य में विसरण कर रही थी। उसका ध्यान तो बस इस बात पर था। कि उसका शेखर पहले से किसी और का था। उसका मन बार- बार अब भी शेखर के सपनों को संजोने की कोशिश में लगा था। पर उसका ज़हन उन्हें खुद से बाहर निकालना चाहता था। और सामने बैठा मनोज, निशा की मनोदशा से बिल्कुल अनजान अपना पूरा परिचय देकर अब पति के किरदार में आ चुका था।

बेबसी, बेचैनी, टीस, पागलपन, आँसू, झुंझलाहट, ये सब निशा के साथ एक साथ हो रहा था। उसे शेखर पर गुस्सा आ रहा था या खुद पर या फिर शेखर ने जिस लडक़ी से प्यार किया था उस पर, सब कुछ उसकी समझ से बाहर था। वहीं दूसरी तरफ मनोज उसके शरीर से लिपटे कपड़े उतारकर, जो अब तक पुरी तरह मनोज को उसका पति बनने के दावे को ख़ारिज कर रहे थे।, उसकी देह को कहाँ से समझना शुरू करूँ इसका प्रयत्न कर रहा था।, निशा के मन में लगातार शेखर के लिए नफरत पैदा हो रहीं थी। वहीं मनोज उसके निर्वस्त्र बदन को प्यार से निहार रहा था। वो शेखर के एक-एक ख्याल को खुद से दूर करना चाहती थी। पर मनोज उसके अनछुहे बदन पर जिसे आजतक संभाल कर रखने की तालीम दी गई थी। उस पर चुम्बनों की बौछार कर रहा था।, वो शेखर के ख्याबों से खुद को दूर करने की जद्दोजहद में लगी थी। और मनोज उसके जिस्म के एक हिस्से में खुद के एक हिस्से को प्रवेश करने की तैयारी कर चुका था। वो शेखर के नाम से दूर भागना चाहती थी। वहीं मनोज उससे पुरी तरह मिल कर निढाल हो चुका था।

पूरी रात लेटे-लेटे निशा की रात तो शेखर नाम से प्यार और नफरत की कशमकश में गुजरी वहीं दूसरी तरफ मनोज कभी निशा से लिपटकर तो कभी अलग होकर बराबर में चैन की नींद सोता रहा।


दो दिन बाद जब निशा पूर्वजों द्वार बनाए गए रीति रिवाजों में से एक को पूरा करने के लिए अपने घर गई तो उसे वहाँ पता चला कि प्रीति ने दो दिन पहले आत्म हत्या कर ली, लेकिन उसे इस बात की सख्त ताकीद दी गईं कि इस बात को ज्यादा तूल मत देना, क्योंकि इससे तेरे ससुराल में फर्क पड़ेगा। वो लोग सोचेंगे ऐसी क्या बात हो गईं जो शादी के अगले दिन ही लड़की ने आत्महत्या कर ली और तेरे ताई-ताऊ प्रीति के ससुराल गए हैं। इसलिए हम सबको यहाँ चुपचाप रहना हैं। निशा भी घरवालों की बात मानकर पुरा दिन चुप रही।

रीति रिवाजों की रस्मों को पूरा करके जब शाम को निशा अपने ससुराल जाने को तैयार होकर बाहर खड़ी गाड़ी में बैठने को चली तो उसने अपनी नज़रों को शेखर के घर की तरफ घुमाया जहाँ पर ताला लगा हुआ था। और दीवार पर लिखा था। (किराए के लिए संपर्क करें)

सड़क पर चलती गाड़ी ने अपनी रफ्तार पकड़ी ही थी। कि निशा के मन में, पिछले दिनों जो कुछ हुआ और उसके कारण जो कुछ हुआ था। वो सब एक साथ घुल मिलकर उथल-पुथल मचाने लगा पर ससुराल वालों को दिखाने के लिए वह बड़ी शालीन होकर बैठी थी। कुछ देर मन में हुई घटनाओं की हलचल के बाद वो सोचने लगी। “प्रीति ने जो किया गलत था। या सही, इसका फैसला करना आसान नहीं हैं। पर उसके मरने के बाद भी, उसके साथ इतना बेरुखी भरा रवैया; क्या लड़की का अपनी मर्ज़ी से उठाया गया एक कदम, उसे उम्र भर और मरने के बाद भी, समाज की नज़रों से गिरा देता हैं। माँ और चाची की आंखों में उसके लिए एक भी आँसू नहीं था। और मरने के बाद भी दो अच्छे शब्द उसके लिए नहीं निकल रहे थे। आखिर उसने प्यार ही तो किया था। और उस प्यार के साथ रहने के लिए वो, इन्हें छोड़कर चली गईं थी। उस एक वजह से इतनी नफरत, और पापा तो ऐसे दिख रहे थे। जैसे कुछ हुआ ही ना हो,

माँ ने बताया था। ताई और ताऊ प्रीति के ससुराल गए हैं। क्या पता वो वहाँ पर दिखावे के लिए गए हो और अंदर से सुकून महसूस कर रहे हो कि आखिर मर तो गई, वरना जाने, आगे ज़िन्दगी में क्या-क्या दिखाती और ये भाई बचपन में साथ खेलते है। पर बड़े होकर ये भी काबू करने लग जाते हैं। जैसे इनके लिए बहन नाम का शब्द इस दुनिया में सबसे बुरा हैं।

