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कल तो गोविंद के गुण गाएंगे..

कल तो गोविंद के गुण गाएगे…

एक गाँव था। लहराते खेतों से हरा भरा, अपनी तरह से समृद्ध और आपस में मिलजुलकर रहने वाले गाम लोग।

श्रावण के धार्मिक महीनेमें गांव में एक कथा रखी गई। कथाकार लोकवार्ताऐं एवं पौराणिक कथाओं कहने में माहिर था। हररोज नई नई कथा अपने विचारों जोड़कर वह कहता और गाँव या आसपास घटी किसी घटना का वर्णन भी अपनी कथाओं के साथ जोड़ देता था।

गाँव के लोग उस कथाकार का बहुत सन्मान करते थे और कोई ना कोइ भेट सौगाद देते थे।

एक सुबह कथाकार नजदीक के किसी गाँव से अपना कुछ यजमानवृत्ति का कार्य निपटाकर लौट रहा था। उसकी नजर रास्ते के एक खेत पर पड़ी। गाँव का जानामाना किसान गोविंदभाई अपने खेत के बाहर रास्ते पर एक कोने में शौच कर रहा था। कथाकार को अपनी और आते देखकर वह तुरंत अपने कपड़े ठीक करते खड़ा हो गया और विष्टा (शौच) पर धूल डाल दी।

कथाकार को कोई फर्क नहीं पड़ा। वह तो खाली मुस्कुराया और कोई धार्मिक पाठ करता आगे बढा।

अब शाम को कथा हुई। गोविंद पटेल (गुजरातमें किसानों को मान से पटेल कहते है।) भी वह कथा सुनने, खास तो महाराज अपनी सुबह की बात कह न दें यह देखने आया था।

कथा रोचक ढंग से पूरी हुई। एक ग्रामवासी ने पूछा "महाराज, कल किसकी कथा करोगे?"

महाराज (कथाकार) ने उत्तर दिया "कल तो गोविंद के गुण गाएगे…"

अपने गोविंदभाई को लगा कि कथाकार कहीं उसकी बात न कर दें। उन्होंने कथाकार को चुप रखने और प्रसन्न करने के लिए तुंरत बोला "महाराज, मेरी ओर से दो मन (आजके 40 किलो) बाजरा (millet, गुजरातमें उससे रोटला नाम की रोटी बनती है।) आपको भेंट।"

महाराजने दोहराया "जय हो गोविंद की.." जिसमें अपने गोविंदभाई और कृष्ण दोनों की जय अभिप्रेत थी।

अब दूसरे दो चार दिन बाद मीरांबाई के भजन महाराज ने गाए और कथा समाप्त की। फिरसे किसी गांववाले ने पूछा "महाराज, कल किसकी कथा करोगे?"

महाराज ने कहा "हम तो गोविंद लीला सुनाएंगे। आजकल की घटनाओं का आख्यान भी करेंगे।

साथ में कल तो गोविंद के गुण गाएगे…"


गोविंद लीला? वो भी आजकल की बात? गोविंदभाई को लगा कि अब तो गांव के सामने आज उनकी हरकत का आख्यान होने वाला है।

उन्होंने तुरत खड़े होते बोला " महाराज, मेरी ओर से 40 किलो शुद्ध घी आपकी सेवामें।"

महाराजने दोहराया "जय हो गोविंदजी की…"

ऐसे गोविंदभाई ने 20 किलो लड्डू, महाराज की पत्नी के लिए साडी और हर वक्त कुछ न कुछ चढावा दिया, महाराज को प्रसन्न एवं चुप रहने के लिए।

दूसरे दिन सिर्फ गोविंदजी की रासलीला का आख्यान कीया गया। अपने गोविंदभाई को शांति हुई।

अब दूसरे चार पांच दिन गए। महाराज ने सुंदर भजन किए और उस दिन की कथा समाप्त की।

किसी गांववाले को बड़ा मज़ा आया। उसने पूछा

"महाराज, कल किसकी कथा करोगे?"

महाराज ने तुरत कहा "कल तो गोविंद के गुण गाएगे…"

किसीने पूछा भी, " महाराज, गोविंदजी के गुण तो

अनंत है। आप कौनसे गुण गाएंगे?"

महाराज ने कहा " हम तो अपने गांवमें रहते गोविंद की ही बात करेंगे। ज़रूर सुनना, अब तक कोई नहीं जानता ऐसी बात करूँगा।"

गोविंदभाई को लगा इसका अर्थ महाराज मेरी ही बात करने वाले है।

महाराज का कहने का ता तात्पर्य था कि वो गोकुल गांव में रहते गोविंदजी यानि कृष्ण की बात नए ढंग से करेंगे। पर गोविन्दभाई को लगा कि अब महाराज उसे ब्लैकमेल करते है और हर बार कुछ न कुछ पड़ाता रहता है। अब उसे अटकाना ही पड़ेगा। कहाँ तक वह देते ही जाए?

गोविंदभाई तो टप से खड़े हो गए और गुस्से से बोले "ओ धोती चोटी वाले ब्राह्मण, मै कब से तेरी धमकीयां सुनता जा रहा हूँ और तुझे चुप रखने के लिए बड़ी बड़ी भेंट सौगाद चढ़ा रहा हूँ। आखिर तूं क्या फटेगा तेरे मुँह से, मैं ही कह देता हूँ।"


इन्होंने गांववालों के सामने घूम कर कहा " हाँ भाई। मेरी सौ बार गलती है। मैं मेरे ही खेत के बाहर जाहिर रास्ते पर शौच जाने बैठा था और यह आटा मांगने वाला ब्राह्मण मुझे देख गया और हँसा। मैंने धूल भी डाल दी थी। कपड़े ठीक से पहनूं वहाँ यह लोटमंगा ( ब्राह्मण के बारे में अशोभनीय उक्ति। क्यों कि कथाकार याचक वृत्ति पर जीता है) मुझे देख गया । अब हर बार 'गोविंद के गुण गाउँ, गोविंद के गुण गाउँ, ' कहते ही जा रहा है और मुझसे अपने को चुप रखने के लिए मांगे ही जा रहा है। हाँ, मैं बैठा था शौच करने, रास्ते पर। बोल, क्या कर लेगा तूं?"

पूरा श्रोतागण स्तब्ध हो गया। किसीने ऐसी अपेक्षा न की थी।

महाराज फिर ज़ोर से ठहाका लगाते हँसे और बोले "गोविन्द पटेल, मैंने देखा अनदेखा कर दिया था। तेरा कर्म तुं जाने। गोविन्द के गुण मतलब हर बार मैं तो कृष्णजी के गुण की ही बात करता था। जिसके मनमें कोई पाप हो वही छुपाने के लिए आकाश पाताल एक करता है। आज तो आपकी दक्षिणा भी शिव निर्माल्य। जाओ, माफ कर दिया।"

महाराज तो पोथी उठाते चल गए, गांववालों ने गोविंदभाई की जो खिंचाई की.. जो सब उसकी मज़ाक उड़ाने लगे..

गोविंदभाई ने अब अपने खेतमें जाने का वक्त भी सुबह से पहले कर लिया और आने का वक्त भी अँधेरे में। कहीं कथा मंडप की बात याद करते गांववाले 'गोविन्द के गुण ' गाते उनके पीछे न पड़ जाए।

हाँ, गोविंदभाई ने अपने खेत के पास ही शौचालय बनवा लिया और गांवमें शौचालय बनाने भी दान दीया, घी या लड्डू या बाजरे का नहीं, नकद रुपए का!

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