The Author Akshika Aggarwal फॉलो Current Read बाल कथाएं - 2 - अहँकार ही हार है By Akshika Aggarwal हिंदी रोमांचक कहानियाँ Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books साथिया - 127 नेहा और आनंद के जाने के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई... अंगद - एक योद्धा। - 9 अब अंगद के जीवन में एक नई यात्रा की शुरुआत हुई। यह आरंभ था न... कॉर्पोरेट जीवन: संघर्ष और समाधान - भाग 1 पात्र: परिचयसुबह का समय था, और एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी की... इंटरनेट वाला लव - 90 कर ये भाई आ गया में अब हैपी ना. नमस्ते पंडित जी. कैसे है आप... नज़रिया “माँ किधर जा रही हो” 38 साल के युवा ने अपनी 60 वर्षीय वृद्ध... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Akshika Aggarwal द्वारा हिंदी रोमांचक कहानियाँ कुल प्रकरण : 6 शेयर करे बाल कथाएं - 2 - अहँकार ही हार है (2) 2.2k 4.7k एक बार की बात है नजबगढ़ में दो भाई रहते थे अनिकेत और निकेत। अनिकेत पढ़ने में बहोत होशियार था और निकेत थोड़ा कमजोर था। अनिकेत दिन में सिर्फ़ एक घन्टे पढ़ताथा था और कक्षा में अव्वल आ जाता था परन्तु निकेत निकेत दिन में 10 घण्टे पढ़कर भी कक्षा में फेल जाता था निकेत और अनिकेत के माता पिता हमेशा अनिकेत की प्रसंशा करते थे।और निकेत को अच्छी तरह पढाई करने को कहते थे। लगभग स्कूल की सभी टीचर्स का भी स्कूल में यह ही बर्ताव था हर जगह अनिकेत की वाह वाह होती थी औऱ निकेत का मजाक उड़ाया जाता था। निकेत इस बात से बहोत उदास रहता था। वह किसी से बात नही करता था । बस ईश्वर से यही पूछता के आखिर वह पढ़ाई में इतना कमजोर क्यों है। आखिर वो अनिकेत की तरह अव्वलअंक क्यों नही ला सकता? आखिर क्यों वह सबके हँसी का पात्र बनता है? वही दूसरी और अनिकेत अपनी बुद्धि पर बहोत घमंड और गर्व करता था। एक रात निकेत इसी बात को लेकर रोता रोता सो गया। उस रात उसके सपने में ईश्वर आये और उसे बोले तुम रोज मुझे पुकारते हो मेरी आराधना करते हो। मैं तुम्हारी अराधना से बेहद प्रसन्न हूँ मांगो क्या मांगते हो?" निकेत बोला "मुझे अनिकेत की तरह बुध्दिमान बना दो, मैं कक्षा अव्वल अंक लाना चाहता हूँ" इस बात पर ईश्वर बोले जब भी तुम कठिन परिश्रम के बाद कोई कार्य करोगे तुम हमेशा सफल होगे। यह बात सुनकर निकेत ने ईश्वर को हाथ जोड़े और प्रण लिया लिया वह अपनी कमियों पर रोना बंद करेगा और हर दिन कड़ा परिश्रम कर अव्वल आएगा। यह बात सुनकर ईश्वर प्रसन्न हुए और "तथास्तु" कहकर देवलोक चले गये। सुबह जब निकेत उठाऔर तैयार होकर स्कूल पहुंचा तो उसकी आँखों मे एक नई शुरूआत के लिए उत्साह साफ देखा जा सकता था। उसका यह उत्साह देखकर अनिकेत ने उसका मजाक उड़ाया वो बोला"आज फ़िसड्डी ज्यादा खुश लग रहा है। क्या बात है?" निकेत ने कुछ नही कहाऔर अपनी किताब में ध्यान लगाने लगा। इतने में स्कूल के अध्यापक आये और अगले दिन एक सरप्राइज टेस्ट रख दिया। जैसे ही अध्यापक जी ने इस टेस्ट की घोषणा की सब बच्चे अपनी किताब में ध्यान लगाकर पढ़ने लगे परअनिकेत बोला"मुझे पढ़ने की क्या जरूरत मुझे सब आता हैं" पर निकेत घर जा कर भी पढ़ने लगा। पर अनिकेत ने एक बार भी क़िताब को हाथ नही लगाया यह सोच कर की यह विषय वो कक्षा में पढ़ चुका है । उसे दुबारा पढ़ने की जरूरत नहीं। अगले दिन जब परीक्षा में प्रश्न पत्र हाथ मे आया तो वह कुछ याद ना होने के कारण वह कुछ लिख नहीं पाया परंतु निकेत ने सारे सवालों के सही उत्तर देकर कक्षा में प्रथम आया उसकी हर जगह तारीफ होने लगी और अनिकेत की निंदा। इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती हैं। हमे अपने ऊपर घमंड नहीं करना चाहिए हर कार्य को श्रम से पुरा करना चाहिए। तब ही आपकी असली जीत होगी यदि आप अपने पर अहँकार करेंगे तो आपकी हार निश्चित है। ‹ पिछला प्रकरणबाल कथाएं - 1 - मन की सुंदरता › अगला प्रकरण बाल कथाएं - 3 - जितना है उसमें संतुष्ट रहो। Download Our App