क्यों आत्महत्या की होगी उसने, आखिर कितनी समझदार थी।, वो बचपन से, हर अच्छी बुरी चीज़ का मतलब समझ थी। पूरे दिन ताई द्वार गाली खाने के बाद कि तेरी वजह से हमारे लड़का नहीं हुआ, फिर भी कितना तो खुश रहती थी। पर अब क्यों उसने ऐसा किया। वो क्यों अपने हालातों से संघर्ष नहीं कर पाई। कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने अपने पति को बता दिया हो, शेखर के बारे में और गुस्से में आकर उसके पति ने ही उसका गला दबा दिया हो, और बाद में आत्महत्या की ख़बर फैला दी हो---ऐसे ही सोच विचार में डूबे हुए निशा की गाड़ी ससुराल पहुँच चुकी थी। एक बार फिर ससुराल में उसके स्वागत ऐसे ही हुआ। जैसा पहली बार हुआ था

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आने वाले कुछ समय तक मनोज उसके साथ बिना बोलचाल की रति क्रियाओं में मशगूल रहा था। लेकिन जब वो इस चीज़ से तंग आ गया कि ये कुछ बोलती क्यों नहीं, तो एक रात रति क्रिया शुरू करने से पहले वह उससे बोला,’क्या तुम मुझे वैसे ही प्यार करती हो जैसे मैं तुम्हें करता हूँ।‘

इस बात को सुनकर निशा के दिमाग में पहले तो दुनिया भर के विचार कौंधे की कहीं कुछ पता तो नहीं चल गया, इसे शेखर के बारे में, पर फिर उसने दिमाग को स्थिर करकर सोचा कि अगर इसे कुछ पता होता तो ये इस बात को मुझे बाँहों में भरकर थोड़ी ना पूछता। और वैसे भी जिसे मैं प्यार करती थी। वो तो पहले से ही किसी और का था। और जिसका था। उसकी तो उसके प्यार ने जान ले ली।‘

निशा की खामोशी देखकर मनोज रूठने के अंदाज़ में बोला,’ये बोलने में कि प्यार करती हो, इतनी देर’

मनोज की बेचनी को देखते हुए निशा ने अबकी बार अपना मुँह खोला और प्राइड एंड प्रेज्यूडिस का कोट “अगर तुम दुनिया के आखरी मर्द भी होते तो भी मैं तुमसे प्यार नहीं करती” को बदलते हुए उससे बोली, ‘दुनिया के आखिरी छोर तक मैं तुमसे प्यार करना चाहती हूँ। और तुम इस संसार में अकेले मर्द हो जिसकी होकर मैं जीना चाहती हूँ।‘

इतना सुनते ही मनोज ने अपने होंठ उसके होंठो पर गिरा दिए और वो दोनों आने वाले कुछ घंटो तक चादर के सिकुड़ने पर पड़ती सलवटों में एक-दूसरे को आलिंगन में लेते रहे और फिर एक-दूसरे में समाकर एक हो गए।



अगले चार महीने तक वक़्त बड़े आराम से बीत गया था। क्योंकि निशा शेखर की यादों के अतीत से बने गलियारों को छोड़कर करकर, मनोज के प्यार भरे घर में प्रवेश कर चुकी थी। वो मान चुकी थी। उसके लिए घोड़े पर चढ़कर आने वाला कर्नल ब्रैंडन मनोज ही है। उसने अपने ख्यालों को समेटकर मनोज तक सीमित कर दिया था। उस रात के बाद जो मनोज के लिए प्रेम क्रीड़ाओं से भरी और निशा के लिए अपने मन के समर्पण की रात थी। जब वो सोकर उठी थी। तो उसने सबसे पहले अपनी माँ को फोन करकर अपने उपन्यासों को जलाने के लिए बोल दिया था। उसे उस सुबह पहली बार ऐसा लगा था। कि जिन उपन्यासों के किरदारों में वह खुद को अब तक ढूंढ रही थी। वह उनमें कभी थी। नहीं, इसलिए उसने अपनी जिंदगी से मरियाने दशवुड, एलिनोर, एलिज़ाबेथ, एम्मा, लेडी सुजैन, फैनी सब को निकाल दिया था। और उनकी जगह घर संभालने वाली पत्रिकाओं को दे दी थी।


अपनी प्रेग्नेंसी के आठवें महीने में एक दिन निशा बैठकर कोई पत्रिका पढ़ रही थी। पढ़ते-पढ़ते उसकी नज़र सामने टेबल पर बिखरे पड़े अखबार पर गई जिसके कानपुर आसपास वाले पेज पर एक छोटा सा कॉलम छपा था।

SHO कृष्णवीर सिंह(निशा के चाचा) को सरकार द्वारा मिला समान

SHO कृष्णवीर सिंह को उनकी बहादुरी और कर्तव्य के लिए राज्य सरकार द्वारा गोल्ड मैडल प्रदान किया जाता हैं। ये सम्मान उन्हें कानपुर में कई महीनों से चले आ रहें दो बाप बेटों के गैंगवार जो मिल्क डेरी की आड़ में चल रहा था।, को एनकाउंटर में मारने के लिए दिया जाता हैं। इन दोनों बाप बेटों के गैंग काफी वक्त से कानपुर में कई लूटपाट और हत्याओं की वारदातों को अंजाम दे चुके थे। इसलिए ये पुलिस की एनकाउंटर लिस्ट में सबसे ऊपर थे। पुरस्कृत होने के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में SHO कृष्णवीर सिंह ने कहा हैं। अगर आम नागरिक हमारा साथ ऐसे ही देते रहे तो जल्दी ही हम शहर में जुर्म की वारदातें कम करने में कामयाब होंगे।

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